डा॰ ए ॰ के॰ सिंह, बालरोग विशेषज्ञ

डा॰ ए ॰ के॰ सिंह, बालरोग विशेषज्ञ Nursing home

07/03/2023
26/12/2022

मेरा शिशु रोता क्यों हैं?
आपका शिशु पूरी तरह से आप पर आश्रित है। आप उसे भोजन, प्यार-दुलार और आराम प्रदान करती हैं, जिसकी उसे जरुरत होती है। जब वह रोता है, तो यह यह बताना चाहता है कि उसे इसमें से किसी एक या फिर सभी चीजों की जरुरत है और वह आपकी तरफ से प्रतिक्रिया भी चाहता है।

कई बार यह पता लगाना मुश्किल होता है कि शिशु आपको क्या बताना चाह रहा है। लेकिन समय के साथ आप पहचानने और समझने लगेंगी कि आपका शिशु क्या चाहता है।

जैसे जैसे आपका शिशु बढ़ता है वह आप के साथ बातचीत करने के अन्य तरीके सीख लेता है। वह आँखों का सम्पर्क बनाने, शोर मचाने या मुस्कुराने में माहिर होता जाएगा। ये सभी तरीके आपका ध्यान अपनी तरफ खींचने के लिए शिशु की रोने की आवश्यकता को कम कर देंगे।

इस बीच, यहां शिशु के रोने के कुछ कारण बताए गए हैं:
1-भूख यह आपके नवजात शिशु के रोने के सबसे आम कारणों में से एक है।आपका शिशु जितना छोटा होगा, उसके भूख से रोने की संभावना उतनी ही ज्यादा होगी।
2-नैपी (लंगोट) बदलने की जरुरत। यदि शिशु नैपी में मलत्याग कर दे, पेशाब कर दे या फिर उसे कपड़े तंग लगें तो वह रोना शुरु कर सकता है। या फिर हो सकता है कि उसका डायपर पेशाब से भर जाने के बाद भी उसे कुछ फर्क न पड़े और वह इससे मिलने वाली गर्माहट और आरामदायह अनुभव का मजा ले रहा हो। मगर यदि आपके शिशु की नाजुक त्वचा में जलन हो रही हो, तो वह संभवतया रोएगा ही।
3-अत्याधिक गर्मी या सर्दी महसूस होना। नवजात शिशु अपने शरीर का तापमान आसानी से नियंत्रित नहीं कर सकते। यदि उसे बहुत अधिक गर्मी लगे या सर्दी लगे, तो वह रोना शुरु कर सकता है।
4-गोद में आना चाहता है।आपका शिशु आपका बहुत सारा प्यार-दुलार, शरीरिक संपर्क और आराम दिलवाने का आश्ववासन चाहता है। इसलिए हो सकता है कि वह केवल आपकी गोद में आना चाहता हो।
5-शिशु थक गया है और आराम चाहता है।अक्सर, शिशुओं को सोने में काफी मुश्किल होती है, खासकर यदि वे बहुत ज्यादा थक गए हों तो। आप जल्द ही शिशु की नींद के संकेतों को पहचानने लगेंगी। छोटी सी बात पर ठिनठिनाना या रोना, छत पर टकटकी लगाकर देखना और एकदम शांत और स्थिर हो जाना, उसके नींद आने के संकेतों के तीन उदाहरण हैं।
उसे कॉलिक है। कई बार जब शिशु रोता है, तो आप शायद पता नहीं लगा पाएं कि उसके रोने की क्या वजह है। बहुत से नवजात शिशु चिड़चिड़ाहट के चरण से गुजरते हैं और आसानी से शांत नहीं होते। यदि आपका शिशु कुछ मिनटों तक शांत करवाने पर भी शांत न हो और रोता ही जाए या फिर वह कई घंटों तक लगातार रोता रहे, तो इसे कॉलिक कहा जाता है।
तबियत ठीक नहीं है। यदि आपके शिशु की तबियत ठीक न हो, तो वह शायद अपने सामान्य से अलग स्वर में रोएगा। यह स्वर कमजोर, अधिक आग्रहपूर्ण, लगातार या फिर ऊंचे स्वर में हो सकता है। यदि शिशु आमतौर पर काफी ज्यादा रोता है, मगर अब असामान्य ढंग से शांत सा हो गया है, तो यह भी एक संकेत है कि उसकी तबियत सही नहीं है।

आप सभी सादर आमन्त्रित है
10/12/2022

आप सभी सादर आमन्त्रित है

24/06/2022

अगर आपको लगता है कि शिशु पर लोगों का बहुत ज्यादा ध्यान व आकर्षण उसे बुरी नजर लगने का कारण हो सकता है, तो सबसे आम सलाह यही दी जाती है कि शिशु की गर्दन या कलाई पर काला धागा या नजरिया बांध दिया जाए। माना जाता है कि ​यह शिशु की बुरी नजर से रक्षा करता है।

हमारी सलाह यही है कि आप ऐसा न करें, क्योंकि इससे शिशु को चोट पहुंचने की आशंका बढ़ जाती है। शिशु को कपड़े पहनाते या उतारते समय धागा​ खिंच सकता है। हो सकता है शिशु इस धागे को चूसना शुरु कर दे और यदि शिशु यह धागा पूरे समय पहने रहता है, तो इसके साफ न रहने की पूरी आशंका रहती है।

यदि ​खिंचाव या चूसने से रोकने के लिए आप धागे को बहुत ज्यादा कसकर बांधे तो इससे शिशु की त्वचा में जलन हो सकती है या फिर इससे रक्त संचरण पर भी असर पड़ सकता है। चाहे शुरुआत में धागा कसा हुआ न लगे, मगर जैसे-जैसे शिशु का वजन बढ़ता है यह धागा जल्द ही टाइट हो जाएगा। और जब धागा गीला हो जाता है, उदाहरण के तौर पर शिशु को नहलाने के बाद या गर्मियों में पसीने की वजह से, तो फिर यह काफी समय तक गीला रहता है। इसकी वजह से शिशु को चकत्ते या त्वचा में इनफेक्शन हो सकता है।

हालांकि, शिशु को काला धागा बांधना एक बहुत ही लोकप्रिय परंपरा है, और आप ​भी शायद इसका पालन करना चाहें। यदि ऐसा हो तो हमारी सलाह है कि धागे को कलाई या गर्दन पर बांधने की बजाय शिशु के टखने पर बांधे, जैसे पाजेब बांधी जाती है। शिशु के लिए यहां धागे तक पहुंचना और इसे खींचना या मुंह में देना मुश्किल होगा। साथ ही टखने पर बंधे होने की वजह से शिशु को कपड़े पहनाने या उतारने पर उसे चोट लगने की संभावना नहीं रहेगी।

काले धागे का एक अन्य विकल्प है मजबूत प्लास्टिक से बनी काली चूड़ी, जो टूटती नहीं है। हालांकि, कभी-कभार इससे भी शिशु को असहजता हो सकती है और वह शायद इनसे खेलने के लिए उसे खींचने लगे। सुनिश्चित करें कि प्लास्टिक फूड ग्रेड गुणवत्ता का हो क्योंकि शिशु अवश्य की इसे भी मुंह में लेगा और टीदर की तरह इसका इस्तेमाल करेगा।

बाजार में छोटे काले मनकों से बने ब्रेसलेट भी उपलब्ध हैं, जिन्हें अक्सर धागे की तुलना में सुरक्षित माना जाता है। मगर, यदि शिशु गलती से कोई मनका निगल ले तो उसका गला अवरुद्ध होने का खतरा रहता है। चाहे ब्रेसलेट स्टील या चांदी से बना हो, मगर लगातार पहनने से कुछ समय बाद मनके टूटने लग सकते हैं। खासकर यदि आपका शिशु इन्हें चूसता या चबाता है तो।

शिशु के माथे पर पैर के तलवे पर काला टीका लगाना बुरी नजर से शिशु को बचाने का एक अन्य तरीका है। बस यह ध्यान रखें कि जो काजल आप इस्तेमाल कर रही हैं, उससे शिशु की त्वचा में कोई प्रतिक्रिया न हो। शिशु की आंखों में काजल न लगाएं, इसे सुरक्षित नहीं माना जाता।

12/06/2022

आजकल काम की व्यस्तता में कामकाजी महिलाएँ या व्यस्त गृहिणियाँ अपने शिशुओं को बोतल से दूध पिलाना ज्यादा आसान समझती हैं। क्योंकि अब उनके पास बच्चे को गोद में लिटाकर चम्मच से दूध पिलाने के लिए समय और धैर्य दोनों की कमी है।

* कई माताएँ जो फिगर कांशियस होती हैं वे भी बच्चे को स्तनपान करवाने से कतराती हैं। लेकिन बच्चे को बोतल से दूध पिलाने से कई हानियाँ हैं। बच्चों को बोतल से दूध पिलाने पर उनके शरीर पर गहरा और हानिकारक प्रभाव पड़ता है।

* कई बार माताएँ सोते हुए बच्चे के मुँह में बोतल लगा देती हैं इससे कभी-कभी गले की नली में ही दूध की कुछ मात्रा रह जाती है, जिससे बच्चे को साँस लेने में कठिनाई होती है और उसके फेफड़ों में निमोनिया जैसी भयंकर बीमारी भी हो सकती है। इसके अलावा बोतल से दूध पीने वाले बच्चों में पेट के संक्रमण की कई बीमारियाँ, जैसे डायरिया, दस्त आदि होते रहते हैं।

* लगातार बोतल से दूध पीने वाले बच्चे चबाने वाली चीजें ज्यादा नहीं खाते, क्योंकि उन्हें चूसने की अपेक्षा चबाना अधिक कष्टदायक लगता है। नतीजतन बच्चे को कब्ज की शिकायत हो जाती है।

* अगर बच्चे की जल्दी ही बोतल छुड़वा दी जाए तो उसका एक फायदा यह भी होता है कि उसे समय से सब कुछ खाने की आदत पड़ जाती है। उचित मात्रा में आहार लेने की वजह से उसका शारीरिक विकास भी उचित रूप से होता है। जिस बच्चे को जितना अधिक स्तनपान कराया जाता है, उस बच्चे के मधुमेह से पीड़ित होने का खतरा उतना ही कम होता है।

05/06/2022

शिशु को खांसते हुए देखना आपको काफी परेशान व चिंतित कर सकता है। मगर यदि शिशु अच्छे से खा-पी रहा है और सामान्य तरीके से सांस ले रहा है तो आमतौर पर चिंता की कोई बात नहीं होती। हालांकि, कुछ तरह की खांसी नुकसानदेह हो सकती हैं, इसलिए यह जानना जरुरी है कि खांसी होने पर शिशु को डॉक्टर को कब दिखाएं।
शिशुओं में खांसी किस कारण से होती है?
खांसना एक स्वाभाविक क्रिया है जो कि बच्चे के वायुमार्ग को अवरुद्ध होने से बचाती है। खांसी इसलिए होती है क्योंकि:
गले और छाती में से श्लेम (म्यूकस), धूल या धुआं जैसे तकलीफ पैदा करने वाले तत्वों को बाहर निकाल सके
वायुमार्ग या फेफड़ों किसी इनफेक्शन की वजह से असहजता होने पर।
खांसी के अलग-अलग प्रकार कौन से हैं?
खांसी सूखी (जिसमें बलगम न आए) या गीली (जिसमें बलगम आए) हो सकती है। ये आमतौर पर किसी इनफेक्शन की वजह से होती है, मगर कई बार इसके गैर-संक्रामक कारण भी हो सकते हैं जैसे कि अस्थमा (दमा) आदि। यदि खांसी किसी एलर्जी या अस्थमा की वजह से है, तो शिशु को बुखार नहीं होगा।

शिशुओं और छोटे बच्चों को इनफेक्शन की वजह से होने वाली कुछ आम तरह की खांसियों के बारे में नीचे बताया गया है:

सर्दी-जुकाम या फ्लू का वायरस
अधिकांश खांसी किसी विषाणु (वायरस) की वजह से होती है, जैसे कि सर्दी-जुकाम या फ्लू पैदा करने वाले बहुत से विषाणुओं में से एक की वजह से खांसी भी होती है। आपके नन्हें शिशु को जन्म के पहले साल में सात से ज्यादा बार सर्दी-जुकाम हो सकती है, क्योंकि उसकी रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्युनिटी) अभी आम विषाणुओं का सामना करना सीख रही है।

यदि सर्दी या फ्लू के वायरस की वजह से आपके शिशु को खांसी है, तो शायद उसकी नाक भी बंद होगी या बह रही होगी। उसे गले में दर्द, आंखों में पानी और बुखार भी हो सकता है।

फ्लू की वजह से कई बार दस्त (डायरिया) या उल्टी भी हो सकती है।

रेस्पिरेटरी सिंसीशियल वायरस (आरएसवी) एक आम वायरस है जिसकी वजह से शिशुओं और छोटे बच्चों में छाती के संक्रमण होते हैं। अधिकांश मामलों में यह सर्दी-जुकाम के वायरस की तरह ही होता है, मगर यह ब्रोंकाइटिस या निमोनिया जैसी स्वास्थ्य जटिलताओं का कारण बन सकता है।

निमोनिया या ब्रोंकाइटिस
निमोनिया फेफड़ों का इनफेक्शन है। ब्रोंकाइटिस तब होता है जब ब्रोंकाई (फेफड़ों तक हवा ले जाने वाली नलिकाएं) में संक्रमण हो जाए। निमोनिया और ब्रोंकाइटिस अक्सर सर्दी-जुकाम या फ्लू इनफेक्शन के बाद होता है। इनमें लगातार कई हफ्तों तक खांसी बनी रहती है। इनके अन्य लक्षणों में शामिल हैं बुखार, बदन दर्द और कंपकंपी। यदि आपके बच्चे को निमोनिया या ब्रोंकाइटिस के लक्षण हों तो डॉक्टर से बात करें। इनफेक्शन और खांसी दूर करने के लिए हो सकता है बच्चे को एंटिबायोटिक दवाओं की जरुरत हो।

क्रूप
क्रूप खांसी मे भौंकने जैसी आवाज निकलती है। यह अक्सर रात में शुरु होती है। क्रूप आमतौर पर स्वरतंत्री (वोकल कॉर्ड्स-लेरिंक्स), श्वासनली (ट्रेकिया) और ब्रोंकाइल नलिकाओं (ब्रोंकाई) में इनफेक्शन की वजह से सूजन होने पर होती है। सूजी हुई स्वरतंत्री की वजह से खांसने पर अजीब सी आवाज आती है।

यह खांसी सुनने में जितनी भयावह लगती है, अधिकांश मामलों में इतनी गंभीर नहीं होती और इसका उपचार घर पर किया जा सकता है। यदि आपके शिशु की क्रूप खांसी में सुधार न हो रहा हो, तो डॉक्टर से बात करें। वे शायद जांच के लिए बच्चे को अस्पताल या क्लिनिक लाने के लिए कह सकती हैं।

काली खांसी (व्हूपिंग कॉफ)
काली खांसी/कुक्कुर खांसी (पर्टुसिस) श्वासनलिका और वायुमार्ग में होने वाला जीवाण्विक (बैक्टीरियल) इनफेक्शन है। यह बहुत ही संक्रामक है, मगर डीटीपी का टीका लगवाकर बच्चे को इस इनफेक्शन से सुरक्षित किया जा सकता है। इसलिए बच्चे को सभी टीके और बूस्टर खुराकें दिलवाना बहुत ही जरुरी है।

काली खांसी होने पर बच्चा आमतौर पर 20 से 30 सैकंड तक लगातार खांसता है, और फिर सांस लेने की कोशिश करता है और इसके बाद फिर से खांसी का दौरा शुरु हो जाता है। बच्चे को सर्दी-जुकाम के लक्षण जैसे कि बहती नाक और छींके भी हो सकती हैं।

यदि आपको लगे कि आपके बच्चे को काली खांसी है, तो तुरंत डॉक्टर से बात करें। काली खांसी गंभीर हो सकती है, विशेषतौर पर एक साल से कम उम्र के शिशुओं के लिए। यदि आपके बच्चे को कांली खांसी है, तो डॉक्टर शायद उसे एंटिबायोटिक दवाएं देंगे। कुछ शिशुओं को अस्पताल में भर्ती होने की जरुरत भी पड़ सकती है।

तपेदिक (ट्यूबरक्यूलोसिस, टीबी)
दो हफ्ते से ज्यादा रहने वाली खांसी तपेदिक (टीबी) का लक्षण हो सकती है। अगर शिशु को टीबी हो तो उसका पर्याप्त वजन भी नहीं बढ़ रहा हो या संभव है कि उसका वजन कम हो रहा हो। बीसीजी का टीका शिशु को टीबी से बचाता है। इसलिए यदि आपके शिशु को सभी टीके समय पर लगवाए गए हैं, तो शायद शिशु को यह इनफेक्शन न हो। यदि शिशु को टीबी हो जाए, तो उसे एंटिबायोटिक दवाएं देनी होंगी।
खांसी मेरे शिशु को किस तरह प्रभावित करेगी?
अपने नन्हें शिशु को खांसते हुए देखना काफी मुश्किल हो सकता है और खांसी आपको चिंतित भी कर सकती है, विशेषकर यदि ​यह शिशु की पहली खांसी हो तो। हालांकि, केवल खांसी से शिशु के फेफड़ों को नुकसान नहीं पहुंचता।

आपको शायद पाएंगी कि आपका शिशु अन्य दिनों की तुलना में ज्यादा सोना चाहता है और उसे आपके प्यार-दुलार की जरुरत होगी ताकि वह बेहतर महसूस कर सके।

कई बार शिशु इतनी जोर से खांसते हैं कि उन्हें उल्टी हो जाती है। हालांकि, यह आपके और आपके शिशु के लिए काफी मुश्किल हो सकता है, मगर इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। बेहतर है इस बारे में आप डॉक्टर से बात करें।
शिशु को खांसी से राहत देने के लिए मैं क्या कर सकती हूं?
अधिकांश खांसी घर पर थोड़ी देखभाल से अपने आप ठीक हो जाती हैं। शिशु की खांसी खुद ही ठीक हो जाएगी, मगर, शिशु को आराम पहुंचाने के लिए आप नीचे दिए गए उपाय आजमा सकती हैं:
उसे खूब आराम करने दें। इनफेक्शन से लड़ने या खांसी के दौरे हाने की वजह से शिशु को काफी थकान हो सकती है। शिशु को जितनी बार भी वह चाहे, आराम करने दें।
शिशु को जलनियोजित रखें। सुनिश्चित करें कि शिशु को पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थ मिलें। उसे अतिरिक्त बार स्तनपान कराएं। यदि वह फॉर्मूला दूध पीता है, तो उसे अतिरिक्त बार पानी भी पिलाएं। यदि शिशु की उम्र छह महीने से कम है, तो पानी को अच्छी तरह उबालकर और ठंडा होने के बाद ही शिशु को दें। यदि उसके गले में दर्द हो, तो इससे आराम मिलेगा।
उसका सिर ऊंचा उठा दें। यदि आपका बच्चा एक साल से बड़ा है, तो आप सोते समय आप उसका सिर थोड़ा ऊंचा उठा सकती हैं, ताकि उसे खांसी में आराम मिले। सिर उठाने के लिए तकियों का इस्तेमाल न करें, क्योंकि इससे सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (एसआईडीएस) का खतरा होता है। एक साल से कम उम्र के बच्चों के लिए ऐसा करना सुरक्षित नहीं है, क्योंकि इससे एसआईडीएस का खतरा बढ़ सकता है।

बुखार का उपचार करें। शिशु के डॉक्टर से सलाह के बाद उसे पैरासिटामोल सस्पेंशन की उचित खुराक दें। इससे बुखार तो कम होगा ही मगर बुखार के साथ होने वाले बदन दर्द से भी राहत मिलेगी। हालांकि, यदि शिशु तीन महीने या इससे बड़ा है, तभी ऐसा करें।​ शिशु को कोई भी दवा देने से पहले डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

शिशु को बिना डॉक्टरी पर्ची के मिलने वाली खांसी और सर्दी-जुकाम की दवाएं न दें, इनमें खांसी की सिरप और डिकंजेस्टेंट भी ​शामिल हैं। ये बच्चों के लिए उचित नहीं हैं क्योंकि इनसे साइड इफेक्ट होने का खतरा रहता है और इतने प्रमाण भी नहीं है कि ये लक्षणों को बेहतर करते हैं।
शिशु को खांसी होने पर डॉक्टर से कब बात करनी चाहिए?
यदि ​खांसी की वजह से शिशु को सांस लेने में तकलीफ हो रही हो, तो उसे तुरंत नजदीकी अस्पताल के आपातकाल विभाग में ले जाएं।

निम्नांकित ​स्थितियों में शिशु को डॉक्टर के पास ले जाएं:
शिशु की उम्र तीन महीने से कम है और उसे 100.4 डिग्री फेहरनहाइट या इससे ज्यादा बुखार है या फिर शिशु की उम्र तीन से छह महीने के बीच है और उसे 102.2 डिग्री फेहरनहाइट या इससे ज्यादा बुखार है।
उसे निगलने में मुश्किल हो रही है - आप शायद पाएं कि वह ज्यादा लार टपका रहा है या उसे खाने-पीने में परेशानी हो रही है।
उसे चकत्ते, छाती में दर्द, सिरदर्द, गले में दर्द, कान में दर्द या सूजी हुई ग्रंथियों जैसे कुछ लक्षण हों।
उसकी खांसी 10 दिनों से भी ज्यादा चल रही है और उसे कुछ अन्य लक्षण भी हैं जैसे कि हरा, भूरा या पीला श्लेम आना।
तीन से चार हफ्तों तक उसकी खांसी ठीक नहीं हो रही है, विशेषतौर पर रात में यह और ज्यादा बढ़ रही हो।

वायरस का सामना करते हुए शिशु को ज्यादा नींद आना सामान्य बात है। मगर यदि वह हर समय उनींदा सा लगे तो बेहतर है कि डॉक्टर से बात की जाए।

सामान्यत: यदि आपको शिशु की सेहत के बारे में कोई भी चिंता हो, तो अच्छा है कि इस बारे में डॉक्टर से सलाह ले ली जाए।

20/05/2022

गर्मी की शुरुआत के साथ, इन आसान तरीकों से आपको अपने बच्चे को ठंडा और आराम से रखने में मदद मिलेगी।
अपने शिशु को उचित कपड़े पहनाएं
शिशु के लिए ऐसे कपड़े चुने जो उसे गर्मियों में आरामदायक रखने में मदद कर सकते हैं।
विशुद्ध सूती कपड़े, सिंथेटिक फाइबर जैसे कि नायलॉन, पॉलिएस्टर, रेयान से बने कपड़ों की तुलना में अधिक पसीना सोखते हैं। परिणामस्वरूप जब शिशु को पसीना आता है तो सूती कपड़े नमी को सोख लेते हैं और इसे सूखने देते हैं, वहीं सिंथेटिक फाइबर से बने कपड़े ऐसा नहीं करते।

यदि शिशु की त्वचा लंबे समय तक गीली रहेगी तो उसे घमौरी होने की संभावना बढ़ सकती है।

जब आप शिशु को धूप में बहार ले जाएं तो हल्के कपड़े चुनें। गहरे रंग, खासकर काला रंग, रोशनी सोखते हैं, जिससे गरम हो जाते है। वहीं हल्के रंग, खासकर सफेद, रोशनी नहीं सोखते और इस वजह से ठंडक बनाए रहते है।

धूप में बाहर निकलते समय शिशु के लिए लंबी बाजू के हल्के कपड़े चुनें। ये शिशु की त्वचा को सीधे पड़ने वाली सूरज की किरणों से बचाकर उसे ठंडक प्रदान करने में मदद करते हैं।

शिशु को धूप से बचाने के लिए टोपी या हैट पहना सकते हैं। मगर, सुनिश्चित करें कि वह चौड़े रिम वाली टोपी है, ताकि यह उसे सिर, चेहरे और गर्दन को सूरज से बचा सके। इलास्टिक पट्टी के सपोर्ट वाली ऐसी कोई हैट न पहनाएं, जिससे रक्त परिसंचारण पर दबाव पड़े।चरम गर्मी के समय घर के अंदर रहें (सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक)

अगर संभव हो, तो कोशिश करें कि दिन में जब गर्मी का असर सबसे ज्यादा हो, तब आप घर के अंदर ही रहें। शिशु को सुबह-सुबह या फिर देर शाम को सैर के लिए ले जाएं।

16/05/2022

स्तनपान शिशु के लिए किस तरह फायदेमंद है?
स्तनदूध शिशुओं के लिए प्रकृति का सबसे बेहतरीन आहार है। स्तनदूध के संघटक आदर्श रूप से आपके शिशु की आंतों के लिए अनुकूल हैं। इसलिए यह आसानी से पच जाता है।

स्तनपान शिशु को अपने शरीर का तापमान सामान्य रखने में मदद करता है। उसे गर्माहट प्रदान करने के अलावा, त्वचा से त्वचा का स्पर्श आपके और शिशु के बीच के भावनात्मक बंधन को और मजबूत बनाता है।

स्तनदूध शिशु की इनफेक्शन से लड़ने में मदद करता है। इसमे रोगप्रतिकारक (एंटीबॉडीज) होते हैं, जो शिशु की जठरान्त्रशोथ (गैस्ट्रोएंटेराइटिस), सर्दी-जुकाम, छाती में इनफेक्शन और कान के संक्रमण आदि से रक्षा करते हैं।

आपके स्तनदूध में पहले से मौजूद रोगप्रतिकारकों के साथ-साथ, आपका शरीर किसी इनफेक्शन के संपर्क में आते ही उसका नया रोगप्रतिकारक भी बना लेता है। जब आपके शिशु को सर्दी-जुकाम होता है, तो जुकाम का विषाणु शिशु से आप तक भी पहुंच जाएगा। ऐसे में आपकी प्रतिरक्षण प्रणाली काम करना शुरु करती है और विषाणु से लड़ने के लिए रोगप्रतिकारक बनाती है। ये रोगप्रतिकारक आपके दूध में जाते हैं, और अगली बार जब आप शिशु को स्तनपान करवाती हैं, तो ये शिशु के शरीर में पहुंचकर संक्रमण से लड़ने में शिशु की मदद करते हैं।

स्तनदूध को समय-पूर्व जन्मे शिशुओं और कम जन्म वजन शिशुओं के लिए महत्वपूर्ण पाया गया है। फॉर्मूला दूध की तुलना में शिशु के लिए स्तनदूध को पचाना आसान होता है। स्तनदूध आपके शिशु को इनफेक्शन से भी सुरक्षित रख सकता है, खासकर कि आंतों और फेफड़ों के संक्रमणों से। ये संक्रमण समय से पहले जन्मे शिशुओं के लिए काफी गंभीर हो सकते हैं।

स्तनदूध में लॉंग-चैन पॉलीअनसेचुरेटेड वसीय अम्ल होते हैं, जो शिशु के मस्तिष्क के विकास में बहुत जरुरी हैं।

स्तनपान से लाभकारी (प्रोबायोटिक) बैक्टीरिया मिलते हैं, जो शिशु के पाचन तंत्र में किसी भी प्रकार की सूजन, दर्द या जलन (इनफ्लेमेशन) दूर कर सकते हैं।

यह कॉट डेथ यानि सडन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम (एस.आई.डी.एस) के खतरे को कम करने में भी मदद कर सकता है।

यदि आप अपने शिशु को पहले छह महीने तक केवल स्तनपान करवाती हैं, तो पहले साल के दौरान शिशु जब भी बीमार होगा, उसके अधिक जल्दी ठीक होने की संभावना रहेगी। यह बात आपको स्तनपान जारी रखने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, खासकर अगर आप अपने शिशु को स्तनपान करवाना बंद करने या फिर स्तनदूध के साथ-साथ फॉर्मूला दूध शुरु करने पर विचार कर रही हैं तो।

स्तनपान करवाने से बचपन में शिशु की सांस फूलने और गंभीर एग्जिमा विकसित होने का खतरा कम हो सकता है।

शिशु को कम से कम छह महीनों तक अनन्य स्तनपान करवाने से उसे बचपन में होने वाले ल्यूकेमिया से सुरक्षा मिल सकती है।

थोड़ा बड़ा होने पर जब कभी शिशु बीमार हो और कुछ खा न पा रहा हो, तो ऐसे में अगर वह स्तनपान कर रहा हो, तो उसे काफी आराम मिल सकता है। स्तनदूध उसे जल्दी ठीक होने में भी मदद कर सकता है।

टीकाकरण करवाने से पहले या इसके तुरंत बाद शिशु को स्तनपान करवाने से उसे शांत करने में मदद मिल सकती है।

यह आपके शिशु को अलग-अलग स्वाद के लिए तैयार करता है। आपके खाने के अनुसार आपके स्तनदूध का स्वाद बदल सकता है, मगर फॉर्मूला दूध में ऐसा नहीं होता। इसलिए आपका शिशु जब ठोस आहार खाना शुरु करेगा, तब उसे नए स्वाद से शायद इतनी दिक्कत नहीं होगी।

छह महीने के आसपास शिशु के ठोस आहार शुरु करने पर भी उसे स्तनपान करवाना जारी रखने से उसे भोजन से होने वाली एलर्जी के प्रति सुरक्षा मिल सकती है।

यह उसके दीर्घकालीन स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। स्तनपान करने वाले शिशुओं के सामान्य से अधिक मोटा होने या वयस्क होने पर मधुमेह होने की संभावना कम होती है।

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