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अभी कॉरॉना से कुछ खास राहत मिली नहीं थी कि इसके साथ ही ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस का संक्रमण चिंता का दूसरा महत्वपूर्ण वि...
21/05/2021

अभी कॉरॉना से कुछ खास राहत मिली नहीं थी कि इसके साथ ही ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस का संक्रमण चिंता का दूसरा महत्वपूर्ण विषय बन गया है।
अब इसका बचाव केसे करे?
परंतु जो जानने योग्य विषय है पहले उस पर चर्चा कर लेते है ।
जब मैं छोटी थी तो अक्सर खेलते खेलते हम मोहल्ले के बच्चे आपस में लड़ लेते थे फिर आपस में दो दल बना लेते थे और अपनी अपनी बात पे अडे रहते थे, कभी हमने ये कोशिश नहीं की कि वास्तव में बात क्या है और उसका हल क्या है? अगर करते तो लड़ाई समाप्त हो जाती । दोनों दल मिल के खेलते और आंनद भी दुगुना हो जाता।
ये बहुत छोटी सी बात थी जो समझ नहीं आयी परंतु सवाल ये है कि क्या आज भी हम इस बात को कितना समझ पाए है?
खेर अब अपने मुद्दे पे आते है , तो ये ब्लैक फंगस कहा से आया? जिन मरीजों के कारोना का इलाज में स्टेरॉइड्स चल रहे थे ,लंबे समय से जो अस्पताल की ऑक्सीजन थेरेपी पे थे, उन लोगो में इस सक्रमण के होने की सबसे अधिक संभावना है।
ये स्टेरॉइड्स और लंबे समय से ऑक्सीजन थेरेपी के साइड इफेक्ट के रूप में सामने आया है ।
यहां मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि अगर हमने शुरुआत में ही प्रकृति के तरीके को अपनाया होता तो ये रोज नए नए नाम शायद हमें सुनने को नहीं मिलते ।
पर आजकल दिखावे का जमाना है , जहा एक तरफ remedesivir, hydroxychloroquine, steroids ,o2 therapy जैसे बड़े बड़े नाम हो, वहां काढ़ा , चूर्ण, जैसे नाम छोटे लगते है, ना सिर्फ छोटे लगते है बल्कि इनके परिणाम पे भी संदेह होने लगता है।
यहां मैं ये बिल्कुल नहीं कहना चाहती कि ये स्टेरॉइड्स आदि का प्रयोग करना गलत था परंतु जब हमारे पास अपनी प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति है तो हम उसे अपनाने से क्यों कतराते है?
क्या दोनों पद्धति साथ मिलके कोई हल नहीं निकाल सकते थे?
साथ मिलके इलाज करते , अगर बहुत जरूरी होता तो ही हम दूसरी पद्धति अपनाते।
खैर वहीं बचपन का किस्सा एक बार फिर याद आ गया ।

अभी भी देर नहीं हुई है अपनी दिनचर्या को देखे, प्रश्न कीजिए स्वयं से कि क्या ये सही है? अगर नहीं तो उसे सही कीजिए । रितुचर्या के अनुसार खान पान कीजिए फिर देखिए कि आपको ना किसी इम्यूनिटी बूस्टर की आवश्यकता होगी और ना किसी स्टेरॉइड्स थेरेपी की।
अपने शरीर की सुनिए वो आपकी सुनेगा और आप सदैव स्वस्थ रहेंगे और अगर बीमार होते भी तो अपनी चिकित्सा पद्धति अपनाए । आयुर्वेद अपनाए ।
Dr. Manisha kanwar

11/05/2021

आजकल आयुर्वेद का बोलबाला मार्केट में चल रहा है ,वो मेरे समान आयुर्वेद क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए उत्साहवर्धक है।
हर चीज आपको हर्बल मिलेगी ।हर्बल टी, हर्बल नूडल्स, हर्बल टूथपेस्ट,etc
सौंदर्य प्रसाधन के प्रोडक्ट्स पर तो एक अलग तरह की मार्केटिंग चल रही है ये हर्बल है ये आयुर्वेदिक है और ना जाने क्या क्या ।
देख के अच्छा लग रहा है कि लोग आयुर्वेद को अपनाने लगे है परन्तु विचार करने योग्य बात ये है कि क्या वास्तव में यही आयुर्वेद है??
ये जो बड़ी बड़ी कंपनियों ने अपने प्रोडक्ट्स को हर्बल टैग देकर पैसे कमाने का कार्य कर रही हैं, क्या ये आयुर्वेद है?
आयुर्वेद की सरलता को बताने के लिए अक्सर कहते है कि हमारे रसोई में आयुर्वेद समाया हुआ गई परन्तु क्या रसोई ही आयुर्वेद है??
जब भी में लोगो से बात करती हूं उनके आयुर्वेद के प्रति विचार देखती हूं तो मुझे एक चीज समझ आयी वो ये कि लोगो के लिए आयुर्वेद की परिभाषा कुछ और ही है । उनके लिए तुलसी वाला काढ़ा बना लिया , त्रिफला चूर्ण रात को ले लिया, बस यही आयुर्वेद है इतना ही तो आता है इसमें ।
कुछ चूर्ण होते है ,कुछ कड़वी सी दवाई होती h बस हो गया आयुर्वेद का दायरा समाप्त ।
यूट्यूब और गूगल पर देख कर हर कोई वेद्य बना हुआ है ,यहां सबको लगता है कि यही तो है आयुर्वेद और क्या है इसमें?

इसी प्रकार के अधूरे भ्रामक ज्ञान के कारण जो आयुर्वेद को पढ़ते है जिन्होंने इसमें डिग्री प्राप्त कर रखी है , उन्हें समाज में वो प्रतिष्ठा और सम्मान नहीं मिलता जो एक एलोपैथी चिकित्सक को मिलता है।
। हमारा ये कर्तव्य है कि हम इस अधूरे ज्ञान को दूर करे।
लोगो को समझाए कि आयुर्वेद अपनाए परंतु ये youtube और गूगल वाला नहीं बल्कि किसी qualified Ayurvedic doctor सलाह ले ,उनसे पूछे कि आपकी समस्या का सही समाधान क्या है ना कि आप स्वयं YouTube माध्यम से डॉक्टर बने ।।
कोई बीमारी हो या स्वास्थ्यवर्धक उपाय करना हो सबसे पहले एक अनुभवी। आयुर्वेदिक चिकित्सक के के पास जाए
सही आयुर्वेद अपनाए।। मार्केटिंग से बचे।। सही दिशा में बढ़े।।

10/05/2021

परिस्थितियां कितनी भी विपरीत क्यों ना हो,
मन की स्थिति अनुकूल होना आवश्यक है।।

एक स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है
परंतु आज के इस आधुनिकरण में स्वस्थ शरीर अपने आप में एक चुनौती है ।
कहते है 'समस्या समाधान के साथ जन्म लेती है' अर्थात अगर समस्या उत्पन्न हुई है तो उसका समाधान भी उसके साथ उत्पन हुआ है ।
शरीर के समस्त विकारों का एकमात्र प्राकृतिक समाधान "आयुर्वेद "है । अत आयुर्वेद अपनाए । अपनी जीवनशैली को एक बार फिर उत्थान की और लेकर जाए, प्रकृति की और लेकर जाए । आयुर्वेद की और लेकर जाए।।
Dr. Manisha kanwar

10/05/2021

बचपन में हम सब ने एक कहानी सुनी है
भस्मासुर और शिवजी की।
जहा हमने सुना कि भस्मासुर नामक राक्षस को शिवजी के वरदान पर अहंकार हो जाता और उसे ये वहम भी की अब उसे कोई समाप्त नहीं कर सकता और उसने भगवान शिव को चुनौती दे दी
आज जो स्थिति हमारे सामने खड़ी है एक बार फिर ये मुझे उसी कथा का स्मरण करा रही है
क्या मनुष्य स्वयं को भस्मासुर नहीं समझ रहा ? आज वो इस वहम में नहीं है कि उसे कोई समाप्त नहीं कर सकता ? इसी अहंकार के परिणाम स्वरूप हमने प्रकृति ,जो साक्षात शिव है ,को चुनौती दे दी
परंतु हमें ये भूलना नहीं चाहिए कि भस्मासुर का अन्त तब भी हुआ था और आज भी होगा
प्रकृति से अधिक शक्तिशाली और कोई नहीं
प्रकृति चुनौती के लिए नहीं बल्कि सहयोग के लिए बनाई गई है ये हमारे उपभोग के लिए ही निर्मित है
परन्तु जब ये उपभोग अतिक्रमण में परिवर्तित होने लग जाए तो प्रकृति पलट कर वार करती है और यही वार कोरोना जैसे संकट के रूप में आकर खड़ा हो जाता है ।
यहां विचार करने योग्य दो बात मेरे दिमाग में आती है पहली ये की क्या ये कॉरोना जैसा संकट स्वयं उत्पन हुआ है या हम अपने भस्मासुरी विवेक से लेकर आए है?
और दूसरी ये कि इस संकट के समाप्त होने के साथ क्या ये समस्या हमेशा के लिए चली जाएगी ? क्या इसके स्थान पर कल इससे भी बड़ा और इससे भी भयावह कोई नया रूप सामने नहीं आयेगा?

जब तक हम प्रकृति के साथ खिलवाड़ करते रहेंगे प्रकृति हमें पलट कर जवाब देगी और कोरॉना के समान ही कोई नए नाम के साथ कोई नई समस्या उत्पन्न होगी ।
अतः ये बात हम जितनी जल्दी अपने विवेक से समझ ले उतना बेहतर है क्योंकि प्रकृति तो अपने तरीके से समझा ही देगी फिर ।।

Dr. Manisha kanwar

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