28/12/2023
मैंने आंख खोली और मैं फिर किसी नए शहर में था। ये शायद जीवन का दसवाँ शहर है जहाँ मैं कुछ महीने रहने को बाध्य हूँ। मेरी खिड़की से पत्थर-पहाड़ और पेड़ नज़र आते हैं। शहर इनके पीछे लापता है।
इस शहर में मैं किसी को नहीं जानता। कितना अजीब है न इतने सारे अजनबियों के बीच रहना। कोई इस शहर में समझ भी तो नहीं पायेगा मुझे, इतना वक़्त न मेरे पास है न और किसी के पास। कोई दावा भी करेगा समझने का तो वो किताब को एक बार हड़बड़ी में पलट कर उसे समझने का दावा करने जैसा होगा।
पर अजनबियों से बात करने को मेरे पास एक कहानी हरदम होती है। वो कहानी है तुम्हारी। हर कोई एक दुखभरी प्रेमकथा सुनना समझना चाहता है। जिनके जीवन में ये दुख नहीं है वो इन कहानियों के दुखों को छूकर मानव बनने की कोशिश करते हैं।
एक दिन मेरे कमरे में आग लगेगी और मैं तुम्हारी कहानी पर पानी डाल उसे बचाने की कोशिश करूंगा। आखिकार कुछ तो बचा रहे मेरे पास बोलने को, वरना मैं इस शहर का आखिरी गूंगा भर हूँ।।
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