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Advance Ayurved आयुर्वेद, योग, एवं स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी एवं घरेलू चिकित्सा हेतु जुड़े रहें, आप हमसे अपने स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं के बारे में भी सलाह ले सकते हैं।

13/10/2025

वात व्याधि---
आप सभी ने कभी न कभी वात रोग या वात व्याधि का नाम सुना ही होगा। या आसपास लोंगो को सुनते कहते देखा होगा कि मुझे वात रोग की शिकायत हो गई है , अधिकतर लोग घुटनों में दर्द को ही वात व्याधि समझते हैं। कुछ लोग गठिया वात को ही वात व्याधि समझते हैं लेकिन गठिया वात शुद्ध वातज रोग नही है... क्या आप जानते हैं कि जो वात रोग हैं वो 80 प्रकार के होते हैं
यहाँ सभी के नाम बताना सम्भव नही... पर यहां जो बताया जा रहा वो आपको वात सम्बंधित रोगों से बहुत हद तक दूर रखेगा..
इस लेख में हम आपको वातरोग या वात व्याधि के के सामान्य कारण बताने जा रहे हैं अर्थात वो कारक जो शरीर मे वात वृध्दि या वात रोग को उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।
इन्हें हम अलग अलग भागों में बांट सकते हैं।

1- आहार सम्बंधित कारक...
रुक्ष भोजन( dry food) जैसे ज्वार मक्का आदि का अधिक सेवन
शीत भोजन- ज्यादा ठंडा खाना या पानी जैसे आइसक्रीम कोल्ड ड्रिंक
बहुत ही कम मात्रा में भोजन करना
लघु आहार जैसे मूंग दाल आदि का लगातार लंबे समय तक प्रयोग करना
कटु, तिक्त तथा कषाय रस प्रधान भोजन का सेवन ज्यादा करना
अधिक उपवास करना।

2- विहार सम्बंधित कारक-
अत्याधिक जागरण करना
रात्रि जागरण करना
प्राकृतिक वेग जैसे मल मूत्र आदि का वेग रोकना
कष्ट दायक बिस्तर पर सोना
ज्यादा यात्रा करना
रात्रि क्रिया ज्यादा करना
युद्ध अभ्यास करना आदि

मानसिक कारण-
चिंता ,
भय
शोक
क्रोध
काम आदि का लंबे समय तक चलना

अन्य कारण -
रोगअति कर्षनात - लंबे समय तक किसी बीमारी से ग्रस्त रहना
धातुक्षय- बॉडी में न्यूट्रिएंट्स की कमी
वमन या विरेचन ज्यादा होना

आदि कारण से शरीर मे वात प्रकोप होता है जिसके कारण वात व्याधि की संभावना बढ़ जाती है। अगर आप चाहते हैं कि आप भविष्य में वात रोगों से ग्रस्त न हों या फिर यदि आपको अभी वात रोग है तो ऊपर लिखे सम्भावित कारणों का त्याग करें। औऱ स्वस्थ रहें।

डॉ पंकज श्रीवास्तव ( आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी)

11/10/2025

एसिडिटी जैसी समस्या के लिये बार- बार एंटासिड लेना इस समस्या का स्थायी समाधान नही है, बल्कि लंबे समय तक लेने से ये आपके शरीर मे विभिन्न प्रकार के दुष्प्रभाव ही उत्पन्न करता है। औऱ अगर आप पहले से एसिडिटी जैसी समस्या से ग्रसित हैं। औऱ लगातार चिकित्सा लेने के बाद भी लाभ प्राप्त नही है या फिर बार बार एंटासिड लेने की जरूरत पड़ती है। तो आपके लिये आयुर्वेद ही सर्वोत्तम विकल्प है। उचित औऱ कारगर समाधान के लिये आयुर्वेद चुने।

06/10/2025

परवल के पत्ते 25 ग्राम इसका विधिवत क्वाथ बनाकर ठंडा करके इसमे शहद मिला लें ,यह तीव्र पित्त ज्वर में ज्वर, दाह एवं प्यास को शांत रखता है।

अजवाइन का चिकित्सीय उयपोग- 2-3 ग्राम अजवाइन पाउडर को छाछ के साथ लेने पर पेट के कीड़े समाप्त करने में फायदा मिलता है।10ग्र...
02/10/2025

अजवाइन का चिकित्सीय उयपोग-
2-3 ग्राम अजवाइन पाउडर को छाछ के साथ लेने पर पेट के कीड़े समाप्त करने में फायदा मिलता है।

10ग्राम अजवाइन+ 1/2 नींबू रस + 5 ग्राम फिटकरी छाछ में मिलाकर बालों में लगाने से रूसी समाप्त होती है

पेट फूलने पर या खाने के बाद ज्यादा डकार आने पर अजवाइन को अदरक के रस के साथ लेने पर फायदा मिलता है।

पेट दर्द में बराबर मात्रा में भूनी हुई तथा कच्ची अजवाइन को सेंधव नमक के साथ मिलाकर खाने से पेट दर्द में आराम मिलता है।

मासिक धर्म की रुकावट एवं कष्ट में- 2 ग्राम अजवाइन+ 2 ग्राम पुराना गुड़ मिलाकर सुबह शाम गर्म पानी के साथ लें । इससे गर्भाशय निर्मल होता है एवं मासिक धर्म नियमित हो जाता है।

डॉ पंकज श्रीवास्तव B.A.M.S., M.D
आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी

27/09/2025

अनिद्रा का एक सामान्य योग
पिपल्ली मूल चूर्ण 2ग्राम तथा गुड़ 6 ग्राम की मात्रा में लेने पर निद्रा अपने प्राकृत स्वरूप में लौटने लगती है।

अगर मूत्रत्याग करते समय किसी प्रकार का कष्ट हो रहा है तो मिश्री के साथ यवक्षार या फिर गुड़ के साथ थोड़ा गर्म दूध लें यह मू...
21/09/2025

अगर मूत्रत्याग करते समय किसी प्रकार का कष्ट हो रहा है तो मिश्री के साथ यवक्षार या फिर गुड़ के साथ थोड़ा गर्म दूध लें यह मूत्रकृच्छता में फायदेमंद होता है। यह वातज प्रकार के या अश्मरी के कारण होने वाले मूत्रत्याग के दर्द में उपयोगी है।

21/09/2025

त्रिकटु चूर्ण एवं हरीतिकी 3:1 के अनुपात में लेकर गुड़ मिलाकर की चासनी बनाएं यह खांसी में तुरंत आराम देता है। तथा भूख भी बढ़ाता है।

14/09/2025
 #अवसाद( ) तेजी से बढ़ता हुआ एक मानसिक असंतुलनआज के भौतिक एवं आर्थिक युग मे मनुष्य शारीरक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बहुत पी...
13/09/2025

#अवसाद( ) तेजी से बढ़ता हुआ एक मानसिक असंतुलन
आज के भौतिक एवं आर्थिक युग मे मनुष्य शारीरक एवं मानसिक स्वास्थ्य को बहुत पीछे छोड़ चुका है दिनचर्या अस्त व्यस्त है, औऱ जो थोड़े सजग लोग हैं वो केवल शारिरिक स्वास्थ की तरफ ही ध्यान देते हैं मानसिक स्वास्थ्य को वो लोग भी बहुत दूर छोड़ आये हैं। मानसिक संतुष्टि बहुत ही कम लोगों के पास है औऱ यकीन मानिए कि अगर आप मानसिक रूप से सन्तुष्ट हैं तो आप ही सबसे ज्यादा सुखी इंसान हैं
अगर आप मानसिक रूप से स्वस्थ नही हैं तो ये आपके शारीरिक स्वास्थ्य के लिये तो हानिकारक है ही साथ ही साथ ये आपके आसपास के समाज मे भी नकारात्मक संदेश देता है
अगर कोई व्यक्ति थोड़ा सा भी अवसाद ग्रस्त है , या किसी प्रकार की चिंता में है या तनाव युक्त जीवन मे है तो उसका सीधा असर उसके शारीरक स्वास्थ्य पर पड़ता है जिसका सबसे पहले प्रत्यक्ष रूप से असर आपके पाचन तंत्र पर आता है औऱ साथ ही साथ ये ह्रदय रोग, डायबटीज , अनिद्रा आदि रोगों को जन्म देता है। औऱ इन रोगों के प्रति व्यक्ति चिंतित तो होता है औऱ उसके उपचार के प्रति सजग भी रहता है पर मानसिक स्वास्थ्य की तरफ उसका ध्यान तब भी नही जाता जब तक कि मानसिक अस्वस्थता के लक्षण स्पष्ट रूप से न दिखने लगें।
आजकल मानसिक अस्वस्थता में अवसाद ( depression) बहुतायात से देखा जाता है व्यक्ति को पता भी नही चलता औऱ वह धीरे धीरे डिप्रेशन का शिकार होता जाता है (silent killer depression) अवसाद एक ऐसी अवस्था है जिसमें व्यक्ति स्वयं को लाचार बेबस असफल औऱ अकेला महसूस करता है। उस व्यक्ति-विशेष के लिए सुख, शांति, सफलता , पद , प्रतिष्ठा का कोई मतलब नही रह जाता है उसके मन मे घोर निराशा, अशांति होती है औऱ व्यक्ति को तनाव भी अधिक रहता है औऱ कभी कभी तो यह रोग इतना गंभीर होता जाता है कि व्यक्ति आत्महत्या जैसे गम्भीर कदम तक उठा लेता है यह एक प्रकार depressive disorder है इसमे व्यक्ति को भूख कम लगना, नींद न आना एवं वजन में कमी हो जाना प्रमुख है इस डिसऑर्डर में व्यक्ति का activation level कम हो जाता है यह depressive disorder दो प्रकार का हो सकता है
1 dysthymic disorder
2 major depressive disorder
Dysthymic disorder में mood depression कई सालों तक चलता रहता है इस प्रकार के disorder में व्यक्ति बीच बीच मे सामान्य प्रतीत होता है
Major depressive disorder में व्यक्ति प्रत्येक चीज में अपनी अभिरुचि खो देता है, स्पष्ट रूप से सोचने की क्षमता का भी ह्रास हो जाता है इसमे suicidal tendency अधिक देखने को मिलती है
इसमे अब सवाल ये उठता है कि व्यक्ति अवसाद जैसी स्थिति में जाता क्यों है

अवसाद क्यों?....

अधिकतर यह अवस्था व्यक्ति के प्रेम संबंध को लेकर गंभीर होती है। किसी भी व्यक्ति के जीवन में किसी के प्रति बहुत अधिक लगाव इसका प्रमुख कारण हो सकता है। अवसाद के भौतिक कारण भी अनेक होते हैं। इनमें आनुवांशिकता, हार्मोनल डिसबैलेंस , मौसम, लगातार तनाव एवं चिंता , लंबे समय तक किसी बीमारी से ग्रस्त रहना , किसी भी नशे की आदत होना , अप्रिय स्थितियों में लंबे समय तक रहना, आदि प्रमुख हैं। मनोविश्लेषकों के अनुसार अवसाद के कई कारण हो सकते हैं। यह मुख्यतः किसी की व्यक्तिगत सोच पर निर्भर करता है। इसके अलावा अवसाद की मुख्य वजह जैविक, आनुवांशिक और मनोसामाजिक होती है । साथ ही साथ शरीर के neurochemical factors (norepinephrine व seretonin ) में परिवर्तन होना अवसाद का प्रमुख कारण है

प्रमुख लक्षण-

व्यक्ति के जीवन मे जो दुखद घटनाएं हुई हैं उन्हें याद करते रहना।
हमेशा उदास रहना ,
एकांत में रहना खालीपन महसूस करना,
नींद में कठिनाई, एक बार नींद खुल जाने पर पुनः नींद का नही आना, इसके विपरीत कई लोगों को बहुत ही ज्यादा नींद आना।
घोर निराशावादी हो जाने के कारण उसे किसी भी कार्य मे उत्साह नही रहता , साधारण क्रियाओं में भी interest नही रहता।
जो घटना उसके बस में नही उनके लिये खुद को जिम्मेदार मानना ।
हमेशा थकान ,कमजोरी या अन्य कोई शारीरिक समस्या का बना रहना ,
भूख कम लगना, वजन का लगातर कम होते जाना ।
Digestive problem ( जैसे पेट दर्द, भूख न लगना) रहना औऱ जांच कराने पर कोई किसी प्रकार की विकृति का न पाया जाना।
अकेलापन अच्छा लगना ,
समाज से दूर रहना ,
किसी काम मे मन न लगना,
एकाग्रता में कठिनाई
मृत्यु या आत्महत्या का बार बार मन मे विचार आना
ये कुछ प्रमुख लक्षण हैं जो अवसाद ग्रस्त रोगी में मिलते हैं ,

अब आजकल तेजी से बदलती दुनिया का मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत गहरा असर पड़ रहा है इसलिए आप अपने मानसिक स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखें अपने दोस्तों का परिवार वालो का साथ दे साथ ले , खुश रहें, संतुष्ट रहें, ईश्वर में आस्था बनाएं रखें।

कुछ सामान्य दिनचर्या है उसे जरूर अपनाएं रखें
जैसे कि
सुबह टहलना
योगासन करना
दोस्तों के साथ बात करना,
परिवार को समय देना
नियमित दिनचर्या रखना
पर्याप्त निद्रा लेना
मनपसंद संगीत सुनना
अपने आप को व्यस्त रखना
आसपस के वातवारण को सुखद रखना
अच्छा आहार ग्रहण करना ये सब करें
इसके बाद भी अगर आपको निद्रा, चिंता, अवसाद, जैसी कोई समस्या है तो कुछ आयुर्वेद औषधि हैं जिन्हें आप किसी आयुर्वेद डॉक्टर की सलाह से ले सकते हैं, औऱ इनका उपयोग आप रोज कर सकते हैं बिना किसी दुष्प्रभाव के ।
धन्यवाद.....

डॉ पंकज श्रीवास्तव ( आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी )
B.A.M.S., M.D, PGD in Clinical Panchakarm

13/09/2025

पिछली पोस्ट में हमने आपको बताया कि अधिक जल पीने से क्या क्या नुकसान हो सकते हैं, इस पोस्ट में हम आपको बता रहे हैं कि ठंडे एवं गर्म जल को किन स्थितियों में पीना चाहिए औऱ कौन सी ऐसी स्थितियां हैं जहाँ गर्म एवं ठंडा जल नही पीना चाहिए।

शीतल जल पान-

जिस व्यक्ति को बेहोशी आ रही हो, जिस व्यक्ति में पित्त बढ़ने के लक्षण आ रहे हो, जिस व्यक्ति को दाह हो रहा हो, उष्णता महसूस हो रही हो, मदात्यय रोग से प्रभावित ( अधिक मद्यपान) ,जिसे भ्रम हो रहा हो, जो थका हुआ हो, अधिक चलने से जिसको थकान हुई हो, जिसे वमन हो रहा हो, ऊर्ध्व स्त्रोतों से रक्त आ रहा हो, इस प्रकार के लक्षण यदि किसी व्यक्ति में उपस्थित हो तो उसे शीतल जल पीना चाहिए।

उष्ण जल पान-

यह जल जठराग्नि को प्रदीप्त करता है , आमदोष का पाचक है, गले के लिये हितकर है, मूत्राशय का शोधक है, तथा लघु होता है।

उष्ण जल पीने की स्थितियां- नवीन ज्वर में, प्रतिश्याय में, पार्श्वशूल की स्थिति में, विरेचन हुआ हो जिसको, आधमान की स्थिति में ( पेट फूलना) , अफरा की स्थिति में, कफज एवं वात रोगों में , अरुचि ( भोजन करने की इच्छा न होना) में, गुल्म व्याधि में, खांसी में, घृत आदि पिया हो, आमवात व्याधि में ( रह्युमेटोइड अर्थेरिटिस)

इसके अलावा - शीत जल से स्नान करने पर रक्तपित्त की शांति होती है, उष्ण जल से स्नान करने पर बल बढ़ता है एवं कफ तथा वात का नाश होता है, ( उष्ण जल से अधोकाय स्नान पर बल बढ़ता है, शिर पर से स्नान करने पर बालों व नेत्रों को हानि पहुँचती है

अगर हम अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ आयुर्वेद के बताए हुए नियमों का पालन कर लेते हैं तो हम बहुत सी व्याधियों से बचे रहते हैं। इसलिए हमें आयुर्वेद में बताये सिद्धांतों का पालन करना चाहिए।

इस प्रकार की आयुर्वेद एवं स्वास्थ्य सम्बंधित प्रमाणिक शास्त्र आधारित जानकारी प्राप्त करने के लिये हमारे page Advance Ayurved को फॉलो करें ।
धन्यवाद.....

डॉ पंकज श्रीवास्तव ( आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी)
B.A.M.S., M.D., PGD in Clinical Panchakarama

आयुर्वेद, योग, एवं स्वास्थ्य सम्बंधित जानकारी एवं घरेलू चिकित्सा हेतु जुड़े रहें, आप हमसे अपने स्वास्थ्य सम्बंधित समस्याओं के बारे में भी सलाह ले सकते हैं।

11/09/2025

पिपल्ली चूर्ण को शहद के साथ खाने पर श्वास कष्टता ( दमा) में आराम मिलता है।

11/09/2025

जल- मानव जीवन के लिये सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक कारक है। जल जो मनुष्य के लिये बहुत सहजता से उपलब्ध रहा है। जल जिसके बिना मानव जीवन की कल्पना नही की जा सकती। जल सामान्य होते हुये भी बहुत विशेष होता है। हम सब दैनिक जीवन मे जल का उपयोग विभिन्न तरीके से करते हैं जिसमे से जल को पीने रूप में उपयोग करना भी शामिल है। जल को पीने के रूप में भी जनसामान्य अलग अलग प्रकार से धारणा बना रखी है। कोई कहता है बहुत ज्यादा मात्रा में जल पीना चाहिए, कोई गर्म जल पीने को ज्यादा अच्छा बताता है कोई ठंडे जल के लिये प्यासा है, किसी का सुबह खाली पेट जल पीने का सिद्धांत हैं।

पर क्या आप जानते हैं इस प्रकार जल पीना बहुत से रोगों , या शारीरिक स्थितियों में मना है , पानी पीने की मात्रा एवं गर्म - ठंडे पानी पीने की वजह से भी शरीर में विभिन्न प्रकार की व्याधियां या शारिरिक परेशानी भी उत्पन्न हो सकती है। इस प्रकार की कुछ स्थितियां आयुर्वेद अनुसार मैं इस लेख में बता रहा हूँ, जिससे आप अपने स्वास्थ्य का ध्यान औऱ अच्छी तरह से रख सकें।

जल पीने की मात्रा - यह किसी मापन में फिट नही बैठ सकता कि दिन भर में 4 गिलास पानी या 8 या 12 गिलास या फिर 2 लीटर तीन लीटर कितना पीना चाहिए यह मापन नही हो सकता। जैसे कि कोई धूप में कार्य कर रहा, कोई स्पोर्टमैंन है, कोई सुबह टहल कर आ रहा या रनिंग करके आ रहा तो उसे पानी प्यास ज्यादा लगेगी उसकी मात्रा ज्यादा होगी, कोई दिनभर AC में बैठा है, या आराम कर रहा उसे कम पानी की जरूरत होगी।
सबका शरीर अलग अलग है वर्क अलग है पानी इतना होना चाहिये कि शरीर हाइड्रेट रहे अर्थात शरीर मे पामी की कमी न हो, अगर आप दिन में तीन बार मूत्र त्याग के लिये जा रहे , त्वचा में सिकुड़न नही है तो आप के शरीर मे पानी पर्याप्त है। जबर्दस्ती ज्यादा पानी पीने की आवश्यकता नही।

अधिक जल पीने से नुकसान- अधिक जल पीने से आमदोष की वृद्धि होती है , जिसके कारण जठराग्नि मंद पड़ जाती है , जिसके कारण अजीर्ण हो सकता है उससे ज्वर की उत्पत्ति हो सकती है । अग्निमांद्य होने से अम्लपित्त ( एसिडिटी) की शिकायत हो सकती है।

इसके अलावा पांडु रोग, गुल्म रोग, अतिसार, शोथ , उदर रोग, अर्श, ग्रहणी, मंदाग्नि आदि रोगों में कम जल पीना चाहिए ।

अगली पोस्ट में हम ठंडे पानी औऱ गर्म पानी पीने की स्थितियां एवं किसमे निषेध है वो बताएंगे............ Continue

डॉ पंकज श्रीवास्तव ( आयुर्वेद चिकित्सा अधिकारी)
B.A.M.S., MD, PGD in Clinical Panchkarma

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