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शैडो आर्ट (छाया कला) एक रचनात्मक माध्यम है जिसमें कलाकृति बनाने के लिए प्रकाश और छाया का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रका...
05/11/2025

शैडो आर्ट (छाया कला) एक रचनात्मक माध्यम है जिसमें कलाकृति बनाने के लिए प्रकाश और छाया का उपयोग किया जाता है। इसमें प्रकाश स्रोत, वस्तुओं या आकृतियों का उपयोग करके छाया डाली जाती है, जिससे एक सपाट सतह पर चित्र बनते हैं। यह कला गहराई, गति और रूप को दर्शा सकती है।

1. शैडो आर्ट के रचनात्मक तरीके
3D से 2D: 3D वस्तुओं या मूर्तियों का उपयोग करके 2D छाया चित्र बनाना एक लोकप्रिय तरीका है। यह एक अद्भुत और प्रेरणादायक दृश्य प्रभाव पैदा कर सकता है।

2. आकृतियों और आकृतियों से खेलना: कागज़ या अन्य सामग्री से आकृतियाँ काटकर उन्हें प्रकाश स्रोत के सामने रखकर उनकी छायाओं का उपयोग करें। अलग-अलग आकृतियाँ और ऊँचाइयाँ छायाओं के आकार को बदल सकती हैं।

3. प्रकृति का उपयोग करें: धूप वाले दिन किसी पेड़ के पास एक लंबा कागज़ बिछाएँ। पत्तियों और शाखाओं की छायाएँ खुद ही एक सुंदर कलाकृति बना सकती हैं।

4. रहस्य और कल्पना को शामिल करें: शैडो आर्ट का उपयोग करके आप दृश्य के एक हिस्से को छिपा सकते हैं। छाया का उपयोग एक रहस्य बनाने के लिए किया जा सकता है जो दर्शक को कल्पना करने पर मजबूर करता है कि क्या हो रहा है।

5. बच्चों के लिए: यह बच्चों के लिए एक मजेदार गतिविधि है जो ड्राइंग कौशल के साथ रचनात्मकता को विकसित करने में मदद करती है।

क्या आपका पार्टनर इमोशनली कंट्रोल में रखता है आपको? मेंटल स्ट्रेस दूर रखने के लिए इस तरह रखें खुद का ख्‍यालEmotional Man...
05/11/2025

क्या आपका पार्टनर इमोशनली कंट्रोल में रखता है आपको? मेंटल स्ट्रेस दूर रखने के लिए इस तरह रखें खुद का ख्‍याल

Emotional Manipulation in Relationships : रिश्ता तभी मजबूत होता है जब उसमें बराबरी, भरोसा और इमोशनल सपोर्ट हो. लेकिन कई बार यही रिश्ता धीरे-धीरे एक तरफ झुकने लगता है. शुरुआत में पार्टनर का ओवरकेयर करना या हर बात में दिलचस्पी दिखाना प्यार जैसा लगता है, पर जब यही व्यवहार आपकी आज़ादी और सोच पर हावी होने लगे, तो समझ लीजिए बात अब इमोशनल कंट्रोलिंग तक पहुंच गई है

इमोशनल कंट्रोलिंग वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति आपको अपने हिसाब से चलाने की कोशिश करता है, वो भी प्यार या केयर के नाम पर. ऐसा पार्टनर आपकी भावनाओं को अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करता है. वह चाहता है कि आप उसकी बात मानें, और जब आप ऐसा नहीं करते, तो आपको गिल्टी महसूस कराता है. धीरे-धीरे यह पैटर्न आपकी सोच और आत्मविश्वास पर असर डालने लगता है
1.क्यों बढ़ता है मानसिक तनाव?
ऐसे रिश्तों में रहने से इंसान धीरे-धीरे अपने आत्मसम्मान को खोने लगता है. लगातार कंट्रोल किए जाने की वजह से आप खुद पर भरोसा नहीं कर पाते. आपकी सोच सीमित होने लगती है और हर फैसले से पहले डर लगने लगता है. इस तरह का इमोशनल दबाव आगे चलकर चिंता (anxiety) और अवसाद (depression) जैसी समस्याओं का कारण बन सकता है

2.पहचानें कि यह प्यार नहीं, कंट्रोल है
पहला कदम है सच्चाई को स्वीकार करना. खुद से ईमानदारी से पूछें, क्या आप इस रिश्ते में खुश हैं या बस डर और guilt के साथ रह रहे हैं? सच्चा प्यार आपको सुरक्षित महसूस कराता है, जबकि कंट्रोलिंग रिश्ता आपको कमजोर बना देता है

3.अपनी सीमाएं तय करें
‘ना’ कहना सीखें. हर बार पार्टनर की मर्जी मानना जरूरी नहीं है. अगर कुछ बातें आपको परेशान करती हैं, तो साफ और सम्मानजनक तरीके से उन्हें बताएं. रिश्ते में अपनी सीमाएं तय करना एक हेल्‍दी आदत है

4.किसी भरोसेमंद से बात करें
अगर आपको लग रहा है कि बात हाथ से निकल रही है, तो चुप न रहें. किसी भरोसेमंद दोस्त, परिवार के सदस्य या काउंसलर से बात करें. बाहर की राय अक्सर स्थिति को साफ नज़रिए से देखने में मदद करती है.

5. खुद का ख्याल रखना सीखें
रिश्ते में रहते हुए खुद की पहचान खो देना सबसे बड़ी गलती होती है. अपने लिए वक्त निकालें, पसंदीदा काम करें, और जरूरत हो तो प्रोफेशनल मदद लें. याद रखें, प्यार तभी सच्चा होता है जब वह आपको आज़ादी देता है, न कि आपके इमोशन्स पर कंट्रोल करता है. सच्चा रिश्ता आपको मजबूत बनाता

कभी सोचा है — जो मोबाइल हमने बच्चों को “शांत” रखने के लिए दिया था, वही अब उनकी शांति छीन रहा है। 📱💭लखनऊ के डॉक्टरों ने ह...
04/11/2025

कभी सोचा है — जो मोबाइल हमने बच्चों को “शांत” रखने के लिए दिया था, वही अब उनकी शांति छीन रहा है। 📱💭
लखनऊ के डॉक्टरों ने हाल ही में बताया कि बच्चों में बढ़ता स्क्रीन टाइम उनके दिमाग, नींद और व्यवहार पर गहरा असर डाल रहा है। छोटे-छोटे बच्चे जो पहले खेल के मैदान में दौड़ते थे, अब स्क्रीन पर आंखें गड़ाकर बैठे रहते हैं।

जब 3 साल का बच्चा कार्टून या गेम्स में घंटों डूबा रहता है, तो उसका दिमाग लगातार हाई अलर्ट मोड में रहता है — जिससे उसका ध्यान, सीखने की क्षमता और भावनात्मक नियंत्रण धीरे-धीरे कमजोर पड़ने लगता है।
👉 उदाहरण के तौर पर, एक बच्चे ने हर दिन 5–6 घंटे मोबाइल पर गेम खेलना शुरू किया। कुछ हफ्तों में उसने स्कूल का ध्यान खो दिया, रात में नींद नहीं आती थी और छोटी बातों पर चिड़चिड़ा हो गया।
ये बदलाव सिर्फ "आदत" नहीं हैं — ये एक साइलेंट अलार्म हैं कि हम अपने बच्चों को डिजिटल लत की ओर धकेल रहे हैं।

माता-पिता सोचते हैं कि फोन देने से बच्चा “बिजी” रहता है, लेकिन असल में वो खुद से दूर होता जा रहा है।
थोड़ी देर की राहत हमें शायद आसान लगे, पर आने वाले सालों में यही आराम हमारे बच्चे के दिमाग़ और भावनाओं पर बोझ बन जाता है।

💡 याद रखिए:
"बच्चों को स्क्रीन नहीं, अपनी नज़रों की ज़रूरत है।
उन्हें नेटवर्क नहीं, आपकी नेचर चाहिए।"

आज से एक छोटा कदम उठाइए —
• हर दिन कुछ समय बिना फोन के बच्चे के साथ बिताइए।
• स्क्रीन की जगह कहानी, खेल या बातचीत को दीजिए।
• उन्हें दिखाइए कि असली दुनिया मोबाइल की नहीं, मोहब्बत की होती है। ❤️

गुरुग्राम के 18 वर्षीय आर्यन सहवाग ने अपनी ज़िंदगी खत्म कर ली — वजह सिर्फ एक पेपर।कितनी बार हम बच्चों से कहते हैं “टॉप क...
31/10/2025

गुरुग्राम के 18 वर्षीय आर्यन सहवाग ने अपनी ज़िंदगी खत्म कर ली — वजह सिर्फ एक पेपर।
कितनी बार हम बच्चों से कहते हैं “टॉप करना है”, “फेल मत होना” — पर कितनी बार ये कहते हैं कि “तुम गिरो तो भी हम साथ हैं”?
आर्यन की कहानी हर उस बच्चे की कहानी है जो अंकों के बोझ तले दबकर अपनी पहचान भूल जाता है।

मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ कहते हैं —

असफलता से डरना नहीं, उससे बात करना ज़रूरी है।
हर स्कूल में काउंसलिंग सिस्टम और इमोशनल हेल्थ सेशन होने चाहिए।
पैरेंट्स को बच्चों से सिर्फ मार्क्स नहीं, मूड पर भी बात करनी चाहिए।

क्योंकि एक पेपर नहीं, एक नज़रअंदाज़ की गई बात ही कई बार जान ले लेती है।
आइए मिलकर बच्चों के लिए ऐसी दुनिया बनाएं जहाँ सफलता नहीं, संतुलन और सहारा मायने रखे।

25/10/2025

25/10/2025

आमिर खान की बेटी आयरा खान ने अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत हासिल कर ली है. 8 साल तक डिप्रेशन से लड़ने के बाद अब उन्होंने थेरेपी लेना बंद कर दिया है. आयरा ने बताया कि उनका आखिरी थेरेपी सेशन 13 अक्टूबर को हुआ और अब वो अपनी जिंदगी को नए सिरे से जीने के लिए तैयार हैं. आयरा ने अपने इंस्टाग्राम पोस्ट में लिखा कि वो अभी भी दवाइयां ले रही हैं, लेकिन अब उन्हें थेरेपी की जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि “मैंने थेरेपी से बहुत कुछ सीखा है. अब मैं खुद अपनी जिंदगी को संभाल सकती हूं और सबसे जरूरी बात जिंदगी का मजा लेना नहीं भूलूंगी.”

22/10/2025

रिश्ते भावनाओं का नहीं, समझदारी का संतुलन हैं। अक्सर हम सोचते हैं कि मजबूत रिश्ता वो होता है जिसमें प्यार बहुत हो।
लेकिन मनोविज्ञान कहता है….मजबूत रिश्ता वो होता है जिसमें दो लोग खुद को खोए बिना एक-दूसरे से जुड़ते हैं।

जब हम किसी रिश्ते में होते हैं, तो हमारा दिमाग ‘सेफ़्टी’ खोजता है…..भावनात्मक सुरक्षा, समझ, और स्थिरता।
अगर बार-बार असुरक्षा, शंका और नियंत्रण हो,
तो दिमाग ‘खतरे’ की घंटी बजाने लगता है।
और वहीं से दूरी की शुरुआत होती है।

रिश्तों में समस्या तब नहीं होती जब गलती हो जाए,
बल्कि तब होती है जब एक-दूसरे की भावनाओं को सुनना बंद कर दिया जाए।

मनोवैज्ञानिक रूप से देखा जाए,
तो हर रिश्ता तीन ज़रूरतों पर टिका होता है-

1. अपनापन (Attachment)
2. स्वतंत्रता (Autonomy)
3. सार्थक संवाद (Meaningful Communication)

जब कोई रिश्ता इनमें से किसी एक को नज़रअंदाज़ करता है,
तो वह धीरे-धीरे अंदर से टूटने लगता है, भले ही ऊपर से ठीक दिखे।

रिश्तों में सच्चा प्यार वही है जो आपको खुद के और करीब ले जाए,
ना कि सिर्फ किसी और में खो देने का नाम हो।

सिक्स पॉकेट सिंड्रोम क्या है?यह तब होता है जब एक परिवार का इकलौता बच्चा (माता-पिता और दोनों तरफ के दादा-दादी/नाना-नानी) ...
17/10/2025

सिक्स पॉकेट सिंड्रोम क्या है?

यह तब होता है जब एक परिवार का इकलौता बच्चा (माता-पिता और दोनों तरफ के दादा-दादी/नाना-नानी) द्वारा पाला जाता है, और सभी अपनी मोहब्बत, ध्यान और पैसे बहा देते हैं, जिससे बच्चा अहंकारी बन जाता है।

17/10/2025

जब आपकी ऊर्जा शुद्ध होती है,
तो आपको दीवारों की ज़रूरत नहीं होती। जब आपका हृदय खुला,ईमानदार और प्रेम में निहित रहता है, तो प्रकाश आपको घेर लेता है,
आपकी रक्षा करता है और आपका मार्गदर्शन करता है। ✨

📱 एक बड़े अध्ययन में पाया गया कि एडीएचडी से ग्रस्त 50% बच्चों में शर्करा और स्क्रीन योजकों को हटाने के बाद लक्षण गायब हो...
14/10/2025

📱 एक बड़े अध्ययन में पाया गया कि एडीएचडी से ग्रस्त 50% बच्चों में शर्करा और स्क्रीन योजकों को हटाने के बाद लक्षण गायब हो गए।

डच शोधकर्ता डॉ. लिडी पेल्सर द्वारा संचालित और द लैंसेट में प्रकाशित एक अभूतपूर्व अध्ययन में पाया गया कि एडीएचडी से पीड़ित बच्चों में से एक महत्वपूर्ण हिस्से में भोजन के कारण लक्षण उत्पन्न हो सकते हैं।

इस अध्ययन में बच्चों को पाँच सप्ताह तक "कुछ खाद्य पदार्थों" वाला आहार दिया गया—जो चावल, टर्की, कुछ सब्ज़ियों, नाशपाती और पानी जैसी चीज़ों तक सीमित था—जिसमें सभी प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ और योजकों को हटा दिया गया।

उल्लेखनीय रूप से, लगभग 40-50% प्रतिभागियों में एडीएचडी के लक्षण लगभग गायब हो गए। जब ​​उच्च शर्करा और कृत्रिम योजकों वाले सामान्य खाद्य पदार्थों को फिर से शुरू किया गया, तो लक्षण तुरंत वापस आ गए।

इस शोध के पूरक के रूप में, अन्य अध्ययनों ने अत्यधिक स्क्रीन समय को एडीएचडी जैसे लक्षणों से जोड़ा है।

डिजिटल उपकरणों के अत्यधिक संपर्क, विशेष रूप से 12 वर्ष की आयु से पहले, डोपामाइन मार्गों को अत्यधिक उत्तेजित कर सकता है, वही मस्तिष्क प्रणालियाँ जो ध्यान और आवेग नियंत्रण के लिए ज़िम्मेदार हैं।

यह निरंतर डिजिटल उत्तेजना युवा मस्तिष्क को त्वरित पुरस्कार पाने के लिए प्रशिक्षित कर सकती है, जिससे वास्तविक दुनिया के कार्य नीरस और ध्यान केंद्रित करने में कठिन लगने लगते हैं। स्क्रीन का अधिक उपयोग करने वाले बच्चों में नींद की समस्याएँ, चिड़चिड़ापन और भावनात्मक असंतुलन होने की संभावना अधिक होती है—ये सभी एडीएचडी के लक्षणों को दर्शाते हैं। उत्साहजनक रूप से, स्क्रीन पर बिताए गए समय में कमी और आहार संबंधी हस्तक्षेपों ने बच्चों के मूड, नींद और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता में वास्तविक सुधार दिखाया है—जो आगे बढ़ने का एक संभावित रास्ता प्रदान करता है जो दवा से शुरू नहीं होता है।

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