20/11/2025
अक़्ल के साथ एक सब से बड़ी परेशानी ये है कि जिस इंसान के पास अक़्ल कम होती है वो इंसान ख़ुद को बहुत ज़्यादा अक़्लमंद महसूस करता है, करना भी चाहिए क्योकि हर बच्चा ख़ुद को अपने बाप से ज़्यादा अक़्लमंद समझता है जब तक वो ख़ुद बाप ना बन जाए, या टक्कर खा कर दांत ना टूट जाये।
यही हाल दुनियावी चेलों का है अलिफ़, बे, ते (A,B,C,D) जोड़ना आते ही वो ख़ुद को बहुत बड़ा उस्ताद समझने लगते है।
मंदे बुध वाले के साथ दिक़्क़त ही यही होती है की वो ख़ुद की सवा सो ग्राम अक़्ल को किलो भर से कम नहीं समझता और मंदे केतु वाला ख़ुद को अपने उस्ताद से भी ऊपर मानता है, इनको आप अमूमन कहते सुनोगे की में तो उस्ताद से भी ज़्यादा जानता हूँ, बस चले तो ये लोग अपने बाप के भी एहसान फ़रामोश हो जाये।
बुध गोल है जिसका कोई ओर छोर नहीं होता, यही हाल अक़्ल का है और जब अक़्ल धोखा देने पर आती है तो इंसान को सब से पहले उसका बाप ( बुजुर्ग, उस्ताद, अक़्ल देने वाला इंसान) ही अपना सब से बड़ा दुश्मन नज़र आने लगता है।
ख़ैर - होइहि सोई जो राम रची राखा ।