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जय माता दी
23/03/2023

जय माता दी

चैत्र प्रतिपदा विक्रमी संवत 2080 हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई
22/03/2023

चैत्र प्रतिपदा विक्रमी संवत 2080 हिन्दू नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई

 #महामृत्युंजय_मंत्र_की_रचना_कैसे_हुई….    ....  ……???किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना…………..??शिवजी के अनन्य भक्त मृक...
23/01/2023

#महामृत्युंजय_मंत्र_की_रचना_कैसे_हुई…. .... ……???

किसने की महामृत्युंजय मंत्र की रचना…………..??

शिवजी के अनन्य भक्त मृकण्ड ऋषि संतानहीन होने के कारण दुखी थे। विधाता ने उन्हें संतान योग नहीं दिया था। मृकण्ड ने सोचा कि महादेव संसार के सारे विधान बदल सकते हैं। इसलिए क्यों न भोलेनाथ को प्रसन्नकर यह विधान बदलवाया जाए।

मृकण्ड ने घोर तप किया। भोलेनाथ मृकण्ड के तप का कारण जानते थे इसलिए उन्होंने शीघ्र दर्शन न दिया लेकिन भक्त की भक्ति के आगे भोले झुक ही जाते हैं।

महादेव प्रसन्न हुए। उन्होंने ऋषि को कहा कि मैं विधान को बदलकर तुम्हें पुत्र का वरदान दे रहा हूं लेकिन इस वरदान के साथ हर्ष के साथ विषाद भी होगा।

भोलेनाथ के वरदान से मृकण्ड को पुत्र हुआ जिसका नाम मार्कण्डेय पड़ा। ज्योतिषियों ने मृकण्ड को बताया कि यह विलक्ष्ण बालक अल्पायु है। इसकी उम्र केवल 12 वर्ष है।

ऋषि का हर्ष विषाद में बदल गया। मृकण्ड ने अपनी पत्नी को आश्वत किया, जिस ईश्वर की कृपा से संतान हुई है वही भोले इसकी रक्षा करेंगे। भाग्य को बदल देना उनके लिए सरल कार्य है।

मार्कण्डेय बड़े होने लगे तो पिता ने उन्हें शिवमंत्र की दीक्षा दी। मार्कण्डेय की माता बालक के उम्र बढ़ने से चिंतित रहती थी। उन्होंने मार्कण्डेय को अल्पायु होने की बात बता दी।

मार्कण्डेय ने निश्चय किया कि माता-पिता के सुख के लिए उसी सदाशिव भगवान से दीर्घायु होने का वरदान लेंगे जिन्होंने जीवन दिया है। बारह वर्ष पूरे होने को आए थे।

मार्कण्डेय ने शिवजी की आराधना के लिए महामृत्युंजय मंत्र की रचना की और शिव मंदिर में बैठकर इसका अखंड जाप करने लगे।

समय पूरा होने पर यमदूत उन्हें लेने आए। यमदूतों ने देखा कि बालक महाकाल की आराधना कर रहा है तो उन्होंने थोड़ी देर प्रतीक्षा की। मार्केण्डेय ने अखंड जप का संकल्प लिया था।

यमदूतों का मार्कण्डेय को छूने का साहस न हुआ और लौट गए। उन्होंने यमराज को बताया कि वे बालक तक पहुंचने का साहस नहीं कर पाए।

इस पर यमराज ने कहा कि मृकण्ड के पुत्र को मैं स्वयं लेकर आऊंगा। यमराज मार्कण्डेय के पास पहुंच गए।

बालक मार्कण्डेय ने यमराज को देखा तो जोर-जोर से महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते हुए शिवलिंग से लिपट गया।

यमराज ने बालक को शिवलिंग से खींचकर ले जाने की चेष्टा की तभी जोरदार हुंकार से मंदिर कांपने लगा। एक प्रचण्ड प्रकाश से यमराज की आंखें चुंधिया गईं।

शिवलिंग से स्वयं महाकाल प्रकट हो गए। उन्होंने हाथों में त्रिशूल लेकर यमराज को सावधान किया और पूछा तुमने मेरी साधना में लीन भक्त को खींचने का साहस कैसे किया?

यमराज महाकाल के प्रचंड रूप से कांपने लगे। उन्होंने कहा, प्रभु मैं आप का सेवक हूं। आपने ही जीवों से प्राण हरने का निष्ठुर कार्य मुझे सौंपा है।

भगवान चंद्रशेखर का क्रोध कुछ शांत हुआ तो बोले, मैं अपने भक्त की स्तुति से प्रसन्न हूं और मैंने इसे दीर्घायु होने का वरदान दिया है। तुम इसे नहीं ले जा सकते।

यम ने कहा, प्रभु आपकी आज्ञा सर्वोपरि है। मैं आपके भक्त मार्कण्डेय द्वारा रचित महामृत्युंजय का पाठ करने वाले को त्रास नहीं दूंगा।

महाकाल की कृपा से मार्केण्डेय दीर्घायु हो गए। उनके द्वारा रचित महामृत्युंजय मंत्र काल को भी परास्त करता है।
जय शिव जय मृत्युन्जय
जय श्री महाकाल 🙏🙏

13/09/2022
तंत्र मे 64 योगिनी उपासना ।      शिवजी से प्रगट हुवे 64 तंत्र ओर हरेक तंत्र की अधिष्ठात्री देवी है 64 योगिनी । महादानव घ...
18/06/2022

तंत्र मे 64 योगिनी उपासना ।

शिवजी से प्रगट हुवे 64 तंत्र ओर हरेक तंत्र की अधिष्ठात्री देवी है 64 योगिनी । महादानव घोर को पराजित करने महाकाली की शक्तियां बनकर घोर को पराजित किया वो योगिनी शक्तियां है । ब्रह्मांड का केंद्र शिव है इस केंद्र के वर्तुल् में हर दिशामे व्याप्त है 64 योगिनी शक्ति । इसलिए ही योगिनी मंदिर वर्तुलाकार होते है । केंद्रमें शिवलिंग स्थापित होता है । शिवाराधना स्वरूप योगिनियो का मुख शिवलिंग तरफ अंदर की ओर होता है और शिवतंत्र शक्तिसे ब्रह्मांडमें व्याप्त स्वरूप योगिनियो का मुख बाहर की तरफ होता है । 64 योगिनियो को तंत्र मार्ग ओर वैदिक उपासना मार्गमें अलग अलग नाम से पूजा जाता है ।

एक संपूर्ण पुरुष 32 कलाओ से युक्त होता है वही एक संपूर्ण स्त्री भी 32 कलाओ से युक्त होती है , दोनों के मिलन से बनते है 32 + 32 = 64, ऐसे है 64 योगिनी शिव और शक्ति जो सम्पूर्ण कलाओ से युक्त हैं , उनके मिलन से प्रगट हुई हैं । चौसठ योगिनियों की पूजा करने से सभी देवियों की पूजा हो जाती है। इन चौंसठ देवियों में से दस महाविद्याएं और सिद्ध विद्याओं की भी गणना की जाती है। ये सभी आद्या शक्ति काली के ही भिन्न-भिन्न अवतार रूप हैं। कुछ लोग कहते हैं कि समस्त योगिनियों का संबंध मुख्यतः काली कुल से हैं और ये सभी तंत्र तथा योग विद्या से घनिष्ठ सम्बन्ध रखती हैं।

हर दिशा में 8 योगिनी फ़ैली हुई है, हर योगिनी के लिए एक सहायक योगिनी है, हिसाब से हर दिशा में 16 योगिनी हुई तो 4 दिशाओ में 16 × 4 = 64 योगिनी हुई । ६४ योगिनी ६४ तन्त्र की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती है। एक देवी की भी कृपा हो जाये तो उससे संबंधित तन्त्र की सिद्धी मानी जाती है।

वैदिक परम्परामे 64 योगिनि :-

१.बहुरूप, २.तारा, ३.नर्मदा, ४.यमुना, ५.शांति, ६.वारुणी, ७.क्षेमंकरी, ८.ऐन्द्री, ९.वाराही १०.रणवीरा, ११.वानर-मुखी, १२.वैष्णवी, १३.कालरात्रि, १४.वैद्यरूपा, १५.चर्चिका, १६.बेतली १७.छिन्नमस्तिका, १८.वृषवाहन, १९.ज्वाला कामिनी, २०.घटवार, २१.कराकाली, २२.सरस्वती, २३. बिरूपा, २४.कौवेरी, २५.भलुका, २६.नारसिंही, २७.बिरजा, २८.विकतांना, २९.महालक्ष्मी, ३०.कौमारी, ३१.महामाया, ३२.रति, ३३.करकरी, ३४.सर्पश्या, ३५.यक्षिणी, ३६.विनायकी, ३७.विंद्यावालिनी, ३८.वीर कुमारी, ३९.माहेश्वरी, ४०.अम्बिका, ४१.कामिनी, ४२. घटाबरी, ४३. स्तुती, ४४. काली, ४५. उमा, ४६.नारायणी, ४७.समुद्र, ४८.ब्रह्मिनी, ४९.ज्वालामुखी, ५०.आग्नेयी, ५१.अदिति, ५२.चन्द्रकान्ति, ५३. वायुवेगा, ५४.चामुण्डा, ५५.मूरति, ५६.गंगा, ५७.धूमावती, ५८.गांधार, ५९.सर्व मंगला, ६०.अजिता, ६१.सूर्य पुत्री, ६२.वायु वीणा, ६३.अघोर और ६४.भद्रकाली हैं।

शीघ्र फलदायी योगिनी उपसनामे 8 प्रमुख योगिनी की विविध फल प्राप्ति हेतु अलग अलग विधान उपासना है पर यहां सभी 64 योगिनियो का एक ही उपासना विधान प्रस्तुत करते है ।

64 योगिनियों की साधना सोमवार अथवा अमावस्या/ पूर्णिमा की रात्रि से आरंभ की जाती है। साधना आरंभ करने से पहले स्नान-ध्यान आदि से निवृत होकर अपने पितृगण, इष्टदेव तथा गुरु का आशीर्वाद लें। तत्पश्चात् गणेश मंत्र तथा गुरुमंत्र का जप किया जाता है ताकि साधना में किसी भी प्रकार का विघ्न न आएं। इसके बाद भगवान शिव का पूजा करते हुए शिवलिंग पर जल तथा अष्टगंध युक्त अक्षत (चावल) अर्पित करें।

इसके बाद आपकी पूजा आरंभ होती है। एक चौरंग पर लाल वस्त्र पर अक्षत रखकर उन पर योगिनियंत्र या फिर 64 सुपारी स्थापित करे । पंचोपचार पूजन करे । फिर 64 योगिनियो के मंत्र जप करे । हरेक मंत्र की एक माला जप करे । अंत में जिस भी योगिनि को सिद्ध करना चाहते हैं, उसके मंत्र की कम से कम 11 ग्यारह माला (1100 मंत्र) जप करें।

64 योगिनियों के मंत्र ; –

(1) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काली नित्य सिद्धमाता स्वाहा।

(2) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कपलिनी नागलक्ष्मी स्वाहा।

(3) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुला देवी स्वर्णदेहा स्वाहा।

(4) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुरुकुल्ला रसनाथा स्वाहा।

(5) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विरोधिनी विलासिनी स्वाहा।

(6) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विप्रचित्ता रक्तप्रिया स्वाहा।

(7) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्र रक्त भोग रूपा स्वाहा।

(8) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री उग्रप्रभा शुक्रनाथा स्वाहा।

(9) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दीपा मुक्तिः रक्ता देहा स्वाहा।

(10) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीला भुक्ति रक्त स्पर्शा स्वाहा।

(11) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री घना महा जगदम्बा स्वाहा।

(12) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बलाका काम सेविता स्वाहा।

(13) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातृ देवी आत्मविद्या स्वाहा।

(14) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मुद्रा पूर्णा रजतकृपा स्वाहा।

(15) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मिता तंत्र कौला दीक्षा स्वाहा।

(16) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महाकाली सिद्धेश्वरी स्वाहा।

(17) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कामेश्वरी सर्वशक्ति स्वाहा।

(18) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भगमालिनी तारिणी स्वाहा।

(19) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्यकलींना तंत्रार्पिता स्वाहा।

(20) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरुण्ड तत्त्व उत्तमा स्वाहा।

(21) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वह्निवासिनी शासिनि स्वाहा।

(22) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री महवज्रेश्वरी रक्त देवी स्वाहा।

(23) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शिवदूती आदि शक्ति स्वाहा।

(24) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री त्वरिता ऊर्ध्वरेतादा स्वाहा।

(25) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कुलसुंदरी कामिनी स्वाहा।

(26) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नीलपताका सिद्धिदा स्वाहा।

(27) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नित्य जनन स्वरूपिणी स्वाहा।

(28) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री विजया देवी वसुदा स्वाहा।

(29) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सर्वमङ्गला तन्त्रदा स्वाहा।

(30) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ज्वालामालिनी नागिनी स्वाहा।

(31) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चित्रा देवी रक्तपुजा स्वाहा।

(32) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललिता कन्या शुक्रदा स्वाहा।

(33) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री डाकिनी मदसालिनी स्वाहा।

(34) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री राकिनी पापराशिनी स्वाहा।

(35) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लाकिनी सर्वतन्त्रेसी स्वाहा।

(36) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री काकिनी नागनार्तिकी स्वाहा।

(37) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री शाकिनी मित्ररूपिणी स्वाहा।

(38) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री हाकिनी मनोहारिणी स्वाहा।

(39) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री तारा योग रक्ता पूर्णा स्वाहा।

(40) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री षोडशी लतिका देवी स्वाहा।

(41) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भुवनेश्वरी मंत्रिणी स्वाहा।

(42) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री छिन्नमस्ता योनिवेगा स्वाहा।

(43) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री भैरवी सत्य सुकरिणी स्वाहा।

(44) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री धूमावती कुण्डलिनी स्वाहा।

(45) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री बगलामुखी गुरु मूर्ति स्वाहा।

(46) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मातंगी कांटा युवती स्वाहा।

(47) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कमला शुक्ल संस्थिता स्वाहा।

(48) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री प्रकृति ब्रह्मेन्द्री देवी स्वाहा।

(49) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गायत्री नित्यचित्रिणी स्वाहा।

(50) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री मोहिनी माता योगिनी स्वाहा।

(51) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री सरस्वती स्वर्गदेवी स्वाहा।

(52) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अन्नपूर्णी शिवसंगी स्वाहा।

(53) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री नारसिंही वामदेवी स्वाहा।

(54) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री गंगा योनि स्वरूपिणी स्वाहा।

(55) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री अपराजिता समाप्तिदा स्वाहा।

(56) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री चामुंडा परि अंगनाथा स्वाहा।

(57) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वाराही सत्येकाकिनी स्वाहा।

(58) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री कौमारी क्रिया शक्तिनि स्वाहा।

(59) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री इन्द्राणी मुक्ति नियन्त्रिणी स्वाहा।

(60) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री ब्रह्माणी आनन्दा मूर्ती स्वाहा।

(61) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री वैष्णवी सत्य रूपिणी स्वाहा।

(62) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री माहेश्वरी पराशक्ति स्वाहा।

(63) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री लक्ष्मी मनोरमायोनि स्वाहा।

(64) ॐ ऐं ह्रीं श्रीं श्री दुर्गा सच्चिदानंद स्वाहा।

मंत्र जाप के बाद योगिनी स्तोत्र पाठ करे ।

चतुष्षष्टि-योगिनी नाम-स्तोत्रम्

गजास्या सिंह-वक्त्रा च, गृध्रास्या काक-तुण्डिका ।
उष्ट्रा-स्याऽश्व-खर-ग्रीवा, वाराहास्या शिवानना ।।
उलूकाक्षी घोर-रवा, मायूरी शरभानना ।
कोटराक्षी चाष्ट-वक्त्रा, कुब्जा च विकटानना ।।
शुष्कोदरी ललज्जिह्वा, श्व-दंष्ट्रा वानरानना ।
ऋक्षाक्षी केकराक्षी च, बृहत्-तुण्डा सुराप्रिया ।।
कपालहस्ता रक्ताक्षी च, शुकी श्येनी कपोतिका ।
पाशहस्ता दंडहस्ता, प्रचण्डा चण्डविक्रमा ।।
शिशुघ्नी पाशहन्त्री च, काली रुधिर-पायिनी ।
वसापाना गर्भरक्षा, शवहस्ताऽऽन्त्रमालिका ।।
ऋक्ष-केशी महा-कुक्षिर्नागास्या प्रेतपृष्ठका ।
दन्द-शूक-धरा क्रौञ्ची, मृग-श्रृंगा वृषानना ।।
फाटितास्या धूम्रश्वासा, व्योमपादोर्ध्वदृष्टिका ।
तापिनी शोषिणी स्थूलघोणोष्ठा कोटरी तथा ।।
विद्युल्लोला वलाकास्या, मार्जारी कटपूतना ।
अट्टहास्या च कामाक्षी, मृगाक्षी चेति ता मताः ।।

स्तोत्र पाठ के बाद वेदी में ( छोटा यज्ञ कुंडी ) में अग्नि स्थापन करे और सभी 64 योगिनी के नाम के स्मरण करते हुवे 11 आहुति दीजिए ।( शुद्ध घी से या फिर हवन द्रव्य से आहुति दे )

प्रत्येक नाम के आदि में ‘ॐ’ तथा अन्त में स्वाहा लगाकर हवन करें –

१॰ ॐ गजास्यै स्वाहा, २॰ सिंह-वक्त्रायै, ३॰ गृध्रास्यायै, ४॰ काक-तुण्डिकायै , ५॰ उष्ट्रास्यायै, ६॰ अश्व-खर-ग्रीवायै, ७॰ वाराहस्यायै, ८॰ शिवाननायै, ९॰ उलूकाक्ष्यै, १०॰ घोर-रवायै, ११॰ मायूर्यै, १२॰ शरभाननायै, १३॰ कोटराक्ष्यै, १४॰ अष्ट-वक्त्रायै, १५॰ कुब्जायै, १६॰ विकटाननायै, १७॰ शुष्कोदर्यै, १८॰ ललज्जिह्वायै, १९॰ श्व-दंष्ट्रायै, २०॰ वानराननायै, २१॰ ऋक्षाक्ष्यै, २२॰ केकराक्ष्यै, २३॰ बृहत्-तुण्डायै, २४॰ सुरा-प्रियायै, २५॰ कपाल-हस्तायै, २६॰ रक्ताक्ष्यै, २७॰ शुक्यै, २८॰ श्येन्यै, २९॰ कपोतिकायै, ३०॰ पाश-हस्तायै, ३१॰ दण्ड-हस्तायै, ३२॰ प्रचण्डायै, ३३॰ चण्ड-विक्रमायै, ३४॰ शिशुघ्न्यै, ३५॰ पाश-हन्त्र्यै, ३६॰ काल्यै, ३७॰ रुधिर-पायिन्यै, ३८॰ वसा-पानायै, ३९॰ गर्भ-भक्षायै, ४०॰ शव-हस्तायै, ४१॰ आन्त्र-मालिकायै, ४२॰ ऋक्ष-केश्यै, ४३॰ महा-कुक्ष्यै, ४४॰ नागास्यायै, ४५॰ प्रेत-पृष्ठकायै, ४६॰ दन्द-शूक-धरायै, ४७॰ क्रौञ्च्यै, ४८॰ मृग-श्रृंगायै, ४९॰ वृषाननायै, ५०॰ फाटितास्यायै, ५१॰ धूम्र-श्वासायै, ५२॰ व्योम-पादायै, ५३॰ ऊर्ध्व-दृष्टिकायै, ५४॰ तापिन्यै, ५५॰ शोषिण्यै, ५६॰ स्थूल-घोणोष्ठायै, ५७॰ कोटर्यै, ५८॰ विद्युल्लोलायै, ५९॰ बलाकास्यायै, ६०॰ मार्जार्यै, ६१॰ कट-पूतनायै, ६२॰ अट्टहास्यायै, ६३॰ कामाक्ष्यै, ६४॰ मृगाक्ष्यै ।

इस के बाद योगिनी यंत्र स्थापन ओर भगवान शिव की आरती करें । पूजा के बाद क्षमापना प्रार्थना करे ।

मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरं l यत पूजितं मया देव, परिपूर्ण तदस्त्वैमेव l
आवाहनं न जानामि, न जानामि विसर्जनं l पूजा चैव न जानामि, क्षमस्व परमेश्वरं ।

साधना समाप्त होने के बाद शिवलिंग पर चढ़ाएं चावल अलग से रख लें तथा अगले दिन बहते जल यथा नदी में प्रवाहित कर दें। ये उपासना 21 रात्रि तक करनी है । योगिनी देवी की माता स्वरूप ही उपासना करें । उपासना पूर्ण होने के बाद यंत्र या मूर्ति या सुपारी में स्थापना की हो वो सिद्ध हो जाएगा । चौरंग पर स्थापित उसी लाल वस्त्रम बांधकर अल्मारीमे रख दीजिए ।

ये उपासना के बाद जीवनमे कोई कमी नही रहेगी । बचपन से लेकर आजतक जो भी सपने देखे हो सच हो जाएँगे । हरेक समस्या स्वयम ही नाश हो जाएगी । कभी बीच उपसनामे ही कोई योगिनी प्रगट हो जाय तो वंदन किजीये पर कुछ मांगना नही । वो कहे तो भी विनंती कीजिये कि 21 दिन पूरे होने पर आप प्रसन्न रहिए । 21 वे दिन जब साधना पूर्ण हो तब दंडवत प्रणाम कीजिये और फिर जीवनमे जो भी पाना चाहते हो वो योगिनी माताओं से निवेदन कीजिये । सतयुग से आजतक महान सिद्धयोगीओ ने इस योगिनी शक्तिओ से ही अनेक सिद्धि प्राप्त की है ।

शिव वास कब  एवं किस तिथि पर कहाँ रहता है?- रूद्राभिषेक कब करना फल दाई होता है?1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, ...
28/04/2022

शिव वास कब एवं किस तिथि पर कहाँ रहता है?- रूद्राभिषेक कब करना फल दाई होता है?

1. प्रत्येक मास के कृष्णपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, अमावस्या तथा शुक्लपक्ष की द्वितीया व नवमी के दिन भगवान शिव माता गौरी के साथ होते हैं, इस तिथिमें रुद्राभिषेक करने से सुख-समृद्धि उपलब्ध होती है।

2. कृष्णपक्ष की चतुर्थी, एकादशी तथा शुक्लपक्ष की पंचमी व द्वादशी तिथियों में भगवान शंकर कैलाश पर्वत पर होते हैं और उनकी अनुकंपा से परिवार मेंआनंद-मंगल होता है।

3. कृष्णपक्ष की पंचमी, द्वादशी तथा शुक्लपक्ष की षष्ठी व त्रयोदशी तिथियों में महादेव नंदी पर सवार होकर संपूर्ण विश्व में भ्रमण करते है।अत: इन तिथियों में रुद्राभिषेक करने पर अभीष्ट सिद्ध होता है।

4. कृष्णपक्ष की सप्तमी, चतुर्दशी तथा शुक्लपक्ष की प्रतिपदा, अष्टमी, पूर्णिमा में भगवान महाकाल श्मशान में समाधिस्थ रहते हैं।

अतएव इन तिथियों में किसी कामना की पूर्ति के लिए किए जाने वाले रुद्राभिषेक में आवाहन करने पर भगवान शिव की साधना भंग होती है, जिससे अभिषेककर्ता पर विपत्ति आ सकती है।

5. कृष्णपक्ष की द्वितीया, नवमी तथा शुक्लपक्ष की तृतीया व दशमी में महादेव देवताओं की सभा में उनकी समस्याएं सुनते हैं।
इन तिथियों में सकाम अनुष्ठान करने पर संताप या दुख मिलता है।

6. कृष्णपक्ष की तृतीया, दशमी तथा शुक्लपक्ष की चतुर्थी व एकादशी में सदाशिव क्रीडारत रहते हैं।
इन तिथियों में सकाम रुद्रार्चन संतान को कष्ट प्रदान करते है।

7. कृष्णपक्ष की षष्ठी, त्रयोदशी तथा शुक्लपक्ष की सप्तमी व चतुर्दशी में रुद्रदेव भोजन करते हैं।
इन तिथियों में सांसारिक कामना से किया गया रुद्राभिषेक पीडा देते हैं।

🙏 एक बार गणपतिजी अपने मौजिले स्वभाव से आ रहे थे | वह दिन था चौथ का | चंद्रमा ने उन्हें देखा | चंद्र को अपने रूप,लावण्य, ...
23/03/2022

🙏 एक बार गणपतिजी अपने मौजिले स्वभाव से आ रहे थे | वह दिन था चौथ का | चंद्रमा ने उन्हें देखा | चंद्र को अपने रूप,लावण्य, सौंदर्य का अहंकार था | उसने गणपतिजी की मजाक उड़ाते हुये कहा : “ क्या रूप बनाया है | लंबा पेट है, हाथी का सिर है …” आदि कह के व्यंग कसा तो गणपतिजी ने देखा की दंड के बिना इसका अहं नहीं जायेगा |

🙏 गणपतिजी बोले: “ जा, तू किसीको मुँह दिखने के लायक नहीं रहेगा |”
फिर तो चंद्रमा उगे नहीं | देवता चिंतित हुये की पृथ्वी को सींचनेवाला पूरा विभाग गायब! अब औषधियाँ पुष्ट कैसी होगी, जगत का व्यवहार कैसे चलेगा ?”

🙏 ब्रम्हाजी ने कहा: “चंद्रमा की उच्छृंखलता के कारण गणपतिजी नाराज हो गये है|”

🙏 गणपतिजी प्रसन्न हो इसलिये अर्चना-पूजा की गयी | गणपतिजी जब थोड़े सौम्य हुये तब चंद्रमा मुँह दिखाने के काबिल हुआ | चंद्रमा ने गणपतिजी भगवान की स्त्रोत्र-पाठ द्वारा स्तुति की | तब गणपतिजी ने कहा: “ वर्ष के और दिन तो तुम मुँह दिखाने के काबिल रहोंगे लेकिन भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चौथ के दिन तुमने मजाक किया था तो इस दिन अगर तुमको कोई देखेंगा तो जैसे तुम मेरा मजाक उडाकर मेरे पर कलंक लगा रहे थे, ऐसे ही तुम्हारे दर्शन करनेवाले पर वर्ष भर में कोई भारी कलंक लगेगा ताकि लोगों को पता चले की

🌷 रूप दिसी मगरूर न थीउ
एदो हसन ते नाज न कर |

🙏 रूप और सौंदर्य का अहंकार मत करो | देवगणों का स्वामी, इन्द्रियों का स्वामी आत्मदेव है | तू मेरे आत्मा में रमण करनेवाले पुरुष के दोष देखकर मजाक उडाता है | तू अपने बाहर के सौंदर्य को देखता है तो बाहर का सौंदर्य जिस सच्चे सौंदर्य से आता है उस आत्म-परमात्म देव मुझको तो तू जानता नहीं है | नारायण-रूप में है और प्राणी-रूप में भी वही है | हे चंद्र! तेरा ही असली स्वरुप वही है, तू बाहर के सौंदर्य का अहंकार मत कर |”

🙏 भगवान श्रीकृष्ण जैसे ने चौथ का चाँद देखा तो उनपर स्वमन्तक मणि चराने का कलंक लगा था | इतना भी नहीं की बलराम ने भी कलंक लगा दिया था, हालोंकी भगवान श्रीकृष्ण ने मणि चुरायी नहीं थी |
जो लोग बोलते है की ‘वह कथा हम नहि मानते , शास्र-वास्त्र हम नहीं मानते |’ तो आजमा के देखो भैया ! भाद्रपद शुक्ल चौथ के चंद्रमा के दर्शन करके देख, फिर देख, कथा-सत्संग को नही मानता तो समजा जायेगा, प्रतिष्ठा को धुल में मिला दे ऐसा कलंक लगेगा वर्ष भर में |

🙏 आप सावधान हो जाना | ‘नहीं देखना है, नहीं देखना है, नहीं देखना है ‘ ऐसा भी दिख जाता है | ऐसा कई बार हुआ हम लोगों से | एक बार लंदन में दिख गया, फिर हम हिंदुस्तान आये तो हमारे साथ न जाने क्या-क्या चला | फिर एक-दो साल बीते | फिर दिख गया तो क्या-क्या चला | अगले साल नहीं देखा तो उस साल ऐसे कुछ खास गडबड नहीं हुई |फिर इस साल देखेंगे तो ऐसा कुछ होगा…. लेकिन हम तो आदि हो गये, हमारे कंधे मजबूत हो गये |

🙏 एक बार घाटवाले बाबा ने मुझसे पूछा: “भाई! चौथ का चंद्रमा देखने से कलंक लगता है – ऐसा लिखा है |”

🙏 मैंने कहाँ : “हाँ |”.
“श्रीकृष्ण को भी लगा था ?”
“हाँ |”
“हमने तो देख लिया |”
“अपने देखा तो आपको कुछ नहीं हुआ|”
“मेरे को तो कुछ नहीं हुआ |”
“कितना समय हो गया |”
“वर्ष पूरा हो गया | अगले साल देखा चंद्र को तो कुछ नहीं हुआ |”
“कुछ नहीं तो शास्त्र झूठा है ?”
“नहीं, मेरे को तो कुछ नहीं हुआ पर लोगों ने हरिद्वार की दीवारों पर लिख दिया घाटवाला बाबा रंडीबाज है |” लोगों ने लिख दिया और लोगों ने पढ़ा, मेरे को तो कुछ नहीं हुआ|
अब ब्रम्हज्ञानी संत को तो क्या होगा बाबा !

🙏 यदि भूल से भो चौथ का चंद्रमा दिख जाय तो ‘श्रीमदभागवत’ के १०वे स्कंध, ५६-५७वे अध्याय में दी गयी ‘स्यमंतक मणि की चोरी’ की कथा का आदरपूर्वक श्रवण करना | भाद्रपद शुक्ल तृतीया या पंचमी के चंद्रमा के दर्शन कर लेना, इससे चौथ को दर्शन हो गये हाँ तो उसका ज्यादा खतरा नही होगा |

👉🏻दूध ना पचे तो ~ सोंफ ,👉🏻दही ना पचे तो ~ सोंठ,👉🏻छाछ ना पचे तो ~जीरा व काली मिर्च👉🏻अरबी व मूली ना पचे तो ~ अजवायन👉🏻कड़ी न...
21/03/2022

👉🏻दूध ना पचे तो ~ सोंफ ,
👉🏻दही ना पचे तो ~ सोंठ,
👉🏻छाछ ना पचे तो ~जीरा व काली मिर्च
👉🏻अरबी व मूली ना पचे तो ~ अजवायन
👉🏻कड़ी ना पचे तो ~ कड़ी पत्ता,
👉🏻तैल, घी, ना पचे तो ~ कलौंजी...
👉🏻पनीर ना पचे तो ~ भुना जीरा,
👉🏻भोजन ना पचे तो ~ गर्म जल
👉🏻केला ना पचे तो ~ इलायची
👉🏻ख़रबूज़ा ना पचे तो ~ मिश्री का उपयोग करें...
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।
2. लकवा - सोडियम की कमी के कारण होता है ।
3. हाई वी पी में - स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
4. लो बी पी - सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
5. कूबड़ निकलना- फास्फोरस की कमी ।
6. कफ - फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
7. दमा, अस्थमा - सल्फर की कमी ।
8. सिजेरियन आपरेशन - आयरन , कैल्शियम की कमी ।
9. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें ।
10. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें ।
11. जम्भाई- शरीर में आक्सीजन की कमी ।
12. जुकाम - जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
13. ताम्बे का पानी - प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
14. किडनी - भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
15. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
16. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
17. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
18. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
19. पथरी - अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
20. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।
21. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
22. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
23. भोजन के लिए पूर्व दिशा.

मनोकामना पूर्ति के लिए करे शिवलिंग से सम्बंधित ये उपायकहते है की भगवान शिव की यदि लिंग स्वरुप में यानी की शिवलिंग की पूज...
25/02/2022

मनोकामना पूर्ति के लिए करे शिवलिंग से सम्बंधित ये उपाय

कहते है की भगवान शिव की यदि लिंग स्वरुप में यानी की शिवलिंग की पूजा की जाए तो भगवान शिव बहुत जल्दी प्रसन्न होते है। हम आपको यहां पर शिवलिंग की पूजा से सम्बंधित कुछ उपाय बता रहे है जिनको करने से आप अभीष्ट फल प्राप्त कर सकते है।

1. जल चढ़ाते समय शिवलिंग को हथेलियों से रगड़ना चाहिए। इस उपाय से किसी की भी किस्मत बदल सकती है।
2. जल में केसर मिलाएं और ये जल शिवलिंग पर चढ़ाएं। इस उपाय से विवाह और वैवाहिक जीवन से जुडी समस्याएं खत्म होती है।

3. यदि आप बहुत जल्दी सफलता पाना चाहते हैं तो रोज़ पारे से बने छोटे से शिवलिंग की पूजा करें। पारद शिवलिंग बहुत चमत्कारी होता है।

4. यदि आप लंबी उम्र चाहते है तो शिवलिंग पर रोज़ दूर्वा चढ़ाएं। इससे शिवजी और गणेशजी की कृपा से घर में सुख-समृद्धि भी बढ़ती है।

5. चावल पकाएं और उन चावलों से शिवलिंग का श्रृंगार करें। इसके बाद पूजा करें। इससे मंगलदोष शांत होते हैं।

6. समय-समय पर शिवजी के निमित सवा किलो, सवा पांच किलो, ग्यारह किलो या इक्कीस किलों गेहूं या चावल का दान करें।

7. शिवलिंग पर जल चढ़ाते समय काले तिल मिलाएं। इस उपाय से शनि दोष और रोग दूर होते हैं।

8. बीमारियों के कारण परेशानियां खत्म ही नहीं हो रही हैं तो पानी में दूध और काले तिल मिलाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं। ये उपाय रोज़ करें।

9. मनचाही गाडी चाहते हैं तो शिवलिंग पर रोज़ चमेली के फूल चढ़ाएं और शिव मन्त्र (ॐ नमः शिवाय) का जप 108 बार रोज़ करें।

10. लक्ष्मी की स्थाई कृपा चाहते हैं तो शिवलिंग पर रोज़ चावल चढ़ाएं। चावल पुरे यानी अखंडित होने चाहिए।

11. बिल्वपत्रों पर चंदन से ॐ नमः शिवाय लिखें। इसके बाद इन पत्तों की माला बनाकर शिवलिंग पर चढ़ाएं।

12. शिवलिंग पर रोज़ धतूरा चढाने से घर और संतान से जुडी समस्याएं दूर होती है। ये उपाय संतान को सभी कार्यों में सफलता दिलवाता है।

13. नियमित रूप से आंकड़े के फूलों की माला बनाकर शिवलिंग पर चढ़ाते है तो आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं।

14. नियमित रूप से ऐसे शिव मंदिर में दीपक जलाएं जो सुनसान स्थान पर हो।

15. कच्चे दूध में शक्कर मिलाएं और तांबें के लोटे से शिवलिंग पर रोज़ चढ़ाएं। इस उपाय से दिमाग तेज चलेगा और ज्ञान बढ़ेगा।

एक श्लोकों दुर्गा पाठ
20/02/2022

एक श्लोकों दुर्गा पाठ

प्रथम भाव या फर्स्ट हाउस को लग्न, तनु, होरा, आरम्भ आदि कई नामों से जाना जाता है । लग्न कुंडली के प्रथम भाव से जातक के लक...
04/02/2022

प्रथम भाव या फर्स्ट हाउस को लग्न, तनु, होरा, आरम्भ आदि कई नामों से जाना जाता है । लग्न कुंडली के प्रथम भाव से जातक के लक्षण, व्यक्तित्व, आचार विचार, व्यवहार का विचार किया जाता है । जातक देखने में कैसा है, इसका बात करने का तरीका कैसा है, यह कैसी सोच का इंसान है ? जातक की कद काठी कैसी है ? जातक में निर्णय लेने की क्षमता है या नहीं, असेंडेंट का स्वास्थ्य कैसा है, जातक जीवन में कामयाब होगा या नहीं आदि विषयों की जानकारी प्रथम भाव प्रदान करता है । इसके साथ ही जातक की व्याधि का अनुमान भी पहले घर से लगाया जाता है । जैसे जातक के चेहरे या अन्य किसी बॉडी पार्ट पर चोट का निशान इस भाव से देखा जायेगा । इसके अतिरिक्त जन्म से मिली बीमारी का अवलोकन भी फर्स्ट हाउस से किया जाता है । जातक अच्छे कामो से यश प्राप्त करेगा या खानदान के नाम पर बट्टा लगाएगा ? पराक्रमी होगा या डरपोक, पढ़ने लिखने में कैसा होगा, घुम्मकड़ होगा या उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए यात्राएं करेगा, माँ पिता की सेवा की सेवा करेगा या नहीं आदि अनेक विषयों की जानकारी प्रथम भाव से प्राप्त की जाती है । यह भाव जातक की पोटेंशिअल अथवा जील दर्शाता है । इस भाव से जातक का बल देखा जाता है की ये जातक मुसीबतों से जल्दी हार मान जाने वाला है या डटकर उनका मुकाबला करके जीत हासिल करने वाला है । साथ ही प्रथम भाव से जातक का वर्ण ( ब्राह्मण, क्षत्रीय, शूद्र, वैश्य ) , प्रकृति ( वात, पित्त, कफ ) की जानकारी प्राप्त की जाती है । पहले भाव के सम्बन्ध में जानने के लिए प्रथम भाव में आये गृह व् प्रथमेश का अन्य भावों व् ग्रहों से सम्बन्ध का भली प्रकार अध्ययन किया जाता है ।

प्रथम भाव से जुड़े अन्य पक्ष Other aspects related to first house :
दुसरे भाव से बारहवां भाव होने के चलते यह कुटुंब का व्यय भाव बनता है । प्रथम भाव छोटे भाई बहन का लाभ भाव होता है क्यूंकि तीसरे से ग्यारहवां भाव होता है । अतः यह भाव छोटे भाई बहन के लाभ दिखाता है । सुख स्थान का कर्म भाव बनता है तो सुख में वृद्धिकारक है । पंचम से नवम भाव होता है । संतान की धार्मिक आस्थाओं को उजागर करता है । छठे भाव से अष्टम होता है । तो असेंडेंट को या असेंडेंट से मामा को होने वाली टेंशन की जानकारी देता है । सप्तम से सप्तम होता है । साझेदारों की डेली इनकम और जातक से साझेदारों को मिलने वाले लाभ दिखाता है । दशम का सुख भाव होता है तो पिता के सुख को इस भाव से देखा जाएगा । ऐसे ही ग्यारहवें भाव से तीसरा भाव होने की वजह से बड़े भाई बहन की कार्य क्षमता या पराक्रम का अनुमान प्रथम भाव से लगाया जाता है । बारहवें का धन भाव होने से यह भाव विदेश से होने वाली धन प्राप्ति या जातक पर पड़ने वाले विदेशी प्रभाव को दर्शाता है ।

वर - कन्या दोनों के आदि नाड़ी रहने से वियोग होता है  ।दोनों के अन्त्य नाड़ी होने से कन्या विधवा होती है  ।और दोनो के मध्य ...
22/01/2022

वर - कन्या दोनों के आदि नाड़ी रहने से वियोग होता है ।दोनों के अन्त्य नाड़ी होने से कन्या विधवा होती है ।और दोनो के मध्य नाड़ी रहने से दोनों की मृत्यु ।इसलिए वर - कन्या की कुण्डली मिलान करते समय नाड़ी का विचार अवश्य करना चाहिए ।।

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