22/11/2025
#सृष्टि_का_आरम्भ
#वेद_ज्ञान_ज्योतिष_रचना
#भाग_01
सनातन धर्म के अनुसार, सृष्टि का न तो कोई आरम्भ है और न ही अंत; यह एक #शाश्वत_चक्र है। ब्रह्मांड सृजन, संरक्षण और विघटन (प्रलय) के अनंत चक्रों से गुजरता है।
इसे #त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) की शक्तियों से जोड़कर देखा जाता है:
#सृष्टि (Creation): भगवान #ब्रह्मा सृष्टि के निर्माता हैं।
#स्थिति (Preservation): भगवान #विष्णु इसका पालन और संरक्षण करते हैं।
#संहार (Destruction): भगवान #शिव (महेश) इसका संहार करते हैं, जिसके बाद नए चक्र का आरम्भ होता है।
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ब्रह्मांड एक अंडे के आकार का है ( ब्रह्मांड = ब्रह्मा + अंड): जिसका उल्लेख धर्मग्रंथों में ब्रह्मांड को एक विशाल अंडे के आकार का बताया गया है।
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🌍 #ब्रह्मा_द्वारा_रचना:
विभिन्न पुराणों और वेदों के अनुसार, सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा हैं।
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#भगवान_विष्णु_क़ी_भूमिका
प्रचलित कथा के अनुसार, महाप्रलय के बाद जब सब कुछ जलमग्न था, भगवान #विष्णु शेषनाग पर शयन कर रहे थे। उनकी नाभि से एक कमल का फूल निकला, जिस पर #ब्रह्मा जी प्रकट हुए। भगवान #शिव के आदेश और भगवान #विष्णु से ज्ञान प्राप्त कर, #ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना का कार्य शुरू किया।
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#ध्वनि_और_कंपन:
कुछ ग्रंथों में यह भी उल्लेख है कि ब्रह्मांड का निर्माण ध्वनि (साउंड) और कंपन (वाइब्रेशन) से हुआ है।
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🕙 ी_अवधारणा:
सनातन धर्म में समय रैखिक नहीं, बल्कि चक्रीय है, जिसे 'कालचक्र' कहा जाता है। ब्रह्मांड का जीवनकाल ब्रह्मा के 100 वर्षों के बराबर होता है, जो मानव वर्षों में खरबों वर्ष होते हैं। प्रत्येक कल्प (ब्रह्मा का एक दिन) के अंत में नैमित्तिक प्रलय होती है, और महाप्रलय (प्राकृतिक प्रलय) के बाद नया सृजन चक्र शुरू होता है।
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#मुख्य_सिद्धांत-
#हिरण्यगर्भ_सूक्त (Rigveda):
ऋग्वेद का नासदीय सूक्त सृष्टि के आरम्भ को अस्तित्व और अनस्तित्व दोनों से परे की स्थिति के रूप में दर्शाता है।
हिरण्यगर्भ (स्वर्ण-अंडा) वह आदिम स्रोत है जिससे ब्रह्मांड की उत्पत्ति हुई।
#ब्रह्म_से_उत्पत्ति:-
मूल रूप से, केवल ब्रह्म (परम सत्य, निराकार और शाश्वत) ही विद्यमान था। इसी ब्रह्म से यह संपूर्ण ब्रह्मांड उत्पन्न हुआ।
-------------------------------------------------कुछ मतों के अनुसार, भगवान विष्णु के नाभि से एक कमल प्रकट होता है, जिस पर ब्रह्मा का जन्म होता है और वे सृष्टि की रचना करते हैं।
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#पुरुष_और_प्रकृति
सृष्टि की प्रक्रिया पुरुष (चेतना) और प्रकृति (जड़ पदार्थ) के मिलन और संतुलन से शुरू होती है।
समय के क्रम में, प्रकृति के तीन गुण (सत्व, रजस, तमस) आपस में क्रिया करके महत्-तत्व (बुद्धि), अहंकार (मिथ्या-अहं), और फिर पाँच तत्वों (आकाश, वायु, अग्नि, जल, पृथ्वी) की रचना करते हैं।
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🧘 #सनातन_धर्म_का_स्वरूप (Nature of Sanatana Dharma)
'सनातन' शब्द का अर्थ है शाश्वत या सदा बना रहने वाला (जिसका न आदि है न अंत)। यह धर्म किसी व्यक्ति विशेष द्वारा स्थापित नहीं किया गया है, बल्कि यह अनादि काल से चला आ रहा है और अनंत काल तक रहेगा।
मुख्य विशेषताएँ
#सार्वभौमिक_नियम:
यह कुछ सार्वभौमिक और स्वयंसिद्ध नियमों को संदर्भित करता है जो आत्मा के वास्तविक, आध्यात्मिक पहचान के अनुसार किए जाते हैं।
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#शाश्वत_कर्तव्य:
इसमें ऐसे कर्तव्य शामिल हैं जो सभी के लिए समान हैं।
#शाश्वत_नियम:
'सनातन धर्म' का शाब्दिक अर्थ है 'शाश्वत कानून' या 'सनातन कर्तव्य'। यह उन आध्यात्मिक और नैतिक शिक्षाओं का एक विशाल संग्रह है जो अनादिकाल से अस्तित्व में हैं।
जैसे:
सत्य बोलना
किसी जीव को हानि न पहुँचाना (अहिंसा)
पवित्रता बनाए रखना
दया और क्षमा का भाव रखना
दान करना
#आत्मा_मोक्ष_और_ईश्वर:
सनातन धर्म का मूल ज्ञान ईश्वर, आत्मा, और मोक्ष जैसे शाश्वत सत्यों पर आधारित है। यह जीवात्मा के शाश्वत स्वरूप को स्वीकार करता है।
वेदों का मूल: सनातन धर्म का आधार वेद हैं, जिन्हें ईश्वरीय ज्ञान माना जाता है।
सनातन धर्म सृष्टि के आरंभ को एक जटिल, वैज्ञानिक और चक्रीय प्रक्रिया के रूप में देखता है, जो किसी एक क्षणिक घटना के बजाय एक सतत लीला है।
#ईश्वर_और_जीवात्मा:
सनातन धर्म में परमात्मा को 'सनातन' माना गया है, और जीवात्मा भी सनातन है।
#जीवन_का_उद्देश्य:
यह धर्म जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म के चक्र (संसार) से मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त करने के मार्ग बताता है।
#संक्षेप में, सनातन धर्म सृष्टि के आरम्भ को एक अनंत, चक्रीय प्रक्रिया के हिस्से के रूप में देखता है, जो ईश्वर की इच्छा और दिव्य शक्तियों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) के माध्यम से चलती रहती है।
......….🖋️....आगे के लिए . #भाग_02 का इंतजार करे
Omkar Mishra
सर्वज्ञ वाणी सनातन मंच-भारत
Sarvagya astrology सर्वज्ञ एस्ट्रोलॉजी