Shivam Yog Divine Utkarsh Vidhya Divine Life Rising

Spiritual Education, Kundalini Awakening Chakra Energy Purification Tantra Yantra Mantra Yoga, Holistic Health, Wellness,Healing Ayurveda Treatment, Alternative Medicine and Ayurveda Herbs, Organic Food Products

03/12/2025
03/12/2025

Hi everyone!
गुरुकृपा केवलम 🙏 योग करे और करने वालों का प्रोत्साहन बढ़ाए,इस धरती पर समस्त मानव के जन्म ओर मरण की प्रक्रिया समान है, हा जीवन जीने का तरीका अपने अपने स्थान के अनुरूप हो सकता है पर स्वयं के शरीर को उत्तम स्वास्थ देने के लिये एक ही अभ्यास यत्र, तत्र, सर्वत्र, है वो योग है ओर योग ही समस्त मानव समाज को समानता, शान्ति, एवं सद्भाव का मार्ग दे सकता है...... वसुदेव कुटुंबकम् 🌎🇮🇳❤️🔥
महंत रत्नेश पुरी योगगुरु

🌟 You can support me by sending Stars - they help me earn money to keep making content you love.

Whenever you see the Stars icon, you can send me Stars!


Meta Shivam Yog Divine Utkarsh Vidhya Divine Life Rising Modism" Enlightened India for Welfare of Humanity Surendra Singh Virhe विजयी भारत Ashwini Upadhyay #

02/12/2025

काशीपति महादेव मंदिर लाल बाग पैलेस इंदौर Meta Modism" Enlightened India for Welfare of Humanity Surendra Singh Virhe Ratnesh Puri

02/12/2025
01/12/2025

अष्टौ गुणा: पुरुषं दीपयन्ति
प्रज्ञा कौल्यं च दम: श्रुतं च|
पराक्रमश्चाबहुभाषिता च
दानं यथाशक्ति कृतज्ञता च||

(महाभारत, उद्योग पर्व - ३३/९९)

अर्थात 👉 बुद्धि, कुलीनता, इन्द्रिय-निग्रह, शास्त्र-ज्ञान, पराक्रम, मितभाषिता, शक्ति के अनुसार दान और कृतज्ञता - ये आठ गुण पुरुष की ख्याति बढ़ा देते हैं।
मोक्षदा एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं

उत्कर्ष मेंटल हेल्थ केयर सॉल्युशंस एंड एंप्लॉयमेंट वेलनेस कंसलटेंसी इंस्टीट्यूट 28/6 साउथ तुकोगंज इंदौर

30/11/2025
30/11/2025

दिव्य उत्कर्ष मनोयोग ध्यान :

ध्यान कोई तकनीक, तपस्या या साधना नहीं—
यह मनुष्य के अस्तित्व की जड़ तक पहुँचने का द्वार है।
मनुष्य जिस दिन जन्म लेता है, उसी दिन से बाहर की ओर भागना शुरू कर देता है—संग्रह में, सिद्धि में, उपलब्धियों में, मान्यता में, संबंधों में, आकांक्षाओं में।
लेकिन जीवन में जितना भी व्यक्ति बाहर की ओर जाता है, उतना ही वह अपने मूल केंद्र से दूर होता जाता है।

“मनुष्य का दुःख इस कारण नहीं कि उसने संसार कम देखा,
बल्कि इसलिए कि उसने अपने भीतर झाँका ही नहीं।”

इसीलिए ध्यान आवश्यक है—क्योंकि ध्यान वही पहला कदम है जो मनुष्य को बाहर से भीतर की ओर मोड़ता है, खुद से परिचय कराता है।

दिव्य उत्कर्ष मनोयोग ध्यान क्यों आवश्यक है? –

1. मन विचारों के शोर से भरा है—ध्यान इसे साफ़ करता है।

2. ध्यान मनुष्य को उसके वास्तविक स्वभाव, साक्षी-चेतना से परिचित कराता है।

3. यह व्यक्ति को समाज की मानसिक गुलामी से मुक्त करता है।

4. दुख की जड़ों को पहचानकर शांति की अवस्था लाता है।

5. प्रेम, आनंद, करुणा जैसी गुणधर्म स्वतः प्रकट होते हैं।

6. मनुष्य को वर्तमान क्षण में जीने की कला सिखाता है।

7. अंततः ध्यान अस्तित्व के साथ एकत्व और जागरण की ओर ले जाता है।

संपर्क करें :
डॉक्टर सुरेंद्र सिंह विरहे
मनोशारीरिक आरोग्य विशेषज्ञ आध्यात्मिक मनोयोग थेरेपिस्ट
मेंटल हेल्थ केयर काउंसलर लाईफ कोच
उत्कर्ष डिवाइन मनोयोग थेरेपी आयुष वैकल्पिक चिकित्सा केंद्र
28/6 साउथ तुकोगंज इंदौर
9826042177,
7067871929,
8989832149



Shivam Yog Divine Utkarsh Vidhya Divine Life Rising

Address

Bhopal

Opening Hours

Monday 11:30am - 6pm
Tuesday 12am - 4pm
Wednesday 12am - 6pm
Thursday 12am - 6pm
Friday 12am - 6pm
Saturday 6am - 8pm
Sunday 12am - 4pm

Telephone

+918989832149

Website

https://utkarsh-mental-health-care-solutions.blogspot.com/

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Shivam Yog Divine Utkarsh Vidhya Divine Life Rising posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Shivam Yog Divine Utkarsh Vidhya Divine Life Rising:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram

आध्यात्मिक योग चिकित्सा आयुर्वेद औषधि योग थेरेपी - आध्यात्मिक हीलिंग स्वास्थ्य समाधान मानसिक स्वास्थ्य

वर्तमान जीवन : आज सामान्यतया व्यक्ति परिवार से, धन-दौलत से, जमीन-जायदाद से, रिश्ते-नातों से जुड़ता है। गहराई में देखा जाए तो वह अपने से बाहर दिखाई देने वाले शरीर से जुड़ता है। यह जुड़ना वास्तविक जुड़ना नहीं है, क्योंकि यह सब तो एक दिन छूट ही जाना है। स्वरूप को पहचानने के लिए बाहर का सब कुछ जाना हुआ, याद किया हुआ, पाया हुआ, बाहर ही छोड़कर शांत भाव से स्थिर हो जाना होता है। जब तक बाहर का छूटेगा नहीं, तब तक भीतर का आत्मदर्शन मिलेगा नहीं। यह स्थिति निर्विचार की अवस्था है। इसे ध्यान की अवस्था भी कहा गया है। यह स्थिति आध्यात्मिक स्वास्थ्य की अवस्था है।

इस अवस्था में दृष्टा अपने ही स्वरूप में स्थित हो जाता है। जब साधक एक बार अपने स्वरूप का दर्शन कर लेता है, तब उसके भीतरी मन के मलों का नाश होने लगता है। काम, क्रोध, लोभ और मोह उसे सताते नहीं हैं। चिंता, चिंतन में बदल जाती है। तनाव, शांति में। सुख-दुख, आनन्द में। निराशा, प्रसन्नता में। घृणा, प्रेम में तब्दील हो जाता है। हिंसा, करुणा में। झूठ, सत्य में। कामवासना, ब्रह्मचर्य में। चोरी का भाव अस्तेय में। इच्छाएं संतुष्टि में। वाणी का तीखापन कोमलता में। आहार मिताहार हो जाता है। सबके साथ मित्रता व प्रेम का भाव आ जाता है, फिर न कोई शोक होता है, न रोग होता है। अवगुणों, मलिनताओं, दुखों का स्वत: ही नाश होने लगता है। ऐसे व्यक्ति के लिए फिर भी कुछ अशुभ नहीं होता, क्योंकि वह आत्मदर्शन कर चुका होता है। शरीर को स्वस्थ रखने का उसका थोड़ा प्रयास भी सार्थक सिद्ध होता है। ऐसे में योग की साधना पूर्ण स्वास्थ्य प्रदान करने वाली सिद्ध होती है।

स्वस्थ कौन? स्वस्थ का अर्थ होता है, स्व में स्थित हो जाना। अर्थात् स्वयं पर स्वयं का नियंत्रण, अनुशासन अथवा पूर्ण स्वावलम्बन। अपने स्वभाव में रहना। अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों परिस्थितियों में समभाव बनाएं रखना, सन्तुलित रहना, राग और द्वेष से परे हो जाना। ऐसी अवस्था में शरीर निरोग, मन निर्मल, विचार पवित्र और आत्मा शुद्ध हो जाती है। स्व का मतलब आत्मा होता है। अतः आध्यात्मिक दृष्टि में आत्म स्वभाव में रहने वाला ही स्व में स्थित अर्थात् स्वस्थ होता है। यदि आप हमेशा आध्यात्मिक शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहना चाहते हैं..