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27/09/2021

विशोंत्तरी भावेश दशा फल :

(1) लग्नेश : लग्नेश की दशा सौभाग्य सूचक रहती है। शारारिक सुख, निरोगता, धनागम, ख्याति, कठिन कार्यो के लिये उद्यत आदि फल होते है। परन्तु स्त्री कष्ट देखा जाता है। लग्नेश की दशा मे शनि की अन्तर्दशा मे धन हानि, परिवार मे झगड़ा-बटवारा, शत्रुता, कष्ट होते है।
फलदीपिका अनुसार - यदि लग्न का स्वामी बलवान हो तो विश्व गौरवशाली स्थिति, सुखी जीवन व्यापन, निरोग पुष्ट शरीर, चहरे पर लावण्य, समृद्धि मे वृद्धि, वृद्धिगत चन्द्रकला के समान जीवन उन्नतिशील होता है। यदि लग्नेश बलहीन, अशुभ स्थान या प्रतिकूल हो तो कारावास, संज्ञान मे जीवन व्यापन, भयग्रस्त, रोग, मानसिक पीड़ा, अंतिम संस्कार मे भाग लेने वाला, पद का नुकसान व अन्य दुर्भाग्य होते है।

(2) द्वितीयेश : द्वितीयेश की दशा अशुभ सूचक होती है। धनेश की दशा मे धनलाभ, शारारिक कष्ट, मानहानि, पदावनति होती है। यदि धनेश पापयुत हो तो कारावास या मृत्यु भी हो जाती है। द्वितीयेश पापग्रह हो या पापग्रह से युत या दृष्ट हो या द्वितीय स्थान मे पापग्रह बैठा हो तो इस दशा मे भीषण आर्थिक क्षति होती है, दिवालिया बनने की नौबत तक आ जाती है।
द्वितीयेश की दशा मे शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु की अन्तर्दशाये कष्टकर, भाई-स्वजन का मरण या विछोह कारक होती है। परन्तु द्वितीयेश शुभग्रह हो या शुभग्रह से युत या दृष्ट हो तो इस दशा मे धन-धान्य की वृद्धि और सन्तान सुख भी होता है।
फलदीपिका अनुसार - यदि द्वितीय भाव के स्वामी की दशा हो तो परिवार की वृद्धि, सुकन्या की प्राप्ति, सुस्वादु भोजन का आनन्द, व्याख्यान से अर्थ, भाषण की वाग्मिता और श्रोताओ की परिणामी प्रशंसा होती है। द्वितीयेश बलहीन, अशुभ स्थान या प्रतिकूल हो तो जातक लोगो से मूर्खता पूर्ण व्यवहार करेगा, अपने वचन और परिवार पर कायम नही रहेगा, आपत्तिजनक पत्र लिखेगा, नेत्र पीड़ा से ग्रस्त होगा, कठोर वाणी होगी, अनाप-शनाप खर्च करेगा, राजा की नाराजगी सहन करेगा।

(3) तृतीयेश : तृतीयेश की दशा मे निरंतर उत्थान-पतन होता रहता है। इसकी दशा कष्टकारक, चिंताजनक, साधारण आमदनी करने वाली होती है। यदि तृतीयेश शुभग्रह हो या शुभग्रह से युत हो तो दशा शुभ कारक और पापग्रह या पापग्रह से युत हो तो धनक्षय, झूठा कलंक लगना, मानहानि, शत्रु वृद्धि होती है।
अशुभ तृतीयेश की दशा मे शनि, मंगल, सूर्य तथा राहु की अन्तर्दशा हो तो भाई-बहन की मृत्यु, बन्धुजनो का विछोह, मानहानि आदि फल होते है। अधिकतर अनुभव मे आता है की तृतीयेश चाहे शुभ या अशुभ गृह हो उसकी दशा मे पापग्रह का अंतर आने पर स्वजन का विछोह होता ही है।
फलदीपिका अनुसार यदि तृतीय स्थान और उसका स्वामी बलवान है तो तृतीयेश की दशा आने पर जातक को भाइयो से पूर्ण सहयोग मिलता है। शुभ समाचार की प्राप्ति, साहस और वीरता प्रदर्शन का अवसर, सेना अध्यक्ष और सम्मान, जन सहयोग और अच्छे गुणो के लिये प्रसिद्ध होता है। यदि तृतीयेश कमजोर (बलहीन) हो तो उसकी दशा मे भाई और बहनो की हानि होगी, कार्य की आलोचना होगी और गुप्त शत्रु परेशान करेगे, जातक विपरीतता का शिकार होगा जिसके कारण अपमानित होगा और अपना गौरव खोयेगा।

(4) चतुर्थेश : चतुर्थश की दशा शुभ कारक मानी गई है। इसकी दशा मे वाहन, घर, भूमि आदि के लाभ, माता तथा मित्र व स्वयम को शारीरिक सुख होता है। चतुर्थेश सौम्यग्रह मे सौम्यग्रह की अन्तर्दशा आने पर घर, वाहन की श्री वृद्धि, मांगलिक कार्य, सर्वोतोमुखी प्रगति आदि फल होते है।
चतुर्थेश बलवान शुभग्रहो से दृष्ट हो तो नया मकान बनता है। मंगल की अन्तर्दशा आने पर गृह निर्माण, कृषि कार्यो से लाभ होता है। शुक्र की दशा आने पर वाहन लाभ लाभेश (एकादशेश) की दशा आने पर नवीन कारोबार, एकाधिक स्रोत से धनागम होता है। सूर्य की अन्तर्दशा आने पर नौकरी मे उन्नति, लाभ किन्तु पिता को धोर कष्ट होता है। लाभेश या चतुर्थेश दोनो दशम या चतुर्थ मे हो तो कारोबार करता है। लेकिन इस दशाकाल मे पिता को कष्ट होता है। विद्या लाभ, विश्विद्यालय की उच्च उपाधिया इस दशा काल मे प्राप्त होती है। यदि यह दशा विद्यार्थी कल मे नही मिले तो इस दशा कल मे विद्या विषयक उन्नति, और विद्या द्वारा यश की प्राप्ति होती है। चतुर्थेश पापीग्रह हो या उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो बन्धु विरोध, बटवारा, कृषि हानि, पशु हानि, अर्थ क्षय, स्थानांतरण होता है। अस्त या वक्री ग्रह की अन्तर्दशा आने पर धोर कष्ट होता है।
फलदीपिका अनुसार - रिश्तो मे मधुर सम्बन्ध, कृषि मामलो मे सफलता, पत्नी से सुखद संबंध, वाहन, कृषि भूमि, घर तथा धन उच्च स्तर की प्राप्ति इस दशा काल मे होती है। यदि चतुर्थेश निर्बल हो तो माता, स्वजन, मित्रो को पीड़ा, घर, कृषिभूमि, मवेशियो के विनाश का खतरा और जल से खतरा होता है।

(5) पंचमेश : पंचमेश की दशा जीवन की सर्वतोमुखी उन्नति की सूचक है। इस दशा मे विद्याप्राप्ति, सम्मान प्राप्ति , सुबुद्धि, परीक्षा या प्रतियोगिता मे सफलता, मंगल कार्य, समाज व राज्य मे सम्मान, माता की मृत्यु या पीड़ा होती है। यदि संतान प्राप्ति योग हो तथा पुरुषग्रह हो तो पुत्र और स्त्रीग्रह हो तो कन्या संतति की प्राप्ति का योग रहता है। यदि पंचमेश शुभ ग्रह हो तो समस्त ऐश्वर्य और भोग, शुभग्रह की अन्तर्दशा मे ईश्वराधन, पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो पुत्रो पर विपत्ति, गृह कलह आदि होता है।
फलदीपिका अनुसार पंचम स्थान व पंचमेश बलवान हो तो पुत्र जन्म, भाइयो से खुशी सहयोग व रिश्ते, राजा का मंत्री बनना, सम्मान का सम्मान, पुण्य कार्यो मे भागीदारी और लोगो द्वारा उसकी प्रशंसा, दूसरो द्वारा अनेक प्रकार के व्यजन पांचवे भाव के स्वामी द्वारा व्युत्पन्न किये जाते है। यदि पंचमेश कम शक्ति या अशुभ स्थान मे हो तो उसकी दशा मे पुत्र हानि, दिमागी विचलितता, धोखाधड़ी से पीड़ित, उद्येश्य विहीन इधर-उधर भटकना, पेट के विकारो से पीड़ित, राजा का कोप भाजन होता है।

(6) षष्ठेश : छठे भाव के स्वामी की दशा मुख्यतः रोग वृद्धि या नवीन रोग सूचक होती है। इसकी दशा मे रोग वृद्धि, संतान को कष्ट, अधिकारियो से मतभेद, शत्रु भय, पदावनति, रोग-ऋण-रिपु होते है। यदि षष्ठेश पाप ग्रह हो तो मुक़दमेबाजी, प्लीहा, गुल्म, क्षय आदि रोगो से ग्रस्त होना पड़ता है।
फलदीपिका अनुसार यदि 6 ठा भाव व षष्ठेश बलवान है तो जातक की वीरता से शत्रु पर विजय, दशा काल मे रोग मुक्ति, उदार और शक्तिशाली, स्वस्थता का आनंद, वैभव और सृमद्धि षष्ठेश की दशा मे अनुभव मे आते है। यदि षष्ठेश बलहीन हो तो चोरी का भय, गरीबी, दूसरो के द्वारा जबर्जस्ती, रोगो से त्रस्त, नीच उपचार या अवांछनीय कार्यवाही मे शामिल, दूसरो की सेवा, अपमान, प्रतिष्ठा का ह्राष, शारीरिक क्षति होती है।

(7) सप्तमेश : जायेश या कलत्रेश की दशा कष्टकर ही होती है। इस दशा मे शोक शारीरिक कष्ट, मानसिक चिंता, आर्थिक कष्ट, अवनति, राज्य पक्ष से अपमान होता है। सप्तमेश शुभग्रह हो तो स्त्री को साधारण कष्ट और पापग्रह हो या पाप मध्यत्व मे हो तो स्त्री को विशेष शारीरिक कष्ट होता है, और पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो स्त्री, सम्बन्धी का शिकार, स्थानांतरण, गुर्दे के रोग होते है। यदि सप्तमेश क्रूर ग्रह हो और उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो स्त्री से वंचित होना पड़ता है।
फलदीपिका अनुसार यदि सप्तम भाव पूर्ण बलवान है तो सप्तमेश की दशा मे नए वस्त्र, आभूषण, प्रसन्नता से पत्नी के साथ जीवन व्यापन, विनम्रता या शारारिक शक्ति मे वृद्धि, घर मे परिणय जैसा शुभ समारोह होता है। आनंद दायक लघु यात्राये होती है। यदि सप्तमेश कमजोर हो तो जातक का दामाद (जामाता) पीड़ित होगा, विपरीत लिंग के अवांछनीय कृत्य के कारण पत्नी से तलाक या विछोह, दुष्ट महिलाओ से सम्बन्ध के कारण गुप्त रोगो का शिकार, उद्देश्य विहीन इधर-उधर भटकना होता है।

(8) अष्टमेश : रंध्रेश की दशा प्रत्येक प्रकार हानि कारक होती है। इसकी दशा मे मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट, मृत्यु भय, स्त्री मृत्यु, विवाह, स्त्री से विछोह या स्त्री चिररोगिनी होती है। यदि अष्टमेष पापग्रह हो और द्वितीयस्थ हो, तो निश्चित मृत्यु होती है। यदि अष्टमेश पापग्रह की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा हो तो शत्रु आघात से आहत, आर्थिक धोर कष्ट होता है।
फलदीपिका अनुसार यदि अष्टम का स्वामी पूर्ण बलवान हो तो उसकी दशा मे जातक समस्त ऋण अदा कर देता है। वह अपने व्यवसाय और अन्य कार्यो मे उन्नति करता है और जातक के समस्त विवाद समाप्त होते है। यदि बलहीन अष्टमेश की दशा हो तो महादुःख, बुद्धि का नाश, सम्भोग की तीव्र इच्छा, ईर्ष्या, मिर्गी, निर्धनता, फलहीन पर्यटन, प्रतिष्ठा खोना, अपमान, रोग होते है। यहा तक की ऐसे ग्रह की दशा मे मृत्यु भी हो सकती है।

(9) नवमेश : भाग्येश की दशा बिरले जातक को ही मिलती है क्योकि इसकी दशा मे जातक अत्यंत उच्च स्तर पर जाने मे समर्थ होता है। इसकी दशा मे तीर्थ यात्रा, भाग्योदय, दान-पुण्य, विद्या द्वारा उन्नति, भाग्यवृद्धि, सम्मान, राज्य से लाभ और किसी महान कार्य की पूर्ण सफलता प्राप्त होती है। सभी अभावगत वस्तुऐ प्राप्त होती है। आर्थिक लाभ, राज्य सेवा मे उन्नति, योजना की आपूर्ति से यश, मान, धन, कीर्ति आदि की प्राप्ति होती है। कहावत है कि ' वारे न्यारे ' इसकी दशा मे होते है। यदि नवमेश पापग्रह हो और उसमे पापग्रह की अन्तर्दशा या राहु शनि मंगल सूर्य की अंतर दशा हो तो विदेश यात्रा होती है।
फलदीपिका अनुसार यदि नवम का स्वामी बलवान हो तो जातक उसकी दशा मे समृद्धि, ख़ुशी धन का अपनी पत्नी, बच्चो, पोते, रिश्तेदारो के साथ लगातार आनंद लेगा, मेघावी कर्म करेगा, शाही पक्ष प्राप्त करेगा और देवताओ, ब्राह्मणो का सम्मान करेगा। यदि नवमेश कमजोर हो तो पत्नी और बच्चो को कष्ट, अपने पूर्व के इष्ट की नाराजी से अनेक प्रकार के कष्ट होते है। जातक कई अवांछनीय कार्यो मे सलग्न, पिता और भाई की मृत्यु और स्वयं दरिद्रता से पीड़ित होता है।

(10) दशमेश : कर्मेश या राज्येश की दशा भी उन्नति कारक होती है। इस दशा मे राज्याश्रय की प्राप्ति, धन लाभ, सम्मान वृद्धि, सुखोदय, पदोन्नति, शासकीय सेवा, उच्चपद प्राप्त होता है। इसकी दशा मे माता को कष्ट होता है। दशमेश की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा आने पर मित्रो से विछोह, द्रव्यहानि, अपमान होता है। दशमेश नीचग्रह मे पापग्रह की दशा आने पर मातृ विछोह, यशहानि, वित्तक्षय आदि झंझटे झेलनी पड़ती है।
फलदीपिका अनुसार दशम का स्वामी बलवान हो तो उसकी दशा मे सभी उद्यमो मे सफलता, आरामदायक जीवन, नाम और प्रसिद्धि, अच्छी प्रतिष्ठा प्राप्त होती है। जातक अपने को ऐसे कार्यो मे शामिल करता है जिससे वह अपमानित होता है। दशमेश बलहीन हो तो सभी उद्यमो में असफलता, दुष्ट कार्यो मे शामिल, मातृभूमि से दूर रहना जिससे परेशानी, अवांछित घटनाओ का सामना और सम्मान मे क्षति होती है।

(11) एकादशेश : लाभेश की दशा साधारणतया शुभ फल दायक होती है। इसकी दशा मे धन लाभ, ख्याति, व्यापार मे प्रचुर लाभ, आय के नए स्रोत, पिता की मृत्यु होती है। यदि एकादशेश क्रूर ग्रह से दृष्ट हो तो रोगोत्पादक, यदि पापग्रह या शनि, राहु, मंगल, सूर्य की अन्तर्दशा हो तो कृषि कार्यों से हानि, धनहानि, सम्मान हानि उठानी पड़ती है।
फलदीपिका अनुसार लाभेश बलवान हो तो समृद्धि मे लगातार वृद्धि, निकट सम्बन्धी से मिलन, अनेक नौकरो से सेवाशुश्रा, पारवारिक ख़ुशी और महान सपन्नता होती है। यदि एकादश भाव का स्वामी प्रतिकूल व अशुभ स्थान मे हो तो उसकी दशा मे जातक के बड़े भाई को कष्ट, बेटा बीमार, स्वयं दुर्गति और धोखे का शिकार व कान के रोग से पीड़ित होता है।

(12) द्वादशेश : व्ययेश की दशा अशुभ होती है। इसमे चिंताए, धन हानि, शारीरिक कष्ट, विपत्तिया, व्याधिया, कुटम्बियो को कष्ट होता है। द्वादशेश की दशा मे पापग्रह की अन्तर्दशा आने पर कुटम्बियो से मतभेद. पुरुषार्थ की क्षति, अपमान होता है। द्वादशेश की दशा मे अष्टमेश की अन्तर्दशा आने पर विदेश यात्राऐ और विदेश के कार्य, विदेश निवास होता है।
फलदीपिका अनुसार व्यय भाव के स्वामी की दशा मे जातक अच्छे कारणो से असाधारण खर्च करेगा। जातक मेघावी कृत्य करेगा और पापो के प्रभाव से मुक्त होगा। जातक शाही सम्मान से सम्मानित किया जायेगा। बाहरवे स्थान का स्वामी कमजोर हो तो उसकी दशा मे अनेक रोग, अपमान, गुलामी होती है। जातक की सारी संपत्ति चन्द्रमा के अंधेर पक्ष की तरह गायब हो जाती है।

➧ फलदीपिका अनुसार दशा के अच्छे प्रभाव जब दशा स्वामी 6, 8 12 भाव मे नही हो, वह स्वग्रही, या उच्च या वक्री हो। शत्रु राशि या नीच या अस्त ग्रह की दशा मे बुरे प्रभाव होते है।
➧ फलदीपिका अनुसार ग्रहो द्वारा इंगित प्रभाव अच्छे या बुरे उनकी दशा, अन्तर्दशा मे देखे जाते है। केन्द्र और त्रिकोण के स्वामी योगकारक कहलाते है।
➧ फलदीपिका अनुसार वर्गोत्तमी ग्रह बहुत अच्छे प्रभाव देता है। ग्रह की नीच राशि मे वर्गोत्तमी ग्रह या अस्त ग्रह मिश्रित प्रभाव देता है। 6, 8, 12 भाव के स्वामी की दशा मे उनकी अंतर दशा आने पर विपरीत प्रभाव होते है। इसी प्रकार 6, 8, 12 भाव मे स्थित ग्रहो की दशा, अन्तर्दशा मे भी विपरीत प्रभाव होते है।
➧ फलदीपिका अनुसार क्रूर (हानिकारक) ग्रहो की दशा मे घर मे चोरी, शत्रुओ द्वारा कष्ट, महादुःख होता है। जन्म नक्षत्र से 3, 5, 7 नक्षत्र के स्वामी की अंतर दशा मे चोरी, शत्रु द्वारा कष्ट, महादुःख होता है। इसी प्रकार अशुभ (हानिकारक) ग्रह की दशा, चंद्र राशि स्वामी या अष्ठम के स्वामी की अंतर दशा मे जातक के घर मे चोरी, शत्रु से कष्ट और महादुःख होता है।
➧ फलदीपिका अनुसार जन्म समय की दशा से शनि की दशा चौथी, गुरु की दशा छठी, मंगल और राहु की दशा पांचवी तथा राशि के अंतिम अंशो मे ग्रह की दशा, 6, 8, 12 भाव के स्वामी की दशा दुर्भाग्य और पीड़ा दायक होती है। (नोट : कोई मंगल की दशा मे जन्मा है तो शनि की दशा चौथी, शुक्र दशा मे जन्मा है तो राहु की दशा पांचवी, गुरु की दशा छठी और केतु मे जन्मा है तो मंगल की दशा पांचवी होगी।)

बृहत्पाराशर होरा शास्त्र अनुसार भावेश दशा फल :
● यदि कर्म भाव का स्वामी शुभ भाव, उच्च राशि आदि मे अपनी दशा मे अनुकूल प्रभाव देता है वही कर्म भाव का स्वामी अशुभ भाव, नीच राशि मे प्रतिकूल प्रभाव देता है। यह सिद्ध करता है कि अशुभ ग्रह उच्च राशि, शुभ भाव मे प्रतिकूल प्रभाव नही देगा और शुभ ग्रह अशुभ भाव, नीच राशि मे प्रतिकूल प्रभाव देगा।

● लग्न के स्वामी की दशा मे तंदुरुस्ती; धन भाव के स्वामी की दशा मे दुर्गति या मृत्यु की सम्भावना; सहज भाव के स्वामी की दशा प्रतिकूल; बंधु भाव के स्वामी की दशा मे गृह और भूमि का अधिग्रहण; पुत्र भाव के स्वामी की दशा मे शिक्षा के क्षेत्र मे प्रग्रति, बच्चो से ख़ुशी; अरि स्वामी की दशा मे शत्रु से खतरा, ख़राब स्वास्थ्य होता है। युवती भाव के स्वामी की दशा मे जातक की मृत्यु, जातक की पत्नी को संकट; रंध्र के स्वामी की दशा मे मृत्यु, वित्तीय घाटा; धर्म भाव के स्वामी की दशा मे शिक्षा के क्षेत्र में उन्नति, धर्मान्धता, अप्रत्यशित आर्थिक लाभ; कर्म भाव के स्वामी की दशा मे सरकार से मान्यता और सम्मान; लाभ भाव के स्वामी की दशा मे धनार्जन मे बाधा, संभवतया रोग; व्यय भाव के स्वामी की दशा मे रोगो से कष्ट और खतरा होता है।

➤ ग्रह शुभ भाव मे स्थित हो तो उसकी दशा आने पर दशा मे अनुकूल फल देता है। ग्रह जो अरि, रंध्र, व्यय स्थान मे हो तो अपनी दशा मे प्रतिकूल फल देता है। इसलिए यह आवश्यक है कि जन्म के समय और दशा के प्रारंभ मे एक ग्रह की स्थिति को दशा प्रभावो के आकलन के लिए ध्यान मे रखा जाना चाहिये।

● अरि, रन्ध्र, व्यय भाव के स्वामियो की दशा अनुकूल हो सकती है यदि वे त्रिकोण के स्वामी से जुड़े हो या यदि केंद्र का स्वामी त्रिकोण या त्रिकोण का स्वामी केंद्र मे हो से युति हो। जिस ग्रह पर केंद्र अथवा त्रिकोण के स्वामियो की दृष्टि हो उसकी दशा भी अनुकूल होती है। यदि धर्म भाव का स्वामी लग्न मे हो या लग्नेश धर्म भाव मे हो तो दोनो की दशा अत्यंत लाभकारी, अनुकूल, शुभ, राज्य अधिग्रहण कारक होती है।

● सहज, अरि, लाभ भाव के स्वामी और इन तीनो भावो मे स्थित ग्रह, और इनसे युत ग्रह की दशा प्रतिकूल होती है। मारक भाव (धन, युवती) के स्वामियो से सम्बंधित ग्रह और धन, युवती, रंध्र भावो मे स्थित ग्रहो की दशा प्रतिकूल प्रभाव देती है। इस प्रकार दशा को एक ग्रह की स्थिति और दूसरे के साथ एक ग्रह के रिश्ते को ध्यान मे रखते हुए अनुकूल या प्रतिकूल माना जाना चाहिये।

29/08/2021

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