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पारस हेल्थ कानपुर ने आयुष्मान भारत के तहत एडवांस्ड लेप्रोस्कोपी से कॉम्प्लेक्स किडनी ट्यूमर सर्जरी सफलतापूर्वक कीकानपुर ...
01/08/2025

पारस हेल्थ कानपुर ने आयुष्मान भारत के तहत एडवांस्ड लेप्रोस्कोपी से कॉम्प्लेक्स किडनी ट्यूमर सर्जरी सफलतापूर्वक की

कानपुर , 1 August 2025 : कानपुर के पारस हेल्थ ने एडवांस्ड सर्जरी का एक शानदार उदाहरण पेश किया है। दरअसल यहां 35 साल के एक युवा मरीज का दुर्लभ किडनी ट्यूमर लेप्रोस्कोपिक पार्शियल नेफरेक्टोमी तकनीक से सफल तरीके से निकाला गया। पूरा इलाज आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (AB-PMJAY) के तहत किया गया। यह जटिल केस दिखाता है कि हॉस्पिटल जरूरतमंद लोगों को आधुनिक और सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए समर्पित है।

मरीज श्री राहुल (बदला हुआ नाम), हमीरपुर जिले के राठ कस्बा के रहने वाले हैं। उन्हें पिछले एक साल से पेट के दाईं ओर लगातार दर्द हो रहा था। पारस हेल्थ के एसोसिएट डायरेक्टर (यूरोलॉजी) डॉ. सत्यम श्रीवास्तव ने उनकी जांच की। अल्ट्रासाउंड और सीटी स्कैन से पता चला कि उनकी दाईं किडनी में 4x4 सेमी का ट्यूमर है। कैंसर होने की आशंका ज्यादा थी, इसलिए तुरंत सर्जरी की सलाह दी गई।

इस केस को खासतौर पर मुश्किल बनाने वाला कारण किडनी में असामान्य रक्त वाहिकाएं थी। आमतौर पर एक किडनी में एक धमनी (आर्टरी) और एक शिरा (vein) होती है, लेकिन इस मरीज की किडनी में तीन धमनियां और चार शिराएं थीं। इस दुर्लभ स्थिति के बावजूद डॉ. सत्यम ने सफलतापूर्वक लेप्रोस्कोपिक पार्शियल नेफरेक्टोमी की। इस प्रक्रिया से सिर्फ ट्यूमर हटाया गया और बाकी किडनी को बचा लिया गया। यह मिनिमली इनवेसिव सर्जरी थी, जिससे मरीज जल्दी ठीक हुआ और शरीर पर बहुत कम निशान पड़े। जहां ओपन सर्जरी में आमतौर पर 7 से 8 दिन हॉस्पिटल में रहना पड़ता है, वहीं इस मरीज को सिर्फ तीन दिन में छुट्टी मिल गई।

डॉ. सत्यम ने बताया, “असामान्य वैस्कुलर (रक्त वाहिका संरचना) के कारण सर्जरी की बहुत सावधानी से प्लानिंग करनी पड़ी। सभी नसों को सुरक्षित रखते हुए बिना किसी जटिलता के ट्यूमर निकालना एक चुनौती थी, लेकिन नतीजा अच्छा रहा हम पूरे ट्यूमर को निकालने में सफल रहे, और किडनी को सुरक्षित रखा।”

बायोप्सी में पता चला कि ट्यूमर कैंसर था, लेकिन समय पर जांच और इलाज की वजह से इसे शुरुआती स्टेज में ही पहचानकर हटा दिया गया। अब मरीज अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में लौट चुका है। आगे भी समय-समय पर उसकी जांच होती रहेगी ताकि कोई दोबारा समस्या न हो। हालांकि सर्जरी में ट्यूमर पूरी तरह साफ हटाया गया है, इसलिए दोबारा होने की संभावना बहुत कम है।

श्री राहुल (बदला हुआ नाम) ने अपना आभार व्यक्त करते हुए कहा, “मैं अब पूरी तरह स्वस्थ हूं और इलाज से बहुत खुश हूं। डॉ. सत्यम और पारस हेल्थ की पूरी टीम ने मेरा बहुत अच्छे से ख्याल रखा और उनका व्यवहार बहुत प्रोफेशनल था। मैं आयुष्मान भारत योजना का भी आभारी हूं, क्योंकि उसकी वजह से इतना एडवांस इलाज मुझे मिल सका।”

यह केस दिखाता है कि पारस हेल्थ कानपुर का मकसद सभी लोगों तक खासकर छोटे शहरों में एडवांस मेडिकल केयर पहुंचाना है। एक्सपर्ट डॉक्टरों और आधुनिक तकनीक के इस्तेमाल से हॉस्पिटल जरूरतमंद लोगों को जीवन बचाने वाले इलाज आसान और बेहतर तरीके से उपलब्ध करा रहा है।

*चिंता छोड़िए, स्वस्थ रहिए, होम्योपैथी अपनाइए.....*डॉ संदीप कुमार मिश्रा ने होम्योपैथी के क्षेत्र में देश के ही नहीं अपि...
01/08/2025

*चिंता छोड़िए, स्वस्थ रहिए, होम्योपैथी अपनाइए.....*

डॉ संदीप कुमार मिश्रा ने होम्योपैथी के क्षेत्र में देश के ही नहीं अपितु विदेश में भी काफी ख्याति अर्जित की है डॉक्टर संदीप कुमार मिश्रा एक प्रमुख वरिष्ट और स्थापित होम्योपैथिक चिकित्सक हैं उन्होंने भारत के प्रमुख संस्थान राष्ट्रीय होम्योपैथिक संस्थान कोलकाता से BHMS और MD तथा विश्व प्रसिद्ध संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आफ होम्योपैथी NIH कोलकाता से किया जिसका की विश्व में बहुत नाम है की डिग्री प्राप्त की है कोलकाता में होम्योपैथी की मातृभूमि के रूप में जाना जाता है डॉक्टर संदीप कुमार मिश्रा वर्तमान में आईआईटी कानपुर के होम्योपैथिक कंसलटेंट हैं राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सारे शोध पत्र प्रस्तुत किए हैं जिसमें से जर्मनी में किडनी स्टोन, इटली में माइग्रेन, लंदन में वृद्धावस्था की समस्या, पर और दिल्ली में विज्ञान भवन में एलर्जी की समस्याओं पर समय-समय पर l होम्योपैथी कॉलेज में व्याख्यान देने के लिए बुलाया जाता रहा है हाल ही में राष्ट्रीय होम्योपैथिक संस्थान नेशनल इंस्टीट्यूट आफ होम्योपैथी कोलकाता की ओर से डॉक्टर संदीप कुमार मिश्रा को पूर्व छात्र संघ की ओर से 47 वर्ष में पहली बार इस पुरस्कार की शुरुआत की गई जिसको पाने वाले डॉक्टर संदीप कुमार मिश्रा पहले डॉक्टर बने इसके अलावा हाल ही में एशियाई होम्योपैथिक लीग के ग्वालियर में उन्होंने आर्कटएरिया (पित्ती) के होम्योपैथिक उपचार पर अपना शोध पत्र पढ़ा l वैसे तो डॉक्टर संदीप मिश्रा के खाते में कई सारी उपलब्धियां दर्ज हैं किंतु एक और उपलब्धि जिसमें से सेविले, स्पेन में आयोजित होने वाली 77वीं LMHI ( लिगा मेडिका होम्योपैथिका इंटरनेशनलिस्) विश्व होम्योपैथी कांग्रेस में डॉक्टर संदीप कुमार मिश्रा अपने शोध कार्य "डिप्रेशन पर होम्योपैथिक के प्रभाव की जांच" को प्रस्तुत किया l इस कांग्रेस में दुनिया भर के होम्योपैथी विशेषज्ञ चिकित्सक और शोधकर्ता एकत्रित हुए थे जहां उन सभी विभूतियों ने होम्योपैथी के विभिन्न पहलुओं पर विचार विमर्श किया तथा डॉक्टर संदीप मिश्रा का शोध कार्य मानसिक स्वास्थ्य विशेष कर अवसाद के उपचार में होम्योपैथी की भूमिका को उजागर करेंगा l उनका उद्देश्य यह है कि जन-जन तक होम्योपैथी की जागरूकता को फैलाना तथा भविष्य में भी इसी दिशा में योगदान देते रहेंगे l

*होम्योपैथी से पीसीओडी का प्रभावी उपचार – एक आशा की किरण, डॉ मधुलिका शुक्ला* आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में महिलाओं की स...
01/08/2025

*होम्योपैथी से पीसीओडी का प्रभावी उपचार – एक आशा की किरण, डॉ मधुलिका शुक्ला*

आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में महिलाओं की सेहत पर बहुत असर पड़ रहा है। खासकर युवतियों और कामकाजी महिलाओं में पीसीओडी (Polycystic Ovarian Disease) एक आम लेकिन गंभीर समस्या बनती जा रही है। मासिक धर्म की अनियमितता, वजन बढ़ना, चेहरे पर बाल उगना, मूड स्विंग और बांझपन जैसी परेशानियाँ इसकी पहचान हैं। होमियोपैथी में इसका इलाज हार्मोनल दवाओं से किया जाता है, क्यों कि होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली एक प्राकृतिक और साइड इफेक्ट रहित समाधान प्रदान करती है।डॉ मधुलिका शुक्ला आवास विकास केशव पुरम में सुप्रसिद्ध एक होम्योपैथिक चिकित्सक हैं विशेष बातचीत के दौरान उन्होंने महिलाओं में होने वाले एक गंभीर रोग, जिसे पीसीओडी कहा जाता है यदि समय रहते इसका इलाज न किया जाए तो यह गंभीररूप लेकर की निसंतानता के खतरे को बढ़ा सकती है पीसीओडी यानी पॉलीसिस्टिक ओवरी डिजीज एक हार्मोनल विकार है जिसमें अंडाशय में छोटी-छोटी गांठें (सिस्ट) बन जाती हैं। ये सिस्ट अंडाणु के सामान्य विकास में बाधा डालती हैं और मासिक धर्म अनियमित हो जाता है।होम्योपैथी मैं इसका कंप्लीट ट्रीटमेंट मौजूद है आईए जानते हैं होम्योपैथी के बारे में,,,होम्योपैथी एक अचूक पैथी है —यह न केवल लक्षणों का इलाज करती है, बल्कि बीमारी की जड़ तक पहुँचकर शरीर के संतुलन को स्वाभाविक रूप से ठीक करती है। होम्योपैथिक उपचार के मुख्य लाभ है हार्मोन को प्राकृतिक रूप से संतुलित करना , पीसीओडी के मुख्य लक्षण मासिक धर्म की नियमितता,वजन अनियंत्रित होना .,चेहरे पर अनचाहे बालों की समस्या , तनाव और भावनात्मक असंतुलन ,उपचार के साथ जीवनशैली में बदलाव भी ज़रूरी:नियमित योग और प्राणायाम करें,जंक फूड और शक्कर से परहेज़ करें,ताजे फल, सब्जियाँ और फाइबर युक्त भोजन लें,दिनचर्या को संतुलित रखें और नींद पूरी लें,मानसिक तनाव कम करने के लिए ध्यान करे पीसीओडी एक गंभीर लेकिन नियंत्रित की जा सकने वाली समस्या है। होम्योपैथी चिकित्सा न केवल इसका इलाज करती है, बल्कि महिला के संपूर्ण स्वास्थ्य को संतुलित और सशक्त बनाती है। सही समय पर इलाज, डॉक्टर की सलाह और स्वस्थ जीवनशैली से यह बीमारी पूरी तरह से ठीक की जा सकती है।

मॉनसून में बढ़ते संक्रमणों से कैसे रखें ख्याललखनऊ, 31 जुलाई 2025 : गर्मी से राहत देने वाली मानसून की पहली बारिश जहां एक ...
31/07/2025

मॉनसून में बढ़ते संक्रमणों से कैसे रखें ख्याल
लखनऊ, 31 जुलाई 2025 : गर्मी से राहत देने वाली मानसून की पहली बारिश जहां एक सुखद एहसास लेकर आती है, वहीं यह मौसम कई संक्रामक रोगों के बढ़ते खतरे की चेतावनी भी देता है।
रीजेंसी हेल्थ, लखनऊ की वरिष्ठ फिजिशियन एवं डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. अकांक्षा गुप्ता ने इस मौसम में स्वास्थ्य संबंधी सावधानी को लेकर जरूरी सलाह साझा की है, जिससे लोग खुद को और अपने परिवार को संक्रमणों से बचा सकें। डॉ. अकांक्षा गुप्ता के अनुसार, बारिश के मौसम के दौरान वातावरण में ज्यादा नमी और जगह-जगह जमा पानी मच्छरों, बैक्टीरिया और वायरस के पनपने का माध्यम बन जाता है। यही कारण है कि इस समय डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया जैसे मच्छरजनित बीमारियों के केसों में वृद्धि देखी जाती है। इसके अलावा टाइफाइड, हेपेटाइटिस ए, पेट संबंधी संक्रमण, सर्दी-खांसी, त्वचा की फंगल इंफेक्शन जैसी समस्याएं भी इस दौरान ज्यादा होती हैं।
उन्होंने सलाह दी कि बरसात के दौरान विशेष रूप से पानी और भोजन की स्वच्छता का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। केवल उबला या फिल्टर किया गया पानी ही पीना चाहिए, और बाहर के खुले खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए। ताजगी से पका हुआ, हल्का और सुपाच्य भोजन न केवल शरीर को स्वस्थ रखता है, बल्कि पेट के संक्रमण से भी बचाता है।
मच्छरों से बचाव के लिए फुल स्लीव कपड़े पहनना, मच्छरदानी और रिपेलेंट का प्रयोग करना और घर के आसपास कहीं भी पानी एकत्र न होने देना बेहद जरूरी है। डॉ. गुप्ता ने कहा कि पानी जमा होने वाले स्थान जैसे कूलर, गमले और ड्रम आदि को हफ्ते में कम से कम एक बार पूरी तरह से खाली करना चाहिए।
बारिश के मौसम में रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाए रखना भी एक बड़ी जरूरत है। इसके लिए विटामिन C से भरपूर आंवला, संतरा और अमरूद जैसे फलों को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। पर्याप्त नींद लेना, तनाव से दूर रहना और नियमित रूप से पानी पीते रहना इम्युनिटी को बनाए रखने में सहायक होता है।
व्यक्तिगत स्वच्छता के बारे में चेताते हुए उन्होंने कहा कि बरसात के समय गीले कपड़ों में ज्यादा देर रहना, गंदे पानी में नंगे पांव चलना और गीले पैर न सुखाना फंगल इंफेक्शन को आमंत्रण दे सकता है। हाथों की स्वच्छता और सही कपड़ों का चुनाव भी इस मौसम में संक्रमण से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
डॉ. गुप्ता ने विशेष रूप से बच्चों, बुजुर्गों और डायबिटिक मरीजों के प्रति सावधानी बरतने की बात कही। इन वर्गों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपेक्षाकृत कम होती है, जिससे संक्रमण का खतरा अधिक होता है। डायबिटिक रोगियों को विशेष रूप से पैरों और त्वचा की स्वच्छता पर ध्यान देना चाहिए और बीमारी के दौरान ब्लड शुगर स्तर पर निगरानी रखनी चाहिए।
यदि किसी व्यक्ति को लगातार तेज बुखार, उल्टी-दस्त, अत्यधिक थकावट, शरीर पर चकत्ते, जोड़ों में दर्द या सांस लेने में तकलीफ जैसी शिकायतें महसूस हों, तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए।
रीजेंसी हेल्थ की ओर से लोगों को यह संदेश दिया गया है कि थोड़ी सी सावधानी और सजगता अपनाकर इस मौसम को सुरक्षित और आनंददायक बनाया जा सकता है। मॉनसून के दौरान स्वास्थ्य को लेकर लापरवाही गंभीर बीमारियों का कारण बन सकती है। ऐसे में सजग रहना ही सबसे बड़ी सुरक्षा है।

26/05/2025

Aru You Facing These Symptoms..??

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सही उपचार से कम हो सकता अनुवांशिक पैटर्न में बालों का झड़नाः डॉ. ममता भूरा, स्किन एवं हेयर स्पेशलिस्टकानपुर: बाल झड़ने क...
22/08/2023

सही उपचार से कम हो सकता अनुवांशिक पैटर्न में बालों का झड़नाः डॉ. ममता भूरा, स्किन एवं हेयर स्पेशलिस्ट

कानपुर: बाल झड़ने की समस्या काफी आम है, जो महिला एवं पुरूष दोनों के जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित कर रहा है। समय के साथ झड़ते बालों ने लोगों की मानसिक दशा पर भी असर डालना शुरू कर दिया है। इस समस्या के निदान के लिये बाल झड़ने के कारण के बारे में जानना आवश्यक है। दरअसल, बाल झड़ने या कम होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें अनुवांशिक या पूर्व प्रवृति, विटामिन एवं मिनरल की कमी, त्वचा की समस्या, बाल बढ़ने में विकार, खराब खान-पान, हार्मोन से जुड़ी समस्याएं, कोई अंदरूनी बीमारी, नशीली दवाओं का प्रयोग, तनाव और अवसाद, सौंदर्य प्रसाधन, प्रसव और कीमो थेरेपी शामिल हैं।
इस बारे में स्किन एवं हेयर स्पेशलिस्ट डॉ. ममता भूरा कहती हैं कि “बाल झड़ने से रोकने का इलाज एलोपेशिया के अलग-अलग प्रकारों, विटामिन एवं मिनरल की कमी या अधिकता होने और बालों एवं बाह्य त्वचा की संरचना पर आधारित होता है। पैटर्न एलोपेशिया, जिसे एंड्रोजेनेटिक एलोपेशिया भी कहते हैं, एंड्रोजेन के प्रति अतिसक्रिय होने के कारण एक अनुवांशिक समस्या है। यह 50 प्रतिशत से अधिक महिला और पुरूष दोनों को प्रभावित करता है। उनके अनुसार, खासतौर से यौवनावस्था के बाद किसी भी उम्र में जड़ो से बाल झड़ने की समस्या उत्पन्न हो सकती है। अगर आप भी अपने वंशानुगत तरीके से बाल झरने या कम होने की स्थिति का सामना करने लगे हैं, तो आप उचित इलाज से इसे कम कर सकते हैं। इसके लिये संबंधित विशेषज्ञ ड़ाक्टर से मिलकर सलाह लें।“

14/08/2023

Physiotherapy at Home in Kanpur City

16/07/2023

Contact For Best Cancer Care Facilities in Kanpur Uttarpradesh

रीजेंसी कानपुर के डॉक्टरों ने हार्ट सर्जरी में किया कारनामा, बिना हार्ट ट्रांसप्लांट किए ही मरीज़ की बचाई जानकानपुर ,4 ज...
04/07/2023

रीजेंसी कानपुर के डॉक्टरों ने हार्ट सर्जरी में किया कारनामा, बिना हार्ट ट्रांसप्लांट किए ही मरीज़ की बचाई जान
कानपुर ,4 जुलाई 2023: गंभीर हार्ट फेलियर से ग्रसित 42 वर्षीय व्यक्ति को रीजेंसी हॉस्पिटल कानपुर में डॉक्टरों ने बिना हार्ट ट्रांसप्लांट किए ही नया जीवन दे दिया। इसके लिए डॉक्टरों ने सफल एओर्टिव वाल्व रिप्लेसमेंट किया। बता दें कि मरीज एनवाईएचए क्लास IV की स्थिति या गंभीर हार्ट फेलियर के साथ-साथ बाइवेंट्रिकुलर फेलियर से ग्रसित था। बाइवेंट्रिकुलर फेलियर में हृदय के दोनों हिस्से प्रभावित होते हैं। व्यक्ति गोरखपुर से कानपुर में रीजेंसी हॉस्पिटल में इलाज़ कराने आया था।
मरीज के इको स्कैन में गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस, मॉडरेट एओर्टिक रेगुर्जिटेशन, गंभीर माइट्रल रेगुर्जिटेशन, गंभीर ट्राइकसपिड रेगुर्गिटेशन, हृदय के सभी चार चैंबर लेफ्ट वेंट्रिकुलर इजेक्शन फ्रैक्शन से 15 से 20% चौड़े दिखाई दिए।
मरीज को चिकित्सकीय रूप से कस्टमाइज किया गया और फिर डॉ. सुमित नारंग, एसोसिएट डायरेक्टर सीटीवीएस के नेतृत्व में अनुभवी सर्जनों की एक टीम द्वारा एओर्टिव वाल्व रिप्लेसमेंट किया गया। सफल एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट सर्जरी होने के के बाद मरीज़ की स्थिति ठीक हुई। सर्जरी के 4 दिनों बाद मरीज़ को जनरल वार्ड में शिफ्ट कर दिया गया। एक हफ्ते के बाद उन्हे हॉस्पिटल से डिस्चार्ज भी कर दिया गया। सर्जरी के एक महीने के बाद इको स्कैन कराने पर लेफ्ट वेंट्रिकुलर इजेक्शन फ्रैक्शन लेफ्ट वेंट्रिकुलर इजेक्शन फ्रैक्शन 45% दिखा। इसके अलावा हल्का डाइलेटेड बायां वेंट्रिकल (एलवी) था, जिसमें कोई ख़ास एमआर, टीआर नहीं दिखा। इसके अलावा एओर्टिक वाल्व प्रोस्थेसिस सामान्य रूप से काम कर रहा था। मरीज अब एनवाईएचए क्लास I कैटेगरी में है और वह अभी चीजें सामान्य रूप से कर रहे हैं।
डॉ सुमित नारंग ने इस केस के बारे में बताते हुए कहा, "मरीज की हालत बहुत गंभीर थी। वह काफ़ी समय से बिस्तर पर पड़े हुए थे। सर्जरी से पहले उन्हें और उनके परिवार की काउंसलिंग की गई और एक सफल सर्जरी प्रक्रिया के बाद वह अच्छी तरह से ठीक हो गए। हृदय की बीमारी की इस अवस्था में एक कॉम्प्लेक्स सर्जरी से ज़िंदा होना किसी चमत्कार से कम नहीं है। इस केस से यह पता चलता है कि इस तरह के बहुत गंभीर बीमार मरीजों के केस में अनुभवी डॉक्टरों की देखरेख और अच्छे इलाज़ से मरीज़ ठीक हो सकते हैं। इसलिए उम्मीद छोड़ने के बजाए डॉक्टरों को सही जांच, कस्टमाइजेशन और समय पर कार्रवाई पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। इससे कई मरीजों को नया जीवन दिया जा सकता है।"
कार्डिएक एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट प्रक्रिया में एओर्टिक वॉल्व को नए वॉल्व से बदला जाता है। एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट से बहुत कम मृत्यु और स्ट्रोक होता है और यह लम्बे समय तक चलती है। इसी कारण सिंपटोमेटिक गंभीर एओर्टिक स्टेनोसिस के लिए एओर्टिक वॉल्व रिप्लेसमेंट स्टैंडर्ड थेरेपी बनी हुई है।
यह ध्यान रखना जरूरी है कि हार्ट फेलियर और हार्ट अटैक दोनों ही ह्रदय से सम्बंधित बीमारियां हैं। वैसे तो इनके होने का कारण समान है लेकिन कई मायनों मे काफ़ी अलग अलग होते हैं।
ज्यादातर हार्ट अटैक अचानक होते हैं। हार्ट अटैक तब होता है जब हार्ट यानी हृदय तक जाने वाली आर्टरीज (धमनियों) में से कोई एक ब्लॉक हो जाती है और ह्रदय में खून का प्रवाह रुक जाता है। इससे हृदय की मांसपेशियाँ ऑक्सीजन न पाने से ख़राब होने लगती हैं। वहीं हार्ट फेलियर तब होता है जब मरीज़ को कोई बीमारी होती है। बीमारी की वजह से जब हृदय की मांसपेशियां या तो पर्याप्त खून पंप नहीं कर रही होती हैं या वेंट्रिकुलर चैंबर में ख़ून की मात्रा बनाए रखने में असमर्थ होती हैं तो हार्ट फेलियर होता है।

डॉक्टरों के अनुसार, वजन घटाने वाली डाइट से हड्डियों को पहुंच सकता है नुकसानलखनऊ, 5 मई 2023,: रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी अस्पत...
05/05/2023

डॉक्टरों के अनुसार, वजन घटाने वाली डाइट से हड्डियों को पहुंच सकता है नुकसान

लखनऊ, 5 मई 2023,: रीजेंसी सुपरस्पेशलिटी अस्पताल, लखनऊ के स्पोर्ट्स मेडिसिन और जॉइंट रिप्लेसमेंट- आर्थोपेडिक्स- कंसल्टेंट डॉ रोहित जैन के अनुसार, वजन घटाने के लिए डाइट में कैलोरी की मात्रा को कम करना हानिकारक साबित हो सकता है क्योंकि इससे हड्डियों के स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। कम कैलोरी या वज़न कम करने वाली डाइट न केवल आपके मेटाबोलिज्म (चयापचय) को धीमा कर सकता है बल्कि हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक भी हो सकता है। इसके अलावा भूख भी नहीं लग सकती है और मांसपेशियों की भी कमी हो सकती है। रिसर्च के अनुसार जिन डाइट में प्रति दिन 1000 से कम कैलोरी होती है, वे हड्डियों के घनत्व को कम कर सकती हैं।

डॉ रोहित जैन ने कहा, "अगर लोग अपनी हड्डियों को स्वस्थ रखना चाहते हैं तो उन्हें कम कैलोरी या वजन कम करने वाले डाइट के सेवन से बचना चाहिए। बहुत से लोग जल्दी वजन कम करने के लिए अक्सर ज्यादा प्रोटीन वाली डाइट या फलों वाली डाइट को खाते हैं, लेकिन यह हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए बहुत बुरा हो सकता है। आपके शरीर की बनावट को बेहतर ढंग से बनाये रखने के लिए हड्डियाँ आपके सम्पूर्ण विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हड्डियाँ कैल्शियम और फास्फोरस सहित कई प्रकार के मिनिरल्स (खनिजों) का भंडार होती हैं। इन मिनिरल्स का उपयोग शरीर द्वारा विभिन्न कार्यों को करने के लिए किया जाता है। इसलिए ये मिनिरल्स आपकी हड्डियों को स्वस्थ रखने के लिए बेहद जरूरी होते है।

लोग कम कैलोरी वाली डाइट खाकर वजन कम करते हुए बीएमआई को नियंत्रित करने पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन इस तरह की डाइट हड्डियों की संरचना और हड्डियों की मजबूती के अलावा हड्डियों के घनत्व को भी कम कर सकते हैं। यह ध्यान रखना चाहिए कि इस तरह की डाइट के गंभीर परिणाम या प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं। वजन कम करने की सोच रहे वृद्ध वयस्कों को कम कैलोरी से हड्डियों पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभावों के बारे में अतिरिक्त सतर्क और जागरूक होना चाहिए। वे वजन बढ़ाने वाले व्यायाम और संतुलित आहार खाने के माध्यम से प्रभावों का प्रतिकार कर सकते हैं।

वजन कम करने के कई और सारे साइड इफेक्ट भी होते हैं। उदाहरण के लिए क्रैश डाइट पर रहने या वज़न कम करने वाली गोलियां लेने से तेज़ी से वज़न कम होने से दिल की समस्याएं और पित्त में पथरी की बीमारी हो सकती है। इस तरह की डाइट से शरीर में पोषण की मात्रा असंतुलित हो सकती है। इस वजह से चक्कर आने की समस्या हो सकती है। इसके अलावा पोषक तत्वों की कमी से मस्तिष्क से निकलने वाले एंडोर्फिन की मात्रा संतुलित हो सकती है, जिससे डिप्रेशन पैदा हो सकता हैं और आप चिड़चिड़ा महसूस कर सकते हैं।

पोषक तत्वों की कमी वाले डाइट में कैल्शियम और विटामिन डी की कमी भी हो सकती है, जिससे हड्डियां नाजुक हो सकती हैं और फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ सकता है। इसी तरह कार्बोहाइड्रेट की कमी वाली डाइट से सांसों की बदबू, डीहाइड्रेशन, कब्ज, मांसपेशियों में ऐंठन और चीनी खाने की लालसा के अलावा शरीर में कमजोरी हो सकती है।

2018 में हुए इस पर हुए एक अध्ययन के अनुसार, वजन कम करने के लिए ज्यादा प्रोटीन वाली डाइट मध्यम आयु वर्ग के पुरुषों में हार्ट फेलियर का खतरा बढ़ा सकती है। इसी तरह फल वाली डाइट खाने से बहुत सारे पोषक तत्व शरीर से नदारद रह सकते हैं। जैसे कि डेयरी उत्पाद न खाने से कैल्शियम की कमी हो सकती है।

अगर आप अपना वजन कम करना चाहते हैं, तो आपको धैर्य के साथ-साथ एक बेहतर और संतुलित डाइट खाने की जरूरत होती है ताकि शरीर को हर जरूरी पोषक तत्व मिले। हल्दी हड्डी के लिए अच्छी होती है, इसलिए इसका सेवन जरूर करें। हल्दी में एक यौगिक होता है जो सूजन को कम करने में मदद करता है। हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद एक अन्य खाद्य पदार्थ लहसुन भी है। लहसुन में एंटी-इंफ्लेमेटरी यौगिक भी होते हैं। इसके अलावा अदरक भी हड्डी के स्वास्थ्य के लिए अच्छा होता है। आप अपने डाइट में अखरोट भी शामिल कर सकते हैं क्योंकि अखरोट में पोषण और अन्य यौगिकों का भण्डार होता है। इससे सूजन को कम करने में मदद मिलती हैं। सूखे मेवे भी खाएं क्योंकि इसमें ओमेगा -3 और फैटी एसिड से भरपूर मात्रा में होता हैं, जो जोड़ों के दर्द को कम करते हैं। आप चेरी भी खा सकते हैं क्योंकि इसमें एंटीऑक्सिडेंट गुण होता है। एंटीओक्सिडेंट जोड़ों और मांसपेशियों में सूजन को कम करने में मदद करते हैं।

नाखून में समस्याएं होना लीवर की बीमारियों के शुरुआती लक्षण - डॉ गौरव |कानपुर | लीवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। ल...
28/04/2023

नाखून में समस्याएं होना लीवर की बीमारियों के शुरुआती लक्षण - डॉ गौरव |

कानपुर | लीवर शरीर का एक महत्वपूर्ण अंग होता है। लीवर का काम खून को डिटॉक्स करने और कई महत्वपूर्ण प्रोटीन बनाना होता है। जब लीवर ठीक से काम नहीं कर रहा होता है, तो इससे नाखूनों में कई बदलाव आते हैं और कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं भी हो सकती हैं। रीजेंसी हेल्थ, कानपुर के डॉक्टरों का कहना है कि नाखूनों में असामान्यताएं कभी-कभी लीवर की बीमारियों के शुरुआती लक्षण हो सकते हैं। इसलिए नाखूनो में कोई भी समस्या दिखने पर उसे गंभीरता से लेना चाहिए।
लीवर की बीमारी जब होती है तो अधिकांश लक्षण एडवांस स्टेज में नज़र आते हैं लेकिन तब तक स्थिति बहुत गंभीर हो जाती है। विशेषज्ञों के अनुसार, लीवर की बीमारी में एक सामान्य लक्षण नाखूनों में बदलाव होना है। जब नाखूनों में आये इन बदलावों का कोई ठोस कारण न ज्ञात हो तो वह लीवर की बीमारी का संकेत हो सकता है। सोहाग यूनिवर्सिटी में डर्मेटोलॉजी डिपार्टमेंट के रिसर्च का दावा है कि यह कम इम्युनिटी, आयरन की कमी, एनीमिया या वृद्धावस्था के कारण हो सकता है। चिकित्सकों के लिए यह बहुत ही महत्वपूर्ण हो जाता है की लीवर की बीमारी के मरीजों के शीघ्र डायग्नोसिस के लिए नाखूनों के रंग, बनावट, मोटाई और गोलाई को ध्यान से समझें और जांच करें।
रीजेंसी हेल्थ, कानपुर के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट कंसल्टेंट डॉ गौरव कुमार सिंह ने इस बारे में बताते हुए कहा, "नेल क्लबिंग एक ऐसी बीमारी होती है जिसमें उंगलियों के सिरे बड़े हो जाते हैं और नाखून उंगलियों के चारों ओर मुड़ जाते हैं। यह कई अलग-अलग प्रकार के लीवर बीमारियों का संकेत हो सकता है, जैसे कि सिरोसिस और बिलियरी एट्रेसिया आदि। टेरी नाखून एक ऐसी बीमारी होती है जिसमे नाखून सफेद या हल्के गुलाबी हो जाते हैं और नाखूनों के सिरे लाल या भूरे रंग के दिखाई देने लगते हैं। यह अक्सर लीवर सिरोसिस वाले लोगों में देखा जाता है। ब्यू की रेखाएँ एक ऐसी बीमारी होती है जिसमें नाख़ून में क्षैतिज रेखाएँ दिखाई देती हैं। ये लीवर की बीमारी सहित कई अलग-अलग बीमारियों का भी संकेत हो सकती है। ऐसी नाखून असामान्यताओं को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण होता है। हालांकि सभी नाखून में बदलाव लीवर की बीमारी का संकेत नहीं होता है। अगर आप अपने नाखूनों में कोई बदलाव देखते हैं, खासकर अगर वे पीलिया या पेट दर्द जैसे अन्य लक्षणों के साथ नज़र आते हैं, तो आगे की जांच के लिए किसी डॉक्टर को जरूर दिखाएं।

रीजेंसी अस्पताल कानपुर ने महिला जननांगों से सम्बंधित सर्जिकल पैथोलॉजी के विशेषज्ञों के लिए सीएमई का आयोजन कियाकानपुर, 28...
28/04/2023

रीजेंसी अस्पताल कानपुर ने महिला जननांगों से सम्बंधित सर्जिकल पैथोलॉजी के विशेषज्ञों के लिए सीएमई का आयोजन किया

कानपुर, 28 अप्रैल 2023,: रीजेंसी अस्पताल कानपुर के पैथोलॉजी विभाग ने बताया कि विशेषज्ञों के लिए एक सीएमई का आयोजन किया जाएगा । यह सीएमई ३० अप्रैल 2023 को गौर हरी सिंहानिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट,लाजपत नगर में आयोजित होगी। इस सीएमई में विशेषज्ञों को व्यापक और नैदानिक प्रशिक्षण प्रदान किया जाएगा जिसमे स्नातक छात्रों और प्रैक्टिसिंग पैथोलोजिस्ट को महिला जननांगों से सम्बंधित पैथोलॉजी मामलो में निदान करने में सक्षम किया जाएगा ।

डॉ. नलिनी गुप्ता, प्रोफेसर पी. जी. आई. चंडीगढ़; डॉ.राजीव सेन,विभागाध्यक्ष एवं प्रोफेसर,डिपार्टमेंट ऑफ़ पैथोलोजी,एस.जी.टी.मेडिकल कॉलेज, हॉस्पिटल एवं रिसर्च इंस्टिट्यूट, गुडगाँव; डॉ.संबित कुमार मोहंती, विभागाध्यक्ष ऑन्कोलोजिक सर्जिकल एवं मॉलिक्यूलर पैथोलोजी, कोर डायग्नोस्टिक्स; डॉ. नुज़हत हुसैन डीन प्रोफेसर और प्रमुख, पैथोलोजिस्ट डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ; डॉ. कमलाकर पटोले, वरिष्ठ सलाहकार, हिस्टोपैथोलॉजी और साइटोपैथोलॉजी विभाग, एम् पैथ सेंट्रल रेफरेंस लेबोरेटरी, हैदराबाद अतिथि संकाय के रूप में उपस्थित रहेंगे।

रीजेंसी अस्पताल के डॉ. अंजलि तिवारी ने कहा, "इस सीएमई का आयोजन करने के पीछे हमारा लक्ष्य था डॉक्टरो को महिला जननांगों से सम्बंधित पैथोलॉजी के केसों के निदान में सहायक वर्गीकरण, स्टेजिंग और अन्य सहायक लक्षणों पर मार्गदर्शन करना । चिकित्सकों को निरंतर सीखने और कौशल के अवसर प्रदान करने के लिए रीजेंसी समय-समय पर ऐसी सीएमई का आयोजन करती रही है ताकि उनके अभ्यास उनके रोगियों के लिए सर्वोत्तम चिकित्सा देखभाल को दर्शा सकें। सीएमई का लक्ष्य पैथोलॉजिस्टों को व्यवहार में उनके प्रदर्शन को बढ़ाने में मदद करना है”।

रीजेंसी अस्पताल के निदेशक डॉ अतुल कपूर ,आयोजन समिति की अध्यक्ष डॉ आशा अग्रवाल ,डॉ अंजलि तिवारी, सचिव डॉ नूपुर त्रिवेदी,डॉ शेफालीअग्रवाल,डॉ दीप्ति गुप्ता,कोषाध्यक्ष डॉ वैभव अग्रवाल एवं वैज्ञानिक समिति के डॉ पंकज मिश्रा भी सीएमई में उपस्थित थे।

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