RANIL medical Store

RANIL medical Store Allopathic and common Aurvedic products
at attractive discount Accept card and UPI payments

22/10/2025

“यूरोप में हुए एक अध्ययन में यह पाया गया कि भारतीय मधुमक्खी के ज़हर में ऐसे तत्व पाए गए हैं,
जो प्रयोगशाला परीक्षणों में कैंसर कोशिकाओं पर असर दिखाते हैं।
वैज्ञानिक इस पर आगे और शोध कर रहे हैं। 🐝🔬

22/09/2025

31/08/2025

आपके विश्वास से आज
रेनिल मेडिकल स्टोर के
43 वर्ष पूरे हुए.भविष्य में भी
आपके सहयोग की कामना है धन्यवाद 🙏🙏

13/08/2025

■ सुबह की शानदार शुरूआत तभी हो सकती है जब रात को चैन भरी नींद आये। लेकिन शायद ऋचा को इस तरह का सुख मुकम्मल नहीं है, क्योंकि उसकी सुबह आलस और थकान के साथ होती है। तनाव और काम के बोझ के कारण वह रात में ठीक से सो नहीं पाती है।

ऋचा अनिद्रा से जूझ रही है, लेकिन ऋचा की तरह ही ये समस्या आजकल के युवाओं में अधिक देखी जा रही है। सुकून भरी नींद के लिए आजकल युवाओं ने और खासकर महिलाओं ने स्लीपिंग पिल्स को स्टेटस सिंबल बना लिया है। इसी तर्ज पे डाइजेपाम, अल्प्राजोलम, क्लोनज़ेपाम, बाजार से खरीद कर मनमाने ढंग से खाने वाली एक पीढ़ी बाकायदा तैयार हो चुकी है।

जिस तरह थायरॉइड की गोलियों में थायरोक्सिन, शुगर की गोलियों मे इंसुलिन वैसे ही नींद की गोलियों में एक खास तरह का हॉर्मोन होता है।

नाम सुना होगा आपने ?? शायद नही !! क्यों ?? क्योंकि आपने मेडिकल साइंस नही पढ़ी !! क्योंकि आपने ब्रेन की एनाटोमी नही पढ़ी ! एनाटोमी के साथ फिजियोलॉजी नही पढ़ी !! आपने फ़्रांसीसी दार्शनिक रेने देकार्ते को नही पढ़ा !! वो कहते थे कि पिनियल ग्रन्थि आत्मा की पीठिका ( सीट ऑफ़ सोल ) है : वह स्थान जहाँ मनुष्य की आत्मा वास करती है।

कौनसा है वह स्थान ? वो स्थान है पीनियल ग्रन्थि !!
पीनियल ग्रन्थि मस्तिष्क की गहराई में स्थित है। इसका काम एक हॉर्मोन मेलाटोनिन बनाना है।

अब क्या है ये मेलोटोनिन ? ये वही हॉर्मोन है जो स्लीपिंग पिल्स में होता है या वही हॉर्मोन जो आपको नींद दिलाने में हेल्प करता है या वही हॉर्मोन जिसको आप अपनी रफ भाषा मे स्लीपिंग हॉर्मोन कहते है !!..तो अब आपको इसके बारे में इन शार्ट में बता देती हूँ :-

मेलाटोनिन एक ऐसा हार्मोन है जिसकी भूमिका हमारी दैनन्दिन जैविक घड़ी के क्रम ( बायोलॉजिकल सर्केडियन रिद्म ) को बनाये रखने में है। जो सामान्य तौर पर रात के वक्त नियमित नींद के लिए शरीर में स्वतः स्रावित होता है। यह दिमाग की पिनियल ग्रंथि से स्रावित होता है। कब सोना है और कब उठना ! यह मनुष्य केवल चाह कर पूरी तरह तय नहीं कर सकता। कई बार इसका निर्णय व्यक्ति के जीन और मम्मी की स्नेहिल पुकार और घड़ी के अलार्म दोनों तय करते हैं। जल्दी सोना सबके लिए सम्भव नहीं, जल्दी उठना भी।

हम मनुष्यों में दिन में मेलाटोनिन का स्तर घट जाता है और रात में इसमें वृद्धि हो जाती है। दिन में जो भी जीव-प्रजातियाँ सक्रिय पायी जाती हैं, जिनमें मनुष्य भी शामिल हैं मेलाटोनिन का मस्तिष्क और रक्त में घटा स्तर लिये चलते हैं। रात्रिचर जीवों में उलटा होता है उनमें मेलाटोनिन-स्तर रात में कम और दिन में अधिक पाया जाता है।

लेकिन जब हमारी दिनचर्या अनियमित होती है और दिमाग पर तनाव और अवसाद अधिक प्रभावी हो जाता है तब इस हार्मोन का स्राव कम हो जाता है। परिणामस्वरूप नींद हमसे दूर जाने लगती है। लेकिन यह व्यवहार पूरी तरह से केवल आधुनिक जीवनचर्या में बदलाव के कारण ही नहीं है : कई जीन ऐसे हैं , जिनके कारण व्यक्ति चाह करके भी अपने सोने-जगने का समय पूरी तरह तब्दील नहीं कर पाता।

आप प्रोटीन खाते हैं, वे अमीनो अम्लों से बने हैं। इन्हीं में एक अमीनो अम्ल ट्रिप्टोफ़ैन है। इसे शरीर की पीनियल ग्रन्थि लेती है और इससे सेरोटोनिन नामक एक रसायन बनाती है। सेरोटोनिन को फिर यह मेलाटोनिन में बदल देती है जो हमारी दैनन्दिन घड़ी को नियन्त्रित करता है।

मेलाटोनिन का मस्तिष्क व ब्लड में स्तर केवल दिन या रात के आधार पर नहीं तय होता, कई अन्य कारण भी भूमिका निभाते हैं। स्त्री-पुरुष ( लिंग ), बालक-युवा-वृद्ध, ग्रीष्म-शीत ( ऋतु ) भी मेलाटोनिन का स्तर तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ मेलाटोनिन का यह स्तर घटता जाता है। जाड़ों में रातें लम्बी होती है इसलिए इस मौसम में मेलाटोनिन स्तर गर्मी की तुलना में बढ़ जाता है।

अब मान लीजिए रात का समय है। लेकिन आपके मस्तिष्क में मेलाटोनिन का स्तर नहीं बढ़ा या देर से बढ़ा। तो ऐसे में आप जल्दी नहीं सो सकेंगे ; आपको नींद आने में देर होगी। यह नींद का फेज़-शिफ़्ट सिद्धान्त है, जिसके अनुसार आपके शरीर में नींद के उचित समय पर मेलाटोनिन का स्तर नहीं बढ़ रहा।

मेलाटोनिन का तरह-तरह के अनिद्रा-रोगियों में दवा के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। अनिद्रा के कारण व कारक कई हैं, कोई एक फ़ॉर्मूला तो इसे ठीक करने का है नहीं। ऐसे में मेलाटोनिन अनेक उपचारों में से एक कारगर उपचार है। जिन लोगों को रात की ड्यूटी करनी है, उनके लिए दिन में सोना ज़रूरी है। जिन्हें अन्तरराष्ट्रीय हवाई यात्राएँ करनी है, उन्हें जेटलैग से मुक़ाबला करना है। इनके सेवन से नींद से जुड़ी अनियमितता को दूर किया जा सकता है। ऐसे में मेलाटोनिन के स्तर को बढ़ाने के लिए बाजार में मेलाटोनिन सप्लीमेंट मिलते हैं। इन सभी परिस्थितियों में मेलाटोनिन का प्रयोग डॉक्टर की राय से किया जा सकता है।

सुकून भरी नींद अगर आपको नैचुरली नहीं मिल रही है और इसके लिए आप मेलोटॉनिन का सेवन कर रहे हैं तो इसके कुछ साइड इफेक्ट भी हो सकते हैं। हम लोग को भी इसको पर्चे में लिखना है कि नही या किस कम्बीनेशन का देना है, किस रोग में कौनसा देना है, मनमाने ढंग से ली/दी गई ऐसी दवाइयां शरीर के ढेरों अंगों को हानि पहुँचा सकती हैं और मेडिकल-साइंस में ऐसा न करने की स्पष्ट हिदायतें हैं।

अमेरिका के फूड और ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन द्वारा किये गये शोध की मानें तो इसके अधिक सेवन से एलर्जी की समस्या हो सकती है। स्पेन में मेलाटोनिन के प्रभाव को लेकर शोध किया गया। इस शोध का परिणाम संतोषजनक नहीं था। दरअसल मेलाटोनिन दिमाग से जुड़ा हार्मोन है, ऐसे में इसकी कमी या अधिकता के कारण तनाव, थकान, प्रतिरोधक क्षमता में कमी, आदि की समस्या होने लगती है। शोध की मानें तो अगर कोई इंसान इस सप्लीमेंट का अधिक प्रयोग करता है तो इसके कारण उनींदापन, सिर दर्द, या याद्दाश्त कमजोर होने जैसी समस्या हो सकती है।

कुल मिलाकर इस सप्लींमेंट का सेवन उचित है या अनुचित, इसपर अभी तक कोई भी रिसर्च निश्चित परिणाम नहीं दे पाया है। इसलिए अगर आपको अच्छी नींद नहीं आ रही है तो अपनी दिनचर्या को बदलें। समय का पालन करें और कुछ दिनों तक तकनीक से दूर रहें। नियमित व्यायाम करें और स्वस्थ खानपान अपनायें।

डॉ मोनिका जौहरी

11/08/2025

आइए अपने शरीर की विशेष परिस्थिति में क्रियाविधि जानतें हैं कि घाव कैसे भरता है !!

■ चोट लगने के बाद शरीर का घाव भरने की प्रक्रिया बेहद दिलचस्प है, जो 4 स्टेप्स में पूरी होती है जैसे -

- Hemostasis
- Inflammation
- Proliferation
- Maturation

आप सब इनमें मत उलझिए क्योंकि आपने मेडिकल साइंस नही पढ़ी। खैर देशी भाषा मे समझते है कि क्या है ये पूरी प्रक्रिया :-

कभी न कभी हम सबको चोट लगती है। क्या आपने कभी सोचा है कि चोट लगने के बाद या जलने के बाद अगर शरीर का घाव न भरे तो क्या होगा ? अगर ऐसा हो गया, तो सबसे पहले आपके शरीर का पूरा खून निकल जाएगा और फिर घाव में खतरनाक बैक्टीरिया और जर्म्स पैदा हो जाएंगे। धीरे-धीरे ये घाव बढ़ता जाएगा और पूरा शरीर सड़ जाएगा। इसलिए कुदरत ने शरीर को इस तरह व्यवस्थित किया है कि कटने या जलने के बाद त्वचा खुद ही रिकवर होना शुरू हो जाती है। कुदरत को आप जितना जानते जाएंगे, आपका आश्चर्य उतना ही बढ़ता जाएगा।

👉 चोट के बाद खून जमना :- ये घाव भरने की प्रक्रिया का सबसे पहला स्टेज है। जैसे ही खून आपके शरीर से बाहर निकलता है, ये लिक्विड से जेल में बदलने लगता है। इसके कारण घाव लगने पर खून गाढ़ा हो जाता है और एक पर्त बना लेता है। इस प्रक्रिया में शरीर में मौजूद प्लेटलेट्स, कोलेजन के साथ मिलता है और एक गाढ़ी जेलनुमा पर्त बनाता है। इन दोनों को मिलाने का काम शरीर में मौजूद थ्रोंबिन नामक एंजाइम करता है। अब जब आपके घाव के ऊपर खून की एक गाढ़ी पर्त बन गई, तो आपके शरीर से खून बाहर निकलने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। इस तरह बाकी बचे खून को शरीर सुरक्षित कर लेता है। इसी सबके बीच घाव वाले अंग में सूजन आ जाती है। सूजन का मुख्य उद्देश्य आपको ये बताना है कि चोट के कारण ये जगह प्रभावित हो गई है और आप इसका उपचार करें।

👉 24 से 48 घंटे का समय :- थक्का जमने के बाद आपका शरीर, त्वचा पर मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया और संक्रमण वाले वायरस आदि से खुद को बचाने की प्रक्रिया शुरू करता है। इस प्रक्रिया में शरीर में मौजूद व्हाइट ब्लड सेल्स आगे बढ़कर शरीर की मदद करते हैं। शरीर से खून बंद होने के साथ ही व्हाइट ब्लड सेल्स घाव और उसके आस-पास मौजूद हानिकारक बैक्टीरिया को मारने की प्रक्रिया शुरू कर देते हैं। ये प्रक्रिया चोट लगने के बाद से 24 से 48 घंटे तक चलती है।

👉 चोट लगने के तीसरे दिन :- चोट लगने के तीसरे दिन जैसे ही घाव से व्हाइट ब्लड सेल्स अपना काम खत्म करती हैं वैसे ही कुछ स्पेशल सेल्स अपने काम में लग जाती हैं, जिन्हें मैक्रोफैजेंस कहते हैं। ये सेल्स घाव की बैक्टीरिया से रक्षा भी करती हैं और कुछ विशेष प्रोटीन्स का उत्सर्जन करती हैं। इन्हीं प्रोटीन्स से नए टिशूज के निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है। नए टिशूज के निर्माण की ये प्रक्रिया आमतौर पर चौथे-पांचवे दिन तक चलती है।

👉 चोट लगने के पांचवे दिन :- एक बार चोट से संक्रमण का खतरा पूरी तरह टल गया, तो घाव के भरने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। सबसे पहले मैक्रोफैजेंस द्वारा उत्सर्जित प्रोटीन्स और अन्य तत्वों को मिलाकर शरीर नई टिशूज का निर्माण शुरू कर देता है। इन टिशूज को एपिथेलियल टिशूज कहते हैं। इसके बाद ये टिशूज घाव के केंद्र की तरफ सिकुड़ना शुरू होती हैं। जब यही एपिथेलियल टिशूज घाव के ऊपर झीनी पर्त बना लेती हैं, तो एपिथेलियल सेल्स का निर्माण होता है और त्वचा पर एक भूरी पर्त आ जाती है। ये प्रक्रिया 24 घंटे से 4 दिन तक चलती रह सकती है।

👉 एक सप्ताह बाद :- एक सप्ताह बाद घाव पूरा भर चुका होता है। लेकिन इस दौरान त्वचा पर मौजूद भूरी पर्त को उखाड़ना नहीं चाहिए क्योंकि नई बनी टिशूज अभी कमजोर होती हैं। इस पर्त को उखाड़ने से टिशूज अगर दोबारा अलग हो गईं, तो फिर से घाव हो सकता है। इस प्रक्रिया के बाद टिशूज को मजबूत और लचीला बनाने की प्रक्रिया शुरू होती है। ये काम कोलेजन फाइबर्स करते हैं।

👉 आमतौर पर 9-10 दिन में त्वचा लगभग ठीक हो चुकी होती है मगर इसमें उतनी मजबूती और लचीलापन नहीं होता है, जितना स्वस्थ त्वचा में होता है। घाव भरने की ये प्रक्रिया कितने दिन चलेगी ये घाव की गंभीरता पर निर्भर करता है। घाव की गंभीरता के अनुसार इसे पूरी तरह ठीक होने में 21 दिन से 2 साल तक का समय लग सकता है।

■ सर्जरी की सुख्यात पाठ्यपुस्तक बेली एवं लव का एक अमृत-वचन है :- जो भी द्रव या पदार्थ आप अपनी आँखों में नहीं डाल सकते, उसे अपने घाव पर भी न डालें।

★ ऐसे में यह ग़लत धारणा अब तक क्यों जीवित है कि घाव पर डेटॉल या सेवलॉन, टिंक्चर या आयोडीन लगाया जाए ?

★ आज के आधुनिक युग में जब विज्ञान हमें घावों के संक्रमण को रोकने के लिए बेहतर जानकारी उपलब्ध करा चुका है, तो यह अज्ञान किस लिए और क्यों पसरा हुआ है ?

घाव में रुकी गन्दगी किसी एंटीसेप्टिक से नहीं मरेगी। उसे साफ़ करने का सबसे कारग़र द्रव सिर्फ़ एक है :- पानी, स्वच्छ पानी और सिर्फ़ स्वच्छ पानी। लगातार देर तक धोया गया घाव अपने-आप हानिकारक कीटाणुओं से मुक्त हो जाता है। और अगर नहीं होता , तो डॉक्टर ( विशेषकर सर्जन ) की राय ली जानी चाहिए।

शरीर अपने घाव स्वयं पूरता है, न एंटीबायटिक, न दर्दनिवारक इसमें भूमिका निभाते हैं। घाव से मुक्ति देह की सामान्य क्रिया है।

👉 पुनश्च : डेटॉल-सैवलॉन तक में स्यूडोमोनास-जैसे हानिकारक जीवाणुओं की वृद्धि देखी गयी है।

■ बाकी हर रोग में हर घाव का अपना एक अलग महत्व है, उसकी दवा का, मेटाबॉलिज्म का, और भी बहुत कुछ 🙏

डॉ मोनिका जौहरी

https://share.google/f0wpz4wmLqx2LhYDO
11/08/2025

https://share.google/f0wpz4wmLqx2LhYDO

मेथोट्रेक्सेट को अक्सर आरए में 'स्वर्ण मानक' उपचार के रूप में वर्णित किया जाता है। यह सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने...

*डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम:* मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के पास क्यों जाते हैं?
19/07/2025

*डॉ. चन्द्रकान्त लहारिया का कॉलम:* मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के पास क्यों जाते हैं?

मामूली बीमारियों के लिए भी हम स्पेशलिस्ट के...

07/07/2025

■ यानी सी रिएक्टिव प्रोटीन के बारे में यह कैसी जाँच है ? कब करायी जाती है ? इससे क्या मालूम पड़ता है ? डॉक्टर इन जाँच को कैसे पढ़ते और समझते हैं ?

दीपिका मैम डॉक्टर के पास अपनी थकान, और कुछेक लक्षण लेकर पहुँची हैं, जो सिर्फ मैं जानती हूँ ! चिकिया को मैं कहती हूँ कि एक ऐसा लक्षण जो अपनेआप में किसी भी रोग तक स्पष्ट पहुँचने में सहायक नहीं। इसलिए जिन जाँचों को तुमसे लिए कहा गया, उनमें CRP भी थी। आज तुम्हारी रिपोर्ट में इस प्रोटीन का स्तर बहुत बढ़ा हुआ आया है।
यह एक ऐसा प्रोटीन है, जिसका निर्माण लिवर के अंदर होता है।

तमाम ऐसे रोग हैं, जिनमें लिवर इस प्रोटीन का निर्माण करता है। इसलिए इस प्रोटीन के बढे भर होने से यह पता नहीं चलता कि रोगी को कौन सा रोग है। लेकिन इतना अक्सर मालूम पड़ जाता है कि रोगी के शरीर में इन्फ्लेमेशन की स्थिति है, जिसके फलस्वरूप लिवर इस प्रोटीन का निर्माण करके इसे ख़ून में छोड़ रहा है।

👉 सी रिएक्टिव प्रोटीन मामूली जुकाम से लेकर कैंसर तक किसी में भी बढ़ सकता है। यह न्यूमोनिया में भी ऊँचा आ सकता है और दिल के दौरे में भी। और ऐसा भी हो सकता है कि तमाम रोगों के दौरान इसका स्तर सामान्य रह जाए। या फिर कई बार इस प्रोटीन का स्तर सामान्य से बढ़ा हुआ निकलता है, जबकि व्यक्ति को कोई रोग नहीं होता।

इसलिए केवल CRP के बढे होने को बीमारी नहीं कहा जा सकता और न केवल इसके आधार पर कोई निष्कर्ष ही निकाला जा सकता है। रोगी के लक्षणों के सापेक्ष ही जाँचों की अहमियत होती है और उनके अनुसार ही डॉक्टरों को विवेकपूर्ण ढंग से जाँचों के निर्देश देने चाहिए।

इस प्रोटीन के नामकरण की कहानी भी बहुत दिलचस्प है। न्यूमोकोकस नामक एक जीवाणु की सतह पर मौजूद 'सी' शर्करा के खिलाफ इस प्रोटीन का बढ़ा स्तर पहली बार मानव शरीर में पाया गया था। इसीलिए इस प्रोटीन को 'सी' के खिलाफ अभिक्रिया करने वाला या सी-रिएक्टिव प्रोटीन नाम दिया गया 🙏

06/07/2025

दुकान पर Billing software पर
काम करने के लिए full time
कर्मचारी चाहिए
संपर्क - 9839672772

Address

Ghantaghar, Near Kamnath Hospital, Hospital Road
Lakhimpur
262701

Opening Hours

Tuesday 10am - 8pm
Wednesday 10am - 8pm
Thursday 10am - 8pm
Friday 10am - 8pm
Saturday 10am - 8pm
Sunday 10am - 8pm

Telephone

+919839672772

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when RANIL medical Store posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to RANIL medical Store:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram