02/11/2025
"क्यों कहा गया कि स्त्रियाँ यज्ञ नहीं कर सकतीं?
क्या ये सच में शास्त्रों का विधान था — या समाज की बनाई हुई सीमा?
वैदिक युग में गर्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा जैसी विदुषियाँ वेदों का पाठ करती थीं, यज्ञ कराती थीं, मंत्रों का उच्चारण करती थीं।
पर समय के साथ पुरुषवादी व्याख्याओं ने उस सत्य को ढँक दिया।
सत्य ये है — बिना स्त्री के यज्ञ अधूरा है, क्योंकि स्त्री ही प्रकृति की वह चेतना है जो यज्ञ को पूर्णता देती है।
हाँ, कुछ समय ऐसे होते हैं जब शरीर को विश्राम चाहिए — पर वो “मनाही” नहीं, “सम्मान” है।
अब समय है उस भूले हुए सत्य को फिर से जानने का।
स्त्रियाँ न केवल यज्ञ कर सकती हैं — बल्कि उनके बिना यज्ञ की आत्मा अधूरी रहती है।"
लोगों ने नियम बनाए, शास्त्रों ने नहीं।
यज्ञ की अग्नि तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक उसमें स्त्री की ऊर्जा सम्मिलित न हो।
वो केवल “सहयोगी” नहीं, “सह-यजमान” है।
वो मंत्रों की ध्वनि नहीं, स्वयं वह शक्ति है जिससे मंत्र सिद्ध होते हैं।
✨ सत्य यही है —
“जहाँ स्त्री का सम्मान है, वहीं देवता निवास करते हैं।”