Sahaj Yoga Barh, Patna - Bihar

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“आप भली भांति जानते हैं, प्रत्येक मनुष्य में कुंडलिनी होती है। किसी तरह का भेदभाव नहीं है।प्रत्येक व्यक्ति में ।चाहे आप ...
01/06/2025

“आप भली भांति जानते हैं, प्रत्येक मनुष्य में कुंडलिनी होती है। किसी तरह का भेदभाव नहीं है।प्रत्येक व्यक्ति में ।चाहे आप मुस्लिम हों, यहूदी हों, हिंदू हों, ईसाई हों , सिख हों , पारसी हों ।कोई भी, आप कोई भी नाम दे सकते हैं। अब थोड़ा देखिये कि हम कैसे अपने लिए एक विशेष संप्रदाय को मान लेतें हैं। आपका जन्म हुआ है, कहिए कि , एक ईसाई परिवार में। अथवा आपका जन्म एक हिंदू परिवार में हुआ है ।तुरंत आप यह सोचना शुरू कर देते हैं कि आप थामने के लिए हैं, उस धर्म के सभी झंडों को जिसमें आपका जन्म हुआ है । उस धर्म में आपका जन्म हुआ है बिना आपकी जानकारी के, बिना आपकी अनुमति के , बिना किसी समझ के। अतः कैसे आप उस धर्म के अनुयायी हो सकते हैं? आपके अंदर कुंडलिनी है।सभी के अंदर कुंडलिनी है। अतः आप केवल मानव धर्म के अनुयायी हो सकते हैं, जहाँ प्रत्येक मनुष्य के अंदर कुंडलिनी है।
अतः , मनुष्य होने के अतिरिक्त आप कुछ नहीं हैं। ये सभी मिथ्या धारणा कि, हम हिंदू हैं, हम मुसलमान हैं, हम ईसाई हैं, सभी मानव रचित है। मेरे कहने का अर्थ है, मनुष्य किसी भी चीज़ की रचना कर सकता है। और मनुष्य के अंदर यह समझने के लिए कोई मस्तिष्क नहीं है , कि यह सब मनुष्य की देन है ।
परन्तु कोई कह सकता है कि, “माँ, आख़िरकार वे एक दैवीय व्यक्तित्व थे ।” वे दिव्य थे तथा अब आप भी दिव्य बना दिए गए हैं । अतः , अब हम किस प्रकार आपस में मिलकर एक सम्पूर्ण प्रयास करें। लोगों को बताने के लिए एक सम्पूर्ण प्रयास कि, “आप क्या कर रहें हैं?आप ऐसा क्यों कर रहें हैं ? ऐसी चीज़ें करने की क्या आवश्यकता है? ” एक पक्ष है , हम कह सकते हैं, एक सामूहिक विनाश ,मूर्खता के माध्यम से ।दूसरा पक्ष है आपका का अपना आत्म-विनाश । शराब पीने लगिए। अन्य आत्म-विनाशकारी चीज़ों को अपनाइए, जो अनैतिक हैं। जो बहुत आसानी से उपलब्ध है। और लोग इसे बहुत पसंद करते हैं। और उन्हें पसंद नहीं है जब आप बतातें हैं कि यह विनाशकारी है।
अतः या तो हम दूसरों को नष्ट करते हैं या स्वयं को नष्ट करते हैं। दूसरों ने ईसा मसीह का अंत किया एवं वे स्वयं ही पुनर्जीवित हो गये । इसलिए हम भी अब उसी दशा में हैं। मैं जानती हूँ कि कई बार सहज योग को चुनौती दी गई थी। अब यह पहले से बहुत बेहतर है। इतना बुरा नहीं है । चुनौती दी गई थी एवं बहुत सारी समस्याएं थीं। पर अब इसमें सुगमता आ रही है। कारण कि यही सत्य है।यही सच है।यही दिव्यता है।”

“ यह पुनरुत्थान है, न केवल आप लोगों का, अपितु हमारी विचारधाराओं का भी। अब विचारधाराएँ बदल गई हैं, कि हमारी चेतना प्रकाशित होनी चाहिए। हमारी चेतना आलोकित होनी चाहिए। यह एकदम सहज योग के माध्यम से ही लोगों में आया है कि, यदि आपके अंदर प्रकाश नहीं है, आप कैसे सही मार्ग पर आगे बढ़ सकते हैं?
ईसा मसीह के जीवन का वर्णन करना आसान नहीं है, वे किस प्रकार उससे पार हुए । युवावस्था में ही उनकी मृत्यु हो गई एवं क्रूरता से उनका बध किया गया । परन्तु उसके बावजूद भी , उन्होंने अपना पुनरुत्थान किया । वे उस सब से बाहर निकल आये । उस कठिन दौर से बाहर निकल आए । अतः हमारे लिए भी, जब हमें सहज योग में समस्याएँ होतीं हैं, हमें समझ होनी चाहिए कि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है । कोई हमें नष्ट नहीं कर सकता है ।कोई हमारा अंत नहीं कर सकता, क्योंकि हमारे अंदर स्वयं को पुनरुत्थान करने की शक्ति है। पुनरुत्थान की यह विशेष शक्ति जो हमारे अंदर है, आपको सदैव इसका भान रखना चाहिए एवं अनुभव करना चाहिए तथा उस पर ध्यान करना चाहिए।”

परम पूज्य श्री माताजी
तुर्की. 25 अप्रैल, 1999.

“आनन्द को आप खरीद नहीं सकते, उसको सिर्फ भोग सकते हैं.             इसमें जो आनंद मिलता है, वह सिर्फ बांटने से ही मिलता है...
25/05/2025

“आनन्द को आप खरीद नहीं सकते, उसको सिर्फ भोग सकते हैं.
इसमें जो आनंद मिलता है, वह सिर्फ बांटने से ही मिलता है और कोई दूसरा तरीका नहीं है. उसमें हो सकता है कि आपको थोड़ी बहुत तकलीफ उठानी पडे, थोडी बहुत परेशानी उठानी पडे, पर वह तकलीफ बिलकुल नहीं रह जाती है, क्योंकि आत्मा का सुख मिलता है, शरीर के सुख कीओर आप नहीं देखते. जब आप आत्मा का प्रकाश दूसरों को देते हैं, तब शरीर का सुख आपको महसूस नहीं होता.
आपको आत्मा का ही आनंद इतना ज्यादा मिलता है कि आप उस आत्मा के आनन्द में पूरी तरह से डूब जाते हैं. आत्मा से ही आत्मा तुष्ट हो जाती है. इसमें इतनी त्रिप्ति हो जाती है कि व्यक्ति अम्रित पान कर लेता है. और अम्रित पान के पश्चात और कोई चीज पीने की जरुरत नहीं रह जाती है.
जब यह स्थिति आ जाय तब मानना चाहिए कि आप सहज योगी हो गये हैं, अन्यथा आप आधे अधूरे हैं.
जब तक आप आत्मा की इच्छा को पूरा नहीं कीजियेगा, आपकी बाकी सभी इच्छाएं वैसी ही बनी रहेगीं. योग जबतक पूरी तरह से घटित नहीं होगा, क्षेम घटित नहीं हो सकता है.”

परम पूज्य श्री माताजी
नई दिल्ली. 26-03-1985

“ध्यान का अर्थ है स्वयं को ईश्वर की कृपा के सामने उघाड़ देना । अब कृपा ही जानती है कि तुम्हें कैसे ठीक करना है। यह जानता...
24/05/2025

“ध्यान का अर्थ है स्वयं को ईश्वर की कृपा के सामने उघाड़ देना । अब कृपा ही जानती है कि तुम्हें कैसे ठीक करना है। यह जानता है कि आपको किस तरह से सुधारना है, कैसे स्वयं को तुम्हारे अस्तित्व में बसाना है, आपकी आत्मा को चमकाना है। यह सब कुछ जानता है। इसलिए आपको चिंता करने की ज़रूरत नहीं है कि आपको क्या करना है या आपको क्या नाम लेना है, आपको कौन से मंत्र करने हैं। ध्यान में आपको बिल्कुल प्रयास रहित होना है, खुद को पूरी तरह से उजागर करना है और आपको उस समय बिल्कुल निर्विचार होना है।
माना की कोई संभावना है, आप शायद निर्विचार नहीं भी हो पायें। उस समय आपको केवल अपने विचारों को देखना है, लेकिन उनमें शामिल न हों। आप पाएंगे की जैसे क्रमशः सूर्य उदय होता है, अंधेरा दूर हो जाता है और सूरज की किरणें हर दरार और हर हिस्से में पहुँच जाती हैं और पूरी जगह को रोशन कर देती हैं। उसी तरह से आपका अस्तित्व पूरी तरह से प्रकाशित हो जाएगा, लेकिन अगर आप उस समय में प्रयास करते हैं या अपने भीतर कुछ रोकने की कोशिश करते हैं या इसे एक बंधन देने की कोशिश करते हैं तो यह नहीं होगा।
प्रयास हीनता ही ध्यान करने का एकमात्र तरीका है, लेकिन आपको इसके बारे में सुस्त नहीं होना चाहिए – सतर्क होना चाहिए और इसे देखना चाहिए। दूसरा पहलू की लोग सिर्फ ऊँघने लग सकते हैं। नहीं! आपको सचेत रहना होगा। यदि आप की आँख लग जाती हैं, तो कुछ भी काम नहीं करेगा। इसका दूसरा पहलू यह है कि यदि आप इसके बारे में आलसी हैं, तो कुछ भी काम नहीं करेगा। आपको सतर्क और खुला होना होगा, बिल्कुल जागरूक, पूरी तरह से बिना कोशिश के – बिल्कुल प्रयास रहित। यदि आप बिल्कुल सहज हैं, तो ध्यान सबसे अच्छा काम करेगा।
अपनी समस्याओं के बारे में बिल्कुल न सोचें, आपके जो भी चक्र हैं, कुछ भी। बस खुद को बेनकाब करो। देखें कि जब सूर्य चमकता है तो सारी प्रकृति सूर्य के सामने प्रकट हो जाती हैं और अनायास सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त कर लेती हैं। यह कोई भी प्रयास नहीं करती है, जब इसे सूर्य की किरणें प्राप्त होती हैं,यह केवल अपने आप ग्रहण करती है, फिर सूरज की किरण कार्य करना और करवाना शुरू करती है।
उसी तरह, सर्वव्यापी शक्ति काम करना शुरू कर देता है। आप को इसका का प्रबंधन नहीं करना पड़ता हैं। आप को इसके बारे में कुछ नहीं करना हैं। बस सहज हो, बिलकुल प्रयास रहित। कोई भी नाम न लें। अगर आपका आज्ञा पकड़ रहा है, या कोई अन्य रुकावट है, तो चिंता न करें। यह काम कर रहा है। यह तब तक काम करेगा जब तक कर सकेगा और यह चमत्कार करेगा जो इसे करना है। आपको इसके बारे में चिंता करने की ज़रूरत नहीं है। यह अपना काम जानता है। लेकिन जब आप एक प्रयास डालते हैं तो आप वास्तव में इसके लिए एक रुकावट पैदा करते हैं। तो किसी भी प्रयास की आवश्यकता नहीं है, बिल्कुल सहज रहें और कहें कि इसे होने दो, इसे जाने दो ’- यह सब है।
किसी भी मंत्र का जाप नहीं करना है, अगर आपको यह असंभव लगता है – तो आप मेरा नाम ले सकते हैं, लेकिन इसकी भी कोई आवश्यकता नहीं है। जब आप अपना हाथ मेरी ओर रखते हैं तो यही मंत्र, पर्याप्त है , यह मुद्रा स्वयं ही मंत्र है।”
लन्दन. 1जनवरी, 1980.

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