24/11/2025
"मर्यादा की डोर"
सुबह का समय था, कॉलेज का गेट खुल चुका था और छात्र-छात्राओं की भीड़ अंदर जा रही थी।
प्रत्येक दिन की तरह आज भी प्रोफेसर संजय गौतम अपनी कक्षा की ओर बढ़ रहे थे, रास्ते में उनकी नज़र कुछ विद्यार्थियों पर पड़ी — कुछ लड़के मॉडर्न फैशन के कपड़ों में, और कुछ लड़कियाँ भी अत्यधिक खुले वस्त्रों में थीं।
गौतम जी के मन में सवाल उठा ??
“क्या यही हमारी नई पीढ़ी की आधुनिकता है?”
वह कक्षा में पहुँचे, पढ़ाई शुरू करने से पहले उन्होंने बोर्ड पर लिखा —
“स्वतंत्रता और मर्यादा”
कक्षा में सन्नाटा छा गया।
सभी छात्र सोचने लगे कि आज शायद कोई खास चर्चा होने वाली है।
गौतम जी ने पूछा, “बच्चो, बताओ —
"स्वतंत्रता का अर्थ क्या है?”
एक छात्र बोला,
“सर, अपनी मर्ज़ी से कुछ भी करना।”
दूसरा बोला,
“जहाँ किसी का हक़ न मारा जाए, वही असली स्वतंत्रता है।”
गौतम जी मुस्कुराए,
“सही कहा।
लेकिन क्या स्वतंत्रता का मतलब यह भी है कि हम सड़क पर गाड़ी को 150 की स्पीड से गाड़ी दौड़ाएँ, क्योंकि वो हमारी मर्ज़ी है?”
सभी ने एक साथ कहा,
“नहीं सर, इससे हादसा हो सकता है।”
“ठीक कहा,” गौतम जी बोले, “अब बताओ, सार्वजनिक जीवन में जो भी काम हम करते हैं, क्या उसमें दूसरों की भावनाएँ और मर्यादाएँ नहीं जुड़ी होतीं?”
सभी चुप थे।
तभी एक लड़की बोली,
“सर, लेकिन कपड़े तो व्यक्ति की व्यक्तिगत पसंद हैं।”
गौतम जी ने गहरी साँस ली,
“हाँ, बिल्कुल।
जैसे भोजन भी व्यक्तिगत पसंद है। लेकिन जब हम परिवार के साथ भोजन करते हैं,
तब सबकी रुचि का ध्यान रखते हैं न?
कोई तीखा नहीं खा सकता,
कोई मीठा पसंद नहीं करता।
समाज में भी हमें वही आचरण करना चाहिए,
हमारा आचरण सबके लिए सहज और मर्यादित हो।”
छात्रों के बीच कक्षा में गहरा सन्नाटा छा गया।
गौतम जी ने आगे कहा,
“हमारा समाज एक बड़ी सड़क जैसा है — जहाँ सड़क पर हर किसी को चलने का अधिकार है।
लेकिन अपनी- अपनी लेन में। कोई तेज़ चल दे तो टकराव होगा,
कोई नियम तोड़े तो दुर्घटना होगी।
यही बात जीवन पर भी लागू होती है।
"पुरुष हो या महिला, दोनों को मर्यादा की सीमा में ही रहकर चलना चाहिए।”
उन्होंने बोर्ड पर लिखा —
‘अधिक कसना भी गलत,
अधिक ढील छोड़ना भी गलत।’
“देखो बच्चों,” वह बोले,
जीवन "वीणा के तार" की तरह है। ज़्यादा कसो तार तो टूट जाएगा',
ढीला छोड़ो तो स्वर नहीं निकलेगा।
' संतुलन ही संगीत है',
' संतुलन ही संस्कार है'।
एक छात्र ने सवाल किया,
“सर, क्या इसका मतलब यह है कि हमें पुराने रीति- रिवाज ही अपनाने चाहिए?”
गौतम जी हँसे, नहीं,
इसका मतलब है कि हमें विवेक अपनाना चाहिए।
घूँघट और बुर्का जितना गलत है, उतना ही अर्धनग्नता का प्रदर्शन भी गलत है।
दोनों ही छोर पर संतुलन नहीं है। हमें न अति छिपना चाहिए,
न अति दिखना चाहिए।
भारतीय संस्कृति हमें यही सिखाती है —
"संयम में ही सौंदर्य है।”
कक्षा में हर छात्र अब मनन कर रहा था।
“हम जानवर नहीं हैं
कि जैसे चाहें वैसे चलें,
उन्होंने आगे कहा, “जानवरों के पास कपड़े नहीं,
लेकिन सभ्यता का अर्थ है
अपने व्यवहार को मर्यादा से बाँधना।
अगर खुलापन ही आधुनिकता है, तो सबसे आधुनिक तो जानवर हुए।
लेकिन हम इंसान हैं,
और हमें अपनी संस्कृति से जुड़कर ही आगे बढ़ना चाहिए।”
कक्षा का माहौल अब पूरी तरह गंभीर था।
कुछ छात्र जिनके विचार पहले अलग थे,
अब सोच में पड़ गए थे।
कक्षा के अंत में गौतम जी ने कहा —“सच्ची आधुनिकता कपड़ों से नहीं,
विचारों की पवित्रता से आती है। मर्यादा कोई बंधन नहीं,
बल्कि सुरक्षा की डोर है।
जैसे हेलमेट हमें बचाता है,
वैसे ही संस्कार जीवन को सुरक्षित रखते हैं।”
जब वे कक्षा से बाहर निकले,
तो छात्रों ने तालियाँ बजाईं।
कई लड़कियाँ और लड़के आपस में बात करने लगे कि सच में, फैशन और मर्यादा का संतुलन बनाना जरूरी है।
उस दिन के बाद कॉलेज में एक नया बदलाव देखने को मिला — कपड़ों की नहीं, सोच की दिशा में।
सीख: सच्ची स्वतंत्रता वही है
जो समाज और संस्कृति दोनों का सम्मान करे। मर्यादा का पालन किसी बंधन के कारण नहीं, बल्कि आत्म- सम्मान के कारण होना चाहिए।
आप भी समझें जी🙏✋✍️🌹✅🎈👆👆