Astrologer Healer

Astrologer Healer Face Reader and Healer

21/09/2021

#श्राद्ध_क्या_है_संपूर्ण_जानकारी

श्राद्ध क्या है संपूर्ण जानकारी । श्राद्ध दो प्रकार के होते है , 1)पिंड क्रिया 2) ब्राह्मणभोज 1)पिण्डक्रिया* यह प्रश्न स्वाभाविक है कि श्राद्ध में दी गई अन्न सामग्री पितरों को कैसे मिलती है...?
"नाम गौत्रं च मन्त्रश्च दत्तमन्नम नयन्ति तम। अपि योनिशतम प्राप्तान्सतृप्तिस्ताननुगच्छन्ति"।। (वायुपुराण)

श्राद्ध में दिये गये अन्न को नाम , गौत्र , ह्रदय की श्रद्धा , संकल्पपूर्वक दिये हुय पदार्थ भक्तिपूर्वक उच्चारित मन्त्र उनके पास भोजन रूप में उपलब्ध होते है ,

2)ब्राह्मणभोजन निमन्त्रितान हि पितर उपतिष्ठन्ति तान द्विजान । वायुवच्चानुगच्छन्ति तथासिनानुपासते ।। (मनुस्मृति 3,189) अर्थात श्राद्ध में निमंत्रित ब्राह्मण में पितर गुप्तरूप से प्राणवायु की भांति उनके साथ भोजन करते है , म्रत्यु के पश्चात पितर सूक्ष्म शरीरधारी होते है , इसिलिय वह दिखाई नही देते , *तिर इव वै 1पितरो मनुष्येभ्यः* ( शतपथ ब्राह्मण ) अर्थात सूक्ष्म शरीरधारी पितर मनुष्यों से छिपे होते है । *धनाभाव में श्राद्ध* धनाभाव एवम समयाभाव में श्राद्ध तिथि पर पितर का स्मरण कर गाय को घांस खिलाने से भी पूर्ति होती है , यह व्यवस्था पद्मपुराण ने दी है , यह भी सम्भव न हो तो इसके अलावा भी , श्राद्ध कर्ता एकांत में जाकर पितरों का स्मरण कर दोनों हाथ जोड़कर पितरों से प्रार्थना करे न मेस्ति वित्तं न धनम च नान्यच्छ्श्राद्धोपयोग्यम स्वपितृन्नतोस्मि । तृप्यन्तु भक्त्या पितरो मयोतौ कृतौ भुजौ वर्तमनि मारुतस्य ।। (विष्णुपुराण) अर्थात ' है पितृगण मेरे पास श्राद्ध हेतु न उपयुक्त धन है न धान्य है मेरे पास आपके लिये ह्रदय में श्रद्धाभक्ति है मै इन्ही के द्वारा आपको तृप्त करना चाहता हूं आप तृप्त होइये श्राद्ध सामान्यतः 3 प्रकार के होते है *नित्य नैमितकम काम्यम त्रिविधम श्राद्धम उच्यते* यम स्मृति में 5 प्रकार तथा , विश्वामित्र स्मृति में 12 प्रकार के श्राद्ध का वर्णन है ,किंतु 5 श्राद्ध में ही सबका अंतर्भाव हो जाता है , 1)नित्य श्राद्ध* प्रतिदिन किया जाने बाला श्राद्ध , जलप्रदान क्रिया से भी इसकी पूर्ति हो जाती है 2)नैमितकम श्राद्ध* वार्षिक तिथि पर किया जाने बाला श्राद्ध ,

3)काम्यश्राद्ध* किसी कामना की पूर्ति हेतु किया जाने वाला श्राद्घ 4)वृद्धिश्राद्ध (नान्दीश्राद्ध)* मांगलिक कार्यों , विवाहादि में किया जाने बाला श्राद्ध 5)पावर्ण श्राद्ध* पितृपक्ष ,अमावस्या आदि पर्व पर किया जाने बाला श्राद्ध श्राद्ध कर्म से मनुष्य को पितृदोष-ऋण से मुक्त के साथ जीवन मे सुखशांति तो प्राप्त होती है , अपितु परलोक भी सुधरता है पिता धर्मः पिता स्वर्गः पिताहि परमम् तपः। पितरी प्रितिमापन्ने प्रियन्ते सर्व देवता।। सर्वतीर्थमयी माता सर्वदेवमय: पिता।मातरं पितरं तस्मात सर्वयत्नेन पूजयेत इस सृष्टि में हर चीज का अथवा प्राणी का जोड़ा है, जैसे: रात और दिन, अँधेरा और उजाला, सफ़ेद और काला, अमीर और गरीब अथवा नर और नारी इत्यादि बहुत गिनवाये जा सकते हैं। सभी चीजें अपने जोड़े से सार्थक है अथवा एक-दूसरे के पूरक है, दोनों एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, इसी तरह दृश्य और अदृश्य जगत का भी जोड़ा है, दृश्य जगत वो है जो हमें दिखता है और अदृश्य जगत वो है जो हमें नहीं दिखता, ये भी एक-दूसरे पर निर्भर है और एक-दूसरे के पूरक हैं।

मित्रों, पितृ-लोक भी अदृश्य-जगत का हिस्सा है और अपनी सक्रियता के लिये दृश्य जगत के श्राद्ध पर निर्भर है। सनातन धर्मग्रंथों के अनुसार श्राद्ध के सोलह दिनों में लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, ऐसी मान्यता है कि पितरों का ऋण श्राद्ध द्वारा चुकाया जाता है, वर्ष के किसी भी मास तथा तिथि में स्वर्गवासी हुए पितरों के लिए पितृपक्ष की उसी तिथि को श्राद्ध किया जाता है। पूर्णिमा पर देहांत होने से भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा को श्राद्ध करने का विधान है, इसी दिन से महालय (श्राद्ध) का प्रारंभ भी माना जाता है, श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धा से जो कुछ दिया जाए। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण वर्ष भर तक प्रसन्न रहते हैं,

धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि पितरों का पिण्ड दान करने वाला गृहस्थ दीर्घायु, पुत्र-पौत्रादि, यश, स्वर्ग, पुष्टि, बल, लक्ष्मी, पशु, सुख-साधन तथा धन-धान्य आदि की प्राप्ति करता है। श्राद्ध में पितरों को आशा रहती है कि हमारे पुत्र-पौत्रादि हमें पिण्ड दान तथा तिलांजलि प्रदान कर संतुष्ट करेंगे, इसी आशा के साथ वे पितृलोक से पृथ्वीलोक पर आते हैं, यही कारण है कि हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रत्येक हिंदू गृहस्थ को पितृपक्ष में श्राद्ध अवश्य रूप से करने के लिए कहा गया है। श्राद्ध से जुड़ी कई ऐसी बातें हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं, मगर ये बातें श्राद्ध करने से पूर्व जान लेना बहुत जरूरी है क्योंकि कई बार विधिपूर्वक श्राद्ध न करने से पितृ श्राप भी दे देते हैं, आज हम आपको श्राद्ध से जुड़ी कुछ विशेष बातें बता रहे हैं, जो इस प्रकार हैं: 1- श्राद्धकर्म में गाय का घी, दूध या दही काम में लेना चाहिए, यह ध्यान रखें कि गाय को बच्चा हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं, दस दिन के अंदर बछड़े को जन्म देने वाली गाय के दूध का उपयोग श्राद्ध कर्म में नहीं करना चाहिए। 2- श्राद्ध में चांदी के बर्तनों का उपयोग व दान पुण्यदायक तो है ही राक्षसों का नाश करने वाला भी माना गया है,

पित्रों के लिए चांदी के बर्तन में सिर्फ पानी ही दिए जाए तो वह अक्षय तृप्तिकारक होता है, पितरों के लिए अर्घ्य, पिण्ड और भोजन के बर्तन भी चांदी के हों तो और भी श्रेष्ठ माना जाता है। 3- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाते समय परोसने के बर्तन दोनों हाथों से पकड़ कर लाने चाहिए, एक हाथ से लाए अन्न पात्र से परोसा हुआ भोजन राक्षस छीन लेते हैं। 4- ब्राह्मण को भोजन मौन रहकर एवं व्यंजनों की प्रशंसा किए बगैर करना चाहिए क्योंकि पितर तब तक ही भोजन ग्रहण करते हैं जब तक ब्राह्मण मौन रह कर भोजन करें। 5- जो पितृ शस्त्र आदि से मारे गए हों उनका श्राद्ध मुख्य तिथि के अतिरिक्त चतुर्दशी को भी करना चाहिए, इससे वे प्रसन्न होते हैं, श्राद्ध गुप्त रूप से करना चाहिए, पिंड दान पर साधारण या नीच मनुष्यों की दृष्टि पडने से वह पितरों को नहीं पहुंचता। 6- श्राद्ध में ब्राह्मण को भोजन करवाना आवश्यक है, जो व्यक्ति बिना ब्राह्मण के श्राद्ध कर्म करता है, उसके घर में पितर भोजन नहीं करते, श्राप देकर लौट जाते हैं, ब्राह्मण हीन श्राद्ध से मनुष्य महापापी होता है।

7- श्राद्ध में जौ, कांगनी, मटरसरसों का उपयोग श्रेष्ठ रहता है, तिल की मात्रा अधिक होने पर श्राद्ध अक्षय हो जाता है, वास्तव में तिल पिशाचों से श्राद्ध की रक्षा करते हैं, कुशा (एक प्रकार की घास) राक्षसों से बचाते हैं। 8- दूसरे की भूमि पर श्राद्ध नहीं करना चाहिए, वन, पर्वत, पुण्यतीर्थ एवं मंदिर दूसरे की भूमि नहीं माने जाते क्योंकि इन पर किसी का स्वामित्व नहीं माना गया है, अत: इन स्थानों पर श्राद्ध किया जा सकता है। 9- चाहे मनुष्य देवकार्य में ब्राह्मण का चयन करते समय न सोचे, लेकिन पितृ कार्य में योग्य ब्राह्मण का ही चयन करना चाहिए क्योंकि श्राद्ध में पितरों की तृप्ति ब्राह्मणों द्वारा ही होती है। 10- जो व्यक्ति किसी कारणवश एक ही नगर में रहने वाली अपनी बहिन, जमाई और भानजे को श्राद्ध में भोजन नहीं कराता, उसके यहां पितर के साथ ही देवता भी अन्न ग्रहण नहीं करते।

11- श्राद्ध करते समय यदि कोई भिखारी आ जाए तो उसे आदर-पूर्वक भोजन करवाना चाहिए, जो व्यक्ति ऐसे समय में घर आए याचक को भगा देता है उसका श्राद्ध कर्म पूर्ण नहीं माना जाता और उसका फल भी नष्ट हो जाता है। 12- शुक्लपक्ष में, रात्रि में, युग्म दिनों (एक ही दिन दो तिथियों का योग) में तथा अपने जन्मदिन पर कभी श्राद्ध नहीं करना चाहिए, धर्म ग्रंथों के अनुसार सायंकाल का समय राक्षसों के लिए होता है, यह समय सभी कार्यों के लिए निंदित है, अत: शाम के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए। 13- श्राद्ध में प्रसन्न पितृगण मनुष्यों को पुत्र, धन, विद्या, आयु, आरोग्य, लौकिक सुख, मोक्ष और स्वर्ग प्रदान करते हैं, श्राद्ध के लिए शुक्लपक्ष की अपेक्षा कृष्णपक्ष श्रेष्ठ माना गया है। 14- रात्रि को राक्षसी समय माना गया है, अत: रात में श्राद्ध कर्म नहीं करना चाहिए, दोनों संध्याओं के समय भी श्राद्धकर्म नहीं करना चाहिए, दिन के आठवें मुहूर्त (कुतपकाल) में पितरों के लिए दिया गया दान अक्षय होता है। 15- श्राद्ध में ये चीजें होना महत्वपूर्ण हैं: गंगाजल, दूध, शहद, दौहित्र, कुश और तिल, केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन निषेध है।

सोने, चांदी, कांसे, तांबे के पात्र उत्तम हैं, इनके अभाव में पत्तल उपयोग की जा सकती है। 16- तुलसी से पितृगण प्रसन्न होते हैं, ऐसी धार्मिक मान्यता है कि पितृगण गरुड़ पर सवार होकर विष्णु लोक को चले जाते हैं, तुलसी से पिंड की पूजा करने से पितर लोग प्रलयकाल तक संतुष्ट रहते हैं। 17- रेशमी, कंबल, ऊन, लकड़ी, तृण, पर्ण, कुश आदि के आसन श्रेष्ठ हैं, आसन में लोहा किसी भी रूप में प्रयुक्त नहीं होना चाहिए। 18- चना, मसूर, उड़द, कुलथी, सत्तू, मूली, काला जीरा, कचनार, खीरा, काला उड़द, काला नमक, लौकी, बड़ी सरसों, काले सरसों की पत्ती और बासी, अपवित्र फल या अन्न श्राद्ध में निषेध हैं।

19- सनातन धर्म के भविष्य पुराण के अनुसार श्राद्ध 12 प्रकार के होते हैं, जो इस प्रकार हैं- 1- नित्य, 2- नैमित्तिक, 3- काम्य, 4- वृद्धि, 5- सपिण्डन, 6- पार्वण, 7- गोष्ठी, 8- शुद्धर्थ, 9- कर्मांग, 10- दैविक, 11- यात्रार्थ, 12- पुष्टयर्थ 20- श्राद्ध के प्रमुख अंग इस प्रकार : तर्पण- इसमें दूध, तिल, कुशा, पुष्प, गंध मिश्रित जल पितरों को तृप्त करने हेतु दिया जाता है, श्राद्ध पक्ष में इसे नित्य करने का विधान है। भोजन व पिण्ड दान-- पितरों के निमित्त ब्राह्मणों को भोजन दिया जाता है, श्राद्ध करते समय चावल या जौ के पिण्ड दान भी किए जाते हैं। वस्त्रदान-- वस्त्र दान देना श्राद्ध का मुख्य लक्ष्य भी है। दक्षिणा दान-- यज्ञ की पत्नी दक्षिणा है जब तक भोजन कराकर वस्त्र और दक्षिणा नहीं दी जाती उसका फल नहीं मिलता। 21 - श्राद्ध तिथि के पूर्व ही यथाशक्ति विद्वान ब्राह्मणों को भोजन के लिए बुलावा दें, श्राद्ध के दिन भोजन के लिए आए ब्राह्मणों को दक्षिण दिशा में बैठाएं।

22- पितरों की पसंद का भोजन दूध, दही, घी और शहद के साथ अन्न से बनाए गए पकवान जैसे खीर आदि है, इसलिए ब्राह्मणों को ऐसे भोजन कराने का विशेष ध्यान रखें। 23- तैयार भोजन में से गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटी के लिए थोड़ा सा भाग निकालें, इसके बाद हाथ जल, अक्षत यानी चावल, चन्दन, फूल और तिल लेकर ब्राह्मणों से संकल्प लें। 24- कुत्ते और कौए के निमित्त निकाला भोजन कुत्ते और कौए को ही कराएं किंतु देवता और चींटी का भोजन गाय को खिला सकते हैं। इसके बाद ही ब्राह्मणों को भोजन कराएं, पूरी तृप्ति से भोजन कराने के बाद ब्राह्मणों के मस्तक पर तिलक लगाकर यथाशक्ति कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान कर आशीर्वाद पाएं। 25-

ब्राह्मणों को भोजन के बाद घर के द्वार तक पूरे सम्मान के साथ विदा करके आएं, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि ब्राह्मणों के साथ-साथ पितर लोग भी चलते हैं, ब्राह्मणों के भोजन के बाद ही अपने परिजनों, दोस्तों और रिश्तेदारों को भोजन कराएं। 26- पिता का श्राद्ध पुत्र को ही करना चाहिए, पुत्र के न होने पर पत्नी श्राद्ध कर सकती है, पत्नी न होने पर सगा भाई और उसके भी अभाव में सपिंडो (परिवार के) को श्राद्ध करना चाहिए, एक से अधिक पुत्र होने पर सबसे बड़ा पुत्र श्राध्दकर्म करें या सबसे छोटा।

अतः श्राद्ध अवश्य करे।

🚩हर हर महादेव🚩

#ज्योतिष #ज्योतिषीय #वैदिकज्योतिष #श्राद्ध #पितृ #पितृपक्ष #भोजन #पिता #पुत्र

Address

Gurugram
122001

Telephone

9718555281

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Astrologer Healer posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram