30/11/2025
वाराणसी के लंका में रहने वाले 55 वर्षीय रमेश उपाध्याय (परिवर्तित नाम) पिछले चार–पाँच सालों से एक अजीब-सी समस्या से परेशान थे—
👉 पेट हमेशा भारी, खाना खाने के बाद सुस्ती, रात में गैस और सुबह उठते ही मुंह में कड़वापन।
👉 हर टेस्ट कराया—अल्ट्रासाउंड, LFT, Thyroid, सब सामान्य।
👉 डॉक्टर कहते थे—“Stress है, acidity है, दवा लेते रहो।”
दवा लेने पर थोड़ी राहत भी मिलती थी, पर सुबह वही भारीपन वापस।
धीरे-धीरे रमेश जी का स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगा।
एक दिन उन्होंने मज़ाक में अपनी पत्नी से कहा,
📌 मोड़ तब आया जब वह मेरे पास OPD में आए
कुर्सी पर बैठते ही बोले,
“डॉक्टर साहब, पेट में खाना जैसे लगता ही नहीं… जैसे अंदर से आग बुझ गई है।”
मैंने उनसे बस कुछ ही सवाल पूछे:
— खाना किस समय?
— कैसे खाते हैं?
— भोजन के दौरान क्या करते हैं?
— कितनी भूख में खाना शुरू करते हैं?
🤔 उनके जवाब बिल्कुल सामान्य शहर के आदमी जैसे थे:
• “सुबह जल्दी में टोस्ट… मोबाइल देखते हुए।”
• “दोपहर दफ्तर में कंप्यूटर पर काम करते-करते।”
• “रात को टीवी के सामने।"
• “भूख लगे या न लगे, टाइम देखकर ही खा लेते हैं।”
🌻 मैंने कहा,
“समस्या खाना नहीं है, खाने का तरीका है।”
रमेश जी ने हैरानी से पूछा,
“तो दवा कम लें?”
मैंने मुस्कुराकर कहा,
“दवा बाद में। पहले भोजन करने के नियम सुधारें।”
🌿 मैंने उनको आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से भोजन करने के नियम बताए 🌿
📅 21 दिन बाद…
रमेश जी फिर OPD में आए—लेकिन इस बार चेहरे पर अलग चमक थी।
कुर्सी पर बैठते ही बोले,
“सर, मैंने सोचा नहीं था कि सिर्फ खाने का तरीका बदलने से इतनी राहत मिल सकती है।”
उन्होंने बताया:
• सुबह का भारीपन गायब
• गैस 80% कम
• दोपहर बाद की नींद नहीं आती
• सबसे बड़ी बात—मूड शांत और स्थिर
उन्होंने कहा,
“पहले लगता था खाना मेरे लिए बोझ है…
अब लगता है कि खाना ही दवा है।”
✨ यह कहानी सिर्फ रमेश जी की नहीं है।
हम में से 80% लोग भोजन गलत तरीके से करते हैं—
और फिर बीमारी को दोष देते हैं।
🍁 आयुर्वेद कहता है—
“जो सही ढंग से खाता है, उसे दवा की जरूरत कम पड़ती है।
और जो ढंग से नहीं खाता, उसे दवा भी कम असर करती है।”
पथ्ये सति गदार्तस्य किमौषधिनिषेवणैः ।
पथ्येऽसति गदार्तस्य किमौषधिनिषेवणैः ॥
अर्थात् आयुर्वेद ग्रंथों में जैसा शुद्ध सात्विक आहार बताया गया है, वैसा यदि मनुष्य भोजन में ध्यान रखें तो औषधि की क्या जरूरत है, क्योंकि तब रोग आएगा ही नहीं और यदि आयुर्वेद में बताए गए नियम के अनुसार भोजन ग्रहण नहीं करेंगे तो भी औषधियों की जरूरत ही नहीं क्योंकि आहार के शुद्ध ना होने से शरीर में दोषों का प्रकोप बना रहेगा और रोग नहीं जाएगा।
📖 आयुर्वेद के ही एक और महान आचार्य कश्यप ने कहा है
"आहारो महाभैषज्यम उच्यते "
अर्थात आहार से बड़ी कोई औषधि इस धरती पर नहीं है।
इस प्रकार हितकर आहार-विहार करने वाले जितेंद्रिय पुरुष रोग रहित होकर 36000 रात्रि अर्थात 100 वर्ष तक जीवित रहते हैं।
🍁 आचार्य चरक ने भोजन करने के तरीकों पर विस्तार से लिखा है-
"उष्णं, स्निग्धं, मात्रावत्; जीर्णे, वीर्याविरुद्धम्, इष्टे देशे, इष्टसर्वोपकरणं; नातिद्रुतं, नातिविल-म्बितम्, अजल्पन्, अहसन्, तन्मना भुञ्जीत, आत्मानमभिसमीक्ष्य सम्यक् ॥"
👉 अर्थात गरम, स्निग्थ (घृत, तैल से युक्त), उचित परिमाण बाला, जीर्ण होने पर अर्थात् जब पहले खाया हुआ भोजन पच गया हो, जो परस्पर वीर्य (द्रव्य में रहने वाली एक शक्ति) विरुद्ध न हों, प्रिय स्थान में बैठकर, मन के अनुकून जहाँ सभी साधन उपलब्ध हों, न बहुत जल्दी, न बहुत धीरे-धीरे, बातचीत न करते हुए, न हँसते हुए, अपनी पाचनशक्ति तथा अपनी रुचि को भली भांति देख-समझकर मन लगाकर अर्थात् इधर-उधर की चिन्ता को छोड़कर भोजन करे ।
👉 १. उष्णभोजन से लाभ -
उष्ण (गरम) भोजन करे, गरम खाने पर स्वादिष्ट लगता है। खा लेने पर जठराग्नि को तीव्र करता है, शीघ्र ही (समय पर) पच जाता है, वायु का अनुलोमन करता है और कफ को सुखाता है, इसलिए गरम (ताजा) भोजन करना चाहिये ।
👉 २. स्निग्धभोजन से लाभ :
घी तेल आदि से बने हुए पदार्थों को खाना चाहिये। स्निग्ध भोजन खाते हुए स्वादिष्ट लगता है, खाने पर मन्द अग्नि को प्रदीप्त करता है, शीघ्र पच जाता है। वात का अनुलोमन करता है, शरीर को पुष्ट करता है, इन्द्रयों को दृढ़ करता है, अंग-प्रत्यंग के बल को बढ़ाता है, रूपसौन्दर्य में वृद्धि होती है (शरीर की रूक्षता को हटाकर चिकनापन ला देता है), इसलिये स्निन्ध भोजन करना चाहिये ।
👉 ३. मात्रायुक्त भोजन से लाभ-
मात्रा के अनुसार भोजन करे। क्योंकि मात्रा के अनुसार खाया हुआ भोजन वात, पित्त, कफ को प्रकुपित न करता हुआ केवल आयु को ही बढ़ाता है। और शरीर में स्थित अग्नि को नष्ट नहीं करता है तथा किसी प्रकार के कष्ट के बिना ही पच जाता है।
👉 ४. पचने पर भोजन करने से लाभ-
पहले किया हुआ भोजन जब पच जाय तभी पुनः भोजन करना चाहिये। अजीर्ण स्थिति में खाना खा लेने पर खाया हुआ भोजन पहले किये हुए भोजन के अपक्व (अधपके) रस को बाद में खाये हुए आहार के रस से मिलाता हुआ शीघ्र ही सभी दोषों को प्रकुपित कर देता है। पहले भोजन के पचने पर भोजन करने वाले के अपने-अपने स्थानों में दोषों के स्थित हो जाने पर जाठराग्नि के प्रदीप्त होने पर, भूख के लग जाने पर, रसवाही स्रोतों के मुखों के खुल जाने पर, उद्गार (Ejection), हृदय के शुद्ध हो जाने पर, वायु के अनुलोम होने पर और वात (अपानवायु तथा उदानवायु), मूत्र, मल के वेगों का त्याग कर देने पर खाया हुआ भोजनसमूह, शरीर में स्थित सभी धातुओं को दूषित न करता हुआ अपितु पुष्ट करता हुआ केवल आयुष्य को बढ़ाता है। इसलिये पहले खाये हुए आहार के पचने पर भोजन करे।
👉 ५. वीर्याविरुद्ध भोजन से लाभ-
जिन द्रव्यों के वीर्य परस्पर विरुद्ध न हों ऐसे द्रव्यों से युक्त भोजन करे। अविरुद्ध वीर्य वाले भोजन को खाता हुआ पुरुष विरुद्ध वीर्य वाले आहारों से होने वाले विकारों से प्रभावित नहीं होता । द्रव्य में रस, गुण, वीर्य, विपाक आदि की सत्ता होती है। अनुकूल द्रव्यों के योग से इनमें वृद्धि होती हैं और विरुद्ध द्रव्यों के योग से विपरीतता आती है। जैसे- दूध-मछली, मधु-घृत आदि ।
👉 ६. अभीष्टस्थान में भोजन से लाभ-
इष्ट देश (मनोनुकूल तथा पवित्र स्थान) में और भोजन के उपयोगी सभी साधनों से युक्त होकर भोजन करे। क्योंकि मन के अनुकूल स्थान में भोजन करता हुआ पुरुष अप्रिय देश (घृणित स्थान) में बैठकर भोजन करने से होने वाले मानसिक विकारों से प्रभावित नहीं होता, उसी प्रकार सभी इच्छित भोजनोपयोगी सामग्री से युक्त पुरुष भी।
👉 ७. अतिशीघ्र भोजन करने से हानि-
अधिक शीघ्रता से भोजन न करे। क्योंकि अधिक शीघ्रता से भोजन करने वाले पुरुष का भोजन ऊपर नासिका आदि छिद्रों में चला जाता है, अवसाद उत्पन्न करता है, उचित विधि से उसकी स्थिति आमाशय में नहीं हो पाती और भोजन के गुण-दोषों की उपलब्धि भी निश्चित रूप से नहीं हो पाती।
👉 ८. अत्तिविलम्बित भोजन से हानि-
अधिक देर लगाकर भोजन न करे। क्योंकि अधिक समय लगा कर भोजन करने वाला पुरुष तृप्त नहीं हो पाता, वहुत खा जाता है, तब तक गरम परोसा हुआ भी भोजन देर करने से ठण्डा हो जाता है और उसके खाये हुए पदार्थों का पाक विषम (आगे-पीछे) होता है।
👉 ९. मन लगाकर भोजन करने से लाभ-
बातचीत न करते हुए तथा न हँसते हुए केवल भोजन की ओर ध्यान लगाकर भोजन करे। क्योंकि बातचीत करते हुए, हँसते हुए अथवा दूसरी ओर ध्यान लगाकर खाने वाले पुरुष के शरीर में वे ही दोष उत्पन्न होते हैं, जो अधिक शीघ्रता से भोजन करने वाले के होते हैं। इसलिये चुपचाप, विना हँसे और भोजन की ओर ध्यान लगाकर भोजन करे ।
👉 १०. अपने अनुसार भोजन से लाभ-
अपनी शारीरिक शक्ति को देखकर भली-भांति भोजन करे। शारीरिक शक्ति के अन्वेषण का प्रकार यह है- यह द्रव्य मेरे अनुकूल है? यह अनुकूल नहीं है? इस प्रकार विचार करके ही भोजन करें
🌿🌿 "स्वास्थ्य केवल यह नहीं कि आप क्या खाते हैं, बल्कि यह भी कि आप कैसे, कब और कितनी सजगता से खाते हैं। भोजन अगर औषधि है, तो उसका सही नियम उसके प्रभाव को दोगुना कर देता है—और गलत नियम वही भोजन विष जैसा असर दिखा सकता है।"🌿🌿
Dr Ajay Gupta
Assistant Professor
Government Ayurveda college
Senior Ayurveda Consultant
All India Institute of Ayurveda, New Delhi Rashtriya Ayurved Vidyapeeth Ministry of Ayush, Government of India ABP News Zee News Dainik Bhaskar Dainik Jagran
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