Poshahar Organics

Poshahar Organics We are Organic farmers and food producers grow and produce food without using synthetic chemicals such as pesticides and artificial fertilisers.

शंखपुष्पी (Shankhpushpi) एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, जिसे प्राचीन काल से ही दिमाग, तंत्रिका तंत्र और मानसिक स्...
01/11/2025

शंखपुष्पी (Shankhpushpi) एक प्रसिद्ध आयुर्वेदिक औषधीय पौधा है, जिसे प्राचीन काल से ही दिमाग, तंत्रिका तंत्र और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद लाभदायक माना गया है। यह पौधा छोटे आकार का होता है, जो जमीन पर फैलता है। इसके फूल सफेद या हल्के नीले रंग के होते हैं, जो शंख (सीपी) की आकृति के समान दिखते हैं, इसलिए इसका नाम ‘शंखपुष्पी’ रखा गया है।

✅️ आइये जानते हैं सेहत के लिए कितना फायदेमंद हैं शंखपुष्पी :--

1️⃣ इस जड़ी-बूटी को दिमाग और याद्दाश्‍त तेज करने वाला टॉनिक भी कहा जा सकता हैं। ये बौद्धिक क्षमता को बढ़ाने का काम करती हैं। ये जड़ी-बूटी बढ़ती उम्र में याद्दाश्‍त कमजोर होने से भी रोकती हैं और इसे चिंता एवं डिप्रेशन को कम करने में भी असरकारी पाया गया हैं। इससे अल्‍जाइमर, तनाव, चिंता, डिप्रेशन और मानसिक तनाव जैसी कई समस्‍याओं का इलाज किया जा सकता हैं।

2️⃣ मूत्र रोग में शंखपुष्पी बहुत लाभकारी औषधि हैं। पेशाब करते समय जलन या दर्द होना, रुक-रुककर पेशाब होना, पेशाब में पस आना आदि रोग इसके सेवन से ठीक हो जाते हैं। ऐसे रोगों से राहत पाने के लिए प्रतिदिन शंखपुष्पी चूर्ण को गाय के दूध, मक्खन, शहद अथवा छाछ के साथ सेवन करने से लाभ होता हैं।

3️⃣ शंखपुष्पी के फूलों में एथेनॉलिक अर्क पाया जाता हैं, जो नॉन-एस्ट्रिफाइड फैटी एसिड के लेवल को कम करता हैं। इससे हार्ट अटैक, हार्ट ब्लॉक, ब्लड क्लॉट आदि गंभीर रोगों के जोखिम को कम करने में भी मदद मिलती। यह रक्त को डिटॉक्सिफाई करने में मदद करता हैं।

4️⃣ अगर मिर्गी के मरीज को बार-बार दौरा पड़ रहा हैं तो शंखपुष्पी के रस में शहद मिलाकर सुबह शाम पिलाने से मिर्गी में लाभ मिलता हैं।

5️⃣ डायबिटीज को नियंत्रित करने के लिए शंखपुष्पी के चूर्ण को सुबह-शाम गाय के मक्खन के साथ या पानी के साथ सेवन करने से मधुमेह में लाभ मिलता हैं।

6️⃣ शंखपुष्पी खून की उल्टी रोकने वाली उत्तम औषधि हैं। यदि किसी को खून की उल्टी हो रही हो तो शंखपुष्पी का रस, दूब घास तथा गिलोय का रस मिलाकर पिलाने से तत्काल लाभ होता हैं। नाक से खून बहने पर भी इसकी बूंद नाक में डालने से खून आना बंद हो जाता हैं।

7️⃣ शंखपुष्पी के फूल का इस्तेमाल पीलिया, पेचिश, बवासीर जैसे अन्य पेट से जुड़े विकारों के लिए किया जाता हैं। शंखपुष्पी का रस चेहरे की झुर्रियां और उम्र बढ़ने के लक्षणों को रोकने में मदद करता हैं।

⚠️ सावधानी :--

■ गर्भवती महिलाओं और बच्चों को आयुर्वेदिक वैद्य के परामर्श से ही दें।

■ अधिक मात्रा में सेवन करने से पेट दर्द या हल्की सुस्ती हो सकती है।

शंखपुष्पी एक चमत्कारी हर्बल औषधि है जो शरीर और मन दोनों के लिए फायदेमंद है। यह न केवल दिमाग को तेज और तनावमुक्त रखती है, बल्कि हृदय, मूत्र, पाचन, और त्वचा के लिए भी उपयोगी है। नियमित लेकिन संतुलित सेवन से शरीर को ऊर्जा, संतुलन और मानसिक शांति मिलती है।

#शंखपुष्पी

अर्जुन का पेड़ (Terminalia arjuna) आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष माना गया है। इसे हृदय...
27/10/2025

अर्जुन का पेड़ (Terminalia arjuna) आयुर्वेद और पारंपरिक चिकित्सा में अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय वृक्ष माना गया है। इसे हृदय रोगों की “अमृत औषधि” भी कहा जाता है। यह पेड़ भारत के लगभग सभी हिस्सों में नदियों, तालाबों और जलस्रोतों के किनारे स्वाभाविक रूप से पाया जाता है। अर्जुन वृक्ष की छाल, पत्तियाँ, फल और फूल सभी औषधीय गुणों से भरपूर होते हैं

✅️ अर्जुन के औषधीय गुण और फायदे :---

1️⃣ हृदय रोगों में लाभकारी :
अर्जुन की छाल हृदय की पेशियों को मजबूत बनाती है और रक्त प्रवाह को नियंत्रित करती है। यह ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल और हृदय की धड़कन की अनियमितता में अत्यंत लाभ देती है। आयुर्वेद में इसे “हृदय-बल्य” — यानी हृदय को शक्ति देने वाली औषधि कहा गया है।

2️⃣ रक्त शुद्धिकरण में सहायक :
अर्जुन की छाल में एंटीऑक्सिडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं, जो शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने में मदद करते हैं और रक्त को शुद्ध करते हैं।

3️⃣ दस्त और मूत्र रोगों में लाभकारी :
अर्जुन की छाल का काढ़ा दस्त, पेचिश और मूत्र संक्रमण में लाभदायक है। मूत्र में जलन या संक्रमण की स्थिति में इसका सेवन राहत देता है।

4️⃣ श्वसन और खांसी में राहत :
अस्थमा, खांसी या सांस की तकलीफ में अर्जुन छाल का काढ़ा या चूर्ण लाभकारी होता है। यह श्वसन तंत्र को मजबूत बनाता है और बलगम को कम करता है।

5️⃣ हड्डियों और घावों के लिए उपयोगी :
अर्जुन की छाल का लेप हड्डी के फ्रैक्चर, सूजन या घावों पर लगाने से लाभ मिलता है। इसके एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण सूजन और दर्द को कम करते हैं।

✅️ अर्जुन के सेवन के प्रमुख तरीके :---

1️⃣ अर्जुन छाल का काढ़ा :
एक चम्मच अर्जुन छाल का चूर्ण दो कप पानी में डालकर उबालें, जब तक पानी आधा न रह जाए।
छानकर सुबह और शाम सेवन करें।

2️⃣ अर्जुन दूध :
एक चम्मच छाल का चूर्ण दूध में उबालकर पीने से हृदय रोगों में विशेष लाभ होता है।

3️⃣ अर्जुन चूर्ण :
आधा से एक चम्मच अर्जुन चूर्ण सुबह और शाम गुनगुने पानी या दूध के साथ लें।

⚠️ सावधानियाँ :---

■ अधिक मात्रा में सेवन करने से ब्लड प्रेशर कम हो सकता है।

■ गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं को चिकित्सक की सलाह से ही इसका सेवन करना चाहिए।

■ लंबे समय तक नियमित सेवन से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से परामर्श अवश्य करें।

अर्जुन का पेड़ न केवल औषधीय दृष्टि से अमूल्य है, बल्कि यह पर्यावरण की शुद्धि में भी अहम भूमिका निभाता है। अगर यह जानकारी उपयोगी लगी हो, तो पोस्ट को लाइक करके हमारे फेसबुक पेज को फॉलो करना न भूलें, धन्यवाद 🙏

अकरकरा (Acmella paniculata): दांत दर्द मिटाने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटी🌸 परिचयअकरकरा (Acmella paniculata) एक प्रसिद्ध औषध...
24/10/2025

अकरकरा (Acmella paniculata): दांत दर्द मिटाने वाली प्राकृतिक जड़ी-बूटी

🌸 परिचय

अकरकरा (Acmella paniculata) एक प्रसिद्ध औषधीय पौधा है, जो अपने अद्भुत सुन्न करने वाले (numbing) प्रभाव के लिए जाना जाता है। यह पौधा Toothache Plant, Panicled Spot Flower, Buzz Buttons, Jambu और Pipulka जैसे नामों से भी प्रसिद्ध है।
आयुर्वेद में इसे अकरकरा कहा जाता है और यह दांत दर्द, मुख रोगों तथा तंत्रिका संबंधित समस्याओं में अत्यंत उपयोगी मानी जाती है।

अकरकरा के अन्य नाम (Common Names)
Toothache Plant अंग्रेज़ी
Panicled Spot Flower अंग्रेज़ी
Buzz Buttons आम बोलचाल
Jambu दक्षिण भारत व इंडोनेशिया क्षेत्र
Akarkara हिंदी / संस्कृत
Pipulka स्थानीय नाम

🌼 अकरकरा क्यों कहा जाता है “Toothache Plant”?

इस पौधे को “Toothache Plant” यानी “दांत दर्द का पौधा” इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसकी जड़ और फूल में पाया जाने वाला स्पिलांथोल (Spilanthol) नामक रासायनिक तत्व स्थानीय एनेस्थेटिक (Local Anesthetic) का कार्य करता है।
👉 इसे चबाने पर मुंह और जीभ हल्के सुन्न हो जाते हैं, जिससे दांत दर्द और मसूड़ों की जलन से तुरंत राहत मिलती है।

🌸 “Panicled Spot Flower” नाम का अर्थ

“Panicled Spot Flower” नाम इसकी आकृति से प्रेरित है इस पौधे में छोटे-छोटे गुच्छेदार पीले फूल होते हैं, जिनके केंद्र पर गहरे रंग का धब्बा (Spot) दिखाई देता है। ये फूल “पैनिकल” नामक गुच्छों में लगते हैं, इसलिए इसे “Panicled Spot Flower” कहा गया है।

⚕️ औषधीय उपयोग (Medicinal Uses)

🔹 1. दांत दर्द में त्वरित राहत

अकरकरा का सबसे प्रमुख उपयोग दांत दर्द और मसूड़ों की सूजन में किया जाता है। फूल या जड़ को चबाने से मुंह में झनझनाहट महसूस होती है और दर्द धीरे-धीरे कम हो जाता है।

🔹 2. मुख की सफाई और दुर्गंध दूर करना

अकरकरा मुंह के बैक्टीरिया को नष्ट करता है। इसका काढ़ा या अर्क माउथवॉश के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है।

🔹 3. प्रतिरक्षा और रक्त संचार में लाभकारी

स्पिलांथोल शरीर में रक्त परिसंचरण (Blood Circulation) को बढ़ाता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है।

🔹 4. त्वचा और संक्रमणों में उपयोग

इसके एंटीबैक्टीरियल गुणों के कारण यह घाव, संक्रमण और त्वचा रोगों में भी उपयोगी है।

🍀 सेवन विधि (How to Use)
उपयोग विधि

ताजा फूल या जड़ 1 छोटा टुकड़ा सीधे चबाकर दांत दर्द में उपयोग
चूर्ण 250 mg – 500 mg शहद या गुनगुने पानी के साथ
अर्क (Extract) चिकित्सक की सलाह अनुसार माउथवॉश या गार्गल के रूप में

⚠️ सावधानियाँ

अधिक मात्रा में सेवन से मुंह में जलन या अत्यधिक सुन्नपन हो सकता है।

गर्भवती महिलाएँ और छोटे बच्चे इसका उपयोग डॉक्टर की सलाह से ही करें।

यह केवल अस्थायी दर्द राहत के लिए है; मूल कारण के उपचार हेतु दंत चिकित्सक की सलाह अवश्य लें।

वैज्ञानिक जानकारी (Scientific Info)
वैज्ञानिक नाम Acmella paniculata
कुल (Family) Asteraceae
सक्रिय तत्व Spilanthol
प्रभाव सुन्न करने वाला (Numbing), सूजनरोधी (Anti-inflammatory), जीवाणुरोधी (Antibacterial)

⚠️ डिस्क्लेमर (Medical Disclaimer)
यह लेख केवल शैक्षणिक और सामान्य जानकारी के उद्देश्य से लिखा गया है। किसी भी औषधि या जड़ी-बूटी का सेवन करने से पहले योग्य आयुर्वेद चिकित्सक या डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

#अकरकरा #दांतदर्द #आयुर्वेदिकउपचार

चिरपोटी या पटपोटनी नामक पौधें के फल, कोशिकाओं और लिवर को ठीक करने में बहुत कारगर साबित होते है कुछ लोग यहां तक दावा करते...
22/10/2025

चिरपोटी या पटपोटनी नामक पौधें के फल, कोशिकाओं और लिवर को ठीक करने में बहुत कारगर साबित होते है कुछ लोग यहां तक दावा करते हैं कि कैंसर और लिंफेटिक सिस्टम के साथ-साथ इम्यून सिस्टम को भी पुनर्जीवित कर सकती है ।

भ़ंभोला, गजब का वन फल हैं जिसका वानस्पतिक नाम : physalis angulata हैं । यह एक छोटा सा पौधा है। इसके फलों के ऊपर एक पतला सा आवरण होता है। छत्तीसगढ़ में इसे 'चिरपोटी' बिहार मे इसे बमभुटका व पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पटपोटनी भी कहते हैं। राजस्थान मे इसे सिरपोटी करते है | इसके फलों को खाया जाता है।
वन भंभोला औषधीय गुणो से परिपूर्ण है।
ग्राउंड चेरी यानि भंभोला का फल और पंचांग (फल, फूल, पत्ती, तना, मूल) उदर रोगों (और मुख्यतः यकृत) के लिए लाभकारी है।
# इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से पाचन अच्छा होता है साथ ही भूख भी बढ़ती है।
# यह लीवर को उत्तेजित कर पित्त निकालता है।
# इसकी पत्तियों का काढ़ा शरीर के भीतर की सूजन को दूर करता है।
# सूजन के ऊपर इसका पेस्ट लगाने से सूजन दूर होती है। ग्राउंड चेरी की पत्तियों में कैल्सियम, फास्फोरस, लोहा, विटामिन-ए, विटामिन-सी पाये जाते हैं।
# बवासीर में इसकी पत्तियों का काढ़ा पीने से लाभ होता है।
# संधिवात में पत्तियों का लेप तथा पत्तियों के रस का काढ़ा पीने से लाभ होता है।
# खांसी, हिचकी, श्वांस रोग में इसके फल का चूर्ण लाभकारी है।
बाजार में अर्क-रसभरी मिलता है जो पेट के लिए उपयोगी है। सफेद दाग में पत्तियों का लेप लाभकारी है । विटामिन-सी, विटामिन-ए और आयरन से भी भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इस फल के सेवन से इम्यून सिस्टम मजबूत होता है। इसके अलावा यह आंखों के लिए भी काफी फायदेमंद है। इससे आंखों की रोशनी बढ़ती है। जिससे आप मोतियाबिंद आदि समस्याओं से बच सकते हैं।
इसके फल में हैपॉलीफेनोल्स और कैरोटीनॉयड जैसे फाइटो केमिकल्स मौजूद होते हैं। जो हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों के लिए फायदेमंद है। यह हाई बीपी के स्तर को कंट्रोल करने में मददगार है। इसके अलावा इसमे घुलनशील पेक्टिन फाइबर पाया जाता है, जो बैड कोलेस्ट्रॉल को कम करता है। इससे दिल से जुड़ी बीमारियां कम होती हैं।
इस फल में कैल्शियम और फॉस्फोरस भरपूर मात्रा में होता है। जो हड्डियों को स्वस्थ रखते हैं। इसमें मौजूद पेक्टिन कैल्शियम और फास्फोरस के अवशोषण में मदद करता है। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं ।

ग्राऊंडचेरी के भीतर पाए जाने वाले कुछ यौगिक कार्बोहाइड्रेट से सरल शर्करा के टूटने और सेवन को धीमा कर सकते हैं। इसका मतलब यह है कि शरीर और खून की मात्रा चीनी के साथ अधिक नहीं बढ़ी है और इंसुलिन रिसेप्टर्स ठीक से नियंत्रित रहते हैं। अत्यधिक रक्त शर्करा का उतार-चढ़ाव शुगर की बीमारी (मधुमेह) का मुख्य कारण है। जिसका अर्थ है कि रसभरी टाइप 2 मधुमेह के लिए बहुत ही अच्छा उपचार व सामान्य उपाय है।
इस में मौजूद एनोलाइड्स (anolides) लिवर स्काररिंग (क्षतिग्रस्त हिस्सा)में कमी के लिए जाने जाते हैं। इसके अलावा, रसभरी अति प्रभावशाली गुर्दे के स्वास्थ्य के साथ जुड़ी हुई है, जो पेशाब को उत्तेजित करके विषाक्त पदार्थों को खत्म करने और लिम्फेटिक प्रणाली (लिम्फेटिक सिस्टम हमारे शरीर का ड्रेनेज सिस्टम है जो दूषित रक्त मृत या अस्वस्थ या कैंसर कोशिकाओं तथा हानिकारक सूक्ष्म जीवों कणों को शरीर से बाहर करता है ! )से अतिरिक्त वसा, नमक और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करती है जिससे लिम्फेटिक सिस्टम स्वस्थ शुद्ध रहता है और अनेक असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है
हम एनोलाइड्स (anolides) के बारे में अधिक नहीं सुनते हैं क्योंकि ये काफी दुर्लभ होते हैं जो कुछ ही फल सब्जियों में पाया जाता है। लेकिन एनोलाइड्स रसभरी में पाए जाते हैं। ये अनूठे आर्गेनिक यौगिक, शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट और सूजन को कम करने वाले एजेंट पाए जाते हैं जो एपोपोटिकिस या स्वत: कोशिका मृत्यु को प्रेरित कर सकते हैं और पूरे शरीर में कैंसर की कोशिकाओं के प्रसार को धीमा या रिवर्स कर सकते हैं।**
भंभोल में मौजूद विटामिन सी का महत्वपूर्ण स्तर (दैनिक मात्रा का लगभग 15%) पाया जाता है। जो इसे प्रतिरक्षा प्रणाली के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण फल बनाता है। विटामिन सी (एस्कॉर्बिक एसिड) सफेद रक्त कोशिकाओं के उत्पादन को उत्तेजित करता है और इसमें कुछ एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होते हैं। इसके अलावा, यह कोलेजन के उत्पादन में एक महत्वपूर्ण घटक है, जो कोशिकाओं, ऊतकों, अंगों और रक्त वाहिकाओं का उपचार करता है ।

किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है यह फूल, मिल जाए तो कभी छोड़ना मत कनेर का पौधा वैसे तो एक आम पौधा है जो अधिकाश घरों में दे...
05/05/2025

किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है यह फूल, मिल जाए तो कभी छोड़ना मत
कनेर का पौधा वैसे तो एक आम पौधा है जो अधिकाश घरों में देखने को मिल जाता है। ये पौधा भारत में लगभग हर जगह देखा जा सकता है। यह सदाहरित झाड़ी है जो हिमालय में नेपाल से लेकर पश्चिम के कश्मीर तक, गंगा के ऊपरी मैदान और मध्यप्रदेश में बहुतायत से पाई जाती है। अन्य प्रदेशों में यह कम पाई जाती है। इस पौधे को अंग्रेजी में thevetia peruviana कहते हैं एक सदाबहार पौधा है | कनेर के पौधों में पीले और ऑरेंज रंगों के फूल होते हैं कनेर के पत्तों और फूलों का उपयोग कई आयुर्वेदिक तरीकों से किया जाता आया है। वैद्य बताते है कि कनेर के फूल को संजीवनी बूटी के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कनेर की पत्तियाँ बालों के लिए काफी लाभकारी होती है ये न की सिर्फ बालो को झड़ने से रोकती है बल्कि इसके नियमित इस्तेमाल से नए बाल भी उगते हैं। जानिए इस फूल के आयुर्वेदिक उपचार…

घाव

कनेर के सूखे हुए पत्तों का चूर्ण बनाकर घाव पर लगाने से घाव जल्द भर जाते हैं।

फोड़े-फुंसियां

कनेर के लाल फूलों को पीसकर लेप बना लें और यह लेप फोड़े-फुंसियों पर दिन में 2 से 3 बार लगाएं। इससे फोड़े-फुंसियां जल्दी ठीक हो जाते हैं।

दाद

– कनेर की जड़ को सिरके में पीसकर दाद पर 2 से 3 बार नियमित लगाने से दाद रोग ठीक होता है।

– कनेर के पत्ते, आंवला का रस, गंधक, सरसों का तेल और मिट्टी के तेल को मिलाकर मलहम बना लें। इस मलहम को दाद पर लगाने से दाद खत्म होता है।

– लाल या सफेद फूलों वाली कनेर की जड़ को गाय के पेशाब में घिसकर लगाने से दाद ठीक होता है। इसका लेप बवासीर व कुष्ठ रोग को ठीक करने के लिए भी किया जाता है।

बालों के झड़ने की समस्या दूर करें

आज कई लोग बालों के झड़ने की समस्या से परेशान हैं| अगर आप भी इस समस्या से परेशान हैं| तो इस फूल से आप अपने बालों का झड़ना रोक सकते हैं| सबसे पहले आप इस फूल को पानी में उबाल लें उसके बाद उस पानी को छानकर ठंडा कर ले फिर उस पानी से बालों को धोएं| इस उपाय को सप्ताह में 3 दिन करने से आपके बालों का झड़ना धीरे-धीरे बंद हो जाएगा|

चेहरे के लिए फायदेमंद

कनेर के फूल को पीसकर इसका लेप चेहरे पर लगाने से चेहरे के दाग धब्बे और पिंपल्स जल्द ही दूर हो जाते हैं|

सांप, बिच्छू का जहर

सफेद कनेर की जड़ को घिसकर डंक पर लेप करने या इसके पत्तों का रस पिलाने से सांप या बिच्छू का जहर उतर जाता है।

बवासीर

– कनेर और नीम के पत्ते को एक साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बवासीर के मस्सों पर प्रतिदिन 2 से 3 बार लगाएं। इससे बवासीर के मस्से सूखकर झड़ जाते हैं।

– कनेर की जड़ को ठंडे पानी के साथ पीसकर दस्त के समय जो अर्श (बवासीर) बाहर निकल आते हैं उन पर लगाएं। इससे बवासीर रोग ठीक होता है।

नंपुसकता

– सफेद कनेर की 10 ग्राम जड़ को पीसकर 20 ग्राम वनस्पति घी के साथ पका लें। इस तैयार मलहम को ***** पर सुबह-शाम लगाने से नुपंसकता दूर होती है।

– सफेद कनेर की जड़ की छाल को बारीक पीसकर भटकटैया के रस के साथ पीसकर लेप बना लें। इस लेप को 21 दिनों के अंतर पर ***** की सुपारी छोड़कर बांकी ***** पर लेप करने से नपुंसकता खत्म होती है।

जोड़ों का दर्द

लाल कनेर के पत्तों को पीसकर तेल में मिलाकर लेप बना लें और इस लेप को जोड़ों पर लगाएं। इसे लेप को सुबह-शाम जोड़ों पर लगाने से दर्द में आराम मिलता है।

धातुरोग

सफेद कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से धातुरोग एवं गर्मी से होने वाले रोग आदि ठीक होता है।

अंडकोष की खुजली

सफेद या लाल फूल वाली कनेर की जड़ को तेल में पका लें और इस तेल को अंडकोष की खुजली पर लगाएं। इससे अंडकोष की खुजली दूर होती है और फोडे़-फुंसी भी मिट जाते हैं।
दर्द व सूजन

– शरीर का कोई भी अंग सूजन जाने पर लाल या सफेद फूल वाले कनेर के पत्तों का काढ़ा बनाकर मालिश करें। इससे सूजन में जल्दी आराम मिलता है।

– सूजन और दर्द को दूर करने के लिए लाल या सफेद फूल वाले कनेर की जड़ को गाय के मूत्र में पीसकर लगाएं। इससे सूजन व दर्द ठीक होता है।

कृपया अपने नजदीकी वैद्य या डॉक्टर से परामर्श अवश्य करें।

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