20/11/2025
पूज्य श्रीमन् माध्व गौडेश्वर वैष्णवाचार्य श्री पुण्डरीक गोस्वामी जी महाराज
श्रीराधारमणाश्रितो बुधवरस्सद्विप्रसेवापरः,
माधुर्यँ नितरां तनोति सततं सौजन्यसौन्दर्यतः।
यस्मिन् ज्ञानपरम्परास्ति विपुला चैतन्यकृष्णाश्रिता
धन्योऽयमनवद्यहृद्यचरितःश्रीपुण्डरीको गुरु: ।।
**“जो श्री राधारमण प्रभु के आश्रित हैं, विद्वानों में श्रेष्ठ हैं, और सत्पात्र ब्राह्मणों की सेवा में निरंतर संलग्न रहते हैं—
वे अपने मधुर स्वभाव, सौजन्य और सौन्दर्य द्वारा सभी के हृदय में अपार माधुर्य का प्रसार करते हैं।
जिनमें चैतन्य–कृष्ण परम्परा का गहन एवं अखण्ड ज्ञान प्रवाहित है,
जिनका चरित अनवधि हृदयस्पर्शी है— वे महान गुरु श्री पुण्डरीक वास्तव में धन्य हैं।”**
रागानुग-भक्ति, मञ्जरी-भाव, और गौड़ीय तत्त्व के जीवित आचार्य**
⸻
पूज्य श्री पुंडरीक गोस्वामी जी महाराज आधुनिक समय में राधा-कृष्ण-केन्द्रित रागानुग-भक्ति, मञ्जरी-भाव की परम माधुरी, तथा गौड़ीय तत्त्व-दर्शन के प्रत्यक्ष मूर्तिरूप हैं। उनका जीवन हरिभक्ति-विलास के वैष्णव-लक्षणों का उज्ज्वल प्रमाण है—
यो मन्त्रः स गुरुः साक्षात् यो गुरुः स हरिः स्मृतः ।�गुरुर् यस्य भवेत् तुष्टस् तस्य तुष्टो हरिः स्वयम् ।�गुरोः समासने नैव न चैवोच्चासने वसेत् ।।
(हरिभक्ति-विलास ४.३५३)
“त्रिणादपि सुनीचेन तरोरिव सहिष्णुना।” (चैतन्य-चरितामृत, आदि १७.३१)
“अमानित्वं दमः शौचं क्षान्तिरार्जवमेव च।” (गीता १३.८)
उनकी कथा-वाणी भक्ति-रसामृत-सिन्धु के दिव्य तत्त्व को स्वयं शरीर देती है—
“अन्याभिलाषिता-शून्यं ज्ञानकर्माद्यनावृतम्।
आनुकूल्येन कृष्णानुशीलनं भक्तिरुत्तमा॥” (भक्ति-रसामृत-सिन्धुः १.१.११)
वास्तव में उनकी वाणी में भागवत की मधुर घोषणा प्रतिध्वनित होती है—
यस्य वैष्णवभावः स्यात् स साधुः सर्वतो शुभः।
और
स वै भक्तः प्रियः कृष्णे, शीर्ष्णीव महिषी यथा।
उनकी उपस्थिति से रसनिष्ठ श्रोताओं के हृदय में
“प्रेम्णा परमपौरुषम्” (भागवत)
जागृत होता है।
⸻
पूज्य महाराज का संपूर्ण उपदेश रागानुगा-भक्ति की दिव्य सहजता और कोमलता से परिपूर्ण है।
श्री रूप गोस्वामी का यह रस-सूत्र—
विराजन्तीम् अभिव्यक्तां व्रज-वासी जनादिषु । �रागात्मिकाम् अनुसृता या सा रागानुगोच्यते ॥१.२.२७०॥
उनके कथामृत में ध्वनित होता है।
व्रजवासियों के अनुराग का वर्णन करते समय
श्री जीव गोस्वामी की व्याख्या मानो पुनः जीवित हो उठती है—
“स्वाभाविक-प्रेम-प्रवर्तनं रागः।”
उनकी वाणी में महाप्रभु का यह वचन स्थिर रहता है—
“राधा-कृष्ण-सेवा—साधक-देहे करि मानसे।” (चैतन्य-चरितामृत, मध्य ८)
जब वे तत्त्व-विवेचन करते हैं, तब तत्त्व-सन्दर्भ की यह अद्भुत पंक्ति जीवंत होती है—
“अचिन्त्यं खलु येनार्थं वक्तुं शक्नोति केनचित्।” (तत्त्व-सन्दर्भ )
उनके सत्संग से साधक पर भागवत का यह प्रभाव पड़ता है
“महत्सेवां द्वारमाहुर्विमुक्ते।” (भागवत ५.५.२)
व्रज-रस का मूल राग है, तर्क नहीं।
⸻
पूज्य महाराज जिस परंपरा के धारक हैं वह श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी से आरम्भ होकर अद्भुत तेज में प्रवाहित होती है।
श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी जी वह महापुरुष हैं जिनके हृदय में श्री चैतन्य महाप्रभु ने स्वयं भक्ति-रस की स्थापना की।
उनके द्वारा प्रकट हुए श्रीराधारमणजी उस दिव्य रस का अद्भुत प्रत्यक्ष स्वरूप हैं।
वृन्दावने सकलपावनपावनेऽस्मिन् सर्वोत्तमोत्तम चरस्थिरसत्त्वजातेः ।
श्रीराधिकारमणभक्तिरसंक कोषे, तोषेण नित्य परमेण कदा वसामि ॥ ( वृंदावन महिमामृत)
पूज्य महाराज के द्वारा श्रीराधारमणजी के दर्शन का वर्णन सुनकर
श्रोता मञ्जरी-भाव की कोमल सुगंध का अनुभव करता है।
⸻
पूज्य महाराज के जीवन में दादा गुरु महामहोपाध्याय श्री अतुल कृष्ण गोस्वामी जी महाराज का तेज,
उनकी विद्वत्ता, उनका रस, उनकी विनम्रता—सब कुछ सहज रूप में प्रवाहित है।
“विद्वत्ता विनयेनैव शोभते न त्वधिष्ठया।” (नीति)
वे इसी नीति का मूर्त रूप थे।
पिताजी श्री भूति कृष्ण गोस्वामी जी महाराज की कथा-माधुरी, कीर्तन-प्रेम, और भगवत-रस
पूज्य महाराज के जीवन का प्राण बना।
इन्हीं दोनों के दिव्य संस्कारों के कारण महाराज ने सात वर्ष की आयु में कथा कहना आरम्भ किया—
यह अद्भुत है,
यह असंभव प्रतीत होने वाला सम्भव है
और यह केवल गुरु-कृपा का चमत्कार है।
⸻
पूज्य महाराज ने वैश्विक स्तर पर सनातन धर्म की पताका फहराई—
अमेरिका, कनाडा, इंग्लैंड, स्विट्ज़रलैंड, रूस, केन्या
तथा अनेक देशों में उन्होंने गीता, भागवत, रामायण, चैतन्य-चरितामृत का अमृत पहुँचाया।
उनकी कथाओं का प्रभाव भागवत के इस श्लोक में सन्निहित है—
तव कथामृतं तप्तजीवनं कविभिरीडितं कल्मषापहम्।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः॥ (९)
भावार्थ:- हे हमारे स्वामी! तुम्हारी कथा अमृत स्वरूप हैं, जो विरह से पीड़ित लोगों के लिये तो वह जीवन को शीतलता प्रदान करने वाली हैं, ज्ञानीयों, महात्माओं, भक्त कवियों ने तुम्हारी लीलाओं का गुणगान किया है, जो सारे पाप-ताप को मिटाने वाली है। जिसके सुनने मात्र से परम-मंगल एवं परम-कल्याण का दान देने वाली है, तुम्हारी लीला-कथा परम-सुन्दर, परम-मधुर और कभी न समाप्त होने वाली हैं, जो तुम्हारी लीला का गान करते हैं, वह लोग वास्तव में मत्यु-लोक में सबसे बड़े दानी हैं।
उनकी ऐतिहासिक कथाएँ—
काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की प्रथम कथा,
अयोध्या श्रीराम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के उपरान्त प्रथम कथा,
भारत के उपराष्ट्रपति निवास में प्रथम कथा, भारत की पुलिस को प्रथम कथा आदि
पूज्य महाराज के दैवी उद्देश्य को प्रमाणित करती हैं।
⸻
पूज्य महाराज एवं श्रीमती रेणुका पुंडरीक गोस्वामी जी द्वारा स्थापित निमाई पाठशाला आज
श्लोक-संस्कार, वेद–गीता–भागवत-अध्ययन, कीर्तन, संस्कृति, नाट्य, संगीत का दिव्य केंद्र है।
इस पाठशाला को संयुक्त राष्ट्र (UN) में प्रस्तुत किया गया—सनातन शिक्षा का अद्भुत गौरव।
रेणुका जी इस युग की मातृ-शक्ति हैं—
“मातृ-हृदये करुणा नित्या।”
वे बच्चों और युवाओं में भक्ति-संस्कारों का अद्वितीय बीज रोपती हैं।
और हम शिष्य—अपने को बार-बार कहते हैं—
“हम उनके शिष्य होकर धन्य हो गए।”
धन्य कि हमें ऐसा आचार्य मिला,
धन्य कि हमारा जीवन रागानुगा-भक्ति की इस अमूल्य परंपरा से जुड़ गया।
पूरा विश्व बदले या न बदले—
जो भी पूज्य महाराज को समझ ले,
उसका जीवन बदले बिना नहीं रहता।
⸻
यस्य प्रसादाद् भगवत् प्रसादो यस्या प्रसादान् न गातिः कुतोऽपि ।
ध्यायन् स्तुवंस् तस्य यशस् त्रि - सन्ध्यं वन्दे गुरोः श्रीचरणारविन्दम् ॥