04/07/2024
बिहार में भड़भड़ाकर गिरते पुल (Bridges) , समाज के गिरते चरित्र का जीवंत उदाहरण?
परम्श्रद्धेय गुरुदेवजी कई बार चर्चाओं में कहा कि प्रभाकर तुम अपने देश-प्रदेश के विकास के बारे में तो जानते हो लेकिन यहाँ गिरते चरित्र को तुम नहीं देख पा रहे हो। उन्होंने एक बहुत ही उम्दा उदाहरण दिया कि देखो अग्रजों ने जो पुल या रेलवे स्टेशन बनाये वो कैसे ईमानदारी से काम किया वो भी दूसरों के लिए जो आज भी सौ वर्षों के बाद भी काम आ रहा है, लेकिन भारतीय अपने देश के लिए भी बिल्कुल ईमानदार नहीं।
बात कितनी सही और वर्तमान में आँखों के सामने सच्चाई?
आइये ! जानते है मूल कारण:
समाज का अतिभौतिकवादी होना-आज कोई भी माँ-बाप अपने बच्चों को डॉक्टर-इंजीनियर इसलिए नहीं बनाना चाहते कि वो समाज और देश के लिए सेवा भाव से काम करेगा और फलेगा-फूलेगा बल्कि इस प्रोफेशन में खूब धन दौलत बनाएगा? और वही काम आज का ज़्यादातर इंजीनियर / प्रोफेशनल कर भी रहा है। और इसी समाज की उपज के कारण घटिया निर्माण और इसके पीछे अधिकारी, इंजीनियर, ठेकेदार एवं नेतागण की मिलीभगत।
मैं जहां तक समझता हूँ कि ईमानदार चरित्र का निर्माण किए बग़ैर अच्छे एवं मज़बूत चीजों का निर्माण असंभव?
आपका क्या ख़्याल है इसके समाधान के लिए , आपका सुझाव आमंत्रित🇮🇳🙏