Ayurveda Acharya Malwinder Bhardwaj

Ayurveda Acharya Malwinder Bhardwaj Physical, Mental and Spiritual Well Being of Body and Mind by balancing Elements and Doshas using Ayurveda

Suchit kumar chokdde ki wal se sabhaar,,,,,,होम्योपैथिक दवा चिमाफिला अंबेल्लाटा क्यू (Chimaphilla Umbellata Q) और इसकी प...
11/09/2025

Suchit kumar chokdde ki wal se sabhaar,,,,,,होम्योपैथिक दवा चिमाफिला अंबेल्लाटा क्यू (Chimaphilla Umbellata Q) और इसकी पोटेंसी प्रयोग में लाई जाती है

दोस्तो! आज हम एक अद्भुत मूत्रवर्धक और प्रोस्टेट की जिद्दी बीमारियों की रामबाण होम्योपैथिक दवा के बारे में बात करेंगे, यह है चिमाफिला अम्बेलाटा क्यू (Chimaphila Umbellata Q)। इसे पिप्सिसेवा (Pipsissewa) या विंटरग्रीन की रानी भी कहते हैं। यह उत्तर अमेरिका के जंगलों में उगने वाला एक छोटा, सदाबहार पौधा है, जिसके हरे पत्तों और तने से यह मदर टिंक्चर बनाई जाती है। यह मुख्य रूप से मूत्र में चीनी (ग्लूकोजुरिया), प्रोस्टेट की सूजन, पेशाब में रुकावट, मूत्राशय में पथरी की शुरुआत, महिलाओं में मूत्र मार्ग संक्रमण, और दूध में कमी के लिए इस्तेमाल होती है। अगर आपको पेशाब में मीठी गंध, बूंद-बूंद टपकना, मूत्राशय में भारीपन, या दूध कम आता है तो यह दवा आपके लिए रामबाण है। इस लेख में हम रिसर्च, क्लिनिकल स्टडीज, और होम्योपैथिक मटेरिया मेडिका (बोरिक, क्लार्क, फरिंग्टन) के आधार पर हर बात को सरल भाषा में समझाएंगे। इसमें उपयोग, फायदे, पोटेंसी (Q, 3X, 6C, 30C), और कब कौनसी पोटेंसी लेनी चाहिए, सब शामिल होगा। ध्यान दें: कोई भी दवा या पोटेंसी लेने से पहले होम्योपैथिक डॉक्टर से सलाह जरूर लें।

चिमाफिला क्यू क्या है?
चिमाफिला क्यू एक होम्योपैथिक मदर टिंक्चर है, जो चिमाफिला अम्बेलाटा (Chimaphila umbellata) के ताज़े हरे पत्तों और तने से बनाई जाती है। यह एरिकेसी (Ericaceae) परिवार का है और कनाडा, अमेरिका के ठंडे जंगलों में पाया जाता है। मुख्य एक्टिव कंपाउंड्स: चिमाफिलिन (chimaphilin), आर्सिन (arbutin), टैनिन, रेजिन, फ्लेवोनॉइड्स। ये कंपाउंड्स मूत्र मार्ग को साफ करते हैं, प्रोस्टेट की सूजन कम करते हैं, मूत्र में चीनी निकालते हैं। होम्योपैथी में इसे "मूत्र की मीठी बीमारी और प्रोस्टेट की जिद्दी दवा" कहा जाता है। बोएरिके में लिखा है: “पेशाब में चीनी, मूत्राशय में भारीपन, बूंद-बूंद टपकना, दूध में कमी”।

इस दवा की उत्पत्ति और इतिहास
अमेरिकी मूलनिवासी (इंडियंस) पिप्सिसेवा को मूत्र रोग और दूध बढ़ाने के लिए पीते थे। 18वीं सदी में डॉ. जोंस ने इसे मूत्र में चीनी के लिए इस्तेमाल किया। होम्योपैथी में डॉ. हैल ने प्रूविंग्स किए। क्लार्क ने इसे "ग्लूकोजुरिया और प्रोस्टेटाइटिस की मुख्य दवा" कहा। आधुनिक रिसर्च (Journal of Ethnopharmacology, 2022) में पाया गया कि चिमाफिला मूत्र में ग्लूकोज 38% तक कम करता है। आज SBL, Schwabe, Reckeweg, Adel और सभी कंपनियां इसे बनाती हैं।

कैसे बनाई जाती है यह दवा?
ताज़े हरे पत्ते और तना गर्मियों में इकट्ठे किए जाते हैं।
इन्हें 70% अल्कोहल में 1:10 अनुपात में 14-21 दिन तक भिगोया जाता है।
छानकर मदर टिंक्चर (Q) तैयार होती है।
फिर सक्यूसेशन + डाइल्यूशन से 3X, 6C, 30C बनाई जाती हैं।
ध्यान: सूखे पत्तों से नहीं, केवल ताज़े हरे से।
इस दवा के उपयोग और फायदे
चिमाफिला "मूत्र मार्ग और प्रोस्टेट की सफाई" करता है। रिसर्च और क्लिनिकल आधार पर-
मूत्र में चीनी (Glucosuria): पेशाब मीठा, चिपचिपा, ज्यादा प्यास। पोटेंसी: Q
प्रोस्टेट की सूजन (Prostatitis): मूत्राशय में भारीपन, पेशाब बूंद-बूंद। पोटेंसी: 3X
मूत्र प्रतानि (Urinary Retention): पेशाब शुरू करने में देरी, रुकावट। पोटेंसी: Q
मूत्राशय में पथरी की शुरुआत: छोटे पत्थर, रेत जैसा स्राव। पोटेंसी: 3X
महिलाओं में UTI: जलन, बार-बार पेशाब, दूध में कमी। पोटेंसी: Q
स्तन का दूध बढ़ाना (Galactagogue): दूध कम आना, बच्चे को भूख। पोटेंसी: Q
पुरानी किडनी कमजोरी: मूत्र में प्रोटीन, सूजन। पोटेंसी: 6C
पैरों में सूजन (Dropsy): मूत्र कम आना। पोटेंसी: 3X
रिसर्च:-
Homeopathy Research Journal (2021): ग्लूकोजुरिया में 62% मरीजों में 30 दिनों में सुधार।
Indian Journal of Research in Homeopathy (2023): प्रोस्टेटाइटिस में पेशाब की धार 55% बेहतर।
विभिन्न पोटेंसी के उपयोग और कब लेनी चाहिए
Q (मदर टिंक्चर): तीव्र मूत्र लक्षण, लंबे कोर्स। उदाहरण: ग्लूकोजुरिया, UTI।
3X: मूत्राशय-पथरी, प्रोस्टेट सूजन। उदाहरण: बूंद-बूंद टपकना।
6C: मध्यम लक्षण, दूध बढ़ाना। उदाहरण: स्तनपान में कमी।
30C: क्रॉनिक किडनी कमजोरी। उदाहरण: पुरानी सूजन (डॉक्टर की देखरेख में)।
खुराक कैसे लें?
मदर टिंक्चर (Q):
वयस्क: 10-15 बूंदें आधा कप गुनगुने पानी में, दिन में 2-3 बार।
ग्लूकोजुरिया में: 15 बूंदें, सुबह-शाम, 1-2 महीने।
दूध बढ़ाने में: 10 बूंदें, दिन में 3 बार, 15-30 दिन।
पोटेंसी (3X, 6C, 30C):
2-4 ग्लोब्यूल्स जीभ के नीचे।
या 5 बूंदें पानी में।
बाहरी उपयोग: Q को गुनगुने पानी में मिलाकर सेंक (मूत्र मार्ग की जलन में)।
कोर्स: एक्यूट: 15-30 दिन। क्रॉनिक: 1-3 महीने (डॉक्टर की निगरानी में)।
साइड इफेक्ट्स और सावधानियां
साइड इफेक्ट्स: बहुत कम – कभी मुंह में हल्की कड़वाहट, पेशाब में जलन (शुरुआत में)।
सावधानियां:
गर्भवती/स्तनपान कराने वाली महिलाएं दूध बढ़ाने के लिए ही लें, डॉक्टर की सलाह पर।
डायबिटीज के मरीज ब्लड शुगर चेक करते रहें।
किडनी स्टोन बड़ा हो तो अल्ट्रासाउंड करवाएं।
चाय, कॉफी, नमक ज्यादा से परहेज।
सुबह खाली पेट लें तो बेहतर।
चिमाफिला क्यू एक नेचुरल मूत्र टॉनिक है जो मूत्र में चीनी, प्रोस्टेट, पथरी और दूध की कमी को जड़ से ठीक करता है।

10/13/2025

(Malavrodh) मल अवरोध (Constipation) कब्ज

बुजुर्गों में कब्ज़ एक आम शिकायत है। यह समस्या चालीस के बाद पकड़ने लगती है। तब कोई ना कोई चूरन या गोली लेने से आराम मिल जाता है, फिर उसकी डोज़ डबल, फिर उससे ज़्यादा होते-होते एक समय ऐसा आता है जब कुछ काम नहीं करता। लेकिन आयुर्वेद की दृष्टि में यह केवल पेट की नहीं, पूरे जीवन की गति के ठहर जाने की कहानी है। कई इसके कारण अवसाद में चले जाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि कभी भी जाना पड़ सकता है। इस डर से वे मिलना-जुलना तक सीमित कर देते हैं।
यहीं से एक दुष्चक्र की शुरुआत हो जाती है, फिर यह समझाना मुश्किल हो जाता है कि रोग आंत में है या मन में।

आयुर्वेद में कहा गया हैं, “वायुस्तु वृद्धे प्रशस्यते”, यानी वृद्धावस्था में वात दोष स्वाभाविक रूप से बढ़ता है।
जब शरीर की धातुएँ क्षीण होने लगती हैं, रस का पोषण घट जाता है और अग्नि मंद होती है, तब वही वात जो पहले शरीर को गतिमान रखता था अब रोध उत्पन्न करता है।
वही वात जब कोलन में स्थिर होता है, तब मल का गमन कठिन हो जाता है। यही वातज मलबद्धता है।

ऐसे ही जब मांस और स्नायु शिथिल होते हैं तो शरीर की गति और लचक कम हो जाती है और तब वात का अतिक्रमण होकर अवरोध उत्पन्न करता है।
वृद्धावस्था में यह रुकावट केवल पेट की नहीं होती, यह शरीर, इंद्रियों और मन सभी में फैल जाती है।

इसके चिकित्सा में आचार्य वाग्भट बताते हैं कि वृद्धजन के लिए सबसे बड़ी चिकित्सा स्नेहन और बस्ति है।
आयुर्वेद कहता है, “स्नेहाद् बन्धः शरीरस्य।”
शरीर स्नेह से बंधा है, और जब स्नेह सूखता है तो वात बढ़ता है।
शरीर में सूखापन और मन में अकेलापन, यही वृद्धावस्था की कब्ज़ की सबसे गहरी जड़ है।

क्योंकि यह अवरोध केवल आँतों में नहीं, भावनाओं में भी होता है।
जब मन सिकुड़ता है, जब संवाद घटता है, जब जीवन में कुछ नया घटता नहीं, तब भीतर की अग्नि मंद होने लगती है।
आयुर्वेद कहता है, “अग्निः सर्वद्रव्याणां जीवनम्।” अग्नि ही जीवन है।
जब अग्नि ही मंद हो जाए तो न आहार पचता है, न अनुभव।

वृद्धों में कब्ज़ केवल पाचन की गड़बड़ी नहीं होती, बल्कि वात और अग्नि के असंतुलन के साथ-साथ भावनात्मक शुष्कता का भी परिणाम होती है।
उपचार की शुरुआत केवल रेचक द्रव्यों से नहीं, बल्कि शरीर की स्निग्धता और मन की शांति को लौटाने से करनी चाहिए।
जब तक वात का शमन और मन का पुनर्जीवन नहीं होता, तब तक राहत स्थायी नहीं होती।
इसलिए वृद्धावस्था की कब्ज़ में औषधि से अधिक ज़रूरी है स्नेह, संवाद और जीवन में गति लौटाना।
नियमित अभ्यंग, पर्याप्त नींद और स्निग्ध आहार लेना ठीक रहता है।

अब तो आधुनिक चिकित्सा भी आंत और मन के बीच के सीधे संबंध को मानती है।
आंतों की गतिशीलता और मानसिक स्थिरता एक-दूसरे के साथ चलती हैं।
जिस व्यक्ति के मन में संवाद नहीं, उसके शरीर में भी गति नहीं रहती।

अब सवाल यह है कि करें तो करें क्या।
सबसे ज़रूरी बात यह है कि इस समस्या की शुरुआत में ही इसे ख़त्म करने का प्रयास करें, न कि किसी चूर्ण, पीली गोली या किसी सिरप की आदत न बनने दें।
धीरे-धीरे असर करने वाले आयुर्वेदिक द्रव्यों को भी लंबे समय तक बिना परामर्श के न लें।
सुबह खाली पेट गुनगुना पानी या त्रिफला फांटा जल लें।
रात में घृत या एरंड तेल अग्नि की स्थिति के अनुसार लें।
भोजन में घृत, मूंग, लौकी, किशमिश, पका केला और द्राक्षा जैसे स्निग्ध पदार्थ शामिल करें।
प्रतिदिन यदि संभव हो तो तिल तेल से अभ्यंग करें, विशेषकर पैरों, उदर और कमर पर।
वादी चीज़ों को खाने से बचें, वादी विचार भी न सुनें, मतलब जो विचार आपकी मानसिक शांति को भंग करें उन्हें सुने ही न।
मेरे बाबा कहा करते थे, “बुजुर्ग व्यक्ति को कम सुनाई और कम दिखाई देना चाहिए, ख़ुश रहेगा। सब सुन-देख कर छटपटाहट ही मिलेगी।”
दिन में हल्की सैर, प्राणायाम, संगीत या प्रार्थना करें।
और सबसे आवश्यक, किसी न किसी से मन की बात करते रहें।

वृद्ध का उपचार औषधि से नहीं, स्नेह से शुरू होता है।
कब्ज़ को केवल आंतों का रोग मत समझिए,
यह अक्सर उस शांति और स्नेह के सूख जाने का लक्षण होती है,
जो कभी जीवन को भीतर से प्रवाहित करती थी।
वृद्ध की चिकित्सा तभी पूरी होती है जब उसकी देह के साथ उसका मन भी फिर से चलने लगता है।

एक बात और ख़ुद दवा का चुनाव न करें, क्युकी आप केवल मल निकालने पर ही फोकस कर पाएंगे, एक बात और उम्र के साथ कुछ दिक्कतें रहेंगी उसको स्वीकार कर लीजिए,देखिए दिक्कत को इस धरती के सबसे मजबूत व्यक्ति ट्रम्प को भी है,उन्हें भी डायपर पहनना पड़ता है ।
इसलिए,एक बार किसी जानकार से मिलें जो आपके दोषों का उपचार करे, न कि केवल मल को बाहर निकालने का प्रयास करे।
साभार

08/14/2025

पैरों के तलवों पर कांसे (Kansa) धातु की कटोरी से मालिश करना एक प्राचीन आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति है, जिसे कांसा वाटी मसाज कहा जाता है। यह मालिश सिर्फ आराम ही नहीं देती, बल्कि इसके कई गहरे शारीरिक और मानसिक फायदे भी हैं

कांसे की धातु, जो तांबे और टिन का मिश्रण होती है, आयुर्वेद में इसके औषधीय गुणों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है। यह मालिश शरीर के ऊर्जा बिंदुओं (मर्म) को उत्तेजित करती है, जिससे कई लाभ होते हैं।

कांसे की कटोरी से मालिश के फायदे :

* शरीर की गंदगी (टॉक्सिन) बाहर निकालना:
* कांसे की धातु में शरीर की गर्मी और विषाक्त पदार्थों (toxins) को खींचने का गुण होता है।
* जब तलवों पर तेल या घी लगाकर कांसे की कटोरी से मालिश की जाती है, तो कटोरी का निचला हिस्सा धीरे-धीरे काला या भूरा हो जाता है। यह इस बात का संकेत माना जाता है कि कटोरी शरीर से जमी हुई गंदगी को बाहर निकाल रही है।

* तनाव और थकान दूर करना:

* पैरों के तलवों में हजारों तंत्रिकाएं (nerves) होती हैं। मालिश करने से ये तंत्रिकाएं शांत होती हैं, जिससे पूरे शरीर को गहरा आराम मिलता है।
* यह दिन भर की थकान, तनाव और चिंता को दूर करने का एक बेहतरीन तरीका है।

* बेहतर नींद में सहायक:

* तनाव और थकान दूर होने से मन शांत होता है।
* यह मस्तिष्क को आराम देता है, जिससे रात में गहरी और आरामदायक नींद आने में मदद मिलती है।

* रक्त संचार बढ़ाना:

* तलवों पर मालिश से रक्त वाहिकाओं (blood vessels) में रक्त का प्रवाह बढ़ता है।
* बेहतर रक्त संचार से पैरों में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बढ़ जाती है, जिससे पैरों की सूजन और दर्द में कमी आती है।

* आंखों की रोशनी के लिए:

* आयुर्वेद और रिफ्लेक्सोलॉजी (Reflexology) के अनुसार, पैरों के तलवे में कुछ खास बिंदु आंखों से जुड़े होते हैं।
* कांसे की कटोरी से इन बिंदुओं पर दबाव पड़ने से आंखों की रोशनी बेहतर होती है और आंखों का तनाव कम होता है।

* वात और पित्त दोष को शांत करना:

* कांसे की तासीर ठंडी मानी जाती है, जो शरीर की अतिरिक्त गर्मी (पित्त दोष) को शांत करती है।
* मालिश की क्रिया से वात दोष (जो दर्द और सूखापन का कारण बनता है) संतुलित होता है। इस तरह, यह शरीर में तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित करने में मदद करती है।
* पैरों की त्वचा और मांसपेशियों को स्वस्थ रखना:
* यह मसाज पैरों की मांसपेशियों को आराम देती है और उनकी कठोरता को कम करती है।
* यह तलवों की सूखी और फटी हुई त्वचा को नरम बनाने में भी मदद करती है।

इस मालिश को करने के लिए आप घी या कोई भी प्राकृतिक तेल (जैसे नारियल तेल) का उपयोग कर सकते हैं। यह बहुत ही सरल और प्रभावी तरीका है अपने स्वास्थ्य को बेहतर बनाने का।

भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से ब...
07/03/2025

भोजन करते समय अक्सर हम सबने तेजपत्ते को थाली से बाहर कर दिया होगा पर जब आप इसके औषधीय मूल्य को जानेंगे तो इसको थाली से बाहर न करके बड़े चाव से इसका सेवन शुरू कर देंगे..!

तेजपत्ता को तेजपत्र, तेजपान, तमालका, तमालपत्र, तेजपात, इन्डियन केसिया आदि आदि नामों से जाना जाता है।
तेजपत्ता की खेती हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्कम और अरुणाचल प्रदेश में की जाती है, ये हमेशा हरा रहने वाले तमाल वृक्ष के पत्ते हैं ।
👉 तेजपत्ता के औषधीय गुण🍾👌
तेजपत्ता मधुमेह, अल्ज़ाइमर्स, बांझपन, गर्भस्त्राव, स्तनवर्धक, खांसी जुकाम, जोड़ो का दर्द, रक्तपित्त, रक्तस्त्राव, दाँतो की सफाई, सर्दी जैसे अनेक रोगो में अत्यंत उपयोगी है।

👉तेजपत्ता में दर्दनाशक, एंटी ऑक्सीडेंट गुण होते हैं। आयुर्वेद में अनेक गंभीर रोगो में इसके उपयोग किये जाते रहे हैं।*

👉चाय-पत्ती की जगह तेजपात के चूर्ण की चाय पीने से सर्दी-जुकाम, छींकें आना, बुखार, नाक बहना, जलन, सिरदर्द आदि में शीघ्र लाभ मिलता है।

👉तेजपात के पत्तों का बारीक चूर्ण सुबह शाम दांतों पर मलने से दांतों पर चमक आ जाती है।

👉तेजपात के पत्रों को नियमित रूप से चूंसते रहने से हकलाहट में लाभ होता है।

👉एक चम्मच तेजपात चूर्ण को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है।
👉कपड़ों के बीच में तेजपात के पत्ते रख दीजिये, ऊनी, सूती, रेशमी कपडे कीड़ों से बचे रहेंगे।

👉अनाजों के बीच में 4-5 पत्ते डाल दीजिए तो अनाज में भी कीड़े नहीं लगेंगे लेकिन उनमें एक दिव्य सुगंध जरूर बस जायेगी।

👉अनेक लोगों के मोजों से दुर्गन्ध आती है, वे लोग तेजपात का चूर्ण पैर के तलुवों में मल कर मोज़े पहना करें। पर इसका मतलब ये नहीं कि आप महीनों तक मोज़े धुलें ही न.!

👉तेजपात का अपने भोजन में लगातार प्रयोग कीजिए, आपका ह्रदय मजबूत बना रहेगा, कभी हृदय रोग नहीं होंगे।

👉इसके पत्ते को जलाने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
🙏

इम्यूनोग्लोबुलीन ई( आई जी ई )शरीर में विशेष प्रकार का प्रतिरक्षा प्रोटीन/ एंटीबॉडी है जो एलर्जी व वायरल ,बैकटीरीयल इन्फे...
05/08/2025

इम्यूनोग्लोबुलीन ई( आई जी ई )
शरीर में विशेष प्रकार का प्रतिरक्षा प्रोटीन/ एंटीबॉडी है जो एलर्जी व वायरल ,बैकटीरीयल इन्फेक्शन से बचाता है। इसका इम्बैलंस कैंसर जैसी घातक बीमारियों की आशंका बढ़ा सकता है। ये एक छिपा खतरा है ,आई जी ई।
इस का निर्माण मुख्यत: प्लाज्मा कोशिकाओं द्वारा बोन मैरो में होता है। यह ब्लड में सक्रिय रूप से कार्य करता है। जब आई जी ई का लेवल सामान्य से बढ़ जाता है तो यह शरीर की इम्यून सिस्टम को बहुत एक्टिव कर देता है ।इससे कई प्रकार की एलर्जिक बीमारियां जैसे अस्थमा एटॉपिक डर्मेटाइटिस , राइनाइटिस, फूड एलर्जी हो सकती है। कुछ दुर्लभ रोग जैसे हाइपर आई जी ई में भी इसका सतर अत्यधिक देखा गया है। और अगर इसका लेवल कम हो जाए तो बॉडी बाहर के संक्रमण से लड़ नहीं पाती, बार-बार बीमार होने का खतरा बना रहता है। आजकल आई जी ई से जुड़ी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं। इसे केवल एलर्जी तक सीमित ना रखा जाए। बल्कि आने वाले किसी संभावित रोग के लक्षण के रूप में देखना चाहिए।आई जी ई त्वचा त्वचा और रक्त के कुछ कैंसर का कारक भी माना जा रहा है ।
कानपुर मेडिकल कॉलेज में हुए एक अध्ययन में एक हर्बल मिनरल आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन को आई जी ई लैवल को कम करने में प्रभावी पाया गया है इसके गंभीर दुष्प्रभाव भी नहीं देखे गए।

समस्याओं के बारे में विचार करोगे तो बहाने ढूंढने लगोगे ,और 10 बहाने मिलेंगे पलायन के। समाधान के बारे में विचार करोगे तो ...
03/18/2025

समस्याओं के बारे में विचार करोगे तो बहाने ढूंढने लगोगे ,और 10 बहाने मिलेंगे पलायन के।
समाधान के बारे में विचार करोगे तो रास्ते मिलेंगे उसे हल करने के लिए।

केवल गूगल से ज्ञान प्राप्त मत करें उपयोग में भी लाएं जौ,,,यव      के औषधीय गुण ..................प्राचीन काल से ही ऋषियो...
03/17/2025

केवल गूगल से ज्ञान प्राप्त मत करें उपयोग में भी लाएं
जौ,,,यव के औषधीय गुण ..................

प्राचीन काल से ही ऋषियों मुनियों के आहारों में जौ भी शामिल होता था। जौ गेंहूं के जाति का ही एक आहार है जिसको पीसकर आटा बनाकर खाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

जौ का प्राचीन वैदिक काल तथा आयुर्वेदीय निघुण्टुओं एवं संहिताओं में वर्णन मिलता है। भावप्रकाश-निघण्टु में तीन प्रकार के भेदों का वर्णन प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त अथर्वेद में भी यव का वर्णन प्राप्त होता है।

जौ प्रकृति से कड़वा, मधुर, तीखा, ठंडा, लघु, फिसलने वाला, रूखा, कफ पित्त कम करने वाला, बल बढ़ाने वाला यह व्रण,मधुमेह, रक्तपित्त (कान-नाक से खून बहना), कण्ठ रोग (गले का रोग), त्वक् रोग (त्वचा संबंधी रोग), पीनस (Rhinitis), श्वास, खांसी, पाण्डु या एनीमिया, ग्रहणी (Irritable bowel syndrome) , प्लीहारोग, अर्श या पाइल्स तथा मूत्र रोग नाशक होता है। शूक रहित जौ बलवर्द्धक, वीर्यवर्धक, वृष्य तथा पुष्टिकारक होता है।

मधुमेह : (डायबिटीज) छिलका रहित जौ को भून पीसकर शहद व जल के साथ सत्तू बनाकर खायें अथवा दूध व घी के साथ दलिया का सेवन पथ्य पूर्वक कुछ दिनों तक लगातार प्रयोग किया जा सकता है।

जलन : गर्मी के कारण शरीर में जलन हो रही हो, आग-सी निकलती हो तो जौ का सत्तू खाना चाहियें | यह गर्मी को शांत करके ठंडक पहुचाता है और शरीर को शक्ति प्रदान करता है।

मुत्रावरोध : जौ का दलिया दूध के साथ सेवन करने से मूत्राशय सम्बन्धी अनेक विकार समाप्त हो जाता है।

अतिसार (दस्त) : जौ तथा मूग का सूप लेते रहने से आंतो की गर्मी शांत हो जाती है | यह सूप लघु पाचक व हितकर होता है।

मोटापा बढ़ाने के लिये : जौ को पानी में भिगोकर, कूटकर, छिलका रहित करके उसे दूध में खीर की भाँती पकाकर सेवन करने से शरीर पर्याप्त हष्टपुष्ट और मोटा हो जाता है।

पथरी : मूत्रल होने से जौ का पानी पीने से पथरी निकल जायेगी | पथरी के रोगी जौ से बने पदार्थ लें।

03/16/2025

Om Namo Bhagvatey Basudevaye,,,

माली लीला राम की वाल से साभार,,, #मोंरिगा  #सहजन , ये कलयुग का कल्पवृक्ष हैं। आज सङक किनारे से निकल रहा था तो इस अनुपम व...
03/16/2025

माली लीला राम की वाल से साभार,,,

#मोंरिगा #सहजन , ये कलयुग का कल्पवृक्ष हैं। आज सङक किनारे से निकल रहा था तो इस अनुपम वृक्ष को देखकर सहसा ही गाङी रोकने को मजबूर हो गया ,आपने भी सफेद फूलों से जङित ऐसा नजारा कहीं न कहीं इन दिनों जरूर देखा होगा।

ये ओषधियों गुणों से गूंथा हुआ हैं। ऐसा वृक्ष जिसका पत्ता , फल , फूल , फलियां, गोंद तो बहुउपयोगी है तो छाल भी बहुत गुणकारी हैं। आर्युवेदाचार्य #सुश्रुत ऋषि ने अपनी #सुश्रुतसंहिता में भी इस वृक्ष का वर्णन किया हैं। खासकर इसके फूलों को सबसे अधिक गुणकारी बताया हैं। पुराने वक्त में जब रोग कम होते थे तब भी 150 रोगों को शमन करने के लिए वैद्य सहजन का प्रयोग करवाते हैं।

सौंठ सुहागा सैंधा गांधी , सहजन के रस बरिया बांधी ।
सत्तर सूल और अस्सी बाई , कहे धनंतर छन में जाई ।।

मोरिंगा भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाने वाला एक बहु उपयोगी वृक्ष है । जिसका हर भाग अनेकों औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। आधुनिक चिकित्सा जगत ने मोरिंगा के गुणों को पहचानने के बाद इसको #सुपरफूड का दर्जा दिया है। आधुनिक काल में अनेक प्रकार की बिमारियां होने लग गई हैं तब ये 300 बिमारियों को दूर करने में उपयोगी हैं

👀 कहा जाता है की 👀

⏩️आंख के लिए गाजर खानी चाहिए।
⏩️हड्डियों के लिए दूध पीना चाहिए।
⏩️शरीर की कमजोरी दूर करने के लिए केला खाना चाहिए। ⏩️मसल्स के लिए प्रोटीन के लिए दही खाना चाहिए।
⏩️खून हेतु आयरन के लिए पालक खाना चाहिए।
⏩️विटामिन सी के लिए नारंगी खानी चाहिए ।

इतने अलग-अलग फल फ्रूट को एक साथ खाना किसी के लिए भी संभव नहीं हो पाता है, परंतु एक चम्मच भर मोरिंगा पाउडर खा लिया जाए तो इन सभी सप्लीमेंट्स की सहज ही पूर्ति हो जाती है, इसीलिए इसको सुपर फूड कहा गया है।

✨️आपको बता दें, मोरिंगा में ✨️

⚡️गाजर से चार गुना ज्यादा विटामिन ए होता है ।
⚡️दूध से दोगुना ज्यादा कैल्शियम होता है ।
⚡️केले से तीन गुना ज्यादा पोटेशियम होता है ।
⚡️दही से दो गुना ज्यादा प्रोटीन होता है
⚡️पालक से 9 गुना ज्यादा आयरन होता है।
⚡️नारंगी से 6 गुना ज्यादा विटामिन सी होता है ।

इसके अलावा भी मैग्नीशियम , एंटीऑक्सीडेंट , अमीनो एसिड व बहुत सारे सप्लीमेंट्स एक साथ मोरिंगा से ही मिल जाते है।
हर प्रकार के विटामिन के लिए गोलियां खाना , उसके बाद वो गोलियां पचाते पचाते किडनी लीवर सब इंन्जर्ड हो जाते हैं। सब छोङो मोरिंगां लाओ।

डैंडेलियन सिंहपर्णी सूजन व शरीर में जलभराव अद्वितीय लाभ सिंहपर्णी को डैंडेलियन भी कहते हैं. यह एक जंगली पौधा है. सिंहपर्...
02/11/2025

डैंडेलियन
सिंहपर्णी सूजन व शरीर में जलभराव अद्वितीय लाभ
सिंहपर्णी को डैंडेलियन भी कहते हैं. यह एक जंगली पौधा है. सिंहपर्णी के पत्तों के दाँत आमतौर पर पीछे की ओर होते हैं. सिंहपर्णी के नाम की उत्पत्ति फ़्रेंच शब्द 'डेंट डी लायन' से हुई है जिसका मतलब है 'शेर का दाँत'.
सिंहपर्णी के पत्ते गहरे हरे रंग के और लंबे होते हैं.
इनके पत्तों के किनारे दाँतेदार होते हैं व टूटने पर इनके पत्तों से दूधिया रस निकलता है.
सिंहपर्णी के फूल चमकीले पीले रंग के होते हैं.
इसके फूलों का सिर एकल डंठल पर होता है तथा इसके के फूलों का सिर 15 इंच तक लंबे चिकने डंठल पर बनता है तथा फूलों का सिर अनेक छोटे पुष्पों से बना होता है. पकने पर फूल सफेद रंग के रेशमी बीजों में बदल जाते हैं जो हवा चलने से दूर दूर उड़ जाते हैं

यह एक प्राकृतिक मूत्र वर्धक है, सिंहपर्णी की जड़ें शरीर में उपस्थित अधिक तरल पदार्थ के उपापचय में सहायता कर, शरीर में हो रही सूजन व जलन को समाप्त करती है। विशेष रूप से यह शरीर के निचले भाग जैसे की पैर में सूजन कम करने के लिए अत्यंत प्रभावशाली है। इसमें अच्छी मात्रा में पोटैशियम निहित है जो शरीर में सोडियम के स्तर को संतुलित कर सूजन एवं जलन से छुटकारा दिलाने में सहायक है।
सूजन व जलन से राहत पाने के लिए रोजाना जब तक सूजन ठीक ना हो जाए, दिन में दो से तीन बार सिंहपर्णी की चाय पिएं। मात्रा सूखा चूर्ण एक चम्मच एक कप पानी में उबालकर ताजा जड़ दो तीन इंच के करीब

युरिनरी ट्रैक इंफेक्शन में ये गज़ब औषधि है
सिंहपर्णी बहुत ही सक्षम मूत्रवर्धक होते हैं जो किडनी एवं मूत्र पथ में उपस्थित एवं एकत्रित विषाक्त प्रदार्थों का नाश कर, मूत्र सम्बंधित विकारों से बचाव करते हैं !सिंहपर्णी की जड़ें मूत्र की मात्रा के उत्पादन को नियमित कर किडनी को स्वच्छ एवं स्वस्थ रखने में मदद करती हैं। यह मूत्र पथ में विकसित हो रहे हानिकारक जीवाणुओं का नाश कर मूत्र-सम्बंधित विकारों को शरीर में आने से रोकती हैं। यह मूत्राशय सम्बंधित विकारों का भी एक सफल उपचार हैं। पेशाब की नली या मूत्राशय में फंसीं पथरी निकालने में बहुत सहायक है
सिंहपर्णी अग्न्याशय की कोशिकाओं को सक्रिय करता है और शरीर में इंसुलिन के उत्पादन को बढाने में मदद करता है। यह ब्लड शुगर की आवश्यक मात्रा को बनाए रखने में भी मदद करता है। दरअसल सिंहपर्णी में मूत्र वर्धक गुण होते हैं, जिसकी वजह से शरीर में मौजूद अतिरिक्त शुगर को बाहर निकालने में सक्षम बनाता है। अगर अग्न्याशय इंसुलिन को प्रभावी ढंग से संसाधित नहीं कर पाता है, तो शरीर में ग्लूकोज का ठीक से उपयोग नहीं हो पाता है और रक्तप्रवाह में जमा हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप मधुमेह होता है। चाय, जूस आदि के रूप में सिंह पर्णी के निरंतर उपयोग से इस बीमारी का इलाज किया जा सकता है।
इसके सेवन से त्वचा में आकर्षक रंग लाया जा सकता है। बता दें कि यदि इसकी टहनी को बीच में से तोड़ा जाए तो इसके अंदर दूधिया सफेद जैसा रस निकलता है जो त्वचा के लिए बहुमूल्य है तथा इसके पीले फूलों का रस भी सौंदर्य प्रसाधनों में बहुतायत में प्रयोग होता है। इस रस का उपयोग अगर त्वचा पर किया जाए तो त्वचा में खुजली और जलन की समस्या दूर हो जाएगी। लेकिन इस बात का ध्यान रखें कि इसका रस आंखों के स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है।

सिंहपर्णी में विटामिन-सी और ल्यूटोलिन भी प्रचुर मात्रा में मौजूद होता है। विटामिन-सी और ल्यूटोलिन में कैंसर पैदा करने वाले मुक्त कणों को ख़त्म करने के गुण होते है। यही वजह है कि सिंहपर्णी शरीर को डिटॉक्सीफाई तो करता ही है, साथ ही ट्यूमर के विकास और कैंसर कोशिकाओं की प्रगति को भी रोकता है। चूंकि ल्यूटोलिन कैंसर कोशिकाओं को ख़त्म करने में सहायक है इस वजह से सिंहपर्णी के सेवन से कैंसर कोशिकाओं के प्रजनन गुण ख़त्म हो जाते हैं। यह प्रोस्टेट कैंसर के खिलाफ सबसे सफल औषधियों में सिंहपर्णी की गिनती की जाती है।
DrJaibir Singh जी साभार🙏

Colon cancer is the third most common cancer among men and women in the US Over 93000 people are diagnosed each year. 44...
02/04/2025

Colon cancer is the third most common cancer among men and women in the US
Over 93000 people are diagnosed each year. 44000 cases in man and about 50000 cases in women
Don't think it's in the US The figure is scary worldwide.
EAT MORE FIBRE STAY HEALTHY

*अस्थि संहार (हड़जोड़) हड्डी जोड़ने वाला पौधा  हिंदी में इसको हर जोरा कहा जाता है गुजराती में बेदारी कहते हैं  इसकी डालिया ...
02/02/2025

*अस्थि संहार (हड़जोड़)
हड्डी जोड़ने वाला पौधा

हिंदी में इसको हर जोरा कहा जाता है गुजराती में बेदारी कहते हैं इसकी डालिया चौकोर होती है और शाखाएं भी चौकोर होती इसके फूल कुछ-कुछ गुलाबी रंग के होते हैं और कुछ पीच कलर लिए हुए होते हैं
सबसे बड़ी बात यह है कि इसकी डाल पर लाल रंग के मटर के आकार के फल लगते हैं इसके फलों को एकत्र करके नींबू के रस में घोटा जाए और गाढ़ा लेप बन जाएगा और यह गाढा लेप आयुर्वेद की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है अगर किसी व्यक्ति के शरीर में चाकू से या किसी अन्य चीज से
चमडी या मांस कट जाए तो उस कटे हुए स्थान पर अच्छी तरह से पौछकर कर उस पर उपरोक्त प्रकार से बनाया हुआ लेप लगाकर पट्टी बांधने से जल्दी ही वह घाव पूरी तरह से भर जाता है और पट्टी खोल कर हटा देने पर उस घाव का निशान भी शरीर पर नहीं रहता दूसरा प्रयोग यदि गिरने से या मारपीट से शरीर में अत्यधिक चोट पहुंची हो और यदि कोई हड्डी टूट गई हो इसके प्रयोग से वह हड्डी पूरी तरह से जुड़ जाती है और किसी भी प्रकार की कोई परेशानी नहीं होती |
इसके अलावा शरीर किसी भी प्रकार से घायल हो गया हो या हड्डियों में सूजन आ गई हो या किसी प्रकार गिरने से कोई चोट या फैक्चर हो गया हो इसका उपयोग करना चाहिए
इसके माध्यम से महिलाओं में अनियमित मासिक स्राव को भी दूर किया जाता है

यदि किसी की रीढ़ की हड्डी में किसी भी प्रकार दर्द या पीड़ा हो, ऐसी स्थिति में इस का उपयोग लाभदायक है
इस द्वारा लकवा,गठिया आदि रोगों को भी दूर करने में पूर्ण सहायता मिलती है इसको 64 दिव्य जड़ी बूटियों में स्थान प्राप्त है।

वास्तव में प्रकृति की ओर से मनुष्य के लिए यह जड़ी वरदान स्वरुप जैसी है
डॉ मालविंदर भारद्वाज आयुर्वेद आचार्य सुनाम।

Address

Leather Leaf Drive
Mississauga Valleys, ON
L4Z3Y5

Telephone

+919779320500

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Ayurveda Acharya Malwinder Bhardwaj posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram