10/12/2025
“पता था ये लड़की बदली है… पर इतनी नहीं।”
(एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी)
दिल्ली की सर्द रात।
घना कोहरा, खाली सड़क… और एक तेज़ कदमों से चलती लड़की — नैना भारद्वाज, उम्र सिर्फ़ 19।
कंधे पर बैग, कानों में इयरफोन…
लेकिन निगाहें हर तरफ़ चौकन्नी।
दो महीने पहले तक वो ऐसी नहीं थी।
डरती थी, घबराती थी…
लेकिन एक घटना ने उसे हमेशा के लिए बदल दिया।
उस रात की बात—
जब एक अंधेरी गली में तीन लड़कों ने उसका पीछा किया था,
और उसने पहली बार डरकर घर में खुद को बंद कर लिया था।
उसके बाद उसने फैसला किया —
“अब डरना नहीं। अब सीखना है।”
उसने क्राव मागा,
पहचान स्किल,
और फ़ुटवर्क सेफ्टी टेक्निक सीखना शुरू किया।
शामें प्रैक्टिस में गुजरतीं, सुबहें आत्मविश्वास में।
और अब—
आज की रात।
वहीं गली…
वही सन्नाटा…
लेकिन नैना अब पहले वाली नैना नहीं थी।
जैसे ही उसने मोड़ काटा,
हाथ में बीड़ी लिए दो लड़के फुसफुसाए—
“यही है वो… जो बदली-बदली घूमती है।”
“चल रुकवा लेते हैं इसे।”
उसके कदम नहीं डगमगाए।
उसके चेहरे पर पसीने की एक बूंद भी नहीं थी।
एक लड़का आगे बढ़ा—
“बहुत तेज चल रही हो, मदद चाहिए क्या?”
दूसरा उसकी राह में आकर खड़ा हो गया।
तीसरा पीछे से साईं-साईं करते चाकू घूमाता हुआ बोला—
“फेस दिखा न… इतना घमंड काहे का?”
तीनों मुस्कुरा रहे थे।
लेकिन नैना के चेहरे पर एक शांत-सी ठंडक थी।
वह बोली—
“पिछली बार तुम तीन थे…
और मैं अकेली थी।
आज भी तुम तीन हो…
और याद रखना—”
उसने धीरे से बैग नीचे रखा।
इयरफोन उतारे।
बाल बाँधे।
और कहा—
“इस बार मैं तैयार हूँ।”
लड़के हँसे।
पर हँसी कुछ ही सेकंड चली।
नैना ने पल भर में पहला कदम आगे बढ़ाया—
एक लड़के की कलाई पकड़कर चाकू नीचे गिराया।
दूसरे की गर्दन कोहनी से लॉक की।
तीसरे को सीधा पैर से धक्का दे दिया।
तीनों ज़मीन पर तड़प रहे थे।
और नैना…
चुपचाप पुलिस को फोन कर रही थी।
उसकी आवाज़ में एक भी कंपन नहीं—
“तीन लड़के, गली नंबर 8… कोशिश की थी मेरा रास्ता रोकने की।”
पुलिस आई।
तीनों को उठाकर ले गई।
इंस्पेक्टर ने उससे पूछा—
“डर नहीं लगा?”
नैना मुस्कुराई—
“डर तो अभी भी लगता है, सर…
लेकिन अब डर मुझे रोकता नहीं।
सिर्फ़ सतर्क रखता है।”
अगली सुबह अखबार की हेडलाइन थी—
“19 साल की छात्रा ने अकेले किया 3 बदमाशों का सामना — हिम्मत का दूसरा नाम नैना।”