02/11/2021
दिन विशेष : #धन्वंतरित्रयोदशी / #धनतेरस/ #आयुर्वेददिवस (2 नवंबर 2021)
विष्णु के अंश देववैद्य #धनवंतरि भगवान
देवासुर संग्राम में जब देवताओं को दानवों ने आहत कर दिया, तब असुरों के द्वारा पीड़ित होने से दुर्बल हुए देवताओं को अमृत पिलाने की इच्छा से हाथ में कलश लिए धनवंतरि समुद्र मंथन से प्रकट हुए। देव चिकित्सक धनवंतरि का अवतरण कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी (धनतेरस) को हुआ था। शायद इसीलिए लोग धन त्रयोदशी पर कलश आदि अन्य बर्तनों की खरीदारी करते हैं, ताकि उन बर्तनों में अमृत सदा भरा रहे। प्रति वर्ष इसी तिथि को #आरोग्य देवता के रूप में धनवंतरि की जयंती मनाई जाती है। उनके नाम के स्मरण मात्र से समस्त रोग दूर हो जाते हैं, इसीलिए वह भागवत महापुराण 'स्मृतिमात्रतिनाशन' कहे गए हैं।
समुद्र मंथन से 14 रत्न निकले थे। उसी में भगवान विष्णु के नामों का जाप करते हुए पीतांबरधारी एक अलौकिक पुरुष का आविर्भाव हुआ। 24 अवतारों में एक विष्णु के अंशावतार वही चतुर्भुज धनवंतरिके नाम से प्रसिद्ध हुए और आयुर्वेद के प्रवर्तक कहलाए।
हरिवंश पुराण में लिखा है कि धनवंतरि के अवतीर्ण होने पर भगवान नारायण ने साक्षात दर्शन देकर उनसे कहा, 'तुम अप अर्थात जल से उत्पन्न हो, इसलिए तुम्हारा नाम होगा अब्ज ।' इस पर अब्ज धनवंतरि ने कहा, 'प्रभु आप मेरे लिए यज्ञ भाग की व्यवस्था कीजिए और लोक में कोई स्थान दीजिए।' भगवान बोले, 'तुम देवताओं के बाद उत्पन्न हुए हो, इसलिए यज्ञ भाग के अधिकारी नहीं हो सकते। किंतु अगले
जन्म में मातृ गर्भ में ही तुम्हें आणिमादि संपूर्ण में सिद्धियां स्वतः प्राप्त हो जाएंगी। इंद्रियों सहित तुम्हारा शरीर जरा और विकारों से रहित रहेगा और तुम उसी शरीर से देवत्व को प्राप्त हो जाओगे। द्वापर युग में तुम काशीराज के वंश में उत्पन्न होकर अष्टांग आयुर्वेद का प्रचार करोगे।' इतना कह कर भगवान विष्णु अंतर्ध्यान हो गए।
अमृत वितरण हो जाने के बाद भगवान धनवंतरि देवराज इंद्र के अनुरोध पर देवताओं के चिकित्सक के रूप में अमरावती में रहने लगे। द्वापर में चंद्रवंशी राजा धन्व निःसंतान थे। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अब्जपति भगवान विष्णु का ध्यान किया। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान प्रकट हुए और धनवंतरि के रूप में स्वयं के जन्म लेने का उन्हें वर प्रदान किया। वरदान के फलस्वरूप धनवंतरि ने काशीराज के वंश में धन्व के पुत्र रूप में जन्म लिया और भारद्वाज ऋषि से #आयुर्वेद व चिकित्सा कर्म का ज्ञान प्राप्त कर आयुर्वेद शास्त्र को आठ भागों में विभक्त किया। उनका एक पुत्र हुआ, जो केतूमान नाम से विख्यात हुआ था। आयुर्वेद के आठ अंग इस प्रकार हैं-
1. काय चिकित्सा,
Kaaya Chikitsa (Internal Medicine)
2. बाल चिकित्सा, Baala Chikitsa (Treatment of Children / Pediatrics)
3. ग्रह चिकित्सा,
Graha Chikitsa (Demonology / Psychology)
4. ऊर्ध्वांग चिकित्सा, Urdhvaanga Chikitsa (Treatment of disease above the clavicle)
5. शल्य चिकित्सा , Shalya Chikitsa (Surgery)
6. दंष्ट्रा (अगद) चिकित्सा,
Damstra Chikitsa (Toxicology)
7. जरा चिकित्सा , Jara Chikitsa (Geriatrics, Rejuvenation)
8. वृष चिकित्सा, Vrsha Chikitsa (Aphrodisiac therapy).