04/10/2025
एरंड (Ricinus communis) आयुर्वेद में एक अत्यंत महत्वपूर्ण औषधीय पौधा है, जिसकी ऊंचाई लगभग 5 मीटर तक होती है|
और इसकी पत्तियां हरी से बैगनी रंग की, 5 से 11 कट वाले भागों वाली होती हैं।
इसके बीज जहरीले होते हैं क्योंकि उनमें रिकिन नामक विष मौजूद होता है, लेकिन बीज से निकाला गया तैल आयुर्वेद में बहुत उपयोगी औषधि है|
प्रकार -
1)श्वेत एरंड (White Eranda)
2)रक्त एरंड (Red Eranda)
दोनों ही वात और कफ दोषों को संतुलित करते हैं।
आयुर्वेदिक द्रव्यगुणहै -
•रस (Rasa): मधुर, कटु, कषाय
•गुण (Guna): स्निग्ध, तीव्र, सूक्ष्म
•वीर्य (Virya): उष्ण
•विपाक (Vipaka): मधुर
औषधीय उपयोग-
•बीज: वात दोष निवारण, पुरगता (पाचन सुधार), कब्ज, वात विकार, अस्थमा, खांसी, त्वचा रोग आदि में उपयोगी। बीज का तैल वात और कफ दोष को शांत करता है, पाचन शक्ति बढ़ाता है, सूजन और दर्द में प्रभावी है।
•पत्तियां: वात शमन, कृमि नाशक, मूत्र विकारों में लाभकारी। आंखों में जलन, सूजन कम करने और नेत्र रोगों में भी प्रयोग होती हैं।
•मूल (जड़): कफ और वात दोषों को शमन, सूजन, दर्द और अमावस्था दोष में सहायक।
•फूल: मूत्र विकारों के लिए सहायक।
लाभकारी प्रभाव -
वात और कफ दोषों के विकारों को शांत करता है।वात, पेट की बीमारियां, कब्ज, अस्थमा, खांसी, त्वचा रोग और विषाक्त प्रभावों में प्रभावी।तैलीय अनुभूति के कारण वात और कफ दोषों को कम करता है।त्वचा रोग, सिरदर्द, साइटिका, दर्दनिवारक के रूप में उपयोगी।
सावधानियां-
बीज जहरीले होते हैं, इसलिए इसका सेवन और उपयोग केवल आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।अत्यधिक सेवन से विषाक्तता हो सकती है, जो शारीरिक विकारों का कारण बन सकती है।
सारांश-
एरंड एक बहुमुखी और शक्तिशाली औषधीय पौधा है जो वात और कफ दोषों के संतुलन तथा विभिन्न रोगों के उपचार में अत्यंत प्रभावी है। इसका तैल वात शमन, विरेचन और सूजन नाशक के रूप में उपयोगी है। विभिन्न रोगों जैसे गठिया, पीठ दर्द, कब्ज, त्वचा रोगों आदि में इसका व्यापक आयुर्वेदिक उपयोग किया जाता है। विशेषज्ञ की परामर्श के बिना इसके बीज का सेवन न करें।