04/09/2025
#शरदऋतुचर्या
#भादों में खानपान
भारतीय कैलेंडर अनुसार सावन महीना अभी पूर्ण होकर भादों मास शुरू हो चुका है।यह हम सब जानते हैं। परंतु इसके अलावा अगर ऋतु अनुसार देखें तो वर्षा ऋतु का अंत और शरद ऋतु (autumn)का प्रारंभ होने जा रहा है। देव शयनी एकादशी से अलग-अलग त्योहारों का सिलसिला चल रहा है। गणेश चतुर्थी का त्यौहार अभी-अभी हमने मनाया है, गुड़ और घी के विभिन्न प्रकार के मोदक का भोग लगाया। और कुछ ही दिनों में पितृपक्ष प्रारंभ होगा। जिसमें परंपरा से खीर बनाकर खाई जाती है। जैसा कि हम सब जानते हैं हर त्यौहार को मनाने का तरीका खानपान वगैरह उस ऋतु में होने वाले बाहरी वातावरण के परिवर्तन के अनुसार ही रखा गया है। हमारे पूर्वज बहुत ही बुद्धिशाली और चतुर थे इसीलिए इन सब को धर्म के साथ जोड़ा गया। जिससे कि सभी लोग इसका पालन अच्छे से करें और हमेशा स्वस्थ बने रहें।
इससे आगे हमने वर्षा ऋतु के बारे में जानकारी ली थी। हर ऋतु का अंतिम सप्ताह और आने वाली ऋतु का प्रथम सप्ताह यह जो लगभग 15 दिनों का समय है उसे ऋतु संधि कहा जाता है, जहां पर ज़्यादा से ज़्यादा स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें हो सकती हैं। वर्षा ऋतु में बारिश के कारण वातावरण में ठंड रहती है जिससे कि वायु का प्रकोप होता है यानी कि वायु के बढ़ने से उससे होने वाली समस्याएं भी बढ़ती है। बारिश के बंद होने के बाद अचानक से तेज़ धूप निकलने से गर्मी भी बढ़ने लगती है ज़्यादातर दिन में, और रात को चंद्रमा की शीतल चांदनी से ठंडा रहता है। कहा गया है ,यथा पिंडे तथा ब्रह्मांडे।। बाहर के वातावरण में होने वाले परिवर्तन का सीधा असर हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पर होता है। और इसीलिए आयुर्वेद में ऋतु चर्या को विशेष महत्व दिया गया है। इस ऋतु संधि के समय में धीरे धीरे आगे की ऋतु का खान पान बदल कर आने वाली ऋतु के खानपान का अभ्यास शुरू करना चाहिए। शरद ऋतु में वातावरण में बढ़ी हुई गर्मी के कारण शरीर में भी पित्त बढ़ता है और पित्त के बिगड़ने से रक्त या खून भी बिगड़ता है,जिससे कि बुखार, त्वचा पर फोड़े फुंसियां, लाल चकत्ते आना, शीतपित्त, आंखों में या शरीर में कहीं पर भी जलन होना वगैरा-वगैरा जैसी समस्याएं देखने को मिलती हैं। इसीलिए शरद ऋतु को रोगों की माता कहा गया है।प्रिवेंशन इस बेटर देन क्योर, इस हिसाब से अगर पित्त को शांत करने वाले खानपान जैसे कि गाय का दूध ,घी,मक्खन, मिश्री, तुरई, गिया ,परवल, भिंडी ,करेला, खीरा, पुराने अनाज जैसे गेहूं, जौ, चावल, मूंग, धनिया जीरा इलायची, चीकू केला जैसे मीठे फल, सिंघाड़ा कमलगट्टा ,अनार खजूर नारियल वगैरह लेने हैं।
और पित्त को बढ़ाने वाले खानपान जैसे कि नया अनाज, बाजरा, कुलथी, चना राजमा टमाटर पालक बैंगन मेथी मिर्च,तिल ,अदरक ,लहसुन ,सरसों ,गाजर पपाया खट्टे फल, गुड, दही, अत्यधिक नमकीन , खट्टी चीजें,बासी खाना, अचार, तेज धूप में निकलना, ज़्यादा व्यायाम करना आदि का त्याग करें। अगर इन सब नियमों को ध्यान में रखा जाए तो इस ऋतु में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं से बचा जा सकता है।
रोगाणाम् शारदी माता। अर्थात शरद ऋतु में ज्यादातर स्वास्थ्य संबंधी तकलीफें ज़्यादा देखने को मिलती है। व्यवहार में किसी को आशीर्वाद या शुभकामनाएं देने के लिए कहा जाता है जीवेम शरद: शतम। सौ शरद तक जीने की शुभकामनाएं। आयुर्वेद में बताए गए सिद्धांतों का अनुसरण हो तो यह भी संभव है।
अगर किसी कारणवश कोई भी तकलीफ हो तो आयुर्वेद में इसकी चिकित्सा का भी वर्णन है। जरूरत पड़ने पर आयुर्वेद निष्णात से सलाह जरूर लें।
जीवेम शरद: शतम् ।
🙏सर्वे संतु निरामया 🙏
Vaidya Komal Patel
Ex. Nadi consultant and panchkarma physician (Sri Sri ayurveda - The art of living foundation Bangalore
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