Maths by lalit

Maths by lalit science nd maths problems

22/07/2018
07/05/2018

की तैयारी कैसे करें -

1) नियमित रूप से 8 से 10 घंटे पढाई करें .
2) जो section weak हो उस पर ज्यादा ध्यान दें .
3) कुछ पेपर हार्ड जो कुछ easy आते है इसलिए सबसे बेहतर के लिए अपने आप को तैयार करें .
4) Reasoning में सबसे कम effort करके सबसे ज्यादा स्कोर किया जा सकता है इसका ध्यान रखे .
5) English यदि आप सिर्फ दो महीने अच्छे से पढ़ लेते है तो यह Reasoning के बाद दूसरा Topic है जिस पर सबसे ज्यादा स्कोर किया जा सकता है.
6) Math में Concept develop करते रहे क्योंकि यदि Repetition नही हुआ तो जिनका Concept अच्छा होगा वही स्कोर कर पाएंगे सिर्फ Normalization के भरोसे मत रहें इस प्रोसेस में बहुत सी खामिया है जिनका बाद में discuss करेंगे.
7) G.S. में Previous years के Question को solve करते रहें ज्यादा से ज्यादा SSC के द्वारा लिए गए सब exam के साथ साथ, दूसरे exam जैसे Railway etc आदि को भी solve कर लें

04/05/2018

SSC CGL notification out

Short notice SSC CGL
04/05/2018

Short notice SSC CGL

28/02/2018

Sscnr office ke aas pass Dhara 144 lag*i g*i

26/02/2018
Kvs LDC exam date release
01/02/2018

Kvs LDC exam date release

28/06/2014

Gud mrng guys...........
M back in page

18/01/2014

प्रकाश



प्रकाश, ऊर्जा का ही एक रूप है जो हमारी दृष्टिï के संवेदन का कारण है। प्रकाश द्वारा अपनाए गए सरल पथ को किरण (ray) कहते हैं। अनेक किरणों से किरण पुंज (beam) बनता है जो अपसारी (diverging) व अभिसारी (converging) हो सकते हैं।

परावर्तन (Reflection)
जब किसी सतह पर प्रकाश पड़ता है तो उसका कुछ भाग सतह द्वारा परावर्तित कर दिया जाता है, किंतु कुछ सतह, जैसे- दर्पण, धातु की पालिश की सतह, आदि आपतित प्रकाश को लगभग पूर्णत: परावर्तित कर देती हैं।

अपवर्तन (Refraction)
जब प्रकाश एक माध्यम से दूसरे माध्यम में तिरछे होकर गमन करता है तो वह अपने पथ से मुड़ा जाता है। इसे प्रकाश का अपवर्तन कहते हैं।
वायुमंडलीय अपवर्तन
पृथ्वी के चारों ओर वायुमंडल में ऊँचाई के साथ-साथ वायु का घनत्व कम होता है। प्रकाश को वायु की परतों से गुरजना पड़ता है और यह भी क्रमश: मुड़ता हुआ वक्र पथ अपना लेता है। पृथ्वी के वायुमंडल में प्रकाश के इसी अपवर्तन प्रभाव के कारण ही वास्तविक सूर्यास्त के बाद भी सूर्य क्षितिज के ऊपर कुछ क्षणों तक दृष्टिïगोचर होता है। तारों का टिमटिमाना भी कुछ इसी प्रकार वायुमंडलीय अपवर्तन के कारण होता है।
पूर्ण आंतरिक परावर्तन
प्रकाश हमेशा ही एक माध्यम से प्रकाशीय रूप से सघन माध्यम में जा सकता है, लेकिन यह विरल माध्यम में हमेशा ही नहीं जा सकता है। जब प्रकाश किरणें सघन माध्यम से विरल माध्यम के पृष्ठï पर आपातित हो रही हों और आपतन कोण क्रांतिक कोण से अधिक हो तब प्रकाश का अपवर्तन नहीं होता, बल्कि संपूर्ण प्रकाश परावर्तित होकर उसी माध्यम में लौट जाता है। इस घटना को पूर्ण आंतरिक परावर्तन (Total Internal Relection) कहते हैं। पूर्ण आंतरिक परावर्तन का एक उपयोगी प्रयोग ऑप्टिकल फाइबर में किया जाता है।

लेंस- कैमरों, प्रोजेक्टरों, दूरबीनों, सूक्ष्मदर्शियों आदि प्रकाशीय यंत्रों में लेंसों का उपयोग प्रतिबिम्ब प्राप्त करने के लिए किया जाता है। दृष्टिï दोषों के निवारण हेतु भी लेंस लगे चश्मों का प्रयोग किया जाता है।

दृष्टि का स्थायित्व (Persistance of Vision)

रेटिना पर पडऩे वाले प्रकाश की संवेदना प्रकाश स्रोत या प्रतिरूप के हटने के कुछ क्षण बाद तक रहती है जिसे दृष्टिï का स्थायित्व कहते हैं। यदि किसी क्रिया के विभिन्न पहलुओं के चित्रों को एक क्रम में तैयार किया जाए और उन्हें एक द्रुत क्रम में देखा जाए तो आँखें चित्रों को जोडऩे की प्रवृत्ति रखती हैं और परिणामत: चलते हुए प्रतिरूप का भ्रम होता है। इस तथ्य का उपयोग प्रोजेक्टर एवं टेलीविज़न में किया जाता है।

दीर्घदृष्टि (Long Sight या हाइपरमैट्रिया)-
इससे ग्रस्त व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्टï रूप से देख पाता है किंतु निकट की वस्तुओं को नहीं। यह नेत्र दोष, नेत्र गोलक (Eye-Ball) के कुछ छोटा होने के कारण होता है तथा अभिसारी लेंस का ऐनक लगाकर दूर किया जा सकता है।

निकट दृष्टि (Short Sight या मायोपिया)-
इससे ग्रसित व्यक्ति में प्रतिबिम्व दृष्टिï पटल से पहले ही फोकस हो जाता है। ऐसा नेत्र गोलक के कुछ लम्बा होने के कारण होता है। इससे ग्रसित व्यक्ति दूर की वस्तुओं को स्पष्ट रूप से नहीं देख पाता है। इस दोष को अपसारी लेंस का चश्मा लगाकर ठीक किया जा सकता है।
लेंस की क्षमता को फोकल दूरी के व्युत्क्रम से मीटर में व्यक्त करते हैं तथा इसका मात्रक डायोप्टर (D) है।

प्रकाश का वर्ण विक्षेपण (Dispersion Of Light)
जब सूर्य का प्रकाश किसी प्रिज़्म से गुजरता है तो यह अपवर्तन के पश्चात् प्रिज्म के आधार की ओर झुकने के साथ-साथ विभिन्न रंगों के प्रकाश में बंट जाता है। इस प्रकार से प्राप्त रंगों के समूह को वर्ण-क्रम (spectrum) कहते हैं तथा प्रकाश के इस प्रकार अवयवी रंगों में विभक्त होने की प्रक्रिया को वर्ण विक्षेपण कहते है। बैंगनी रंग का विक्षेपण सबसे अधिक एवं लाल रंग का विक्षेपण सबसे कम होता है। परावर्तन, पूर्ण आंतरिक परावर्तन तथा अपवर्तन द्वारा वर्ण विक्षेपण का सबसे अच्छा उदाहरण आकाश में वर्षा के बाद दिखाई देने वाला इंद्र धनुष है।

प्रकाश प्रकीर्णन (Scattering of Light)
जब प्रकाश अणुओं, परमाणुओं व छोटे-छोटे कणों पर आपतित होता है तो उसका विभिन्न दिशाओं में प्रकीर्णन हो जाता है। जब सूर्य का प्रकाश जो कि सात रंगों का बना होता है वायुमंडल से गुजरता है तो वह वायुमंडल में उपस्थित कणों द्वारा विभिन्न दशाओं में प्रसारित हो जाता है। इस प्रक्रिया को ही प्रकाश का प्रकीर्णन कहते हैं। आकाश का रंग सूर्य के प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण ही नीला दिखाई देता है.

प्रकाश का विवर्तन (Deffraction of Light)
यदि किसी प्रकाश स्रोत व पर्दे के बीच कोई अपारदर्शी अवरोध (Obstacle) रख दिया जाए तो हमें पर्दे पर अवरोध की स्पष्टï छाया दिखाई पड़ती है। इससे प्रतीत होता है कि प्रकाश का संचरण सीधी रेखा में होता है। लेकिन यदि अवरोध का आकार बहुत छोटा हो तो प्रकाश अपने सरल रेखीय संचरण से हट जाता है व अवरोध के किनारों पर मुड़कर छाया में प्रवेश कर जाता है। इस घटना को 'प्रकाश का विवर्तन' कहते हैं।

प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण (Interference of Light)
जब सामान आवृत्ति व समान आयाम की दो प्रकाश तरंगें जो मूलत: एक ही प्रकाश स्रोत से एक ही दिशा में संचारित होती हैं तो माध्यम के कुछ बिंदुओं पर प्रकाश की तीव्रता अधिकतम व कुछ बिंदुओं पर तीव्रता न्यूनतम या शून्य पाई जाती है। इस घटना को ही प्रकाश तरंगों का व्यतिकरण कहते हैं। इसी कारण तेल की पर्तें व साबुन के बुलबुले रंगीन दिखाई देते हैं।

प्रकाश तरंगों का ध्रुवीकरण (Polarisation Of light Wavs)
जब दो कारें एक दूसरे की ओर आती हैं तो उनके प्रकाश के चकाचौंध से दुर्घटना हो सकती है। इसे रोकने के लिए कारों में पोलेराइडों का उपयोग किया जाता है। सिनेमाघर में पोलेराइड के चश्में पहनकर तीन विमाओं वाले चित्रों को देखा जाता है।

18/01/2014

जीवन का रासायनिक आधार



जीवन के सभी आधारभूत रसायन (प्रोटीन, न्यूक्लिक अम्ल, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, हार्मोन इत्यादि) कुछ गिने-चुने मूल तत्वों से बने होते हैं जैसे कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन, सल्फर एवं फॉस्फोरस। इनमें सबसे प्रमुख कार्बन है। शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्बनिक यौगिक कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन हैं।
स्टार्च व शुगर में सभी प्रकार के कार्बोहाइड्रेट होते हैं जो सजीवों में ऊर्जा के प्राथमिक स्रोत हैं। प्रोटीन से संयोजी ऊतकों, मांसपेशियों और त्वचा का निर्माण होता है। रक्त में पाया जाने वाला ऑक्सीजन वाहक अणु हीमोग्लोबिन है जो एक प्रकार का प्रोटीन है। हीमोग्लोबिन में प्रतिपिंड होते हैं जो रोगों के प्रति रक्षा कवच का कार्य करते हैं। सभी प्रोटीनों में सबसे महत्वपूर्ण प्रोटीन एन्जाइम होता है। यह शरीर में होने वाले सभी रासायनिक परिवर्तनों का कारक एवं निर्देशक होता है। एन्जाइम से भोजन के पचने में मदद मिलती है।

सोडियम, पौटैशियम, मैग्नीशियम एवं कैल्शियम की जैववैज्ञानिक भूमिका

सोडियम, कैल्शियम, लोहा और फॉस्फोरस के अतिरिक्त लगभग 27 ऐसे तत्व हैं जो जैवरासायनिक अभिक्रिया में अतिआवश्यक हैं। पोटैशियम एक महत्वपूर्ण एन्जाइम सक्रियक है और तंत्रिका तथा ह्दय प्रकार्य में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। पोटैशियम कोशिकाओं में ग्लूकोज के उपापचय एवं प्रोटीन संश्लेषण में आवश्यक होता है। मैग्नीशियम सभी जीवों के लिए अत्आवश्यक होता है। यदि भोजन में फास्फोरस की मात्रा अधिक हो तो मैग्नीशियम, मैग्नीशियम फास्फेट बनकर अवक्षेपित हो जाता है। कैल्शियम भी सभी जीवों के लिए महत्वपूर्ण तत्व है। इससे मजबूत कंकाल तंत्र का निर्माण होता है। यह मांसपेशियों के संकुचन और हार्मोन स्रावित होने की क्रिया को पे्ररित करता है। शरीर में कैल्शियम की अधिक मात्रा होने से किडनी व गाल ब्लैडर में पथरी हो जाती है।



बायोटेक्नोलॉजी
बायोटेक्नोलॉजी का अर्थ है जीव विज्ञान के क्षेत्र में टेक्नोलॉजी का विस्तार। मुख्यत: यह जीवाणुओं, प्राणियों या पेड़-पौधों की कोशिकाओं या एन्जाइम के प्रयोग के द्वारा कुछ पदार्र्थों के संश्लेषण या भंजन या रूपांतरण से संबंधित है। यह एक अंत: विषयी विज्ञान है जिसमें विज्ञान की अनेक विधाएं जैसे जैव रसायन, सूक्ष्म जीवविज्ञान, रसायन अभियांत्रिकी आदि का समन्वय है।
बायोटेक्नोलॉजी के अनुप्रयोग

(1) इंसुलिन का उत्पादन- यह एक प्रोटीन है जो अग्नाशय द्वारा स्रावित होती है तथा रक्त में शुगर की मात्रा को नियंत्रित करता है। आज बायोटेक्नोलॉजी की प्रगति से यह संभव है कि एक इंसुलिन उत्पादन के लिए उत्तरदायी संश्लेषित जीन को कृत्रिम रूप से बनाकर ई. कोलाई जीवाणु के प्लाजमिड से जोड़ दिया जाये। अब इंसुलिन मरीजों के लिए आसानी से कम कीमत में उपलब्ध होने लगा है।



(2) इंटेरफेरॉन का उत्पादन- पॉलिपेप्टाइडो के उस समूह को इंटरफेरॉन कहते हैं जिनमें विषाणुओं के संदमन की क्षमता है। इंटरफेरॉन रक्त में विद्यमान घातक पारिसंचारी कोशिकाओं को क्रियाशील बनाते हैं जिससे वे विषाणुओं पर आक्रमण करके उन्हें नष्ट करना शुरू कर देते हैं। इनके पाश्र्व प्रभाव नहीं होते हैं और ये जुकाम, फ्लू, यकृतशोथ और हर्पीज के इलाज के लिए उपयुक्त हैं। 1980 में दो अमेरिकी वैज्ञानिकों- गिलबर्ट और वाइजमान ने बायोटेक्नोलॉजी से इंटरफेरान जीन को कोलॉन बैसिली नामक बैक्टीरिया में क्लोन किया।



(3) हार्मोन का उत्पादन- हार्मोन वे यौगिक हैं जो अन्त:स्रावी ग्रन्थियों द्वारा स्रावित किए जाते हैं। इनका मुख्य कार्य लक्ष्य कोशिकाओं या अंगों के साथ पारस्परिक क्रियाओं द्वारा शरीर के महत्वपूर्ण प्रकार्र्यों को नियंत्रित करना है। कई बीमारियां जो इन हार्मोनों की कमी से होती हैं उनको ठीक करने के लिए हार्मोन को बाहर से दिए जाने की जरूरत होती है। बायोटेक्नोलॉजी की तकनीक, रिकॉम्बीनेंट डीएनए टेक्नोलॉजी व जीन क्लोनिंग से इनका उत्पादन संभव हो सका है। इस तकनीक से सोमाटोस्टेटिन हार्मोन और सोमेटोट्रॉपिन सफलतापूर्वक बनाए गए हैं।



एन्जाइम टेक्नोलॉजी- एन्जाइम जीवित कोशिकाओं में पाए जाने वाले जैव अणु हैं। वे सभी जैव रासायनिक अभिक्रियाओं के लिए उत्प्रेरक का काम करते हैं। इनके बिना जीवन का अस्तित्व संभव नहीं है।
एन्जाइम का उपयोग सदियों से कई औद्योगिक प्रक्रियाओं जैसे बेकिंग, निसवन, किण्वन, खाद्य परिरक्षण आदि में होता रहा है। आज एन्जाइम प्रौद्योगिकी कम खर्च में, अधिक दक्षता से और अधिक शुद्ध अवस्था में दवाओं और कृषि रसायनों का उत्पादन करने में सक्षम है। परंपरागत रूप से एन्जाइमों का पृथ्थकरण प्राणी और पौधों से किया जाता रहा है। लेकिन अब सूक्ष्मजीवों से पृथ्थकृत एन्जाइमों का उपयोग दिनों-दिन लोकप्रिय हो रहा है। सुअर के अग्नाशयी लाइपेज, घोड़े का यकृत ऐल्कोहल डिहाइड्रोजेनेज, काइमोट्रिप्सिन और ट्रिप्सिन व्यापारिक रूप से उपलब्ध एन्जाइमों के कुछ उदाहरण हैं।



किण्वन बायोटेक्नोलॉजी- किण्वन टेक्नोलॉजी की एक ऐसी तकनीक है जिससे एन्जाइमों या पूर्ण जीवित कोशिकाओं द्वारा कम उपयोगी कार्बनिक पदार्र्थों से अधिक उपयोगी कार्बनिक पदार्थ बनाए जाते हैं। सभी कोशिकाओं में ग्लूकोज को पाइरुवेट में परिवर्तित करने की क्षमता होती है जिससे वायुवीय परिस्थितियों में प्रति ग्लूकोज अणु दो एटीपी अणु बनते हैं। ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में पाइरुविक एसिड से लेक्टिक एसिड या एथिल अल्कोहल बनता है। सूक्ष्मजीवों की इसी क्षमता का उपयोग किण्वन क्रिया में किया जाता है।
किण्वन उद्योग में कई तरह के जीवों का उपयोग किया जाता है। इनमें खमीर, बैक्टीरिया और फफूंदी मुख्य हैं। ये तेजी से बढऩे में और एक ही प्रकार की एन्जाइम बनाने में बिल्कुल समान हैं। किण्वन बायोटेक्नोलॉजी के क्षेत्र में शराब, बियर, पनीर, सिरका आदि की सबसे ज्यादा मांग है।

18/01/2014

तत्वों की सूचि

तत्व संकेत परमाणु संख्या परमाणु भार खोजकर्ता वर्ष
एक्टीनियम (Ac) 89 227 ए. डेविरने 1899
अल्युमिनियम (Al) 13 27 एफ. होलर 1827
अमेरिसियम (Am) 95 243 सी. सीबोर्ग व अन्य 1944
एंटीमनी (Sb) 51 121.3 बी. वेलेंटाइन 1604
ऑर्गन (A) 18 39.9 डब्ल्यू रामसे व जे. रेले 1894
आर्सेनिक (As) 33 74.9 ए. मैग्नेस 1250
एस्टेटाइन (At) 85 210 ई. सेग्रे व अन्य
1940
बेरियम (Ba) 56 137.3 एच. डेवी 1808
बर्केलियम (Bk) 97 249 एस. थॉमसन 1949
बेरेलियम (Be) 4 9.0 एन. वाऊक्वेलिन 1828
बिस्मथ (Bi) 83 209.0 सी. ज्यौफ्री 1953
बोरॉन (B) 5 10.8 एच. डेवी 1808
ब्रोमीन (Br) 35 79.9 ए. बालार्ड 1826
कैडमियम (cd) 48 112.4 एफ. स्ट्रोमेएर 1817
कैल्सियम (Ca) 20 40.1 एच. डेवी 1808
कैलीफोर्नियम (Cf) 98 251 एस. थॉमसन 1950
कार्बन (C) 6 12.0 अज्ञात -
सीरियम (Ce) 58 140.1 जे. बर्जेलियस व डब्ल्यू हिस्लिंगर
सीजि़यम (Cs) 55 132.9 आर. बुनसेन, जी. किरचौफ 1860
क्लोरीन (Cl) 17 35.5 के. शीले 1744
क्रोमियम (ml) 24 52.0 एन. वाऊक्वेलिन 1797
कोबाल्ट (Co) 27 58.9 जी. ब्रांट 1735
कॉपर (Cu) 29 63.5 अज्ञात -
क्यूरियम (Cm) 96 248 जी. सीबोर्ग 1944
डाइस्प्रोसियम (Dy) 66 162.5 ल डि ब्यासबाऊड्रेन 1886
आइंस्टीनियम (E) 99 254 ए. घिओर्सो 1953
इरबियम (Er) 68 167.3 सी. मोसांदेर
1839
यूरोपियम (Ew) 63 152.0 ई. डिमार्के 1896
फेरमियम (Fm) 100 253 ए. घिओर्सो 1952
फ्लोरीन (F) 9 19.0 ए. म्योसान
1866
फ्रैंसियम (Fr) 87 223 एम. पेरे 1939
गेडोलिनियम (Gd) 64 157.3 डि. मैरिग्नैक 1880
गैलियम (Ga) 31 69.7 डि. ब्यासबाऊड्रेन 1875
जर्मेनियम (Ge) 32 72.6 सी. विंकलर 1886
गोल्ड (Au) 79 197.0 अज्ञात -
हैफनियम (HF) 72 178.5 डी. कॉस्टर डि. हेवेसी 1923
हीलियम (He) 2 4.0 जानस्सेन व एन. लॉकएर 1866
हॉलमियम (ho) 67 164.9 जे. सोरेट व एम. डेलाफोन्टेई 1878
हाइड्रोजन (H) 1 1.0 एच. कैवेन्डिश 1766
इंडियम (In) 49 114.8 एफ. रीच व टी. रिक्टर 1863
आयोडीन (I) 53 126.9 बी. कोर्ट्वाइज़ 1811
इरिडियम (Ir) 77 192.2 एस. टेन्नाट 1803
आइरन (Fe) 26 55.9 अज्ञात -
क्रिप्टॉन (Kr) 36 83.8 डब्ल्यू रामसे व एम. ट्रेवर्स 1898
लैन्थेनम (La) 57 138.9 सी. मोसान्देर 1839
लॉरेन्सियम (Lr) 103 257.0 ए. घिओर्सो 1961
लेड (Pb) 82 207.2 अज्ञात -
लीथियम (Li) 3 6.9 ए. अर्फवेडसन 1817
ल्यूटेटियम (Lu) 71 175.0 जी. अर्बेन 1907
मैग्नीसियम (Mg) 12 24.3 जे. ब्लॉक 1755
मैंगनीज़ (Mn) 25 54.9 जे. ब्लॉक 1755
मैंडेलेवियम (Mu) 101 256 एस घिओर्सो 1955
मरकरी (Hg) 80 200.6 अज्ञात -
मॉलीब्डेनम (Mo) 42 95.6 के. शीले 1778
नियोडाइनियम (Nd) 60 144.2 सी. वॉन वेल्सबाख 1885
नियॉन (ne) 10 20.2 डब्ल्यू. रामसे व एम. ट्रेवर्स 1898
नेप्च्यूनियम (Np) 93 237 ई. मैकमिलन व पी. अबेलसन 1940
निकिल (Ni) 28 58.7 ए. क्रॉन्सटेड्ट 1751
नियोबियम (Nb) 41 92.9 सी. हैचेट 1801
नाइट्रोजन (N) 7 14.0 डी. रदरफोर्ड 1772
नोबेलियम (No) 102 254 फील्ड्स व अन्य 1951
ऑस्मियम (os) 76 190.2 एस टेनांट 1803
ऑक्सीजन (O) 8 16.0 जे. प्रीस्टले 1774
पैलेडियम (pd) 46 106.4 डब्ल्यू. वोलेस्टीन 1803
फॉस्फोरस (p) 15 31.0 एच. ब्रांड 1669
प्लेटिनम (pt) 78 195.1 ड डि उल्लोआ 1735
प्लूटोनियम (Pu) 94 242 जी. सीबोर्ग 1940
पोलोनियम (po) 84 210.0 पियरे व मैरी क्यूरी 1898
पोटैशियम (k) 19 39.1 एच. डेवी 1807
प्रसियोडाइमियम (Pr) 59 140.9 सी. वॉन वेल्सबाख 1885
प्रोमेथियम (Pm) 61 147 जे. मान्स्र्की 1947
प्रोटेक्टिनियम (Pa) 91 231.0 एफ. सॉडी
1917
रेडियम (Ra) 8 226.1 पियरे व मैरी क्यूरी 1898
रेडॉन (Rn) 86 222.0 रदरफोर्ड व ई. डॉम 1899
रेह्नियम (Re) 75 186.2 ई. नोड्डाक व अन्य
1925
रोह्डियम (Rh) 45 102.9 डब्ल्यू वोलेस्टॉन 1803
रियूबिडियम (Rb) 37 85.5 आर. बुनसेन व जी. किरचॉफ 1861
रूथेनियम (Ru) 44 101.1 के. क्लाउस 1844
सेमारियम (Sm) 62 150.4 ल डि ब्यासबाऊड्रेन 1879
स्कैन्डियम (Sc) 24 45.0 एल. निल्सन 1879
सेलेनियम (Se) 34 79.0 जे. बर्जेलियम 1817
सिलिकॉन (Si) 14 28.1 जे. बर्जेलियम 1824
सिल्वर (Ag) 47 107.9 अज्ञात -
सोडियम (Na) 11 23.0 एच. डेवी 1807
स्ट्रॉन्शियम (Sr) 38 87.6 एच. डेवी 1808
सल्फर (S) 16 32.1 अज्ञात -
टेन्टेलम (ta) 73 181.0 ए. इकेबर्ग 1802
टेक्नेसियम (Tc) 43 99 ई. सेग्रे व सी. पेरियर
1937
टेल्यूरियम (te) 52 127.6 एम. वॉन रीचेन्स्टीन 1782
टर्बियम (Tb) 65 158.6 सी. मोसेन्डर 1843
थैलियम (Ti) 81 204.4 डब्ल्यू. क्रूक्स 1861
थोरियम (th) 90 232.0 जे. बर्जेलियम 1828
थूलियम (Tm) 69 168.9 पी. क्लीव
टिन (Sn) 50 118.7 अज्ञात -
टाइटेनियम (Ti) 22 47.9 डब्ल्यू. जॉर्ज 1791
टंग्सटन (W) 74 183.9 डी वी एफ. डी. ईथुयर 1783
यूरेनियम (U) 92 238.0 मार्टिन क्लेप्रॉथ 1789
वेनेडियम (V) 23 51.0 निल्स सेफ्स्ट्रॉम 1830
जेनॉन (Xe) 54 131.3 डब्ल्यू. रामसे व एम. ट्रेवर्स 1898
वाईटर्बियम (Yb) 70 173.0 सी. मैरिग्नैक 1878
वाईटरियम (Y) 39 88.9 जे. गेबोलिन 1794
जिंक (Zn)
30 65.4

जिरकॉनियम (Zr)
40 91.2

रदरफोर्डियम (Rf) 104 - ए. घिओर्सो, हैरिस, इस्कोला 1969
डबनियम (Db) 105 - घिओर्सो, इस्कोल 1970
सीबोर्जियम (Sg) 106 - घिओर्सो 1974
बोह्रियम (Bh) 107 - मुन्जेनबर्ग 1981
हैस्सियम (Hs) 108 - मुन्जेनबर्ग 1984
मीटनेरियम (Mt) 109 - मुन्जेनबर्ग 1884
डार्मस्टैडटियम (Ds) 110 - - 1995
रोंटजेनियम (Rg) 110 - एस. हॉफमैन

1995

नोट :- 1996 में एस. हॉफमैन ने तत्व संख्या 112 की खोज की। 1999 से 2004 के मध्य ड्यूबना, रूस के वैज्ञानिकों व एक अंतर्राष्ट्रीय दल ने तत्व संख्या 116 व 118 की खोज की। हाल ही में तत्व संख्या 117 की भी खोज की जा चुकी है, लेकिन इन सभी तत्वों का स्थायी नामकरण किया जाना बाकी

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