Dr Rehan Kazmi

Dr Rehan Kazmi "Your health is our responsibility and our commitment." "आपका स्वास्थ हमारी ज़िम्मेदारी और हमारी प्रतिबद्धता है।"

गठिया (Arthritis) गठिया एक ऐसी अवस्था है जिसमें जोड़ों (joints) में सूजन, दर्द, अकड़न और चलने-फिरने में कठिनाई होती है। ...
11/10/2025

गठिया (Arthritis)

गठिया एक ऐसी अवस्था है जिसमें जोड़ों (joints) में सूजन, दर्द, अकड़न और चलने-फिरने में कठिनाई होती है। यह रोग प्रायः उम्र बढ़ने के साथ अधिक दिखाई देता है, लेकिन आजकल खराब खानपान, मोटापा, और जीवनशैली के कारण यह कम उम्र में भी देखने को मिल रहा है।

गठिया के प्रमुख प्रकार:

1. ऑस्टियोआर्थराइटिस (Osteoarthritis):
यह सबसे सामान्य प्रकार है, जिसमें हड्डियों के सिरों पर मौजूद मुलायम ऊतक (cartilage) घिस जाते हैं।

अधिक वजन, उम्र बढ़ना, चोट, और अत्यधिक परिश्रम इसका कारण बनते हैं।

लक्षण: घुटनों, कमर, गर्दन और हाथों में दर्द व सूजन।

2. रूमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis):
यह एक Autoimmune Disease है जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली ही अपने जोड़ों पर आक्रमण कर देती है।

लक्षण: सुबह के समय जोड़ों में अकड़न, थकान, कमजोरी, और सूजन।

यह महिलाओं में अधिक पाया जाता है।

3. गाउट (Gout):
यह गठिया का एक विशेष प्रकार है जो यूरिक एसिड के अधिक बनने और उसके क्रिस्टल बनने से होता है।

लक्षण: अचानक तीव्र दर्द, विशेषकर पैर के अंगूठे में लालिमा व सूजन।

कारण: अधिक मांसाहार, शराब, चाय, कॉफी, दालें और असंतुलित आहार।

4. एंकाइलोज़िंग स्पॉन्डिलाइटिस (Ankylosing Spondylitis):
यह रीढ़ की हड्डी और उसके जोड़ो में सूजन से जुड़ा गठिया है।

लक्षण: कमर में जकड़न, चलने में दर्द, झुकाव में कठिनाई।

गठिया के कारण:

आनुवांशिक कारण

मोटापा

शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता

असंतुलित आहार (अधिक खटाई, तली-भुनी चीज़ें, मांस, शराब)

शारीरिक गतिविधियों की कमी

ठंडे वातावरण में रहना

चोट या संक्रमण

लक्षण:

जोड़ों में दर्द और सूजन

अकड़न, विशेषकर सुबह के समय

लालिमा और गर्माहट

चलने-फिरने या सीढ़ियाँ चढ़ने में कठिनाई

थकान और कमजोरी

आयुर्वेदिक और यूनानी दृष्टि से गठिया:

आयुर्वेद में इसे आमवात कहा गया है — “आम” (अपच का विष) और “वात” (वायु दोष) का मिलन इस रोग का कारण माना जाता है।
यूनानी मत के अनुसार, शरीर में बलगमी और सर्द मिजाज बढ़ने से जोड़ों में लज़ूज मादा जमा होकर सूजन व दर्द पैदा करती है।

1. हल्दी: सूजन कम करने और दर्द घटाने में अत्यंत प्रभावी (Curcumin compound)।

1 चम्मच हल्दी पाउडर गर्म दूध में मिलाकर रोज़ पीएँ।

2. मेथी:

सुबह खाली पेट मेथी दाना पानी में भिगोकर खाने से लाभ होता है।

3. अश्वगंधा, सोंठ और गिलोय:

ये शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं और सूजन घटाते हैं।

4. तिल और सरसों का तेल:

गर्म करके दर्द वाले स्थान पर मालिश करें।

5. गुनगुने पानी से सेंक (Hot fomentation):

सूजन और अकड़न कम करता है।

6. डाइट में शामिल करें:

हरी सब्ज़ियाँ, फल, बादाम, अखरोट, लहसुन, अदरक, ओमेगा-3 युक्त खाद्य पदार्थ।

7. बचें:

तली चीज़ें, मांस, शराब, ठंडा पानी, खटाई, और देर रात भोजन।

Majoon Suranjan

Habb-e-Suranjan

Arq-e-Ajeeb

Majoon Jograj Guggul
(इनका सेवन चिकित्सक की सलाह अनुसार करें)

नियमित व्यायाम या योगासन (जैसे ताड़ासन, त्रिकोणासन, पवनमुक्तासन)

वजन नियंत्रित रखें

नींद पूरी लें और तनाव कम करें

सुबह-सुबह धूप लें (Vitamin D के लिए)

गठिया कोई साधारण बीमारी नहीं है — यह शरीर के संतुलन, पाचन और प्रतिरक्षा प्रणाली से जुड़ी हुई समस्या है। सही खानपान, दिनचर्या और प्राकृतिक चिकित्सा से इसे जड़ से नियंत्रित किया जा सकता है।

स्वस्थ मानसिकता कितनी ज़रूरी है ये बताने की ज़रूरत नही।
10/10/2025

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06/10/2025

🧠 सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy)सेरेब्रल पाल्सी बच्चों में होने वाला एक तंत्रिका विकार (Neurological Disorder) है, जिस...
05/10/2025

🧠 सेरेब्रल पाल्सी (Cerebral Palsy)

सेरेब्रल पाल्सी बच्चों में होने वाला एक तंत्रिका विकार (Neurological Disorder) है, जिसमें मस्तिष्क के किसी हिस्से को नुकसान पहुँचने के कारण बच्चे की चलने, बोलने, संतुलन रखने और मांसपेशियों को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। यह स्थिति जन्म से पहले, जन्म के समय या जन्म के तुरंत बाद विकसित हो सकती है।

🔹 मुख्य कारण

गर्भावस्था या प्रसव के समय ऑक्सीजन की कमी

जन्म के दौरान मस्तिष्क में चोट या संक्रमण

समय से पहले जन्म या कम वजन वाला बच्चा

दिमागी बुखार या सिर की चोट

🔹 प्रमुख लक्षण

बच्चे का देर से बैठना या चलना

मांसपेशियों का बहुत कठोर या बहुत ढीला होना

बोलने या निगलने में दिक्कत

संतुलन और समन्वय की कमी

झटके (फिट) या सीखने में कठिनाई

सेरेब्रल पाल्सी का पूर्ण इलाज नहीं है, लेकिन सही देखभाल से बच्चा सामान्य जीवन जी सकता है।

फिजियोथेरेपी: मांसपेशियों को मजबूत और लचीला बनाती है।

स्पीच व ऑक्यूपेशनल थेरेपी: बोलने और दैनिक कामों में मदद करती है।

दवाइयाँ और सर्जरी: झटके या जकड़न कम करने के लिए।

संतुलित आहार और मानसिक सहयोग आवश्यक हैं।

यूनानी चिकित्सा में इसे “Istirkha-e-Atfal” कहा जाता है।
रोग़न कुनजद, रोग़न बनफ़शा, और माजून फलसफ़ा जैसी औषधियाँ तथा मालिश (Tadbeer) उपयोगी मानी जाती हैं।

सेरेब्रल पाल्सी चुनौती है, लेकिन असंभव नहीं।
समय पर पहचान, नियमित थेरेपी, प्यार और धैर्य से बच्चा आत्मनिर्भर और आत्मविश्वासी बन सकता है।

मोतियाबिंद (Cataract) की शल्यक्रिया का इतिहास:मोतीबिंद (Cataract) मानव इतिहास में दृष्टि खोने का एक प्रमुख कारण रहा है। ...
04/10/2025

मोतियाबिंद (Cataract) की शल्यक्रिया का इतिहास:

मोतीबिंद (Cataract) मानव इतिहास में दृष्टि खोने का एक प्रमुख कारण रहा है। प्राचीन काल से ही विद्वानों और चिकित्सकों ने इसकी पहचान और उपचार के तरीके खोजे। मोतीबिंद की सर्जरी (Cataract operation) का इतिहास मानव सभ्यता के चिकित्सा विज्ञान की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक माना जाता है।

आयुर्वेद और सुश्रुत की खोज

मोतीबिंद की सर्जरी का पहला प्रमाण प्राचीन भारत से मिलता है।

लगभग 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में महान आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत ने अपनी अमर कृति सुश्रुत संहिता में मोतीबिंद के लक्षण और उसके उपचार का विस्तारपूर्वक वर्णन किया।

उन्होंने एक नुकीले औज़ार (शल्यचिकित्सा यंत्र) की सहायता से लेंस को आँख की पुतली से पीछे धकेल देने की प्रक्रिया बताई।

यह प्रक्रिया “कौचिंग (Couching for Cataract)” कहलाती है।

इससे रोगी को आंशिक दृष्टि वापस मिल जाती थी।

इस खोज के कारण सुश्रुत को “शल्यचिकित्सा का जनक (Father of Surgery)” कहा जाता है।

यूनानी तिब्ब और उसका विकास

भारतीय चिकित्सा पद्धति का प्रभाव यूनानी (Greco-Arabic) चिकित्सकों तक पहुँचा।

9वीं शताब्दी ईस्वी में यूनानी विद्वान हुनैन इब्न इस्हाक़ ने नेत्र-चिकित्सा संबंधी ग्रंथों का अनुवाद और विस्तार किया।

इसके बाद 10वीं शताब्दी ईस्वी में प्रसिद्ध यूनानी चिकित्सक अम्मार इब्न अली अल-मौसिली ने सुश्रुत की पद्धति को और उन्नत किया।

अम्मार ने एक विशेष सिरिंज जैसे उपकरण का निर्माण किया जिससे वे मोतीबिंद को केवल धकेलने की बजाय खींचकर बाहर निकालने में सफल हुए।

यह सुधार चिकित्सा इतिहास में अत्यंत क्रांतिकारी था और यूनानी तिब्ब को नेत्र-चिकित्सा के क्षेत्र में नई ऊँचाइयों पर ले गया।
#सुश्रुत

23/09/2025

19/09/2025

आइए जानते है फैटी लीवर के लिए 5 सबसे शक्ति शाली जड़ी बूटियां कौन कौन सी है।



1. कालमेघ (Andrographis paniculata)

प्रकृति: अत्यंत कड़वी, “लिवर का रक्षक” कहलाती है।

मुख्य गुण:

हेपाटोप्रोटेक्टिव (यकृत कोशिकाओं को बचाने वाला)

हेपाटो-रेजेनरेटिव (खराब कोशिकाओं को ठीक करने वाला)

एंटी-इंफ्लेमेटरी

फायदे:

फैटी लीवर में जमा चर्बी को कम करता है।

लिवर एंज़ाइम को संतुलित करता है।

हेपेटाइटिस और पीलिया में असरदार।

2. आँवला (Emblica officinalis / Indian Gooseberry)

प्रकृति: ठंडी, अम्लरसायन।

मुख्य गुण:

शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट (Vitamin C बहुत प्रचुर मात्रा में)

इम्यून बूस्टर

फायदे:

लिवर की कोशिकाओं को नुकसान से बचाता है।

वसा जमने की गति को रोकता है।

पाचन और मेटाबॉलिज़्म को बेहतर करता है, जिससे फैट कम होता है।

3. कटुकी (Picrorhiza kurroa)

प्रकृति: कड़वी, ठंडी।

मुख्य गुण:

सबसे शक्तिशाली हेपाटोप्रोटेक्टिव जड़ी-बूटी।

लिवर को डिटॉक्स करती है।

फायदे:

फैटी लीवर को सामान्य स्थिति की ओर लाती है।

पित्त संतुलन कर मेटाबॉलिज़्म तेज करती है।

खून को साफ करती है।

4. पुनर्नवा (Boerhavia diffusa)

प्रकृति: मूत्रल (Diuretic), शीतल।

मुख्य गुण:

यकृत और गुर्दे दोनों पर असरदार।

सूजन और जलन कम करने वाली।

फायदे:

फैटी लीवर से जुड़ी सूजन को घटाती है।

पानी और विषैले तत्व बाहर निकालती है।

लिवर को हल्का और सक्रिय बनाती है।

5. भृंगराज (Eclipta alba / False Daisy)

प्रकृति: शीतल, लिवर-टॉनिक।

मुख्य गुण:

हेपाटो-रेजेनरेटिव (लिवर कोशिकाओं को दुबारा बनाने की क्षमता)

एंटीऑक्सीडेंट

फायदे:

फैटी लीवर, हेपेटाइटिस और पीलिया में असरदार।

लिवर को मजबूती और नई ऊर्जा देता है।

पाचन सुधारता है और बालों को भी लाभ।

👉 कालमेघ + आँवला + कटुकी + पुनर्नवा + भृंगराज
यह पाँचों मिलकर फैटी लीवर की सबसे प्रभावशाली औषधीय शक्ति बनाते हैं।

ये लिवर को डिटॉक्स करते हैं।

कोशिकाओं की मरम्मत करते हैं।

वसा को कम करते हैं।

लिवर को मजबूत और सक्रिय बनाते हैं।

17/09/2025

11/09/2025

हर तीसरी मौत की वजह दिल ही क्यों?भारत में मौत के सबसे बड़े कारणों में अब संक्रामक रोग नहीं, बल्कि दिल की बीमारियाँ सबसे ...
07/09/2025

हर तीसरी मौत की वजह दिल ही क्यों?

भारत में मौत के सबसे बड़े कारणों में अब संक्रामक रोग नहीं, बल्कि दिल की बीमारियाँ सबसे ऊपर पहुँच चुकी हैं। रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि पिछले तीन वर्षों (2021-2023) में देश में हुई कुल मौतों का लगभग 31% हिस्सा हृदय रोगों से जुड़ा है। यानी हर तीसरी मौत की जड़ दिल की बीमारी है। और यह सिर्फ़ रजिस्टर केसेस है आपको मालूम है हज़ारों केसेस रजिस्टर नही होते?

कई अंतरराष्ट्रीय शोध यह साबित कर चुके हैं कि शहरी जीवनशैली, प्रदूषण, तनाव और असंतुलित आहार भारत में हृदय रोगों को तेजी से बढ़ा रहे हैं।

लांसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में दिल की बीमारी का बोझ दुनिया के औसत से कहीं अधिक है।

आईसीएमआर (Indian Council of Medical Research) की स्टडी मानती है कि 30 साल से ऊपर की उम्र में यह खतरा अचानक बढ़ जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) भी चेतावनी देता है कि एशियाई देशों में युवाओं में हार्ट अटैक और स्ट्रोक की दर पश्चिमी देशों से ज्यादा है।

घटनाएँ जो डराती हैं

महाराष्ट्र के कोल्हापुर में हाल ही में 10 साल के बच्चे की खेलते समय दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई।

पिछले वर्ष गुजरात में एक शादी समारोह में 18 वर्षीय युवक नाचते-नाचते गिर पड़ा और उसकी मौत हो गई।

दिल्ली में 35 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल को मीटिंग के दौरान हार्ट अटैक आया और तुरंत जान चली गई।

ये घटनाएँ बताती हैं कि अब दिल की बीमारी सिर्फ उम्र से नहीं जुड़ी, बल्कि यह हर वर्ग और हर आयु के लिए गंभीर खतरा बन चुकी है।

क्यों बढ़ रहा है खतरा?

लगातार तनाव और अनियमित दिनचर्या

जंक फूड और तैलीय भोजन का बढ़ता चलन

व्यायाम की कमी और स्क्रीन पर अधिक समय

धूम्रपान, शराब और नींद की अनियमितता

डायबिटीज़ और हाई ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियों की अनदेखी

भारत सरकार ने राष्ट्रीय हृदय रोग नियंत्रण कार्यक्रम (NPCDCS) के तहत जागरूकता और शुरुआती जांच की पहल की है। लेकिन विशेषज्ञ मानते हैं कि सिर्फ सरकारी योजनाएँ काफी नहीं हैं। परिवार और समाज दोनों को मिलकर जीवनशैली सुधारने की ज़रूरत है।

दिल की बीमारी अब “मिडिल एज” की समस्या नहीं रही। यह बच्चों और युवाओं तक पहुँच चुकी है। अगर समय रहते आहार, व्यायाम और मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान न दिया गया, तो आने वाले वर्षों में यह बीमारी भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य चुनौती बन जाएगी।

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