28/08/2025
आदिमकालीन हर्बल चिकित्सा
हमारी विरासत
अति प्राचीनकाल में जब आदिम सभ्यताएं जन्म ले रही थी. उसी समय हर्बल चिकित्सा, जिसे वनस्पति चिकित्सा भी कहते हैं, इंसानी सभ्यता के साथ-साथ विकसित हो रही थी. सभ्यताओं के उस प्रारंभिक काल में मानव सभ्यता ने अपने कष्टों, रोगों से मुक्ति के लिए अपने आस पास की वनस्पतियों की तरफ देखना शुरू किया. हर्बल चिकित्सा एक प्राचीन और सशक्त उपचार पद्धति है। यह केवल लोक-कथाओं या कहानियों पर आधारित नहीं है, बल्कि सदियों के गहन अवलोकन, प्रयोग और लगातार अनुसंधान का परिणाम है। पौधों का उपयोग करके रोगों का उपचार करने की यह कला हमारे पूर्वजों की बुद्धिमत्ता और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाती है।
प्रारंभिक काल: अवलोकन और प्रयोग
आदिमकाल के हमारे पूर्वजों के लिए प्रक्रति प्रदत्त वनस्पतियाँ किसी अजूबे से कम नहीं रही होंगी. मानव सभ्यता के शुरुआती दौर में, जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का कोई अस्तित्व नहीं था, हमारे पूर्वजों ने अपने आस-पास के पौधों का उपयोग भोजन और उपचार दोनों के लिए करना सीखा। हमारे पुरखों ने अपने लम्बे समय के अनुभव से जाना की कुछ वनस्पतियाँ जहरीली होती हैं कुछ खाने योग्य. और कुछ विशिष्ट रोगों के लक्षणों को कम करने में सहायक हैं। यह प्रक्रिया मुख्यतः अवलोकन और प्रयोग पर आधारित थी। यह ज्ञान पीढ़ी-दर-पीढ़ी मौखिक रूप से हस्तांतरित होता रहा।
पुरातात्विक साक्ष्य:
* ईराक के शाणदार-4 गुफा (Shanidar-IV cave) में 60,000 साल पुराने निएंडरथल कब्रों में पौधों के पराग (Pollen) पाए गए हैं, निएंडरथल मानव अपने मृत लोगों के साथ कुछ विशिष्ट फूलों को दफनाते थे. जिससे यह पता चलता है कि वे लोग उपचार के लिए फूलों और पौधों का उपयोग करते थे। इन पौधों में यारो (Yarrow), मार्शमैलो (Marshmallow), और सेंट-जॉन वॉर्ट (St. John's Wort) जैसे औषधीय पौधे शामिल हैं। दुनिया के अलग -अलग क्षेत्रों में इस तरह के कई साक्ष्य मिले हैं, लेकिन इराक के साक्ष्य सबसे प्राचीन हैं.
प्राचीन सभ्यताएँ: ज्ञान का दस्तावेज़ीकरण
जैसे-जैसे सभ्यताएँ विकसित हुईं, हर्बल ज्ञान को लिपिबद्ध किया जाने लगा। इससे यह ज्ञान अधिक व्यवस्थित और सुलभ हो गया।
* मेसोपोटामिया (2600 ईसा पूर्व): में 5,000 साल पुरानी सुमेरियन मिट्टी की पट्टिकाएँ (Sumerian clay tablets) मिली हैं, जिन पर औषधीय पौधों जैसे कि लोबान और अजवायन का उल्लेख है।
* प्राचीन मिस्र (1500 ईसा पूर्व): मिस्रवासियों ने चिकित्सा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की। एबर्स पेपिरस , जिसे पेपिरस एबर्स के नाम से भी जाना जाता है Ebers Papyrus यह लगभग 1550 ईसा पूर्व का है, 700 से अधिक औषधीय नुस्खों का संग्रह है। इसमें लहसुन, अदरक, और धनिया जैसी जड़ी-बूटियों का उपयोग विभिन्न रोगों के उपचार के लिए बताया गया है। इस प्राचीन दस्तावेज का नामकरण जर्मन मिस्रविज्ञानी जॉर्ज एबर्स के नाम पर रखा गया है, इन्होने ही भुला दी गयी इस प्राचीन धरोहर को आधुनिक समाज के सामने प्रस्तुत किया. जिन्होंने इसे 1873-1874 में इसे किसी से खरीदा था, और यह जर्मनी के लीपज़िग विश्वविद्यालय में संग्रहीत है।
* प्राचीन भारत (3000-5000 ईसा पूर्व): भारतीय उपमहादीप में आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति का विकास हुआ, जो हजारों साल पुरानी है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे ग्रंथ आयुर्वेद के आधार स्तंभ हैं। इनमें 1000 से अधिक पौधों और उनके औषधीय गुणों का विस्तृत वर्णन है। उदाहरण के लिए, हल्दी (Turmeric) का उपयोग सूजन कम करने, और नीम (Neem) का उपयोग एंटी-बैक्टीरियल गुणों के लिए किया जाता था, जिनकी पुष्टि आधुनिक विज्ञान भी करता है।
* प्राचीन चीन (2700 ईसा पूर्व): चीन में पारंपरिक चीनी चिकित्सा (TCM) का उदय हुआ। शेन नोंग बेंन काओ जिंग (Shennong Ben Cao Jing) नामक प्राचीन ग्रंथ में 365 से अधिक पौधों का उल्लेख है। इसमें जिनसेंग (Ginseng) को ऊर्जा बढ़ाने और इफेड्रा (Ephedra) को श्वसन संबंधी समस्याओं के लिए प्रभावी बताया गया है।
मध्य युग और पुनर्जागरण: ज्ञान का संरक्षण और विस्तार
मध्य युग में यूरोप, एशिया में हर्बल चिकित्सा का बहुत विकास हुआ. बहुत से धार्मिक मठों, चर्च एवं मदरसों ने हर्बल ज्ञान के केंद्र के रूप में कार्य किया। भिक्षुओं ने प्राचीन यूनानी और रोमन ग्रंथों का अनुवाद किया और अपनी जड़ी-बूटियों के बगीचे बनाए। इसी दौरान, हर्बल नामक पुस्तकों का चलन शुरू हुआ, जिनमें पौधों के चित्र और उनके उपयोग की जानकारी होती थी।
निकोलस कल्पर (Nicholas Culpeper): 17वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध अंग्रेज वनस्पतिशास्त्री जिन्होंने अपनी पुस्तक "द इंग्लिश फिजीशियन" में सामान्य पौधों और उनके औषधीय उपयोग का वर्णन किया, जिससे आम लोगों तक हर्बल ज्ञान पहुंचा।
आधुनिक युग: वैज्ञानिक अनुसंधान और सत्यापन
20वीं शताब्दी में, आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के विकास के साथ, हर्बल चिकित्सा की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए गए। हालांकि, इस चुनौती ने हर्बल चिकित्सा को कमजोर करने की बजाय, इसे वैज्ञानिक आधार पर स्थापित करने का मार्ग प्रशस्त किया। वैज्ञानिकों ने औषधीय पौधों में मौजूद सक्रिय यौगिकों (active compounds) को अलग करना और उनका अध्ययन करना शुरू किया।
हर्बल चिकित्सा की कई शाखाये जिसमे आयुर्वेद, यूनानी, TCM (परंपरागत चीनी औषधि) व अन्य शाखाओं ने प्राचीन काल में जन्म लिया यह मध्यकाल में और विकसित हुई. आधुनिक काल में होम्योपैथी, इलेक्ट्रो होमियोपैथी भी हर्बल चिकित्सा की शाखाओं के तौर पर विकसित हुई है।
हर्बल चिकित्सा का इतिहास, मानव जाति की प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व और ज्ञान की निरंतर खोज की एक अद्भुत कहानी है। यह केवल एक उपचार पद्धति नहीं, बल्कि एक विरासत है जो हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और गहरी समझ रखने की प्रेरणा देती है। आधुनिक विज्ञान ने इस प्राचीन ज्ञान की पुष्टि करके इसे और भी प्रासंगिक बना दिया है, यह साबित करते हुए कि प्रकृति में ही हमारे कई रोगों का समाधान छिपा है।
डॉ. हरीश पटेल
स्वामी नारायन इलेक्ट्रोपैथी हॉस्पिटल एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट