18/11/2025
*राधा स्वामी जी*
*सरदार बहादुर जी महाराज अपने सतगुरू बड़े महाराज सावन सिंह जी के बहुत ही प्यारे सेवादार थे, किसी भी काम को शुरू करने से पहले वो आंखें बन्द करके सिमरन किया करते थे, फिर अपने सतगुरू का शुक्राना करते थे फिर जैसा हुक्म मिलता वैसी सेवा किया करते थे, एक बार रात को लगभग दस बजे वो अपने कमरे में बैठे हुए सन्तमत की एक पुस्तक पढ़ रहे थे, वो दूसरी मंजिल पर थे और बड़े महाराज जी का कमरा तीसरी मंजिल पर था, तभी बीबी लाजो ने, उन्हें बड़े महाराज जी का सन्देश दिया कि वो आपको बुला रहे हैं, ये कहकर बीबी लाजो रसोई में कुछ काम करने चली गई*
*सरदार बहादुर जी ने आंखें बन्द करके सिमरन किया फिर शहनशाह का धन्यवाद किया और बड़े महाराज जी से मिलने चल पड़े, उनके कमरे से कुछ दूर चलकर लगभग दस सीढ़ियां चढ़कर बड़े महाराज जी का कमरा आता था अभी वो सीढ़ियां चढ़ ही रहे थे कि बीबी लाजो उनके पास आई और कहा, वीर जी आप थोड़ी देर रूको, अभी बड़े महाराज जी के पास कुछ लोग बैठे हैं, जैसे ही वो चले जायेंगे, मैं आपको बुला लूंगी*
*सरदार बहादुर जी ने कहा ठीक है बहन, उस वक्त सरदार बहादुर जी का एक पैर सातवीं सीढ़ी पर था और दूसरा आठवीं सीढ़ी पर था, आप वहीं पर ही खड़े होकर बुलाये जाने का इन्तज़ार करने लगे*
*आधा घण्टा बीत गया, फिर एक घण्टा बीत गया लेकिन बीबी लाजो नहीं आई, वो शायद रसोई का अपना काम ख़त्म करके सोने चली गई, दो घण्टे,तीन घण्टे, चार घण्टे, छः घण्टे बीत गये लेकिन सरदार बहादुर जी वहीं सीढ़ियों पर ही पूरी रात खड़े रहे और सिमरन करते रहे*
*सुबह चार बजे जब बीबी लाजो बड़े महाराज जी के कमरे में गई तो बड़े महाराज जी ने उससे पूछा, बेटा रात को मैंने सरदार बहादुर जी को बुलाया था?*
*ये सुनते ही बीबी लाजो के होश उड़ गये वो भागी और उसने देखा कि सरदार बहादुर जी अभी भी सीढ़ियों पर खड़े थे, बीबी लाजो रोने लगी और हाथ जोड़ कर सरदार बहादुर जी से माफी मांगने लगी, वीर जी मुझे बिल्कुल अक्ल नहीं है, मुझे माफ़ कर दो, सरदार बहादुर जी ने हंस कर कहा, छोटी बहन इसमें माफी मांगने वाली क्या बात है?*
*मैं तो तेरा शुक्रगुजार हूं कि तुमने मुझे मेरे सतगुरू का सन्देश दिया है, बीबी लाजो ने रोते हुए कहा कि चलो वीर जी, बड़े महाराज जी आपको याद कर रहे हैं*
*जब सरदार बहादुर जी बड़े महाराज जी के कमरे में पहुंचे तो बड़े महाराज जी ने आपको कस कर गले से लगा लिया और कहा, शाबाश एक सेवादार को ऐसा ही होना चाहिए*
*हम सभी जानते हैं कि बड़े महाराज जी ने सरदार बहादुर जी की सेवा और भक्ति से खुश होकर आपको अपना ही रूप बना लिया था और डेरा ब्यास की गद्दी उन्हें सौंप दी थी*
*सतगुरू अपने सभी सेवादारों को बहुत प्यार करते हैं, श्री हुज़ूर महाराज जी भी यही फरमाया करते थे कि मेरे बच्चे तो मेरी ज़मीन जायदाद के हकदार हैं लेकिन रूहानियत के ख़ज़ाने के असली मालिक तो वो सभी सेवादार और संगत है जो संगत की सेवा और भजन सिमरन प्रेम प्यार से करते हैं*