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"आयुर्वेदिक चिकित्सक जब नब्ज़ पकड़कर आपकी तकलीफ़ सुनता है, तो उसमें फैमिली मेम्बर जैसा अपनापन और विश्वास झलकता है।""एलोप...
14/08/2025

"आयुर्वेदिक चिकित्सक जब नब्ज़ पकड़कर आपकी तकलीफ़ सुनता है, तो उसमें फैमिली मेम्बर जैसा अपनापन और विश्वास झलकता है।"

"एलोपैथी तेज़ असर देती है पर साइड इफ़ेक्ट भी; आयुर्वेद धीरे-धीरे असर करता है लेकिन जड़ से सुधार करता है।"

"आज दुनिया भर में हर्बल मेडिसिन पर रिसर्च हो रही है, और कई पौधों के गुण आधुनिक विज्ञान ने प्रमाणित किए हैं।"

"आयुर्वेद सिर्फ इलाज नहीं, ये हमारी सभ्यता का 5,000 साल पुराना ज्ञान है जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी चला आ रहा है।"

"स्वदेशी औषधियाँ किसानों को रोज़गार देती हैं और विदेशी दवाओं पर होने वाला अरबों रुपये का खर्च बचा सकती हैं।"

"हेल्थ पॉलिसी में अगर आयुर्वेद को बराबरी का दर्जा मिले तो भारत स्वास्थ्य के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है।"

"आयुर्वेद जीवनशैली सुधारकर समाज को स्वस्थ बनाने पर जोर देता है, न कि सिर्फ बीमारियों के लक्षणों को दबाने पर।"

"इलाज ऐसा होना चाहिए जो रोगी को ठीक करे, उसके शरीर को नुकसान न पहुँचाए—आयुर्वेद इसी सिद्धांत पर चलता है।"

"आयुर्वेद अपनाना सिर्फ स्वास्थ्य नहीं, ये अपने देश की जड़ों को सम्मान देना और विदेशी निर्भरता को कम करना है।"

"जब सालों की पुरानी समस्या एलोपैथी से ठीक न हुई, और आयुर्वेद से सुधार मिला—तो भरोसा जड़ों पर और गहरा हो गया।"


पेट साफ न होना:   @ए वी एस अस्पताल परामर्श के लिए संपर्क करें 01169310066स्वस्थ पाचन तंत्र एक अच्छे स्वास्थ्य का संकेत ह...
09/07/2025

पेट साफ न होना:

@ए वी एस अस्पताल परामर्श के लिए संपर्क करें 01169310066

स्वस्थ पाचन तंत्र एक अच्छे स्वास्थ्य का संकेत है। जब पेट एक बार में पूरी तरह साफ नहीं होता, तो यह न केवल असुविधाजनक होता है, बल्कि यह कई अन्य स्वास्थ्य समस्याओं की शुरुआत भी हो सकता है। इसे आम बोलचाल में अधपका पेट, मल पूर्ण रूप से ना निकलना, या कब्ज़ की शुरुआत भी कहा जाता है। यह स्थिति अगर लंबे समय तक बनी रहे, तो यह शरीर में विषैले पदार्थों को जमा कर सकती है।

इस लेख में हम विस्तार से जानेंगे कि एक बार में पेट साफ न होने के क्या कारण हो सकते हैं, इसके लक्षण क्या होते हैं और कौन-कौन से घरेलू उपाय अपनाकर इसे ठीक किया जा सकता है।

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I. एक बार में पेट साफ न होने के कारण (Causes)

1. फाइबर की कमी

खाने में रेशा (fiber) की मात्रा कम होने से मल कठोर हो जाता है, जिससे पेट पूरी तरह साफ नहीं होता।

2. पानी की कमी

शरीर में पानी की मात्रा कम होने पर आंतों में सूखापन आ जाता है जिससे मल त्याग कठिन होता है।

3. अनियमित खानपान

जंक फूड, मसालेदार भोजन, असमय खाना, या बहुत ज्यादा खाना – ये सभी पाचन को प्रभावित करते हैं।

4. शारीरिक गतिविधि की कमी

एक्सरसाइज न करने से आंतों की गति (bowel movement) धीमी हो जाती है।

5. मानसिक तनाव और चिंता

तनाव और डिप्रेशन सीधे पाचन क्रिया को प्रभावित करते हैं।

6. मेडिकेशन का प्रभाव

कुछ दवाइयाँ जैसे एंटीडिप्रेसेंट्स, पेनकिलर्स, आयरन या कैल्शियम की गोलियाँ भी कब्ज़ का कारण बन सकती हैं।

7. अनियमित दिनचर्या और नींद की कमी

देर रात जागना और पर्याप्त नींद न लेना शरीर के बायोलॉजिकल क्लॉक को बिगाड़ देता है।

8. पुरानी पाचन समस्याएँ

जैसे IBS (Irritable Bowel Syndrome), हाइपोथायरायडिज़्म आदि।

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II. लक्षण (Symptoms)

मल त्याग के बाद भी अधूरापन महसूस होना

मल कठोर और सूखा निकलना

पेट में भारीपन या फूला हुआ महसूस होना

गैस, डकारें, और बदहजमी

थकान और आलस्य

सिरदर्द या मूड स्विंग्स

भूख में कमी

मुंह से दुर्गंध आना

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III. घरेलू उपाय (Home Remedies)

1. गुनगुना पानी और शहद

रोज़ सुबह खाली पेट एक गिलास गुनगुना पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर पीने से पेट साफ होता है।

2. त्रिफला चूर्ण

रात को सोने से पहले एक चम्मच त्रिफला चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लें। यह आयुर्वेदिक उपाय पाचन क्रिया को संतुलित करता है।

3. अजवाइन और काला नमक

अजवाइन भूनकर उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर खाएं। इससे गैस और कब्ज में आराम मिलता है।

4. दही और इसबगोल

खाने के बाद दही में इसबगोल (Psyllium husk) मिलाकर सेवन करने से मल त्याग सरल होता है।

5. नींबू पानी

एक गिलास गुनगुने पानी में नींबू का रस और थोड़ा सा नमक मिलाकर सुबह पिएं। यह लीवर और पाचन प्रणाली को उत्तेजित करता है।

6. अलसी के बीज (Flaxseeds)

अलसी में फाइबर भरपूर होता है। एक चम्मच अलसी को पानी में भिगोकर या पाउडर बनाकर सेवन करें।

7. पपीता और अंजीर

पपीता पाचन में मदद करता है, और सूखे अंजीर को रातभर भिगोकर सुबह खाने से कब्ज दूर होती है।

8. तेल मालिश और गरम पानी से स्नान

पेट पर तिल या नारियल के तेल से हल्के हाथों से मालिश करें और गरम पानी से स्नान करने से भी मल त्याग आसान हो सकता है।

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IV. जीवनशैली में बदलाव

1. नियमित व्यायाम

जैसे योग, वॉकिंग, साइकलिंग। खासतौर पर "पवनमुक्तासन", "भुजंगासन", और "वज्रासन" कब्ज में लाभकारी हैं।

2. समय पर खाना और सोना

भोजन और नींद की दिनचर्या को संतुलित रखें।

3. तनाव कम करें

मेडिटेशन और गहरी साँस लेने वाले व्यायाम तनाव को कम करते हैं जिससे पाचन सुधरता है।

4. जंक फूड से परहेज

तला-भुना और प्रोसेस्ड फूड पाचन को बिगाड़ते हैं।

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V. डॉक्टर से कब मिलें?

यदि निम्न में से कोई लक्षण लगातार बना रहे तो चिकित्सकीय सलाह अवश्य लें:

हफ्ते में तीन से कम बार मल त्याग हो रहा हो

खून के साथ मल आना

अचानक वजन घटना

अत्यधिक पेट दर्द

घरेलू उपायों से राहत न मिलना

एक बार में पेट साफ न होना सामान्य समस्या हो सकती है, लेकिन अगर इसे नजरअंदाज किया जाए तो यह शरीर के विषैले तत्वों को बाहर न निकाल पाने के कारण गंभीर बीमारियों को जन्म दे सकती है। संतुलित आहार, नियमित दिनचर्या, पर्याप्त पानी पीना और घरेलू उपायों को अपनाकर इस समस्या से प्राकृतिक रूप से राहत पाई जा सकती है।

यदि यह समस्या लंबे समय तक बनी रहे, तो आयुर्वेदिक चिकित्सक या एलोपैथिक डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

नीम=औषधियों का राजा
12/06/2025

नीम=औषधियों का राजा

आहार हमारे जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारे भोजन से है। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ – विशेषकर आ...
09/06/2025

आहार

हमारे जीवन की गुणवत्ता और स्वास्थ्य का सीधा संबंध हमारे भोजन से है। भारत की पारंपरिक चिकित्सा पद्धतियाँ – विशेषकर आयुर्वेद, यह मानती हैं कि “अन्न ही औषधि है” यदि उसे सही समय, सही मात्रा और सही संयोजन (Food Combination) में लिया जाए। अक्सर देखा जाता है कि हम पौष्टिक भोजन तो लेते हैं, लेकिन यदि उनमें गलत मिश्रण हो, तो वे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक बन सकते हैं। इसके विपरीत, सही खाद्य संयोजन शरीर को पोषण, ऊर्जा, संतुलन और रोग प्रतिरोधक शक्ति देता है।

इस लेख में हम जानेंगे कि भोजन में कौन-कौन से मिश्रण सबसे श्रेष्ठ माने गए हैं, उनका वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक आधार क्या है, किन मिश्रणों से बचना चाहिए, और एक स्वस्थ जीवन के लिए भोजन संयोजन के क्या नियम हैं।

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1. भोजन संयोजन क्या है?

भोजन संयोजन का अर्थ है – विभिन्न खाद्य पदार्थों को इस प्रकार मिलाकर खाना कि वे एक-दूसरे के पाचन में सहायक हों, उनके पोषण तत्व आपस में टकराएं नहीं, और शरीर को पूर्ण लाभ मिल सके।

आयुर्वेद इसे “साम्य एवं विषमता के आधार पर पाचन” के रूप में देखता है।

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2. भोजन में श्रेष्ठ संयोजन – बेहतरीन मिश्रण

1. दाल और चावल (Pulses + Rice)

✅ क्यों बेहतरीन है?

चावल में मेथियोनिन होता है, जो दालों में नहीं होता।

दालों में लाइसिन नामक अमीनो एसिड होता है, जो चावल में कम होता है।
➤ दोनों मिलकर संपूर्ण प्रोटीन का निर्माण करते हैं।

यह संयोजन संपूर्ण भारत में लोकप्रिय है – जैसे खिचड़ी, सांभर-चावल, राजमा-चावल आदि।

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2. रोटी और दाल (Wheat + Lentils)

गेहूं में फाइबर और ऊर्जा होती है, जबकि दालें प्रोटीन प्रदान करती हैं।

यह संयोजन लंबे समय तक तृप्ति देता है और मांसपेशियों को मजबूती देता है।

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3. दूध और खजूर / अंजीर (Milk + Dates/Figs)

✅ फायदे:

आयरन और कैल्शियम दोनों का बेहतरीन मिश्रण।

खून की कमी (एनीमिया) के लिए विशेष उपयोगी।

बच्चों, गर्भवती महिलाओं और कमजोर लोगों के लिए आदर्श।

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4. घी और गर्म खाना (Ghee + Warm Foods)

जब देसी घी को गरम रोटी, खिचड़ी, दाल या मूंग के साथ लिया जाए, तो यह भोजन को पचाने में मदद करता है और शरीर को स्नेह प्रदान करता है।

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5. हल्दी और काली मिर्च (Turmeric + Black Pepper)

काली मिर्च में पाइपरिन होता है, जो हल्दी में मौजूद करक्यूमिन के अवशोषण को 2000% तक बढ़ा देता है।

यह मिश्रण सूजन, इम्युनिटी और डिटॉक्स के लिए अद्भुत है।

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6. नींबू और हरी सब्जियाँ / सलाद (Vitamin C + Iron)

नींबू में विटामिन C होता है, जो पौधों में मौजूद आयरन के अवशोषण को बढ़ाता है।

यह संयोजन एनीमिया से बचाता है और त्वचा के लिए भी लाभदायक होता है।

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7. दही और जीरा / काला नमक (Curd + Jeera / Rock Salt)

पाचन के लिए श्रेष्ठ।

दही में अच्छे बैक्टीरिया होते हैं और जीरा / काला नमक गैस और अम्लता को रोकते हैं।

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8. सोंठ (सूखी अदरक) + गुड़ (Dry Ginger + Jaggery)

यह मिश्रण पाचन को मजबूत करता है, मासिक धर्म की समस्याओं में राहत देता है और शरीर को गर्मी प्रदान करता है।

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3. किन खाद्य संयोजनों से बचना चाहिए? (वर्जित संयोजन – Viruddha Ahara)

आयुर्वेद कुछ खाद्य पदार्थों को साथ लेने से मना करता है, क्योंकि ये विरोधी गुण रखते हैं और शरीर में विष (Toxins) बना सकते हैं।

🚫 दूध + मछली / अंडा / नमकीन चीजें

यह संयोजन त्वचा संबंधी रोग जैसे फुंसियाँ, एक्जिमा आदि को जन्म दे सकता है।

🚫 दूध + खट्टे फल (नींबू, संतरा, अनानास)

दूध के साथ खट्टे फल लेने से पाचन खराब होता है और गैस बनती है।

🚫 दही + खट्टी चीजें / गर्म खाना

दही को गरम भोजन के साथ नहीं लेना चाहिए। यह अम्ल बढ़ा सकता है।

🚫 फल + भोजन साथ में

फल जल्दी पचते हैं, जबकि बाकी खाना धीमे पचता है।

साथ खाने से फल आंत में किण्वित (ferment) होकर गैस और अपच पैदा कर सकते हैं।

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4. भोजन संयोजन के आयुर्वेदिक सिद्धांत

सात्विक संयोजन: जो शरीर और मन को शुद्ध करें, जैसे फल+नट्स, दाल+घी आदि।

तामसिक संयोजन: जो शरीर को जड़ता और आलस्य दे, जैसे भारी तले हुए खाद्य संयोजन।

पाचन के अनुकूलता: जो मिलकर पाचन में रुकावट न बनाएं।

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5. सही भोजन संयोजन के फायदे

✅ बेहतर पाचन
✅ रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि
✅ ऊर्जा और मानसिक स्थिरता
✅ त्वचा, बाल और अंगों की चमक
✅ दीर्घायु और निरोग जीवन

सही भोजन संयोजन केवल स्वाद का नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और जीवन शक्ति का विज्ञान है। यह न केवल शरीर को रोगमुक्त रखता है, बल्कि मन को भी शांत और स्थिर बनाता है। आज के आधुनिक दौर में जहां मिलावटी और प्रोसेस्ड खाद्य पदार्थों की भरमार है, वहाँ पारंपरिक हिंदू आहार-विचार और संयोजन ज्ञान को अपनाना एक बड़ा वरदान साबित हो सकता है।
ज्यादा जानकारी के लिए संपर्क करें ए वी एस अस्पताल 011-6931-0066

Turmeric- हल्दी   WITH ANTI-INFLAMMATORY PROPERTIES...Turmeric is a highly effective medicinal spice that holds a promin...
08/06/2025

Turmeric- हल्दी
WITH ANTI-INFLAMMATORY PROPERTIES...

Turmeric is a highly effective medicinal spice that holds a prominent place in both Indian kitchen and Ayurveda. Its main active ingredient is Curcumin, which gives it yellow color and medicinal properties. Turmeric has been used since ancient times in treatment of various diseases.

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🌿 Health benefits of Turmeric (Health Benefits of Turmeric)

1. Natural Immunity Booster

Turmeric has antibacterial, antiviral and antifungal properties.

It increases the body's ability to fight diseases.

2. Swelling and Pain Relief (Anti-inflammatory & Pain Relief)

Curcumin is natural anti-inflammatory.

Arthritis, is useful in joint pain and muscle swelling.

3. Beneficial for the digestive system

Turmeric improves digestion.

Beneficial in gas, indigestion and stomach swelling.

4. Useful in skin diseases

Turmeric is antiseptic, which gives relief to hanging, acne, eczema etc.

Heals quicker than applying turmeric when a wound or cut.

5. Antioxidant properties

Turmeric free fights particles that cause aging and diseases like cancer.

6. Beneficial for the brain

Curcumin activates neurotransmitter in the brain, which increases memory and concentration.

Diseases like Alzheimer's are less likely.

7. Improving heart health

Turmeric improves blood circulation and lowers cholesterol.

This prevents blockage in arteries.

8. Helpful with sugar and diabetes

Turmeric can help control blood sugar levels.

9. Anti-cancer properties

Some studies suggest that turmeric can prevent the growth of certain types of cancer cells.

10. Helpful in weight loss

Turmeric does not freeze fat in the body and speeds up metabolism.

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How to consume turmeric -

is to chew raw fresh turmeric bulb in morning empty stomach.

1. Turmeric Milk (Golden Milk): Drinking hot milk with turmeric before going to bed at night is very beneficial.

2. Turmeric water: You can drink turmeric powder in the morning by mixing lukewarm water.

3. As spices to eat: lentils, vegetables, pickles etc.

4. Brew: Turmeric, ginger, basil and black pepper mixed.

5. Turmeric capsules or supplements: from doctor's advice.

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⚠️ precautions

Excessive intake of turmeric can cause stomach burn, headaches or vomiting.

Pregnant women and people with gallbladder problem should consult doctor before intake.

Consume turmeric carefully with blood thinning medicines.

Turmeric is a powerful natural medicine that strengthens the body inside and out. Consuming regular and balanced quantities of turmeric can avoid many diseases and improve overall health.
For more information: please contact AVS HOSPITAL HELPLINE -011-6931-0066

परिचय - हृदय ⏰ Alarming organ    आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, शरीर को एक समग्र दृष्टिकोण से देखती है। इसम...
07/06/2025

परिचय - हृदय ⏰ Alarming organ




आयुर्वेद, भारत की प्राचीन चिकित्सा प्रणाली, शरीर को एक समग्र दृष्टिकोण से देखती है। इसमें हृदय को केवल रक्त पंप करने वाला अंग नहीं माना गया है, बल्कि यह शरीर, मन और आत्मा का मिलन बिंदु है। आयुर्वेद के अनुसार, हृदय न केवल शारीरिक स्वास्थ्य का केंद्र है, बल्कि यह भावनाओं, चेतना और जीवन ऊर्जा का मुख्य स्थान भी है।

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हृदय की स्थिति और कार्य

आयुर्वेद के प्रमुख ग्रंथों जैसे चरक संहिता और सुश्रुत संहिता में हृदय को छाती के मध्य में स्थित बताया गया है। इसे "प्राणायतन" यानी प्राण का निवास स्थान माना गया है। हृदय शरीर के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्राण (जीवन शक्ति), रक्त (रक्तसंचार), और ओज (शारीरिक प्रतिरक्षा और मानसिक स्थिरता) का मूल स्रोत है।

हृदय का कार्य केवल रक्त प्रवाह तक सीमित नहीं है। यह भावनाओं जैसे प्रेम, करुणा, क्रोध और भय का भी केंद्र है। मानसिक और भावनात्मक संतुलन भी हृदय के स्वास्थ्य पर निर्भर करता है।

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त्रिदोष और हृदय का संबंध

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में तीन प्रकार की जैविक ऊर्जा होती हैं – वात, पित्त और कफ, जिन्हें त्रिदोष कहा जाता है। ये तीनों हृदय के कार्य और उसकी स्थिति को प्रभावित करते हैं।

वात दोष हृदय की गति, संचार और उत्तेजना में भूमिका निभाता है। इसका असंतुलन दिल की धड़कन की अनियमितता, घबराहट और चिंता का कारण बन सकता है।

पित्त दोष हृदय की ऊष्मा और चयापचय को नियंत्रित करता है। जब पित्त बढ़ जाता है तो व्यक्ति को चिड़चिड़ापन, उच्च रक्तचाप और हृदय में जलन की शिकायत हो सकती है।

कफ दोष हृदय को स्थिरता और पोषण देता है। कफ की अधिकता से हृदय भारी लग सकता है, ब्लॉकेज और कोलेस्ट्रॉल जैसी समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं।

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हृदय और ओज का संबंध

‘ओज’ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से जीवनशक्ति की सबसे सूक्ष्म और शक्तिशाली अभिव्यक्ति है। ओज ही प्रतिरक्षा शक्ति, मानसिक स्थिरता और जीवन ऊर्जा का स्रोत है, और इसका मुख्य निवास स्थान हृदय माना गया है। जब ओज मजबूत होता है तो व्यक्ति स्वस्थ, ऊर्जावान और शांत रहता है। लेकिन यदि ओज क्षीण हो जाए तो रोग, मानसिक तनाव और दुर्बलता घर कर लेते हैं।

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हृदय रोगों के कारण (आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से)

आयुर्वेद के अनुसार हृदय रोग केवल शारीरिक कारणों से नहीं होते, बल्कि मानसिक और भावनात्मक असंतुलन भी इसके लिए जिम्मेदार होते हैं। इसके मुख्य कारण निम्नलिखित हैं:

त्रिदोषों का असंतुलन, विशेषकर वात और कफ का अधिकता में होना

अत्यधिक चिंता, क्रोध, भय, ईर्ष्या और मानसिक तनाव

असंतुलित और तामसिक आहार जैसे अधिक चिकनाई, नमक, मीठा और तली-भुनी चीजें

आलस्य, शारीरिक गतिविधियों की कमी, देर तक जागना

शराब, धूम्रपान और अन्य नशे का सेवन

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हृदय को स्वस्थ रखने के आयुर्वेदिक उपाय

संतुलित आहार

हृदय के लिए हल्का, सुपाच्य और सात्त्विक आहार उपयुक्त होता है। हरी सब्जियाँ, ताजे फल, दलिया, मूंग की दाल, और सीमित मात्रा में घी का सेवन लाभकारी होता है। अधिक तैलीय, भारी और रासायनिक पदार्थों से युक्त भोजन से बचना चाहिए। अदरक, लहसुन, हल्दी और अर्जुन की छाल जैसी औषधियाँ हृदय को बल देती हैं।

नियमित दिनचर्या

प्रत्येक दिन एक ही समय पर उठना, सोना और भोजन करना आयुर्वेद में अत्यधिक महत्व रखता है। प्रातःकाल सूर्योदय से पहले उठना, हल्का व्यायाम, योग और प्राणायाम करना हृदय के लिए लाभदायक है। दिन में दो बार गहरी श्वास लेने वाले व्यायाम करने से हृदय की कार्यक्षमता बढ़ती है।

मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान

हृदय की शक्ति का सीधा संबंध मानसिक स्थिति से होता है। ध्यान, मंत्र-जप, साधना और शांत वातावरण में समय बिताना हृदय को स्थिरता और शांति प्रदान करता है। क्रोध, चिंता और ईर्ष्या जैसी भावनाओं से दूर रहना आवश्यक है।

प्राकृतिक औषधियाँ और उपचार

अर्जुन की छाल हृदय रोगों के लिए अत्यंत प्रभावशाली मानी गई है। इसे दूध या जल के साथ उबालकर सेवन किया जा सकता है। अश्वगंधा, ब्राह्मी, शंखपुष्पी जैसी जड़ी-बूटियाँ मानसिक तनाव को दूर करने में मदद करती हैं।
गुग्गुलु रक्त में कोलेस्ट्रॉल को संतुलित करने के लिए उपयोगी होता है।

आयुर्वेद के अनुसार हृदय केवल शारीरिक अंग नहीं, बल्कि जीवन ऊर्जा का केंद्र है। जब हम जीवन को संतुलित, शांत और प्राकृतिक तरीके से जीते हैं, तब हमारा हृदय न केवल स्वस्थ रहता है, बल्कि वह प्रेम, करुणा और ऊर्जा का स्रोत बन जाता है। उचित आहार, दिनचर्या, योग, ध्यान और प्राकृतिक औषधियों के माध्यम से हृदय की रक्षा करना आयुर्वेद का मूल मंत्र है। हृदय को केवल शरीर से नहीं, बल्कि मन और आत्मा से भी जोड़ कर देखना आयुर्वेद की गहराई को दर्शाता है।
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संक्रमण - Viral infection   संक्रमण से होने वाले रोग यानी संक्रामक रोग वे बीमारियाँ होती हैं जो सूक्ष्म जीवों जैसे वायरस...
31/05/2025

संक्रमण - Viral infection

संक्रमण से होने वाले रोग यानी संक्रामक रोग वे बीमारियाँ होती हैं जो सूक्ष्म जीवों जैसे वायरस, बैक्टीरिया, फंगस और परजीवियों के कारण होती हैं। ये रोग व्यक्ति से व्यक्ति, जानवर से व्यक्ति, या पर्यावरण के ज़रिए फैल सकते हैं। ये रोग किसी भी आयु वर्ग के व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं और यदि समय पर इलाज न हो तो जानलेवा भी साबित हो सकते हैं।

इस लेख में हम विस्तार से समझेंगे कि संक्रमण क्या होता है, ये कैसे फैलता है, संक्रमण से कौन-कौन से रोग होते हैं और हम इनसे कैसे बच सकते हैं।

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संक्रमण क्या होता है?

संक्रमण तब होता है जब कोई हानिकारक सूक्ष्म जीव जैसे बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश करता है और वहाँ पनपने लगता है। ये जीव शरीर की सामान्य कार्यप्रणाली को बाधित करते हैं और बीमारी के रूप में लक्षण उत्पन्न करते हैं। हर सूक्ष्म जीव अलग तरीके से शरीर को प्रभावित करता है। कुछ केवल मामूली लक्षण पैदा करते हैं, जबकि कुछ गंभीर बीमारी या मृत्यु का कारण भी बन सकते हैं।

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संक्रमण कैसे फैलता है?

संक्रमण के फैलने के कई रास्ते हो सकते हैं। सबसे सामान्य तरीका है संक्रमित व्यक्ति से प्रत्यक्ष या परोक्ष संपर्क। जब कोई संक्रमित व्यक्ति छींकता या खाँसता है, तो उसके मुँह से निकली बूंदों में वायरस होते हैं जो हवा में फैल जाते हैं। इन्हें कोई दूसरा व्यक्ति सांस के साथ अंदर ले लेता है, जिससे संक्रमण फैल जाता है।

दूसरा बड़ा स्रोत है दूषित पानी और भोजन। जब हम गंदे हाथों से खाना खाते हैं या अशुद्ध पानी पीते हैं, तब बैक्टीरिया या वायरस हमारे शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। इसके अलावा, संक्रमित कीड़े जैसे मच्छर और मक्खी भी रोग फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया मच्छर के काटने से फैलने वाले रोग हैं। यौन संपर्क, संक्रमित रक्त या सुई का उपयोग भी संक्रमण का कारण बन सकता है।

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संक्रमण के प्रकार और उनके कारण

संक्रमण के रोग चार प्रमुख प्रकार के सूक्ष्म जीवों से होते हैं:

बैक्टीरिया – ये एककोशीय जीव होते हैं जो शरीर के भीतर तेजी से विभाजित होकर संक्रमण करते हैं। उदाहरण के लिए, टायफाइड, हैजा और तपेदिक (टीबी) बैक्टीरिया से होने वाले प्रमुख रोग हैं।

वायरस – ये सूक्ष्म जीव बैक्टीरिया से भी छोटे होते हैं और शरीर की कोशिकाओं के भीतर जाकर उन्हें संक्रमित करते हैं। सर्दी-जुकाम, इन्फ्लुएंज़ा, हेपेटाइटिस, और कोविड-19 वायरसजनित रोग हैं।

फंगस – ये आमतौर पर त्वचा, नाखून और फेफड़ों को प्रभावित करते हैं। रिंगवर्म, कैंडिडा संक्रमण और एथलीट्स फुट फंगल रोगों के उदाहरण हैं।

परजीवी – ये जीव किसी अन्य जीव के शरीर में रहकर उससे पोषण लेते हैं। मलेरिया और अमीबायसिस परजीवीजनित रोग हैं।

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कुछ सामान्य संक्रमणजन्य रोग

टायफाइड दूषित पानी और भोजन के ज़रिए फैलता है। यह बुखार, पेट दर्द और कमजोरी पैदा करता है। टीबी एक बैक्टीरियल संक्रमण है जो फेफड़ों को प्रभावित करता है और खाँसी, बुखार व वजन घटाने जैसे लक्षण पैदा करता है।

मलेरिया एक परजीवीजन्य रोग है जो मादा मच्छर के काटने से फैलता है। इसमें कंपकंपी के साथ तेज बुखार आता है। डेंगू भी मच्छर के माध्यम से फैलता है और यह प्लेटलेट्स की संख्या में कमी ला सकता है।

COVID-19 हाल के वर्षों में एक वैश्विक महामारी बनकर सामने आया है। यह वायरस के ज़रिए फैलता है और सांस, बुखार, थकान जैसे लक्षण देता है।

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संक्रमण से बचाव के उपाय

संक्रमणजन्य रोगों से बचाव के लिए सबसे ज़रूरी है व्यक्तिगत स्वच्छता और सतर्कता। खाने से पहले और शौच के बाद हाथ धोने की आदत बनानी चाहिए। साफ पानी पीना, ताज़ा और पूरी तरह पका हुआ भोजन खाना चाहिए। मच्छरों से बचाव के लिए मच्छरदानी का उपयोग करें और आसपास पानी जमा न होने दें।

टीकाकरण भी एक महत्वपूर्ण उपाय है जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की शक्ति विकसित होती है। बच्चों को समय पर टीके लगवाना और महामारी के समय सरकार द्वारा सुझाए गए दिशा-निर्देशों का पालन करना ज़रूरी है।

यदि किसी को बुखार, खाँसी या अन्य लक्षण लंबे समय तक बने रहें, तो डॉक्टर से तुरंत संपर्क करना चाहिए। संक्रमण की पहचान और इलाज जितनी जल्दी हो, उतना बेहतर है।

संक्रमणजन्य रोग मानवता के सामने एक प्राचीन और सतत चुनौती रहे हैं, लेकिन स्वच्छता, सावधानी और आधुनिक चिकित्सा के ज़रिए इनसे प्रभावी ढंग से बचा जा सकता है। जागरूकता ही सबसे बड़ा हथियार है। यदि हम व्यक्तिगत स्वच्छता का पालन करें, समय पर इलाज करवाएँ और सामूहिक रूप से स्वास्थ्य के प्रति सजग रहें, तो संक्रमणजन्य रोगों का प्रभाव काफी हद तक कम किया जा सकता है।
#कोविड


पाचन तंत्र (Digestive System) रोग - निरोग केंद्र बिंदु:हमारे शरीर का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भोजन को पचाकर पोषक तत्वो...
28/05/2025

पाचन तंत्र (Digestive System)

रोग - निरोग केंद्र बिंदु:

हमारे शरीर का वह महत्वपूर्ण हिस्सा है जो भोजन को पचाकर पोषक तत्वों को अवशोषित करता है और अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालता है। स्वस्थ पाचन तंत्र से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, ऊर्जा का स्तर अच्छा रहता है और अनेक बीमारियों से बचाव होता है। इसलिए पाचन तंत्र की नियमित सफाई (Detoxification) बहुत जरूरी है ताकि यह सुचारु रूप से काम करता रहे।

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पाचन तंत्र की सफाई क्यों जरूरी है?

आज की जीवनशैली में अस्वस्थ आहार, तनाव, कम पानी पीना, अधिक तला-भुना खाना, और पर्यावरण प्रदूषण की वजह से शरीर में विषैले पदार्थ (टॉक्सिन्स) जमा हो जाते हैं। ये टॉक्सिन्स पाचन तंत्र में भी जमा हो जाते हैं, जिससे कब्ज, गैस, अम्लता, अपच, सूजन, और अन्य पाचन संबंधित समस्याएं होती हैं।
पाचन तंत्र की सफाई से:

अपशिष्ट पदार्थ और विषाक्त तत्व बाहर निकलते हैं।

पाचन क्रिया सुधरती है।

पोषक तत्व बेहतर अवशोषित होते हैं।

ऊर्जा स्तर और मानसिक स्पष्टता बढ़ती है।

त्वचा स्वस्थ और चमकदार होती है।

रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है।

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पाचन तंत्र की सफाई के तरीके

1. जल सेवन बढ़ाएं

पानी शरीर से विषाक्त पदार्थ निकालने में मदद करता है। दिन भर में कम से कम 8-10 गिलास पानी पीना चाहिए। सुबह उठते ही गुनगुना पानी पीना शरीर की सफाई का पहला और सबसे आसान तरीका है।

2. फाइबर युक्त आहार लें

फाइबर पाचन तंत्र को साफ करता है और कब्ज जैसी समस्याओं से बचाता है। साबुत अनाज, हरी सब्जियां, फल, दालें, और नट्स फाइबर के अच्छे स्रोत हैं।

3. प्रोबायोटिक्स का सेवन करें

दही, किफिर, छाछ, और अन्य प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ पेट के अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखते हैं।

4. जड़ी-बूटियों का सहारा लें

त्रिफला, हल्दी, अजवाइन, सौंफ, हींग आदि जड़ी-बूटियां पाचन क्रिया में सुधार करती हैं और पेट को साफ रखती हैं।

5. नींबू और शहद का सेवन

नींबू पानी और शहद शरीर की सफाई के लिए अत्यंत लाभकारी होते हैं। सुबह खाली पेट इसका सेवन पाचन तंत्र को सक्रिय करता है।

6. योग और प्राणायाम करें

योगासन जैसे वज्रासन, पवनमुक्तासन, त्रिकोणासन, और प्राणायाम पाचन तंत्र की कार्यक्षमता बढ़ाते हैं और पेट की गैस, अपच और कब्ज की समस्या दूर करते हैं।

7. व्यायाम करें

नियमित हल्का व्यायाम पाचन तंत्र की मांसपेशियों को मजबूत बनाता है और पाचन में सुधार करता है।

8. भोजन में सावधानी बरतें

अत्यधिक तला-भुना, मसालेदार, और फास्ट फूड से बचें। भोजन को अच्छे से चबाकर धीरे-धीरे खाएं।

9. ध्यान दें भोजन के समय का

रोजाना निर्धारित समय पर भोजन करें और रात का भोजन हल्का और समय पर लें।

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पाचन तंत्र की सफाई के घरेलू उपाय

सौंफ और अजवाइन का पानी: 1 चम्मच सौंफ और अजवाइन को पानी में उबालकर पीने से पाचन में सुधार होता है।

मेथी के बीज: रातभर भिगोए मेथी के बीज सुबह खाली पेट खाने से कब्ज दूर होती है।

अदरक का सेवन: अदरक पाचन तंत्र को गर्माहट देता है और गैस, अपच कम करता है।

त्रिफला चूर्ण: आयुर्वेद में त्रिफला का प्रयोग पाचन तंत्र की सफाई के लिए प्रसिद्ध है। इसे नियमित सेवन से आंतों की सफाई होती है।

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पाचन तंत्र खराब होने के कारण

अनियमित भोजन और देर से खाना।

अत्यधिक तला-भुना और जंक फूड खाना।

तनाव और नींद की कमी।

पानी कम पीना।

शारीरिक गतिविधि की कमी।

दवाइयों का अधिक सेवन।

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पाचन तंत्र की सफाई के लाभ

कब्ज, गैस, एसिडिटी जैसी समस्याओं से छुटकारा।

बेहतर पोषण अवशोषण।

अधिक ऊर्जा और बेहतर मूड।

त्वचा की समस्याएं कम होना।

रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि।

वजन नियंत्रण में मदद।

पाचन तंत्र की सफाई स्वास्थ्य का आधार है। सही खान-पान, नियमित व्यायाम, योग और प्राकृतिक उपायों से पाचन तंत्र को स्वस्थ रखा जा सकता है। समय-समय पर शरीर की सफाई करके हम कई गंभीर बीमारियों से बच सकते हैं और जीवन को सुखमय बना सकते हैं।
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - चिकित्सक विशाल सोनी
ऐ वी एस अस्पताल -,011-6931-0066

फाइबर (Roughage या Dietary Fiber)AVS HOSPITAL  हमारे आहार का एक महत्वपूर्ण घटक है जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद क...
27/05/2025

फाइबर (Roughage या Dietary Fiber)

AVS HOSPITAL

हमारे आहार का एक महत्वपूर्ण घटक है जो पाचन तंत्र को स्वस्थ रखने में मदद करता है। यह शरीर में पचने वाले पोषक तत्वों में से नहीं होता, लेकिन यह पाचन प्रक्रिया को सुचारू बनाने, कब्ज को रोकने और कई अन्य स्वास्थ्य लाभ प्रदान करता है। फाइबर मुख्यतः पौधों से प्राप्त होता है, इसलिए इसके स्त्रोत भी अधिकतर शाकाहारी होते हैं।

फाइबर दो प्रकार के होते हैं:

1. सॉल्यूबल फाइबर (Soluble Fiber) – जो पानी में घुल जाता है और जेल जैसी स्थिति बना लेता है। यह कोलेस्ट्रॉल और ब्लड शुगर को नियंत्रित करने में मदद करता है।

2. इनसॉल्यूबल फाइबर (Insoluble Fiber) – जो पानी में घुलता नहीं है, यह भोजन को भारी बनाकर आंतों में गति बढ़ाता है और कब्ज को रोकता है।

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फाइबर के मुख्य स्त्रोत

1. अनाज और अनाज से बने पदार्थ

गेहूं का आटा (Whole Wheat Flour)

ज्वार, बाजरा, मक्का

ओट्स

ब्राउन राइस (भूरा चावल)
अनाज के छिलके में अधिक मात्रा में फाइबर होता है। सफेद चावल और सफेद आटे में फाइबर की मात्रा कम होती है क्योंकि उन्हें छाना और परिष्कृत किया जाता है।

2. फल (Fruits)

सेब (Apple)

संतरा (Orange)

अमरूद (Guava)

नाशपाती (Pear)

केला (Banana)

बेरीज जैसे स्ट्रॉबेरी, ब्लूबेरी आदि
फल छिलके सहित खाए जाएं तो फाइबर अधिक मिलता है। फल में सॉल्यूबल और इनसॉल्यूबल दोनों तरह का फाइबर होता है।

3. सब्जियाँ (Vegetables)

पालक, मेथी, चौलाई जैसे पत्तेदार साग

गाजर, शिमला मिर्च, ब्रोकली, फूलगोभी

बैंगन, लौकी, टमाटर
सब्जियाँ फाइबर का अच्छा स्रोत होती हैं, खासकर उनकी छाल और तनों में।

4. दालें और फलियां (Pulses and Legumes)

राजमा (Kidney Beans)

चना (Chickpeas)

मूंग दाल, मसूर दाल

सोयाबीन
दालों में प्रोटीन के साथ-साथ फाइबर भी भरपूर मात्रा में होता है। यह पाचन को ठीक रखने में सहायता करता है।

5. सूखे मेवे और बीज (Nuts and Seeds)

अखरोट, बादाम, काजू

चिया सीड्स, फ्लैक्ससीड्स

सूरजमुखी के बीज
बीजों और सूखे मेवों में फाइबर के साथ-साथ हेल्दी फैट्स भी होते हैं, जो शरीर के लिए लाभकारी हैं।

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फाइबर का महत्त्व

पाचन क्रिया को सुचारू बनाना: फाइबर भोजन को भारी बनाकर आंतों में गति बढ़ाता है जिससे कब्ज की समस्या नहीं होती।

ब्लड शुगर नियंत्रित करना: सॉल्यूबल फाइबर भोजन के ग्लूकोज अवशोषण को धीमा करता है, जिससे रक्त में शुगर स्तर नियंत्रित रहता है।

कोलेस्ट्रॉल कम करना: यह हृदय रोगों के खतरे को कम करता है।

वज़न नियंत्रण: फाइबर युक्त भोजन पाचन में अधिक समय लेता है जिससे भूख कम लगती है और वजन नियंत्रण में मदद मिलती है।

कैंसर से सुरक्षा: फाइबर आंतों को स्वस्थ रखकर बड़ी आंत के कैंसर के खतरे को कम कर सकता है।

फाइबर हमारे दैनिक आहार का अभिन्न हिस्सा है, जो मुख्यतः पौधों से प्राप्त होता है। अनाज, फल, सब्जियाँ, दालें और बीज इसके प्रमुख स्त्रोत हैं। उचित मात्रा में फाइबर का सेवन हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभकारी है। इसलिए ताजा और प्राकृतिक खाद्य पदार्थों को अपने भोजन में शामिल कर हमें फाइबर की कमी को पूरा करना चाहिए
अधिक जानकारी के लिए संपर्क करे - चिकित्सक विशाल सोनी

गर्मियों का लाजवाब तोफा-  #छाछ #दूध_और_मट्ठा_आयुर्वेदीय_मतानुसार मट्ठा के भेद-सुश्रुत आदि ऋषि-मुनियों ने मट्ठा/तक्र के 4...
23/05/2025

गर्मियों का लाजवाब तोफा- #छाछ
#दूध_और_मट्ठा_आयुर्वेदीय_मतानुसार
मट्ठा के भेद-सुश्रुत आदि ऋषि-मुनियों ने मट्ठा/तक्र के 4 भेद कहे हैं-

(1) तक्र

(2) घोल

3) मथित्त

4) उदश्चित ।

1. #तक्र/ #मट्ठा- जो दही चौथा भाग जल डालकर मथा जाता है, वह तक्र/मट्ठा कहलाता है। मट्ठा संग्रहणी रोग में अत्यन्त हितकर है।

2. #घोल- जो मलाई युक्त दही बिना जल के मथा जाता है, उसको घोल कहते हैं। 'घोल' वात-पित्तनाशक होता है।

3. #मथित- जो दही मलाई निकालकर, बिना जल के मथा जाता है, वह 'मथित' कहलाता है। 'मथित' कफ-पित्तनाशक होता है।

4. #उदश्चित- जो दही आधा जल डालकर मथा जाता है, वह 'उदश्चित' कहलाता है। 'उदश्चित' कफकारक, बलदायक, श्रमविनाशक और परम हितकारक है।

#तक्र ( #मट्ठे) #के_गुण

- मलरोधक, कसैला, खट्टा, मधुर, अग्निदीपन करने वाला, हल्का, उष्णवीर्य, बलकारक, वृष्य, तृप्तिकारक तथा वातनाशक होता है। तक्र ग्रहणी आदि रोगों में पथ्य है, हल्का होने के कारण मलरोधक है, अम्ल व सान्द्र होने के कारण वातविनाशक है। तत्काल का मथा हुआ तक्र दाहकारक नहीं होता है, पाक में मधुर होता है, किन्तु अन्त में पित्त को कुपित करता है। कसैला, उष्ण विकासी और रूखा होने के कारण तक्र कफ को भी दूर करता है।

जिसमें से सारा घी निकाल लिया गया हो, वह मट्ठा पथ्य और विशेषकर हल्का होता है। जिसमें से थोड़ा-सा घी निकाला गया हो, वह मट्ठा भारी, वीर्यवर्द्धक और कफनाशक होता है। जिसमें से कुछ भी घी न निकाला गया हो, वह मट्ठा भारी, गाढ़ा, पुष्टिकारक एवं बलवर्द्धक होता है।

#वात_रोग_में- खट्टे मट्ठे में सेंधा नमक डालकर सेवन करना उत्तम है। पित्त रोग में-खट्टा व मीठा मट्ठा मिश्री मिलाकर सेवन करना अच्छा है।

ोग_में- मट्ठे में जवाखारादि और त्रिकुटा के चूर्ण डालकर पीना अच्छा है।

#संग्रहणी_और_अतिसार_रोग_में "घोल" नामक मट्ठे में हींग, जीरा और सेंधा नमक मिलाकर सेवन करना चाहिए। यह घोल वातनाशक, रुचिकारक, पुष्टिप्रदायक, बलदायक तथा बस्ति (पेडू) को शान्त करने वाला है।

पीनस, श्वास व खाँसी आदि रोग में औटाया हुआ मट्ठा पीना चाहिए। कच्ची छाछ कोठे के कफ को दूर करती है, किन्तु कण्ठ में कफ उत्पन्न करती है। इसलिए पीनस व श्वास आदि रोगों में पकाई हुई छाछ सेवन करनी चाहिए।

#तक्र_की_प्रशंसा में "आयुर्वेद" में लिखा है कि-

"न तक्र सेवी व्यथते कदाचिन्न तक्र दग्धाः प्रभवन्ति रोगः।
यथा सुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्र माहुः॥"
अर्थात् तक्र सेवन करने वाला कभी रोगी नहीं होता है। तक्र सेवन से नष्ट हुए रोग पुनः कभी नहीं होते हैं। जिस प्रकार स्वर्ग में देवताओं के लिए अमृत सुखदायी है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों के लिए मट्ठा हितकर है।

#तक्र_सेवन_निषेध- गर्मी के मौसम में घाव वाले रोगी के लिए, दुर्बलों को. मूर्च्छित को, भ्रम, दाह तथा रक्तपित्त से पीड़ित रोगियों को मट्ठा का सेवन निषेध है।

#गाय_का_दही- उत्तम, बलकारक, पाक में मधुर, पवित्र, अग्निदीपक, चिकना, पुष्टिकारक और वातनाशक होता है।

समस्त प्रकार के दहियों में #गाय_का_दही_उत्तम होता है। इसलिए गाय के दही का मट्ठा भी उत्तम होता है।

#भैंस_का_दही- कुछ चिकना, कफकारक, वात-पित्तनाशक, स्वादु, पाकी, अभिमन्दी, वृष्य और भारी होता है और रुधिर को दूषित करता है। भैंस के दही के भट्ठे में भी यही गुण होते हैं।

#बकरी_का_दही- उत्तम, मलरोधक, हल्का, त्रिदोषनाशक, अग्नि को दीपन करने वाला तथा श्वास, खाँसी, बवासीर, क्षय और कृशता-दुबलेपन में हितकर है। बकरी का दही श्रेष्ठ और ग्राही (काबिज) होने के कारण ग्रहणी रोग में अत्यन्त हितकर है।

#विभिन्न_रंगों_की_गाय_और_उनका_दूध

पीले रंग की गाय का दूध

वातनाशक होता है।

सफेद रंग की गाय का दूध कफनाशक होता है।

लाल रंग की गाय का दूध

पित्तरोग नाशक होता है।

काली रंग की गाय का दूध

त्रिदोषनाशक होता है।

रोगानुसार दूध का औटाना व जमाना

#वात_रोग_में- कच्चे दूध का सेवन हितकर है।

#पित्त_रोग_में- दूध को जरा औटाकर चूल्हे से उतार लेना चाहिए।

्रिदोष_रोग_में- दूध को ऐसा औटाना चाहिए कि लीटर का 375 मि०ली० रह, जाये यानी केवल 250 मि०लि० जले। औटाए हुए दूध को जरा-सी खटाई से जमा देना चाहिए, दही गाढ़ा जमाना चाहिए। तदुपरान्त जरा-सा जल डालकर
रई से मथकर घी निकाल लेना चाहिए।

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With the Grace of Lord Dhanwantari started my new Hospital....
22/05/2025

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