14/11/2025
☞ बच्चों का संपूर्ण विकास : ज़िम्मेदारी हमारी !!
थमता नहीं यह सृष्टि चक्र है,
सरल नहीं यह राह वक्र है,
द्वंद्व छिड़ी हुई है मन में,
किस पथ को अपनाऊँ मैं ?
मन से ज्यादा उपजाऊ कुछ भी नहीं, वहाँ जो भी बोया जाए, बढता जरूर है, चाहे वह "विचार" हो, "नफरत" हो या फिर "प्यार" हो।
शिशु वही सीखते हैं, जो वे देखते व महसूस करते हैं, जो उनके मन में अनजाने ही सही पर बोया जाता है।
बाल मन निर्मल जल समान होता है, जैसा पात्र देंगे, मन वैसा रूप लेगा।
जिस रंग में रंगेंगे, रंग जायेंगे।
जो तस्वीर बनाएंगे, बन जायेंगे।।
शिशु यदि आलोचना देखता है, तो वह निंदा करना सीखता है।
शिशु यदि शर्म के साथ जीता है, तो वह अपराध बोध सीखता है।
किन्तु...
शिशु यदि स्नेह देखता है, तो वह विश्वास करना सीखता है।
शिशु यदि प्रोत्साहन देखता है, तो वह आत्मविश्वास सीखता है।
इसलिए, शिशु को भरपूर स्नेह दें, छोटे से छोटे काम करने पर भी प्रोत्साहित करें व कभी भी उनकी आलोचना व उन्हें शर्मिंदा ना महसूस करवाएं।
याद रखें, बच्चों के विचारों में हमारे विचार जीवित रहते हैं। अच्छे विचार ही अच्छे कर्म लाते हैं।
शिशु प्रेम में विश्वास करते हैं, सुंदरता में विश्वास करते हैं, विश्वास में विश्वास करते हैं; इसलिए सदैव सुविचार रखें, शिशु के विचार भी आपके विचारों जैसे खूबसूरत होंगे।