08/11/2025
मूलाधार चक्र — बीज मंत्र “लं” की महाशक्ति
Root of Energy, Source of Stability, Door to Awakening
कुंडलिनी साधना का प्रारंभिक द्वार “मूलाधार चक्र” है — यह हमारे अस्तित्व की जड़ है, जहाँ शक्ति सोई हुई है।
संस्कृत में “मूल” का अर्थ है — जड़, और “आधार” का अर्थ है — नींव।
यह चक्र रीढ़ की हड्डी के मूल में स्थित होता है और इसका बीज मंत्र है “लं (LAM)”।
जब यह मंत्र कंपन करता है, तो पृथ्वी तत्व की सुप्त ऊर्जा जाग्रत होकर चेतना के साथ सामंजस्य बनाती है।
🕉 बीज मंत्र “लं” और उसकी ध्वनि-शक्ति
“लं” केवल उच्चारण नहीं — यह ध्वनि-रूप ऊर्जा है।
ध्वनि जब मूलाधार क्षेत्र में स्पंदित होती है, तो व, श, स, ष ध्वनियों की सूक्ष्म तरंगें वहाँ के तत्वीय केंद्रों को सक्रिय करती हैं।
तंत्र कहता है कि इन चारों ध्वनियों से चार पंखुड़ियों वाला कमल बनता है, जो मूलाधार चक्र का प्रतीक है।
इन चार पंखुड़ियों का संबंध चार मानसिक अवस्थाओं से है —
1️⃣ व (Va) – स्थायित्व (Stability)
2️⃣ श (Sha) – धैर्य (Patience)
3️⃣ ष (Ṣa) – विश्वास (Faith)
4️⃣ स (Sa) – जीवन शक्ति (Vitality)
जब साधक “लं” का जप करता है, तो ये चार तरंगें कंपन में आकर नाड़ी प्रणाली और नर्वस नेटवर्क को सशक्त करती हैं।
🔬 वैज्ञानिक दृष्टि — मूलाधार की न्यूरो-बायोलॉजी
आधुनिक विज्ञान के अनुसार, यह चक्र Adrenal glands से जुड़ा है।
ये ग्रंथियाँ “Adrenaline” और “Cortisol” स्रावित करती हैं, जो शरीर को संकट में स्थिरता देते हैं।
योगिक ध्यान या “लं” जप करने पर Vagus nerve सक्रिय होती है, जिससे सुरक्षा और स्थिरता का अनुभव होता है।
MRI शोध बताते हैं कि Root Chakra Meditation के दौरान Amygdala (भय केंद्र) शांत हो जाता है और Prefrontal Cortex स्थिर निर्णय लेने लगता है।
🔱 तांत्रिक दृष्टि — पृथ्वी तत्व का संतुलन
तंत्र शास्त्र कहता है — “पृथ्वी तत्व में स्थिरता है, पर जागरण तब होता है जब चेतना और ऊर्जा का मिलन हो।”
इसलिए मूलाधार जागरण का अर्थ है —
ऊर्जा को नीचे से ऊपर उठाना बिना भय और बिना असंतुलन के।
साधक जब “लं” को ध्यानपूर्वक जपता है, तो ऊर्जा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश करने लगती है।
इस क्षण मूलाधार का नाग हल्का-सा हिलता है —
और यह हिलना ही कुंडलिनी का प्रथम स्पंदन है।
🌿 जागरण की विधि — साधक के लिए सरल क्रम
1️⃣ स्थान: शांत भूमि पर बैठें, रीढ़ सीधी।
2️⃣ ध्यान: श्वास को नीचे मूलाधार तक अनुभव करें।
3️⃣ मंत्र जप: धीमे स्वर में “लं... लं... लं...” का कंपन महसूस करें।
4️⃣ दृश्य: लाल रंग का प्रकाश मूलाधार में घूम रहा है, ऐसा देखें।
5️⃣ भावना: “मैं सुरक्षित हूँ, स्थिर हूँ, धरती से जुड़ा हूँ।”
यह अभ्यास प्रतिदिन 10 मिनट करने से मूलाधार की ऊर्जा स्थिर होती है, भय कम होता है और आत्मविश्वास बढ़ता है।
धीरे-धीरे यह शक्ति मूल से सहस्रार तक चढ़ने का मार्ग तैयार करती है।
🌟 सार
मूलाधार का जागरण शक्ति का विस्फोट नहीं —
धरती पर पैर टिकाने की कला है।
जो साधक यहाँ स्थिर हो गया,
वही कुंडलिनी की चढ़ाई का पात्र बनता है।