31/10/2025
इतिहास-मूल (पारंपरिक एवं पौराणिक)
• यह तिथि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आती है, जिसे ‘एकादशी’ कहा गया है। 
• कहा जाता है कि इस अवधि में विष्णु भगवान चार-महीने (चतुःमास) तक योगनिद्रा में रहे। इस निद्रा-काल की समाप्ति के बाद जिस दिन वे जागते हैं, वह प्रबोधिनी एकादशी कहलाती है। 
• इसके अलावा एक कथा उल्लेखित है कि नारद मुनि ने ब्रह्मा से पूछा — “इस एकादशी की महिमा क्या है?” — और ब्रह्मा ने बताया कि जो व्यक्ति इस दिन व्रत रखता है, वह अनेक पापों से मुक्ति पाता है। 
• इस दिन से शुभ कार्य जैसे विवाह, गृह-प्रवेश आदि पुनः प्रारंभ हो जाते हैं — क्योंकि चतुर्मास की अवधि में इन कार्यों को वर्जित माना गया था। 
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२. कथा-कहानियाँ और प्रतीक-महत्व
• एक कथा के अनुसार: “ओ नारद जी! यहाँ तक कि ब्रह्महत्या जैसे बड़े पाप भी इस व्रत द्वारा धुले जा सकते हैं।” 
• इस एकादशी को ‘जागृति’ का प्रतीक माना जाता है — जैसे भगवान विष्णु की नींद समाप्त हुई और वे जाग उठे, वैसे ही मनुष्य को भी अपने अंदर-ही-अंदर जागरण करना चाहिए। 
• प्रतीक रूप में ‘तुलसी-विवाह’ इस दिन या इसके उपरांत होता है — जहाँ तुलसी (मान्यता अनुसार माता तुलसी) का विवाह विष्णु (या शालिग्राम/विष्णु स्वरूप) से कराना उस जागृति का चिन्ह है।