21/06/2025
कहानी: "अंजीर का रहस्य"
गाँव के एक छायादार बगीचे में अनुज और उसका मित्र आरव खेल रहे थे। खेलते-खेलते अनुज की नजर एक अंजीर के पेड़ पर पड़ी, जिस पर ढेर सारे मीठे-रसीले अंजीर लगे थे। अनुज ने खुशी-खुशी एक अंजीर तोड़ा और आरव से बोला, "चलो, इसे खाते हैं!"
आरव ने मुस्कराकर सिर हिलाया, "नहीं अनुज, मैं अंजीर नहीं खाता।"
अनुज हैरान हुआ, "क्यों? ये तो बहुत स्वादिष्ट होता है!"
आरव ने अनुज का हाथ पकड़कर उसे पेड़ के नीचे बैठाया और बोला, "मैं तुम्हें एक अद्भुत रहस्य बताता हूँ।"
"जैन धर्म में हम अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म मानते हैं। इसका अर्थ है—किसी भी जीव, चाहे वह कितना भी छोटा क्यों न हो, उसे हानि न पहुँचाना। अब सुनो, अंजीर का फल बाहर से तो आम फल जैसा लगता है, लेकिन उसके अंदर एक अनोखी दुनिया छुपी होती है। जब अंजीर का फूल फल बनने लगता है, तो एक छोटी सी ततैया उसमें एक छोटे से छेद से घुसती है। वह वहाँ अपने अंडे देती है। लेकिन अंजीर के अंदर घुसने के बाद उसके पंख और पैर टूट जाते हैं, जिससे वह बाहर नहीं निकल पाती। वह ततैया वहीं मर जाती है।"
"अंजीर के अंदर एक खास एंजाइम होता है, जो उस ततैया के शरीर को धीरे-धीरे पचा देता है। जब हम अंजीर खाते हैं, तो अनजाने में उस ततैया के शरीर के अंश भी खाते हैं। यही नहीं, अंजीर के अंदर और भी सूक्ष्म जीव होते हैं, जो हमें दिखते नहीं, पर वे वहाँ रहते हैं।"
"जैन धर्म के ग्रंथों में पाँच ऐसे फल बताए गए हैं—अंजीर, गूलर, पीपल, बड़ और पाकर—जिन्हें 'उडुंबर फल' कहते हैं। इन सबमें इसी तरह जीवों की उत्पत्ति और हिंसा होती है, इसलिए हम इन्हें नहीं खाते। यह सिर्फ एक नियम नहीं, बल्कि हर जीव के प्रति करुणा और दया का भाव है।"
अनुज ने ध्यान से सुना और पहली बार समझा कि जैन धर्म के अनुयायी सिर्फ बड़े जीवों की ही नहीं, बल्कि सबसे छोटे और अदृश्य जीवों की भी रक्षा करते हैं। उसने आरव की बातों से गहरी सीख ली—सच्ची अहिंसा का अर्थ है, हर जीवन का सम्मान करना, चाहे वह हमें दिखे या न दिखे।
उस दिन के बाद अनुज जब भी किसी फल को देखता, तो उसके मन में करुणा और जिज्ञासा दोनों जाग जातीं—कहीं उसके भीतर भी कोई अनदेखा जीवन तो नहीं छुपा?
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