08/09/2025
*स्वामी देव तीर्थ भारती*
जन्म :1908
संबोधि: 8 सितंबर 1979 प्रभात
महासमाधि: संध्या: 8 सितंबर 1979
भगवान श्री रजनीश (ओशो) के पिता श्री रजनीश आश्रम में संन्यासियों के लोकप्रिय, प्रेम-भरे दद्दा जी।
ऐसे तो जन्मे थे टिमरनी में ,बसे व्यापार किया गाडरवारा में पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया बढ़ाया-निबाहा,बसाया-विवाह, भाई-बहिनों को, अपने परिवार के बच्चों को सब प्रेम से किया, लेकिन भीतर बने रह अछूते कमलवत गुपचुप। रोज सुबह घड़ी-चार घड़ी डुबते गए ध्यान में और यह ध्यान का बीज अंकुरित हुआ संन्यास में अपने ही बेटे—भगवान के हुए शिष्य।
घटना है अनूठी यह इतिहास की बेटे से सहज संन्यास, झुकना, मिटना गुरु के चरणों में। वह जो संन्यास-बीज अंकुरित हुआ था, पल्लवित हुआ ध्यान से, भजन से शाखाएं फैली बड़ी त्वरा से बरगद के घने वृक्ष जैसी सैकड़ों ने आश्रय पाया शीतल छाया में हजारों नाचे गाए, उत्सव मनाए इस बरगद तले।
लेकिन उनके अपनी जीवन में कुछ रह गया था अनखिला, अनफूला, गुरू प्ररताप साध की संगति
डूबते गए ध्यान में खोते गये भजन में, रोज डूबना, रोज खोना, गहरे और गहरे, भीतर ध्यान और बहार भजन संतुलन सधता गया।
और आया अपूर्व क्षण, 8 सितंबर 1979 की सुबह फूल खिला, सहस्त्रदल कमल खिला सुगंध बिखरी,उड़ी हजारों-हजारों संन्यासियों को भिगो गई, डुबो गई
और उसी दिन सांझ ढलते-ढलते रात होत-होते, फूल मुरझा चला पंखुरिया एक-एक करके बिखर चली और अंनत: न फूल बचा, न बची पंखुरी शेष रह गया शुन्य
घट गई महा समाधि ।महापरिनिर्वाण हो गया सुबह खिले, सांझ विलीन हो गए ।सुबह जन्मे, सांझ शून्य हो गए
जीए—बस एक दिन।
पर जीवन माह जीवन
‘’तेन त्यक्तेन भुंजीथा: वे सच ही ‘’तीर्थ’’ हुए
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