O My Beloved Master

O My Beloved Master We are sharing Osho love affair. Our master dream. Live love laugh. Meditate celebrate.

Gain harmony in your body-mind in 7 days. OSHO Talking To Your Bodymind is a therapeutic course for men & women that ena...
15/11/2025

Gain harmony in your body-mind in 7 days.

OSHO Talking To Your Bodymind is a therapeutic course for men & women that enables deep relaxation and natural self-healing.

You will explore & befriend your bodymind's self-healing energies and learn how to allow the body’s wisdom to restore wholeness & balance.

Get rid of addictions or any other specific issues as you will be able to identify and address the root cause, not just the symptoms.
Dates: 02 - 08 Dec, 2025

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यह मैं आने वाले युवकों से कहना चाहता हू ..Osho✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨यह जो जितनी अश्लीलता और कामुकता और जितनी सेक्सुअलिटी है, यह...
29/09/2025

यह मैं आने वाले युवकों से कहना चाहता हू ..Osho
✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨✨

यह जो जितनी अश्लीलता और कामुकता और जितनी सेक्सुअलिटी है, यह सारी की सारी वर्जना का अंतिम परिणाम है। और यह मैं आने वाले युवकों से कहना चाहता हूं कि तुम जिस दुनिया को बनाने में संलग्न होओगे, उसमें सेक्स को वर्जित मत करना, अन्यथा आदमी और भी कामुक से कामुक होता चला जाएगा। यह बात मेरी बड़ी उलटी लगेगी। मुझे तो लोग, अखबारवाले और नेतागण चिल्ला-चिल्ला कर घोषणा करते हैं कि मैं लोगों में काम का प्रचार कर रहा हूं।

मैं लोगों को काम से मुक्त करना चाहता हूं; प्रचार वे कर रहे हैं! लेकिन उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता। उनका प्रचार दिखाई नहीं पड़ता, क्योंकि हजारों साल की परंपरा से उनकी बातें सुन-सुन कर हम अंधे और बहरे हो गए हैं। हमें खयाल भी नहीं रहा कि वे क्या कह रहे हैं। मन के सूत्रों का, मन के विज्ञान का कोई बोध भी नहीं रहा कि वे क्या कर रहे हैं और क्या करवा रहे हैं। इसीलिए आज पृथ्वी पर जितना कामुक आदमी भारत में है, उतना कामुक आदमी पृथ्वी के किसी कोने में नहीं है. Listen full Disclosure
👇
https://oshoworld.com/sambhog-se-samadhi-ki-oar-07

Osho
संभोग से समाधि की ओर #7

✨यही तुम्हारा जीवन है। कोई है नहीं। हंसो तो तुम हंस रहे हो, रोओ तो तुम रो रहे हो; जिम्मेवार कोई भी नहीं। यह हो सकता है क...
27/09/2025

✨यही तुम्हारा जीवन है।
कोई है नहीं। हंसो तो तुम हंस रहे हो, रोओ तो तुम रो रहे हो; जिम्मेवार कोई भी नहीं। यह हो सकता है कि बहुत दिन रोने से तुम्हारी रोने की आदत बन गयी हो और तुम हंसना भूल गये हो। यह भी हो सकता है कि तुम इतने रोये हो कि तुमसे अब कुछ और करते बनता नहीं—अभ्यास हो गया। यह भी हो सकता है कि तुम भूल ही गये, इतने जन्मों से रो रहे हो कि तुम्हें याद ही नहीं कि कभी यह मैने चुना था—रोना। लेकिन तुम्हारे भूलने से सत्य असत्य नहीं होता है। तुमने ही चुना है। तुम ही मालिक हो। और, इसलिए जिस क्षण तुम तय करोगे, उसी क्षण रोना रुक जाएगा।

इस बोध से भरने का नाम ही कि ‘मैं ही मालिक हूं, ‘मैं ही सृष्टा हूं,, ‘जो भी मैं कर रहा हूं उसके लिए मै ही जिम्मेवार हूं, —जीवन में क्रांति हो जाती है। जब तक तुम दूसरे को जिम्मेवार समझोगे, तब तक क्रांति असंभव है; क्योंकि तब तक तुम निर्भर रहोगे। तुम सोचते हो कि दूसरे तुम्हें दुखी कर रहे हैं, तो फिर तुम कैसे सुखी हो सकोगे? असंभव है; क्योंकि दूसरों को बदलना तुम्हारे हाथ में नहीं। तुम्हारे हाथ में तो केवल स्वयं को बदलना.... Cont. Read n listen 👇
https://oshoworld.com/shiv-sutra-06

Osho ✨
शिव-सूत्र-(प्रवचन-06)

प्रश्न: भगवान, अध्ययन, चिंतन और श्रवण से बुद्धिगत समझ तो मिल जाती है, लेकिन मेरा जीवन तो अचेतन तलघरों से उठने वाले आवेगो...
21/09/2025

प्रश्न: भगवान, अध्ययन, चिंतन और श्रवण से बुद्धिगत समझ तो मिल जाती है, लेकिन मेरा जीवन तो अचेतन तलघरों से उठने वाले आवेगों और धक्कों से पीड़ित और संचालित होता रहता है। मैं असहाय हूं, अचेतन तलघरों तक मेरी पहुंच नहीं। कोई विधि, कोई जीवन—शैली, सूत्र और दिशा देने कि कृपा करें।

⭕..
अध्ययन, चिंतन और मनन से जो मिलता है, वह बुद्धि की समझ भी नहीं है, सिर्फ समझ की भ्रांति है। यूं ही जैसे किसी अंधे को प्रकाश के संबंध में हम समझाए—वह सुने भी। और अंधों की पढ़ने की प्रणाली भी है...अध्ययन भी करे। और जो सुना है और जो पढ़ा है, उस पर भीतर चिंतन भी करे, मनन भी करे, तो भी क्या तुम सोचते हो, उसे प्रकाश की कोई समझ मिल जाएगी? हां, एक भ्रांति मिल सकती है कि मैं प्रकाश को समझता हूं। और वह भ्रांति अंधेपन से भी ज्यादा खतरनाक है। क्योंकि अंधा आदमी यह समझे कि मैं नहीं समझता तो शायद उस औषधि की तलाश करे, जिससे आंखें मिल जाए। लेकिन अंधा अगर समझ ले कि मैं समझता हूं, तब तो वह द्वार भी बंद हो गया। तुम्हारे प्रश्न के दो हिस्से हैं।...more Read n listen

https://oshoworld.com/koplen-phir-phoot-aayeen-06

कोपलें फिर फूट आईं #6

❤️🙏❤️
18/09/2025

❤️🙏❤️

प्रश्न:भगवान, इस देश में ध्यान को गौरीशंकर की ऊंचाई मिली। शिव, पतंजलि, महावीर, बुद्ध, गोरख जैसी अप्रतिम प्रतिभाएं साकार ...
16/09/2025

प्रश्न:
भगवान, इस देश में ध्यान को गौरीशंकर की ऊंचाई मिली। शिव, पतंजलि, महावीर, बुद्ध, गोरख जैसी अप्रतिम प्रतिभाएं साकार हुईं। फिर भी किस कारण से ध्यान के प्रति आकर्षण कम होता गया?

Osho : मैं अभी-अभी मेंहदी हसन की एक गजल सुन रहा था।
कोंपलें फिर फूट आईं शाख पर, कहना उसे
वो न समझा है, न समझेगा, मगर कहना उसे
कोंपलें फिर फूट आईं शाख पर।
संन्यास का यह प्रवाह: कोंपलें फिर शाख पर फूट आईं।
इस देश में ध्यान कभी भी मरा नहीं। कभी भूमि के ऊपर और कभी भूमि के भीतर, मगर उसकी गंगा बहती रही सतत, सनातन। आज भी बहती है, कल भी बहेगी। और यही एक आशा है मनुष्य की। क्योंकि जिस दिन ध्यान मर जाएगा, उस दिन आदमी भी मर जाएगा। ध्यान में ही आदमी के प्राण हैं। चाहे तुम्हें पता हो न पता हो, चाहे तुम जानो या न जानो, ध्यान तुम्हारी अंतरात्मा है। तुम्हारी श्वासों के भीतर जो छिपा है और तुम्हारी धड़कनों के भीतर जो छिपा है, तुम जो हो, वह ध्यान के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं।

लेकिन प्रश्न महत्वपूर्ण है..cont. Read n listen 👇

https://oshoworld.com/koplen-phir-phoot-aayeen-12

Osho✨🙏
कोपलें फिर फूट आई #12

प्रश्न: भगवान, मैं एक विचारशील युवक हूं, जिसे अपने देश के मौजूदा हालात बिलकुल पसंद नहीं। यह अंधविश्वासों तथा दकियानूसी व...
13/09/2025

प्रश्न: भगवान, मैं एक विचारशील युवक हूं, जिसे अपने देश के मौजूदा हालात बिलकुल पसंद नहीं। यह अंधविश्वासों तथा दकियानूसी विचारों से दबा हमारा भारत बिलकुल नरक बन गया है। मेरा खून खौल-खौल उठता है इसकी सड़ी-गली स्थिति देख कर और इस अभागे देश के लिए कुछ करने के लिए अधीर हो उठता हूं।
भगवान, एक व्यक्ति के नाते इस देश के प्रति मेरा क्या कर्तव्य है? मैं क्या करूं कि इस देश की दीन-हीनता, भुखमरी, पाखंड, काहिलता और सड़ांध मिट जाए?

ओशो 🙏

https://oshoworld.com/anahad-mein-bisram-09
दिनांक 19, नवम्बर, सन् 1980
आनहद में विसराम #9
(पहले ध्यान--फिर सेवा)

*स्वामी देव तीर्थ भारती*जन्म :1908 संबोधि: 8 सितंबर 1979 प्रभातमहासमाधि: संध्या: 8 सितंबर 1979भगवान श्री रजनीश (ओशो) के ...
08/09/2025

*स्वामी देव तीर्थ भारती*
जन्म :1908
संबोधि: 8 सितंबर 1979 प्रभात
महासमाधि: संध्या: 8 सितंबर 1979

भगवान श्री रजनीश (ओशो) के पिता श्री रजनीश आश्रम में संन्यासियों के लोकप्रिय, प्रेम-भरे दद्दा जी।

ऐसे तो जन्मे थे टिमरनी में ,बसे व्यापार किया गाडरवारा में पाला-पोसा, पढ़ाया-लिखाया बढ़ाया-निबाहा,बसाया-विवाह, भाई-बहिनों को, अपने परिवार के बच्चों को सब प्रेम से किया, लेकिन भीतर बने रह अछूते कमलवत गुपचुप। रोज सुबह घड़ी-चार घड़ी डुबते गए ध्यान में और यह ध्यान का बीज अंकुरित हुआ संन्यास में अपने ही बेटे—भगवान के हुए शिष्य।

घटना है अनूठी यह इतिहास की बेटे से सहज संन्यास, झुकना, मिटना गुरु के चरणों में। वह जो संन्यास-बीज अंकुरित हुआ था, पल्लवित हुआ ध्यान से, भजन से शाखाएं फैली बड़ी त्वरा से बरगद के घने वृक्ष जैसी सैकड़ों ने आश्रय पाया शीतल छाया में हजारों नाचे गाए, उत्सव मनाए इस बरगद तले।

लेकिन उनके अपनी जीवन में कुछ रह गया था अनखिला, अनफूला, गुरू प्ररताप साध की संगति

डूबते गए ध्यान में खोते गये भजन में, रोज डूबना, रोज खोना, गहरे और गहरे, भीतर ध्यान और बहार भजन संतुलन सधता गया।

और आया अपूर्व क्षण, 8 सितंबर 1979 की सुबह फूल खिला, सहस्त्रदल कमल खिला सुगंध बिखरी,उड़ी हजारों-हजारों संन्यासियों को भिगो गई, डुबो गई

और उसी दिन सांझ ढलते-ढलते रात होत-होते, फूल मुरझा चला पंखुरिया एक-एक करके बिखर चली और अंनत: न फूल बचा, न बची पंखुरी शेष रह गया शुन्य

घट गई महा समाधि ।महापरिनिर्वाण हो गया सुबह खिले, सांझ विलीन हो गए ।सुबह जन्मे, सांझ शून्य हो गए
जीए—बस एक दिन।
पर जीवन माह जीवन
‘’तेन त्यक्तेन भुंजीथा: वे सच ही ‘’तीर्थ’’ हुए

🙏🌹🌹🌹🙏

07/09/2025

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