31/03/2022
लैब कैडर केंद्र में लागू हुए लगभग 7 साल होने को आये हैं पर दिल्ली के लैब कैडर का कुछ पता नही है, बड़े राज्यों और esi में भी लागू हो गया है।
ये निश्चित है कि जहाँ लागू हुआ है उन्होंने जरूर कुछ मेहनत तो की होगी अपने हक़ को पाने के लिए।
अगर हम ये सोचकर बैठे हैं कि सरकार हमे बिना सड़क पर आए cadre review दे देगी तो ऐसे सरकाए को जो करना था वो कर दिया है उसे सिर्फ post का नाम ही बदलना था जो उसने कर दिया है। अब इससे ज्यादा की उम्मीद करना खुद को अंधेरे में रखना ही होगा।
अगर हमारे हक को पाने में देरी हो रही है तो इसका जिम्मेदार मैं खुद भी हूं मुझे अभी तक नही पता है कि मेरे हक़ की लड़ाई का झंडा उठाकर कौन सी यूनियन चल रही है जिसे भी देखते हैं लगता है यही सच्चा मसीहा है, पर अगर सच्चे मसीहा होते तो क्या अभी तक मिल न गया होता? परन्तु यहां हर नेता सिर्फ अपने आप की एक पहचान बनाये रखने के लिए ही मौजूद है ये भूलकर की उनका असली मुद्दा कर्मचारियों के हक की लड़ाई था।
जिन नर्सिंग स्टाफ की सैलरी कभी lab स्टाफ के बराबर या कम हुआ करती थी आज हम लगभग उनके आधे में ही काम कर रहे हैं इसके अलावा अस्पताल में उनके पदों के सम्मान ओर लैब स्टाफ के सम्मान के बारे में सभी जानते ही होंगे कारण ज्यादा बड़ा नही है बस उनके अंदर नेताओं की कमी है और हमारे पास भरमार, कर्मचारियों की लड़ाई का झंडा उठाने का इतना ज्यादा जुनून है कि सभी अध्यक्ष बनना चाहते हैं चाहे एक ओर यूनियन क्यों न बनानी पड़े क्योंकि पुराने प्रतिनिधि अपनी नेतागिरी रिटायरमेंट के बाद भी जारी रखना चाहते हैं, एक दिन ऐसा आएगा सारे लैब स्टाफ किसी न किसी यूनियन के प्रतिनिधि जरूर होंगे ही। आज भी कुछ कम नही हैं कुछ तो 2-2 यूनियन में सेवा कर रहे हैं।
पर इसमें कमी किसकी है क्या उन नेताओं की या सभी कर्मचारियों की? सोचना जरूर।
नितिन चौधरी।