10/02/2020
कबीरदास जी का एक दोहा है
“माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोय।।
मिट्टी, कुम्हार से कहती है, कि आज तू मुझे पैरों तले रोंद (कुचल) रहा है।
एक दिन ऐसा भी आएगा कि मैं तुझे पैरों तले रोंद दूँगी।
संदर्भ – कोरोना वायरस , बर्ड फ्लू , सार्स वायरस, इबोला वायरस…. इत्यादि वायरस
पृथ्वी पर जीव सृष्टी का चक्र है, जिससे पृथ्वी पर जीवन चक्र चलता रहता है। हर छोटा जीव उससे बड़े जीव का भोजन होता है।
यह जीवनक्रम, त्याग तथा भोग इस प्राकृत भाव से चलता है। त्याग मे परोपकार निहित है । भूख नही होने पर अनायास ही कोई किसी को भक्ष्य नही बनाता। जिव्हा लोलुपता के लिये या भयभाव से आखेट नही किया जाता है ।
इस जीवनक्रम मे आधुनिक मानव ही भयग्रस्त और लालची जीव है।
भय एवं लालच ने मानव को हिंसक बना दिया है। उस हिंसा का शिकार प्राय: छोटे जीव ही होते है।
हमारे वातावरण में असंख्य परोपकारी सूक्ष्मजीव है जिनकी वजह से हमारा जीवन बना हुआ है। ये सूक्ष्मजीव हमे सामान्य आँखो से दिखाई नही देते है इन्हे चिकित्सा सिध्दांत बेक्टीरिया तथा वायरस के नाम से जानता है।
हमारी त्वचा तथा हमारी आंते भी अनेक जीवाणुओं का आश्रयस्थल है, जो आश्रय के एवज मे हमे अनेक अन्य हानिकारक जीवाणुओं से बचाती है।
अत्यधिक रूप कीटनाशको के प्रयोगो से हमारे वातावरण से कुछ जीव प्रजातिया नष्ट हो चुकी है, जिस वजह से वातावरण मे कुछ हानिकारक जीवाणु विषाणु की संख्या बढ जाती है,इसलिये समय समय पर विषाणु से मानव ग्रसित हो जाता है ।
भय तथा लालच से ग्रसित मानव व्दारा प्राकृतिक सम्पदा तथा प्राकृतिक जीवन चक्र का विवेकहीन दोहन तथा दमन विविध महामारी को आमंत्रण देता रहेगा। इसीलिये सभी अतिसूक्ष्म से महाकाय जीवन का सम्मान करना ही मानव जीवन के लिये जरूरी है ।
इसलिये वेद में तेन तक्तेन भुंजीथा का उपदेश दिया है।
ईशावास्यं इदं सर्वं, यत्किंच जगत्यां जगत्,
तेन त्यक्तेन भुंजीथा, मा गृध: कस्यस्विद्धनम्
त्याग पूर्वक भोग ही पृथ्वी पर जीव सृष्टी के लिये अनिवार्य है।
अन्यथा कबीरजी की वाणी मे माटी की जगह जीवाणु अपनी बात दोहराएंगे........................... तु क्या रोंदे मोय।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौदूंगी तोय।।