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*Health Blood Test:* 30 के बाद रूटीन में शामिल कर लें ये  टेस्ट, गंभीर बीमारियों से कभी नहीं होगा सामनाBest blood test f...
11/03/2023

*Health Blood Test:*

30 के बाद रूटीन में शामिल कर लें ये टेस्ट, गंभीर बीमारियों से कभी नहीं होगा सामना

Best blood test for overall health:
खून की पहुंच बॉडी के सभी अंगों तक होती है। इसलिए इसे टेस्ट करके शरीर में चल रही गतिविधियों का पता लगाया जाता है। सब कुछ सही और स्वस्थ्य तरीके से काम कर रहा है या नहीं। ऐसा करने कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का समय रहते पता चल जाता है।

खून की जांच(Blood Test) आमतौर पर आपने तब ही करवाया होगा जब आप बीमार हो चूके होंगे। अक्सर डॉक्टर की सलाह पर ही लोग टेस्ट करवाना जरूरी समझते हैं। लेकिन ये गलत है। अब आपके मन में यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि जब स्वस्थ्य है, तो फिर ब्लड टेस्ट क्यों करवाना चाहिए? दरअसल, खून की पहुंच बॉडी के सभी अंगों तक होती है। इसलिए इसे टेस्ट करके शरीर में चल रही हर छोटी-बड़ी गतिविधियों का पता लगाया जा सकता है। सब कुछ सही और स्वस्थ्य तरीके से काम कर रहा है या नहीं। ऐसा करने से कई तरह के इंफेक्शन और बीमारियों का समय रहते पता चल जाता है।

ऐसे ही कुछ न्यूट्रिशनिस्ट निकिता तनवर भी मानती हैं। हाल ही में इंस्टाग्राम पर ब्लड टेस्ट की एक पूरी लिस्ट शेयर करते हुए उन्होंने लिखा है कि सभी को 30 से 50 की उम्र तक ये टेस्ट हर साल जरूर करवाना चाहिए। स्क्रीनिंग टेस्ट से किसी भी बीमारी का लक्षण दिखने से पहले ही उसका निदान कर सकते हैं। इससे समय रहते गंभीर से गंभीर बीमारी के उपचार में मदद मिलती है। हालांकि, याद रखें कि सभी लैब रिपोर्टों की समीक्षा एक प्रशिक्षित चिकित्सक द्वारा की जानी चाहिए, क्योंकि जो स्थिति एक व्यक्ति के लिए सामान्य हो सकता है वह दूसरे के लिए नहीं होता है। यह बात व्यक्ति के समग्र स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करती है।

CBC-कंप्लीट ब्लड काउंट टेस्ट का उपयोग आपके समग्र स्वास्थ्य का मूल्यांकन करने और एनीमिया, संक्रमण और ल्यूकेमिया सहित बीमारियों का पता लगाने के लिए किया जाता है। इसमें लाल रक्त कोशिकाएं को मापा जाता है, जो शरीर के सभी भागों में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम करती है।

HBA1C-इस टेस्ट की मदद से पिछले दो से तीन महीनों में औसत ब्लड में शुगर की मात्रा का पता लगाया जाता है। इससे आसानी से टाइप1 और टाइप 2 डायबिटीज को होने से रोका जा सकता है।

LIPID PROFILE-कोलेस्ट्रॉल टेस्ट को लिपिट पैनल या प्रोफाइल नाम से भी जाना जाता है। खून में इसकी मात्रा अधिक होने पर यह धमनियों में ब्लॉकेज पैदा करने लगती है। जिससे धमनी और हृदय रोगों का जोखिम बढ़ जाता है। इससे आपको दिल का दौरा पड़ने, स्ट्रोक, पेरिफेरल आर्टरी डिजीज का खतरा भी होता है। समय पर इसकी मात्रा पता होने से आप इस खतरे से बच सकते हैं।

VITAMIN B12- ये पोषक तत्व बॉडी की एनर्जी और फर्टिलिटी के लिए मुख्य रूप से जरूरी होते हैं। इसके लिए करवाया जाने वाला ब्लड टेस्ट दिमाग, तंत्रिका तंत्र की गतिविधियों की जानकारी देने में मदद करता है ।

इसके इलावा लीवर गुर्दे थायराइड टेस्ट से इन सभी की बीमारियों का पता लगाया जा सकता है।

किसी भी लैब से कोई भी टेस्ट करवाने के लिए कॉल करे।
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19/02/2023

ज्यादातर लोग दूध का सेवन सिर्फ इसलिए करते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि दूध पीने से हड्डियां मजबूत होती हैं। लेकिन हकीकत ये है कि दूध में कैल्शियम के अलावा भी कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए कई तरह से फायदेमंद हैं। न्यूट्रिशन नाम की पत्रिका में साल 2014 में प्रकाशित एक स्टडी की मानें तो दूध पीने को लेकर कितने ही विवाद क्यों न हो, अध्ययनों में यह बात साबित हो चुकी है कि दूध, हमारी सेहत को बनाए रखने में अहम रोल निभाता है। इसके अलावा दूध पीने से हृदय रोग, कई तरह का कैंसर, मोटापा और डायबिटीज जैसी बीमारियों को भी रोकने में मदद मिलती है।

वैसे तो ज्यादातर लोग दूध की खूबियों से वाकिफ होते हैं और सभी घरों में दूध का इस्तेमाल जरूर होता है। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसी कई स्टडीज सामने आयी है जिसमें दूध में पाए जाने वाले लैक्टोज की वजह से दूध को पाचन तंत्र से संबंधित बीमारियां जैसे- दस्त, गैस, पेट फूलना, पेट दर्द आदि के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इसके अलावा दूध पीने से कोलेस्ट्रॉल और कफ की भी समस्या हो सकती है।

इन सबकी वजह से बहुत से लोगों ने दूध पीना बंद भी कर दिया है। बावजूद इसके दूध के फायदों को नकारा नहीं जा सकता और आज भी ज्यादातर घरों में बच्चों को रोजाना दूध जरूर पिलाया जाता है। लेकिन क्या सिर्फ बच्चों को ही रोज दूध पीना चाहिए? क्या वयस्कों को दूध की जरूरत नहीं है? इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर बच्चों की ही तरह वयस्कों को भी प्रतिदिन कितना दूध पीना चाहिए।

पोषक तत्वों का बेहतरीन स्त्रोत है दूध
ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि दूध में कैल्शियम होता है इसलिए यह हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है। लेकिन दूध में कैल्शियम के अलावा भी कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जिस कारण दूध अपने आप में एक कम्प्लीट मील यानी संपूर्ण भोजन माना जाता है। दूध सिर्फ कैल्शियम का बेस्ट स्त्रोत ही नहीं बल्कि दूध में पाया जाने वाले कैल्शियम को हमारा शरीर आसानी से सोख लेता है। कैल्शियम के अलावा दूध में विटामिन डी, प्रोटीन, पोटैशियम, फॉस्फॉरस, मैग्नीशियम, विटामिन बी12 और जिंक भी पाया जाता है।

कैल्शियम हड्डियों और दांतों को मजबूत बनाने के लिए जरूरी है
पोटैशियम ब्लड प्रेशर को बनाए रखने में अहम रोल निभाता है
विटामिन डी, बच्चों में रिकेट्स और वयस्कों में ऑस्टियोपोरोसिस के खतरे से बचाता है
विटामिन बी12 सेंट्रल नर्वस सिस्टम को बनाए रखने में मदद करता है
विटामिन ए रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्वस्थ बनाने में मददगार है
जिंक भी इम्यूनिटी मजबूत बनाने और सर्दी-जुकाम दूर रखने में मदद करता है
रोजाना कितना दूध पीना चाहिए?
आपको रोज कितना दूध पीना चाहिए यह आपकी शरीर की जरूरतों और उम्र दोनों पर निर्भर करता है। उम्र के हिसाब से जानते हैं कि रोजाना कितना दूध पीना चाहिए:

जन्म से 1 साल तक
जन्म से लेकर 6 महीने तक डॉक्टर शिशु को सिर्फ मां का दूध पिलाने की ही सलाह देते हैं क्योंकि इस दौरान विकास के लिए बच्चे को ज्यादा पोषण की जरूरत होती है जो उसे सिर्फ मां के ब्रेस्टमिल्क से ही मिल सकती है। 6 महीने के बाद भी जब तक शिशु 1 साल का न हो जाए उसे गाय का दूध नहीं देना चाहिए क्योंकि इससे उन्हें कई तरह का नुकसान हो सकता है। इसलिए 6 महीने से 1 साल तक के बच्चे को सॉलिड चीजें खिलाने के साथ ही मां का दूध या फॉर्मूला मिल्क जरूर पिलाना चाहिए।

1 से 3 साल तक
1 से 3 साल तक के बच्चों को रोजाना करीब 350 मिलिग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है और इसलिए इस उम्र के बच्चों को प्रतिदिन करीब 100 से 200 मिलीलीटर दूध जरूर पिलाना चाहिए। दूध के अलावा बच्चों को दही और चीज जैसे दूध से बने प्रॉडक्ट्स भी देने चाहिए।


4-10 साल तक
4 से 10 साल तक के बच्चों के लिए रोजाना करीब 450 से 500 मिलिग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है और इसके लिए उन्हें 200 से 300 मिलीलीटर दूध पिलाना जरूरी होता है और साथ में डेयरी प्रॉडक्ट्स भी।


11 से 18 साल तक
इस दौरान बच्चों का शारीरिक और मानसिक विकास बेहद तेजी से होता है, जिसमें दूध अहम रोल निभाता है। लिहाजा 18 साल तक के किशोर बच्चों को रोजाना करीब 3 कप तक दूध जरूर पिलाना चाहिए।

वयस्कों को इतने दूध की जरूरत
इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) की रिपोर्ट की मानें तो एक वयस्क भारतीय यानी 18 साल से अधिक उम्र के व्यक्ति को रोजाना 600 मिलिग्राम कैल्शियम की जरूरत होती है यानी करीब 2 गिलास दूध। हालांकि रोजाना करीब 200 मिलिलीटर यानी 1 गिलास दूध या 1 कटोरी दही वयस्कों के रोजाना के कैल्शियम की जरूरत के लिए काफी है। बाकी कैल्शियम की जरtरतें पारंपरिक भारतीय भोजन का अहम हिस्सा मानी जाने वाली फलियां, दालें, बीन्स, सब्जियां, सीरियल आदि से पूरी हो जाती हैं।

गंगा लैब
गनौर

हीमोग्लोबिन हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। हीमोग्लोबिन हमारी रक्त कोशिकाओं में मौजूद लौह युक्त प्रोटीन ह...
26/07/2021

हीमोग्लोबिन हमारे शरीर का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा है। हीमोग्लोबिन हमारी रक्त कोशिकाओं में मौजूद लौह युक्त प्रोटीन है। ये प्रोटीन हमारे शरीर में ऑक्सीजन के प्रवाह को संतुलित करता है। इसका मुख्य काम हमारे फेफड़ों से ऊतकों तक ऑक्सीजन पहुंचाना है ताकि हमारी जीवित कोशिकाएं सही से काम कर सकें।

क्योंकि हीमोग्लोबिन एक स्वस्थ जीवन जीने के लिए इतना महवपूर्ण है, तो ये ज़रूरी है कि आपके खून में इसकी मात्रा सही रहे। इसकी सही मात्रा कुछ इस प्रकार है।



पुरुषों में हीमोग्लोबिन की सही मात्रा 14 से 17 ग्राम/100 मिली. रक्त होती है, वहीं स्त्रियों में ये मात्रा 13 से 15 ग्राम/100 मिली. रक्त होती है। शिशुओं के शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा लगभग 14 से 20 ग्राम/100 मिली. रक्त होनी चाहिए।

हीमोग्लोबिन की कमी का शरीर पर प्रभाव



जब हीमोग्लोबिन की मात्रा घट जाती है तो आपका शरीर कई बीमारियों की चपेट में आ सकता है। आप थकान, कमजोरी, सांस का फूलना, चक्कर आना, सिर दर्द, पीली त्वचा, तेजी से दिल की धड़कन और भूख न लगने के शिकार हो सकते हैं।

अगर आपके शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बहुत ज़्यादा घट जाती है तो आप एनीमिया से भी पीड़ित हो सकते हैं और इसके लक्षण गंभीर हो सकते हैं। महिलाओं में गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान हीमोग्लोबिन की मात्रा काम होना एक आम बात है। लेकिन इसके कई अन्य कारण भी हो सकते हैं। सबसे आम कारण है लौह पोषक तत्वों की कमी यानी की आयरन डेफिशियेंसी, फोलिक एसिड, विटामिन सी और बी12 की कमी। हीमोग्लोबिन का स्तर गिरने के और कारण भी हो सकते हैं जैसे कि सर्जरी के कारण अत्यधिक खून का बहना, लगातार रक्त दान, बोन मेरो की बीमारियां, कैंसर, गुर्दों की समस्याएं, गठिया, मधुमेह, पेट के अल्सर और पाचन तंत्र की अन्य बीमारियां।

ज्यादातर मामलों में, कम हीमोग्लोबिन कम लाल रक्त कोशिकाओं की वजह से भी हो सकता है। हीमोग्लोबिन में गिरावट का कारण जानकर और डॉक्टर से परामर्श करने के बाद, आप इन घरेलू नुस्खों को आज़मा सकते हैं। हीमोग्लोबिन बढ़ने का समय आपके हीमोग्लोबिन में गिरावट के कारण और कितनी बार आपके डॉक्टर चेक करते हैं उस पर निर्भर करता है।



यहां हम आपको एक बहुत ही साधारण सी बात बता देना चाहते हैं कि दिन में एक सेब अवश्य खाकर आप आपके शरीर में हीमोग्लोबिन स्तर को सामान्य बनाए रख सकते हैं। इसके अलावा इन बातों का ध्यान रख कर भी आप अपने शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी होने से रोक सकते हैं

हीमोग्लोबिन की कमी को ऐसे पूरा करें



लीची

स्वास्थ्यवर्धक गुणों से भरपूर लीची, रक्त कोशिकाओं के निर्माण और पाचन-प्रक्रिया में सहायक होती है। लीची में बीटा कैरोटीन, राइबोफ्लेबिन, नियासिन और फोलेट जैसे विटामिन बी उचित मात्रा में पाया जाता है। इसमें मौजूद विटामिन लाल रक्त कोशिकाओं के निर्माण के लिए आवश्यक है।



चुकंदर

शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ाने के लिए चुकंदर सबसे अच्छा खाद्य प्रदार्थ है। चुकंदर पोषक तत्वों की खान है। इसमें आयरन, फोलिक एसिड, फाइबर, और पोटेशियम ये सभी सही मात्रा में पाया जाता है। ये शरीर की लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में तेजी से वृद्धि करता है।



अनार

इनके अलावा अनार हीमोग्लोबिन बढ़ाने में बहुत लाभकारी होता है। अनार में आयरन और कैल्शियम के साथ-साथ प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट और फाइबर जैसे तत्व होता हैं, जिनसे शरीर में हीमोग्लोबिन की मात्रा बढ़ाने में मदद मिलती है।

व्यायाम

शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी को रोकने के लिए नियमित व्यायाम करना चाहिए। जब आप व्यायाम करते हैं तब आपका शरीर खुद-ब-खुद हीमोग्लोबिन पैदा करता है।

कॉफ़ी, चाय, वाइन, बियर, से बचे।



हम आपको बता देना चाहते हैं कि कॉफ़ी, चाय, वाइन, बियर, कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थ और कैल्शियम सप्लीमेंट्स वाली चीजें शरीर में आयरन सोखने की क्षमता को कम देते हैं। इसीलिए अगर आपका हीमोग्लोबिन स्तर कम हो गया है तो है तो आपको इन खाद्य प्रदार्थों के सेवन से बचना चाहिए।



विटामिन सी की कमी हो जाने के कारण भी हीमोग्लोबिन का स्तर कम हो जाता है। जब शरीर में विटामिन सी की कमी होती है तो इस कारण आपका शरीर सही मात्रा में आयरन को सोख नहीं पाता। इसीलिए विटामिन सी से भरपूर खाद्य प्रदार्थों के सेवन से आप हीमोग्लोबिन का स्तर सही कर सकते हैं।

लैब पर आकर ये मेसेज दिखाए और हीमोग्लोबिन टेस्ट बिल्कुल फ्री में करवाए।

गंगा लैब
9812299911

12/12/2020

इंसान के जीवित रहने और पूरी तरह से स्वस्थ रहने के लिए उसके *इम्यून सिस्टम* यानी प्रतिरक्षा तंत्र का बेहतर तरीके से काम करना बेहद जरूरी है। प्रतिरक्षा तंत्र के बिना हमारे शरीर पर बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और परजीवियों का आसानी से हमला हो सकता है। हमारा शरीर जब इतने सारे रोगाणुओं के बीच घूमता है तो हमारा प्रतिरक्षा तंत्र ही हमें इनसे बचाकर स्वस्थ रखता है। हमारा इम्यून सिस्टम कोशिकाओं और प्रोटीन्स के एक जटिल जाल की तरह है जो शरीर को संक्रमण से बचाता है।

इतना ही नहीं आपको जानकर हैरानी होगी कि हमारा इम्यून सिस्टम हर एक कीटाणु या रोगाणु जिसे उसने कभी हराया होगा उन सबका रेकॉर्ड रखता है ताकि अगर वह कीटाणु या रोगाणु दोबारा शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करे तो हमारा इम्यून सिस्टम बिना समय गंवाए उसे तुरंत हरा पाए। कोशिकाएं, उत्तक, प्रोटीन और अंगों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क या यूं कहें कि जाल है जो हमेशा बाहरी आक्रमणकारियों की तलाश करता है और जैसे ही कोई दुश्मन नजर आता है, उस पर जटिल तरीके से हमला किया जाता है।

आसान शब्दों में समझें तो इम्यून सिस्टम किसी भी तरह के संक्रमण के खिलाफ शरीर का खुद को बचाने का एक सिस्टम है क्योंकि जैसे ही कोई रोगाणु या कीटाणु का शरीर पर हमला होता है तो इम्यून सिस्टम उस कीटाणु पर वार कर उसे शरीर में प्रवेश करने से रोकता है और हम बीमार पड़ने से बच जाते हैं। तो आखिर हमारा इम्यून सिस्टम कैसे काम करता है, इम्यून सिस्टम के अहम हिस्से कौन-कौन से हैं, इम्यून सिस्टम कितने तरह का होता है इन सभी के बारे में हम आपको इस आर्टिकल में बता रहे हैं।

*इम्यून सिस्टम के अहम हिस्से कौन-कौन से हैं?*
इंसान के शरीर का इम्यून सिस्टम कई खास तरह के अंग, कोशिकाएं, उत्तक और केमिकल्स से मिलकर बना होता है ताकि वे किसी भी तरह के संक्रमण से लड़ने में सक्षम हो सकें। इम्यून सिस्टम के ये अहम हिस्से हैं:

सफेद रक्त कोशिकाएं (वाइट ब्लड सेल्स wbc)
एंटीबॉडीज
पूरक तंत्र (कॉम्प्लिमेंट सिस्टम)
लसीका तंत्र (लिम्फैटिक सिस्टम)
स्प्लीन
बोन मैरो
बाल्यग्रंथि (थाइमस)

*इम्यून सिस्टम कैसे काम करता है?*
इम्यून सिस्टम को गैर-स्वयं (नॉन सेल्फ) से स्वयं (सेल्फ) के बीच क्या अंतर है यह बताने में सक्षम होना जरूरी है। ऐसा करने के लिए इम्यून सिस्टम उन प्रोटीनों का पता लगाता है जो सभी कोशिकाओं की सतह पर पाए जाते हैं। यह प्रारंभिक अवस्था में अपने खुद को या खुद के प्रोटीन को अनदेखा करना सीखता है। ऐसे में एंटीजेन कोई भी बाहरी वस्तु या तत्व है जिसकी वजह से इम्यून रिस्पॉन्स या प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है।

बहुत से मामलों में यह एंटीजेन बैक्टीरिया हो सकता है, फंगस हो सकता है, वायरस, टॉक्सिन या कोई भी बाहरी वस्तु हो सकती है। हालांकि यह कई बार शरीर की अपनी खुद की कोशिकाएं भी हो सकती हैं जो दोषपूर्ण हो गई हों या फिर मृत हों। शुरुआत में कई तरह की कोशिकाओं की एक श्रेणी एक साथ काम करती है ताकि एंटीजेन की बाहरी आक्रमणकारी के तौर पर पहचान की जा सके।

*इम्यून सिस्टम कितने तरह का होता है?*
हर व्यक्ति का इम्यून सिस्टम एक दूसरे से अलग होता है लेकिन एक सामान्य नियम की ही तरह जैसे-जैसे व्यक्ति वयस्क होता जाता है उसका इम्यून सिस्टम भी समय के साथ विकसित और मजबूत होता जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि समय के साथ हमारा शरीर अलग-अलग रोगाणुओं के संपर्क में आकर और मजबूत हो जाता है और हमारी इम्यूनिटी यानी रोगों से लड़ने की क्षमता भी विकसित होती जाती है। यही वजह है कि बच्चों की तुलना में वयस्क कम बीमार पड़ते हैं।

किसी रोगाणु के संपर्क में आकर जब एक बार कोई एंटीबॉडी बन जाती है तो उसकी एक कॉपी शरीर में रह जाती है ताकि अगर वही एंटीजेन फिर से हमला करे तो उसके खिलाफ बिना समय गंवाएं तुरंत निपटा जा सके। यही वजह है कि कुछ बीमारियां जब व्यक्ति को एक बार हो जाती हैं तो वह दोबारा नहीं होतीं क्योंकि शरीर में उसकी एंटीबॉडी जमा रहती है। इसे ही इम्यूनिटी कहते हैं।

*इंसान के शरीर में 3 तरह की इम्यूनिटी होती है :*
*जन्मजात या इनेट :* हम सभी बाहरी आक्रमण के खिलाफ कुछ मात्रा में इम्यूनिटी के साथ पैदा होते हैं और इसलिए हमारा इम्यून सिस्टम शिशु के जन्म लेने के बाद से ही पहले दिन से काम करना शुरू कर देता है। यह एक सामान्य सुरक्षा की तरह होता है। उदाहरण के लिए- नवजात शिशु की स्किन कीटाणुओं को शरीर में प्रवेश करने से रोकती है और ये जन्मजात इम्यून सिस्टम उन खतरनाक बाहरी आक्रमणकारियों की पहचान करता है।

*अनुकूलनीय या अडैप्टिव :* अनुकूलनीय या सक्रिय इम्यूनिटी जीवनभर विकसित होती रहती है। जब हमारा शरीर किसी बीमारी या रोगाणु से एक्सपोज होता है तो हम इस अनुकूलनीय इम्यूनिटी को विकसित करते हैं या फिर तब जब टीकाकरण के जरिए हमारे शरीर को निश्चित बीमारियों के प्रति प्रतिरक्षित किया जाता है।

*निष्क्रिय या पैसिव :* इस तरह की इम्यूनिटी को हमारा शरीर किसी दूसरे स्त्रोत से उधार के तौर पर ग्रहण करता है और यह कुछ समय के लिए भी शरीर में मौजूद रहती है। उदाहरण के लिए- नवजात शिशु, जब गर्भ में होता है तो प्लैसेंटा के जरिए मां से एंटीबॉडीज प्राप्त करता है और पैदा होने के बाद मां के दूध में मौजूद एंटीबॉडीज बच्चे को अस्थायी इम्यूनिटी देती हैं उन बीमारियों के खिलाफ जिनसे मां एक्सपोज हो चुकी होती हैं। इससे बच्चा जीवन के शुरुआती दिनों में कुछ निश्चित संक्रमणों के खिलाफ बीमार पड़ने से बच जाता है।

*इम्यून सिस्टम से जुड़ी कॉमन गड़बड़ियां*
चूंकि इम्यून सिस्टम खुद में बेहद जटिल है लिहाजा कई संभावित कारण हैं जिसकी वजह से उसमें गड़बड़ियां होने की आशंका बनी रहती है। ऐसे में इम्यून सिस्टम से जुड़े विकार को 3 कैटिगरी में बांटा जा सकता है:

*_इम्यूनोडिफिशिएंसी_* : यह समस्या तब उत्पन्न होती है जब इम्यून सिस्टम या प्रतिरक्षा तंत्र का एक या अधिक हिस्सा सही ढंग से कार्य नहीं करता है। इम्यूनोडिफिशिएंसी की समस्या कई कारणों से हो सकती है जैसे- बढती उम्र, मोटापा और अल्कोहल की लत आदि। विकासशील देशों में कुपोषण भी इसका एक कारण है। एड्स बीमारी, अक्वायर्ड यानी अधिग्रहित इम्यूनोडिफिशिएंसी का एक उदाहरण है। कुछ मामलों में इम्यूनोडिफिशिएंसी की समस्या आनुवांशिक भी हो सकती है।

*ऑटोइम्यूनिटी*
ऑटोइम्यून या स्वप्रतिरक्षित परिस्थिति में शरीर का इम्यून सिस्टम या प्रतिक्षा तंत्र गलती से बाहरी आक्रमणकारी या दोषपूर्ण कोशिकाओं पर हमला करने की बजाए शरीर की स्वस्थ कोशिकाओं पर ही हमला करने लगता है। ऐसी परिस्थिति में इम्यून सिस्टम स्वयं में और गैर-स्वयं में अंतर नहीं कर पाता। ऑटोइम्यून बीमारियों में सीलिएक डिजीज, टाइप 1 डायबिटीज, रुमेटायड आर्थराइटिस और ग्रेव्ज डिजीज शामिल है।

गंगा लैब
गनौर

26/07/2020

अभी तक आपने पढ़ा और सुना होगा कि कोलेस्ट्रॉल का बढ़ता स्तर कैसे हृदय रोग के जोखिम को बढ़ाता है। लेकिन इसके विपरीत अधिक मात्रा में कोलेस्ट्रॉल की कमी करना भी शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकता है। एक नए शोध में यह जानकारी सामने आई है। इसके मुताबिक, कोलेस्ट्रॉल की अत्यधिक कमी की वजह से व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है। इससे मस्तिष्क को आघात पहुंचने का जोखिम बढ़ जाता है।

पत्रिका 'न्यूरोलॉजी' में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों में हुए अध्ययनों से यह पता चलता है कि 70 और उससे कम स्तर के लो-डेंसिटी लिपोप्रोटीन (एलडीएल) की वजह से हेमरैजिक (रक्तस्राव) स्ट्रोक मतलब मस्तिष्काघात का अधिक जोखिम होता है। बता दें कि 70 एलडीएल सामान्य माना जाता है।

क्या है हेमरैजिक स्ट्रोक?
मस्तिष्क की धमनी से खून का रिसाव हेमरैजिक स्ट्रोक कहलाता है। इस स्थिति में दिमाग की कोई कमजोर नस फट जाती है और उससे निकला रक्त मस्तिष्क में फैल जाता है। ऐसा होने पर मस्तिष्क की कोशिकाओं और टिशूज को नुकसान पहुंचता है।

क्या कहते हैं अध्ययन?
चीन में किए गए एक न्यूरोलॉजी रिसर्च में 96,000 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था। इसमें पाया गया कि लगभग 13 प्रतिशत लोगों का एलडीएल स्तर 70 या उससे कम था। वहीं, 28,000 महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि चार प्रतिशत महिलाओं का एलडीएल का स्तर 70 या उससे कम था। इन दोनों अध्ययनों में शोधकर्ताओं ने पाया कि जिन लोगों का एलडीएल स्तर काफी कम था, उनमें हेमरैजिक स्ट्रोक यानी मस्तिष्क आघात के जोखिम की आशंका अधिक थी। इस आधार पर शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि बहुत कम कोलेस्ट्रॉल होने से रक्त वाहिका को नुकसान पहुंच सकता है। इससे नसों के फटने और खून बहने की अधिक आशंका होती है।

लो कोलेस्ट्रॉल से मस्तिष्क कैसे होता है प्रभावित?

सामान्य कोलेस्ट्रॉल (वयस्कों के लिए 200 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से कम सामान्य स्तर है) हमारी धमनी और रक्त वाहिकाओं को सुरक्षा प्रदान करता है। लेकिन जब कोलेस्ट्रॉल का स्तर कम (70 मिलीग्राम प्रति डेसीलीटर से नीचे) हो जाता है तो इस स्थिति में वाहिकाएं कमजोर हो जाती हैं। इससे मस्तिष्क पर किसी प्रकार की चोट लगने से हेमरैजिक स्ट्रोक की आशंका हो सकती है।

🙂🙂

जब हम फिटनेस की बात करते हैं तो ज्यादातर लोग सिर्फ मसल्स बनाना और शारीरिक तंदरुस्ती के बारे में ही सोचते हैं। हम में ज्य...
24/07/2020

जब हम फिटनेस की बात करते हैं तो ज्यादातर लोग सिर्फ मसल्स बनाना और शारीरिक तंदरुस्ती के बारे में ही सोचते हैं। हम में ज्यादातर लोग अक्सर अपने ब्रेन यानी मस्तिष्क की सेहत को नजरअंदाज कर देते हैं। लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि ब्रेन हमारे शरीर का सबसे अहम हिस्सा है और ब्रेन के अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने और इसके दीर्घकालिक विकास के लिए इसका बेहतर तरीके से ध्यान रखना भी अतिआवश्यक है।

मस्तिष्क हमारे जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नई-नई चीजें सीखने से लेकर व्यक्तित्व के विकास तक, मस्तिष्क हमें चीजों को याद रखने और हमारे कौशल और योग्यता के विकास में भी मदद करता है।

मस्तिष्क की अच्छी सेहत को बनाए रखने के लिए हम आपको कुछ जरूरी सुझाव दे रहे हैं:

1. अपनी डायट में फल और सब्जियां शामिल करें : हमें अपनी डेली डायट में ढेर सारे फल और सब्जियां शामिल करने चाहिए, क्योंकि इनमें भरपूर मात्रा में एंटीऑक्सिडेंट्स होते हैं जिससे मस्तिष्क की कार्य प्रणाली बेहतर होती है। कम नमक वाला खाना भी बेहतर ब्रेन हेल्थ को बनाए रखने में मदद करता है।

2. कम फैट वाले आहार का सेवन करें : कम फैट यानी कम वसा वाला भोजन मस्तिष्क में कोलेस्ट्रॉल को जमने से रोकता है। अपनी डायट में विटामिन बी से भरपूर चीजों को शामिल करना भी आपके लिए अच्छा है, क्योंकि यह आपको डिमेंशिया बीमारी के खतरे से बचाता है।

3. उत्तेजक दवाओं की लत और शौकिया तौर पर ड्रग्स लेने से बचें : उत्तेजक दवाओं की लत और शौकिया तौर पर लिए जाने वाले ड्रग्स में मस्तिष्क को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाने की क्षमता होती है। लिहाजा इनके सेवन से हर हाल में बचना चाहिए।

4. बहुत ज्यादा अल्कोहल के सेवन से बचें : अल्कोहल आपके मस्तिष्क (ब्रेन) के लिए टॉक्सिन यानी जहर की तरह है और इसलिए बहुत ज्यादा अल्कोहल का सेवन करने से मस्तिष्क की कोशिकाओं को गंभीर रूप से नुकसान पहुंच सकता है।

5. शारीरिक रूप से सक्रिय रहें : रोजाना कम से कम 30 मिनट तक नियमित रूप से व्यायाम करने से मस्तिष्क के रक्त परिसंचरण (ब्लड सर्कुलेशन) और मेटाबॉलिज्म में सुधार होता है और यह ब्रेन को बेहतर कार्य करने में भी मदद करता है। डिमेंशिया से बचने का यह सबसे बेहतर तरीका है।

6. स्ट्रेस और तनाव से बचें : तनाव और स्ट्रेस मस्तिष्क के ट्रांसमीटर का उपभोग करता है और याददाश्त और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता को बाधित करता है। लिहाजा जहां तक संभव हो आपको तनाव लेने से बचना चाहिए। युवाओं में मेमोरी लॉस की प्रमुख वजहों में से एक बहुत ज्यादा तनाव लेना है।

7. मानसिक रूप से सक्रिय बने रहें : मस्तिष्क हमारे पूरे जीवन में नए-नए कौशल और तथ्यों को सीखने में और फिर उन्हें जीवनभर याद रखने में मदद करता है। लिहाजा हमें नियमित तौर पर बौद्धिक रूप से उत्तेजित करने वाली गतिविधियों में भाग लेना चाहिए, इन गतिविधियों से मस्तिष्क की कार्यप्रणाली में सुधार होता है और ब्रेन के न्यूरॉन्स सक्रिय बने रहते हैं। ब्रेन ट्रेनिंग एक्सरसाइज और शिक्षा का विस्तार करने से भी मदद मिलती है। यह समग्र रूप से हमारे मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करता है।

8. सामाजिक अनुबंध : परिवार के सदस्य और दोस्त आपको एक खुशहाल जीवनशैली बनाए रखने में मदद करते हैं और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के मामले में भी यह बात पूरी तरह से सच है। रिसर्च में भी यह बात साबित हो चुकी है कि नियमित सामाजिक गतिविधियां मस्तिष्क की कोशिकाओं (ब्रेन सेल्स) को बनाने में मदद करती हैं और मस्तिष्क की मरम्मत को भी बढ़ावा देती हैं।

मस्तिष्क हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है और इसकी उत्पत्ति और विकास मुख्य रूप से नवजात शिशु के जन्म के बाद पहले पांच वर्षों में ही होता है। लिहाजा इन शुरुआती वर्षों में बेहद जरूरी है कि माता-पिता बच्चे को बौद्धिक रूप से उत्तेजित करने वाले खेलों में शामिल करें। यह बच्चे के मस्तिष्क के दीर्घकालिक विकास, बुद्धि और बेहतर तरीके से कार्य करने में मदद करेगा।

हमें हमेशा ये याद रखना चाहिए कि वयस्क होने के नाते हमें खुद पर अधिक बोझ नहीं डालना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से हमारा ब्रेन स्लो हो सकता है। साथ ही में मल्टीटास्किंग यानी एक साथ बहुत सारे काम करने से भी बचना चाहिए क्योंकि इससे ध्यान और याददाश्त की कमी हो सकती है। लिहाजा, सभी पहलुओं में एक स्वस्थ जीवनशैली को बनाए रखना बेहद जरूरी है ताकि मस्तिष्क का अच्छा स्वास्थ्य भी बना रहे।

बच्चो का दिमाग तेज करने के लिए क्या करे।

बच्चे का दिमाग तेज होने के कई कारण होते हैं, जिसमें आहार अपनी अहम भूमिका निभाता है। बच्चे के सही विकास के लिए शरीर में विटामिन्स और मिनरल्स उचित मात्रा में मौजूद होने चाहिए। इनकी उचित मात्रा न होने का सीधा असर बच्चे की सेहत पर पड़ता है और बच्चे का दिमागी व शारीरिक विकास प्रभावित होता है।

संतुलित और पौष्टिक आहार को बच्चे की डाइट में शामिल करने से बच्चे के मस्तिष्क का विकास तेजी से होने के साथ ही, उसके दिमाग की कार्यक्षमता में बढ़ोतरी होती है, दिमाग तेज होता है और बच्चा आसानी से अपने मस्तिष्क को एकाग्र कर पाता है। आज के दौर में अधिकतर माता-पिता अपने बच्चे का दिमाग तेज करना चाहते हैं और वे चाहते हैं कि आने वाले भविष्य में उनका बच्चा तेजी से सभी चीजों को सीख सकें। इसके लिए वह कई तरह के उपायों को खोजते रहते हैं।

जो माता-पिता अपने बच्चे के दिमाग को तेज करना चाहते हैं उनके लिए इस लेख में “बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए क्या खिलाना चाहिए” के विषय को विस्तार से बताया गया है।

बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए खिलाएं दूध और दही
डेयरी उत्पादों में बच्चों के दिमाग के ऊतक, न्यूरोट्रांसमीटर और एंजाइम्स को बनाने वाले प्रोटीन और विटामिन बी की अधिक मात्रा में पाई जाती है। दूध और दही में मौजूद कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन दिमाग को ऊर्जा प्रदान करता है।

हाल में हुई रिसर्च से पता चला है कि बच्चों और किशोंरों को एक दिन में जितना विटामिन डी लेने की सलाह दी जाती है, उनके शरीर को उससे दस गुना अधिक की आवश्यकता होती है। विटामिन डी न्यूरोमस्कुलर प्रणाली और मानव कोशिकाओं के जीवनचक्र के लिए लाभकारी होता है।

बच्चे के सेरियल्स (जैसे कॉर्न फ्लैक्स, ओट्स आदि) में कम वसा वाला दूध मिलाकर आप उसको आवश्यक पोषक तत्व प्रदान कर सकते हैं। आप बच्चे को चीज स्टिक्स भी बनाकर दे सकते हैं।

बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए खिलाना चाहिए पालक
पालक बच्चों के मस्तिष्क की कोशिकाओं को मजबूत करने का कार्य करता है। इसके साथ ही पालक में एंटीऑक्सीडेंट्स होते हैं, जो फ्री रेडिकल्स (कई कारणों से शरीर में बनने वाले विषाक्त पदार्थों) के कारण होने वाली क्षति को दोबारा ठीक करने के लिए आवश्यक होते हैं। ऐसा माना जाता हैं कि फ्री रेडिकल्स मस्तिष्क की कोशिकाओं को नष्ट और याद्दाश्त को कम करते हैं। पालक में फोलेट भी पाया जाता है जो बच्चों के दिमाग के विकास में सहायक होता है।

बच्चों का दिमाग तेज करने के लिए अंडा खिलाएं
अंडे में कोलिन (cholines) होता है, यह ऐसा पोषक तत्व जो मस्तिष्क में किसी जानकारी को लंबे समय तक बरकरार रखने के लिए तंत्रिका मार्गों को बनाए रखता है। एक अंडा बच्चे के शरीर के लिए आवश्यक कोलिन की मात्रा का एक चौथाई हिस्सा पूरा करता है।

दो अध्ययनों से इस बात का पता चला है कि कोलिन अधिक लेने का संबंध मस्तिष्क के बेहतर कार्य और अच्छी याद्दाश्त से है। हालांकि, अधिकतर लोग अपने डाइट में पर्याप्त कोलिन नहीं ले पाते हैं। अंडे खाना कोलिन लेने का आसान तरीका होता है, अंडे की जर्दी इस पोषक तत्व का महत्वपूर्ण स्त्रोत मानी जाती है।

बच्चों का दिमाग तेज करता है अखरोट
अखरोट का स्वाद कई बच्चों को पसंद आता है। अखरोट में मौजूद ओमेगा 3 फैटी एसिड बच्चे की याद्दाश्त को बढ़ाने के साथ ही मस्तिष्क में आने वाली सूजन को कम करता है। इसके अलावा यह मस्तिष्क में एकत्रित अतिरिक्त प्रोटीन को हटाता है जिससे दिमाग की शक्ति में सुधार होता है।

आप बच्चे को अन्य स्वस्थ आहार के साथ अखरोट मिलाकर दे सकते हैं। दही, केला, अखरोट और शहद का मिश्रण बच्चों को काफी पसंद आता है। अगर बच्चा ज्यादा छोटा है तो आप उसको अखरोट कद्दूकस करके दें, क्योंकि अखरोट को खाने या निगलने में उसको परेशानी हो सकती है।

बच्चे का दिमाग तेज करने के लिए उसको ब्रोकली खिलाएं
बच्चे के दिमाग को तेज करने के लिए ब्रोकली (हरी फूलगोभी) का उपयोग करें। ब्रोकली में डीएचए (DHA) होता है, जो मस्तिष्क के न्यूरोन को जोड़ने में मदद करता है। इसमें कैंसर से लड़ने के गुण भी होते हैं। ब्रोकली में अधिक मात्रा में “विटामिन के” पाया जाता है, एक कप ब्रोकली एक दिन में “विटामिन के” की आवश्यक मात्रा से कहीं अधिक पूर्ति करती है। ब्रोकली बच्चे के दिमाग को तेज करने के साथ ही अन्य स्वास्थ्य लाभ भी प्रदान करती है।

बच्चे का दिमाग तेज करने के लिए ओटमिल खिलाएं
ओट्स पाचन तंत्र को मजबूत करने के लिए जाना जाता है, लेकिन यह बच्चे के दिमाग के लिए भी अच्छा साबित होता है। जो बच्चे नाश्ते में नियमित रूप से ओट्स खाते हैं वह अपने स्कूल में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि ओट्स शरीर की रक्त शर्करा (चीनी) को नियंत्रित करते हैं।

बच्चों को सुबह के समय आवश्यक शक्ति ओट्स ही प्रदान करते हैं। इनमें विटामिन ई, विटामिन बी, पोटैशियम और जिंक जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो शरीर और मस्तिष्क के कार्यों की क्षमता बढ़ाने का काम करते हैं। ओट्स का अपना कोई स्वाद नहीं होता, लेकिन इनको स्वादिष्ट बनाने के लिए आप बच्चे को ओट्स में फलों को मिलाकर दे सकते हैं।

बच्चों का दिमाग को तेज करने के लिए खाने में हल्दी का करें उपयोग
हल्दी में कई औषधिय गुण होते हैं। बच्चे के दिमाग को तेज करने के लिए भी आप हल्दी का उपयोग कर सकते हैं। हल्दी में मौजूद करक्यूमिन (curcumin) तत्व में एंटीऑक्सीडेटिव (antioxidative) और एंटीइंफ्लेमेट्री (anti-inflammatory) गुण होते हैं। हल्दी के यह दोनों गुण समय के साथ मस्तिष्क को होने वाले नुकसान से बचाते हैं।

इसके साथ ही हल्दी मस्तिष्क में बीटा-एमिलोइड प्लाक (beta amyloid palque) को बनने से रोकती है। एक अध्ययन से पता चला है कि यह एक खतरनाक तत्व है, जो मस्तिष्क की क्षमता को कम कर देता है। हल्दी सेरोटोनिन और डोपामाइन नामक तत्व को भी बढ़ाती है, यह दोनों ही तत्व मूड को अच्छा बनाने का काम करते हैं।

बच्चों का दिमाग बढ़ाने वाले अन्य आहार
बच्चों का दिमाग बढ़ाने के लिए माता-पिता को उनके खानपान पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। ऐसे में आप अपने बच्चे की डाइट में निम्नलिखित खाद्य पदार्थों को शामिल कर सकते हैं।

सब्जियां:
जो सब्जियां गहरे रंग की होती हैं, वह एंटीऑक्सीडेंट्स का प्रमुख स्त्रोत मानी जाती है। एंटीऑक्सीडेट्स मस्तिष्क की कोशिकाओं को स्वस्थ बनाने में सहायक होता है। मस्तिष्क के लिए फायदेमंद सब्जियों में शकरकंद, कद्दू और गाजर को शामिल किया जाता है। इसके अलावा हरी पत्तेदार सब्जियां जैसे पालक आदि में फोलेट मौजूद होता है जो बच्चे को डिमेंशिया की समस्या से दूर रखता है।

आंवला:
आंवला के कई फायदे होते हैं। यह एंटीऑक्सीडेंट्स का उच्च स्त्रोत है, जो शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स से लड़ने में सहायक है। फ्री रेडिकल्स मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाने और उनको तोड़ने का काम करते हैं। इसके अलावा आंवला में विटामिन सी के गुण भी पाए जाते हैं, जो नोरएपिनेफ्रीन (norepinephrine) के उत्पादन में मदद करता है। नोरएपिनेफ्रीन एक तरह का न्यूरोट्रांसमीटर है, जो मस्तिष्क के कार्य में सुधार करता है।

सेब:
सेब खाने से एसिटिलकोलाइन (Acetylcholine) नामक विशेष तरह का रसायन बनता है। यह रसायन मस्तिष्क की नसों में संदेश के आदान प्रदान में सहायक होता है। इसके साथ ही सेब में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट फ्री रेडिकल्स से मस्तिष्क को होने वाली क्षति से बचाते हैं। आप बच्चे को सेब कई तरह से खाने में दे सकते हैं। लेकिन बच्चे को सेब देने से पहले इसे साफ धो लें और इसका छिलका उतार लें।

पानी:
बच्चे की सेहत और तेज दिमाग के लिए पर्याप्त पानी पिलाना भी बेहद जरूरी होता है। मस्तिष्क की कोशिकाओं को शरीर की अन्य कोशिकाओं के मुकाबले अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऐसे में पानी किसी अन्य तत्व की अपेक्षा शरीर में आवश्यक ऊर्जा को अधिक प्रभावी ढंग से प्रदान करता है। शरीर में पानी की कमी न होने देने से ना सिर्फ सोचने की शक्ति बढ़ती है, बल्कि इससे बच्चों का एकाग्रता संबंधी विकार से भी बचाव होता है।

गंगा लैब
गनौर

आर्थराइटिस या गठिया जिसे संधिशोथ भी कहा जाता है एक प्रकार की जोड़ों की सूजन होती है। यह एक या एक से अधिक जोड़ो को प्रभाव...
22/07/2020

आर्थराइटिस या गठिया जिसे संधिशोथ भी कहा जाता है एक प्रकार की जोड़ों की सूजन होती है। यह एक या एक से अधिक जोड़ो को प्रभावित कर सकती है। गठिया के लक्षण आमतौर पर समय के साथ विकसित होते रहते हैं, लेकिन ये अचानक भी दिखाई दे सकते हैं। संधिशोथ यानि गठिया 65 वर्ष से अधिक उम्र वालों में देखा जाता है, हालांकि यह बच्चों, टीनएजर्स और युवाओं में भी विकसित हो सकता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में गठिया अधिक होता है खासतौर से उनमें जिनका वजन ज्यादा हो।

गठिया (आर्थराइटिस) के प्रकार -

आर्थराइटिस मुख्य तौर पर दो प्रकार के होते है -

ऑस्टियोआर्थराइटिस (अस्थिसंधिशोथ)
रूमेटाइड आर्थराइटिस (रुमेटी संधिशोथ)

गठिया (आर्थराइटिस) के लक्षण -

जोड़ों में दर्द, जकड़न और सूजन गठिया के सबसे प्रमुख लक्षणों में शामिल हैं, साथ ही संधिशोथ के दौरान आपके प्रभावित अंग लाल पड़ सकते हैं। इससे आपकी चलने की गति भी कम हो सकती है। कुछ लोगों में गठिया के लक्षण सुबह के समय ज्यादा प्रभावी होते हैं।

आप घुटने, कूल्हे, कंधे, हाथ या पूरे शरीर के किसी भी जोड़ में गठिये के दर्द का अनुभव कर सकते हैं। रुमेटी गठिया में आपको थकान हो सकती है या प्रतिरक्षा प्रणाली की गतिविधि धीमी पड़ने के कारण सूजन हो जाने की वजह से आप भूख में कमी महसूस कर सकते हैं।

आपको एनीमिया भी हो सकता है - जिससे आपके शरीर में खून की मात्रा कम हो जाती है और साथ ही कभी-कभी गठिया के तीव्र आक्रमण से रोगी को बुखार भी हो सकता है।

गंभीर रुमेटी गठिये का अगर समय रहते इलाज न किया जाए तो यह जोड़ों को खराब करने का कारण बन सकता है।

गठिया रोग में हाथों-पैरो में गांठे बन जाती है और इलाज में देर होने से यह गंभीर रूप ले सकती है जिससे बालों में कंघी करना, सीढियों पर चढ़ना यहां तक की चलना भी मुश्किल हो जाता है।

गठिया (आर्थराइटिस) के कारण -

कार्टिलेज आपके जोड़ो का एक नर्म और लचीला ऊतक (टिशु; tissue) है। जब आप चलते हैं और जोड़ों पर दबाव डालते हैं तो यह प्रेशर और शॉक को अवशोषित (absorption) करके जोड़ों को बचाता है। कार्टिलेज ऊतकों की मात्रा में कमी से कई प्रकार के गठिये होते है।

सामान्य चोटें ऑस्टियो आर्थराइटिस का कारण बनती हैं, यह गठिया के सबसे सामान्य रूपों में से एक है। जोड़ों में संक्रमण (infection) या चोट कार्टिलेज ऊतकों की प्राकृतिक मात्रा को कम कर सकता है। यदि परिवार के लोगों में यह बीमारी पहले से चली आ रही है तो इस बीमारी के आगे भी बने रहने की संभावना बढ़ जाती है।

गठिया का एक और आम रूप है रुमेटी आर्थराइटिस, यह एक प्रकार का ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है। इसकी शुरुआत तब होती है जब आपके शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली शरीर के ऊतकों पर हमला करती है। इन हमलों से सिनोवियम पर प्रभाव पड़ता है। सिनोवियम आपके जोड़ो में पाया जाने वाला एक नर्म टिशु होता है जो ऐसे लिक्विड को बनाता है जिससे कार्टिलेज को पोषण और जोड़ो को चिकनाई मिलती है। रुमेटी गठिया सिनोवियम की एक बीमारी है जो जोड़ों पर हमला करके उन्हें नष्ट करती है। यह जोड़ो के अंदर हड्डी और कार्टिलेज को नष्ट करने का कारण बन सकती है।

वैसे तो इम्यून सिस्टम के हमलों का सही कारण पता नही है, लेकिन वैज्ञानिकों के मुताबिक जीन (genes), हार्मोन और पर्यावरणीय कारण रुमेटी गठिये के जोखिम को दस गुना बढ़ा सकते है।

गठिया (आर्थराइटिस) से बचाव -

अर्थराइटस एक गंभीर बीमारी है जिसका उपचार समय रहते करना बेहद जरुरी है। संतुलित आहार और सरल जीवन शैली से आप खुद को इस रोग से दूर रख सकते है। संतुलित आहार ना केवल बीमारियों को रोकने में मदद करता है, बल्कि इसमें कई रोगों को स्वाभाविक रूप से ठीक करने की पर्याप्त क्षमता भी होती है। गठिया शरीर में जरूरत से ज्यादा यूरिक एसिड होने का कारण होता है। आमतौर पर गठिये के रोगी सूजन को कम करने वाली दवाओं पर निर्भर रहते है जो इस बीमारी का स्थाई समाधान नहीं है, क्योंकि इन दवाओं के कई साइड इफेक्ट हो सकते है। ऐसे में इस बीमारी से दूरी बनाए रखने और राहत पाने के लिए यह जरुरी है कि आप उचित आहार और स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं। एक ओर जहां गलत आहार कई तरह की बीमारियों को जन्म दे सकता है तो वहीं उचित आहार और नियमित खान पान से आप कई बीमारियों से निजात पा सकते है। अपने आहार में कुछ उचित खाद्य पदार्थों को शामिल करके और कुछ अनुचित खाद्य पदार्थों को छोड़कर, गठिया और उसके असहनीय दर्द से आराम पाया जा सकता है। याद रखें इस बीमारी को लाइलाज न होने दें।

गठिया (संधि शोथ) का परीक्षण -

डॉक्टर से परामर्श के दौरान आपके डॉक्टर आपके गठिया के इलाज के लिए पहले ये देखते हैं कि क्या आप में गठिया से सम्बंधित लक्षण दिख रहे हैं। अगर हां, तो वह कैसे विकसित हुए है, फिर वह आप की जांच कर आपको कुछ टेस्ट करवाने के लिए कहते हैं।

डॉक्टर गठिया की जांच कैसे करते हैं -

इलाज के दौरान डॉक्टर आपसे इस तरह के सवाल पूछ सकते हैं

आपको किस जगह दर्द हो रहा है (जोड़ों में या जोड़ों के बीच में) और कौनसा जोड़ दर्द से ग्रस्त है।
आपके जोड़ों में या जोड़ों के आस-पास सूजन, गर्मी, लालपन और छूने पर दर्द तो नहीं है। यह सूजन-संबंधी गठिया के संकेत हो सकते हैं।
डॉक्टर आपके स्वास्थ्य के अन्य पहलुओं के बारे में पूछ सकते हैं क्योंकि गठिया आपके शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है।
इसके बाद आपके डॉक्टर आप की जांच कर इन संकेतों को ढूंढेंगे -
जोड़ों में सूजन इनफ्लेमेटरी आर्थराइटिस का कारण हो सकता है।
दर्द और सीमित मूवमेंट, साथ में एक झनझनाहट महसूस करना (crepitus), जो अपक्षयी (degenerative) गठिया जैसे कि ऑस्टियो आर्थराइटिस का संकेत हो सकता है ।
नरम ऊतकों (Tissues) को छूने पर पीड़ा होना और दर्द महसूस करना।
मुंह में दाने या अल्सर होना भी गठिये के होने का संकेत है।

गठिया (आर्थराइटिस) का इलाज -

गठिया का इलाज कैसे किया जाता है?

गठिया का इलाज आपके लक्षणों में सुधार और जोड़ों के कार्य को बेहतर करने के लिए किया जाता है। इसका इलाज करने से पहले यह सुनिश्चित कर ले कि आपके लिए सबसे बेहतर इलाज कौन सा होगा।

दवाइयां

गठिया का इलाज करने वाली दवाइयां उसके प्रकार पर निर्भर करती हैं। अक्सर गठिया के इलाज में निम्नलिखित दवाइयों का इस्तेमाल होता हैं -

दर्द कम करने वाली दवाएं (analgesics) - इन दवाओं से दर्द कम होता हैं, लेकिन सूजन पर कोई असर नहीं होता। उदहारण के लिए - एसिटामिनोफेन (acetaminophen)
नॉन स्टीरॉयडल एंटी-इन्फ़्लमेट्री दवाई (non-steroidal anti-inflammatory drugs) (NSAIDs) - यह दवाइयां दर्द और सूजन दोनों को कम करती हैं, उदहारण के लिए - आइबूप्रोफेन (ibuprofen)। कुछ दवाइयां क्रीम या जेल (gel) के रूप में उपलब्ध है। इन्हे जोड़ों के दर्द की जगह पर लगाया जाता हैं।
कॉर्टिकॉस्टेरॉइड्स (corticosteroids) - यह सूजन को कम करता है और प्रतिरक्षा प्रणाली पर दबाव डालता है। इसे मौखिक रूप से लिया जाता है या इंजेक्शन को दर्द वाले जोड़े में लगाया जाता है।
काउंटर इर्रिटेन्ट्स (counter-irritants) - दर्द रोकने के लिए, इसे दर्द वाले जोड़े की त्वचा पर लगाया जाता है।
डिजीज-मॉडिफाइंग एंटी-रूमैटिक दवाएं (disease-modifying anti-rheumatic drugs) (DMARDs) - इनका इस्तेमाल रूमेटाइड गठिया (rheumatoid arthiritis) को ठीक करने के लिए किया जाता हैं।
कुछ तरह की गठियों का इलाज शारीरिक चिकित्सा द्वारा भी किया जा सकता हैं। व्यायाम करने से गति की सीमा में सुधार हो सकता है, और इससे जोड़ों के आस पास की मांसपेशियां भी मजबूत होंगी।

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