09/04/2025
नर्मदा: एक पौराणिक, आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रवाह
भारतीय संस्कृति में नदियाँ केवल जल का स्रोत नहीं, बल्कि लोकमाता, देवी और जीवनदायिनी मानी जाती हैं। वेदों, पुराणों और महाकाव्यों में नदियों के प्रति श्रद्धा, कृतज्ञता और भक्ति की भावना गहराई से अंकित है। अठारह पुराणों में नर्मदा पुराण एकमात्र ऐसा ग्रंथ है जो किसी नदी को केंद्र में रखकर रचा गया है। इसके अतिरिक्त रामायण, महाभारत और अनेक अन्य पौराणिक ग्रंथों में भी नर्मदा माता का विशेष रूप से उल्लेख मिलता है।
नर्मदा केवल एक भौगोलिक नदी नहीं, बल्कि वह आध्यात्मिक साधना की मूर्त रूप है। भारत में नदियों की पूजा की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है, लेकिन नर्मदा परिक्रमा जैसी परंपरा समस्त पृथ्वी पर अद्वितीय मानी जाती है।
इस महान परंपरा के आदि प्रवर्तक माने जाते हैं महर्षि मार्कंडेय, जिन्होंने लगभग सात हज़ार वर्ष पूर्व नर्मदा की परिक्रमा की थी। इस परिक्रमा की विशेषता यह है कि उन्होंने न केवल नर्मदा के दोनों तटों पर यात्रा की, बल्कि उसमें मिलनेवाली ९९९ नदियों के जलप्रवाह को पार किए बिना, प्रत्येक नदी के उगम स्थल तक जाकर उन्हें वंदन करते हुए यात्रा पूरी की। इस शास्त्रोक्त परिक्रमा को पूरा करने में उन्हें २७ वर्ष लगे।
कहा जाता है कि मार्कंडेय ऋषि ने पृथ्वी पर २१ बार प्रलयकाल का अनुभव किया, परंतु हर प्रलय में नर्मदा माता सुरक्षित रहीं। उनके अस्तित्व को कभी कोई हानि नहीं पहुँची। यह तथ्य नर्मदा के दिव्य स्वरूप का प्रमाण माना जाता है।
ऐसा भी कहा जाता है कि प्राचीन काल में कई महान ऋषि-मुनि, तपस्वी और देवता — जैसे पांडव, भगवान शंकर, पवनपुत्र हनुमान आदि — सभी ने नर्मदा किनारे तपस्या की। इसलिए नर्मदा केवल एक नदी नहीं, बल्कि साधना, श्रद्धा और संस्कृति की प्रतीक बन चुकी है।
इस पावन परंपरा को आज के युग में भी अनेक श्रद्धावान अपने कर्तव्यों के माध्यम से जीवंत बनाए हुए हैं। गांधीनगर सहज योग केंद्र के आदरणीय प्रधान साहब ने नर्मदा तट पर जाकर सहज योग के प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया है, वह अत्यंत प्रशंसनीय और प्रेरणादायी है। उनके इस कार्य के लिए हार्दिक अभिनंदन!