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29/09/2025

*कुंडली के सात दोष*
जो आपके जीवन मे बहुत कष्ट देते हैं*
*श्री गणेशाय नमः*

जन्मकुंडली में शुभ और अशुभ दोनों तरह के योग होते हैं। यदि शुभ योगों की संख्या अधिक है तो साधारण परिस्थितियों में जन्म लेने वाला व्यक्ति भी धनी,सुखी और पराक्रमी बनता है,

लेकिन यदि अशुभ योग अधिक प्रबल हैं तो व्यक्ति लाख प्रयासों के बाद भी हमेशा संकटग्रस्त ही रहता है।

कुंडली में शुभ ग्रहों पर अशुभ ग्रहों की दृष्टि या शुभ ग्रहों से अधिक प्रबल अशुभ ग्रहों के होने से दुर्योगों का निर्माण होता है.

आइये आज हम कुंडली के सात अशुभ योग-दोष के बारे में जानें और उनका प्रभाव कम करने के उपाय जानें

1=केमदु्रम योग-इस योग का निर्माण चंद्र के कारण होता है।कुंडली में जब चंद्र द्वितीय या द्वादश भाव में हो और चंद्र के आगे और पीछे के भावों में कोई अपयश ग्रह न हो तो केमद्रुम योग का निर्माण होता है।

जिस कुंडली में यह योग होता है वह जीवनभर धन की कमी से जूझता रहता है। उसके जीवन में पल-प्रतिपल संकट आते रहते हैं,लेकिन व्यक्ति हौसले से उनका सामना करता रहता है।

इस योग का प्रभाव कम करने के लिए गणेश और महालक्ष्मी की साधना करें। शुक्रवार को लाल गुलाब के पुष्प से महालक्ष्मी का पूजन करें। मिश्री का भोग लगाएं। चंद्र से संबंधित वस्तुएं दूध-दही का दान करें।

2=ग्रहण योग-कुंडली के किसी भी भाव में चंद्र के साथ राहु या केतु बैठे हों तो ग्रहण योग बनता है। यदि इन ग्रह स्थिति में सूर्य भी जुड़ जाए तो व्यक्ति की मानसिक स्थिति अत्यंत खराब रहती है।

उसका मस्तिष्क स्थिर नहीं रहता। कार्य में बार-बार बदलाव होता है। बार-बार नौकरी और शहर बदलना पड़ता है

कई बार देखा गया है कि ऐसे व्यक्ति को पागलपन के दौरे तक पड़ सकते हैं। ग्रहण योग का प्रभाव कम करने के लिए सूर्य और चंद्र की आराधना लाभ देती है।

आदित्यहृदय स्तोत्र का नियमित पाठ करें। सूर्य को जल चढ़ाएं। शुक्ल पक्ष के चंद्रमा के नियमित दर्शन करें।

3=चांडाल योग-कुंडली के किसी भी भाव में बृहस्पति के साथ राहु का उपस्थित होना चांडाल योग का निर्माण करता है। इसे गुरु चांडाल योग भी कहते हैं। इस योग का सर्वाधिक प्रभाव शिक्षा और धन पर होता है।

जिस व्यक्ति की कुंडली में चांडाल योग होता है वह शिक्षा के क्षेत्र में असफल होता है और कर्ज में डूबा रहता है।

चांडाल योग का प्रभाव प्रकृति और पर्यावरण पर भी पड़ता है।चांडाल योग की निवृत्ति के लिए गुरुवार को पीली दालों का दान किसी जरूरतमंद को करें।

पीली मिठाई का भोग गणेशजी को लगाएं। स्वयं संभव हो तो गुरुवार का व्रत करें। एक समय भोजन करें और भोजन में पहली वस्तु बेसन की उपयोग करें।

4=कुज योग-मंगल जबलग्न,चतुर्थ,सप्तम,अष्टम या द्वादश भाव में हो तो कुज योग बनता है। इसे मांगलिक दोष भी कहते हैं।

जिस स्त्री या पुरुष की कुंडली में कुज दोष हो उनका वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है। इसीलिए विवाह से पूर्व भावी वर-वधु की कुंडली मिलाना आवश्यक है।

यदि दोनों की कुंडली में मांगलिक दोष है तो ही विवाह किया जाना चाहिए। मंगलदोष की समाप्ति के लिए पीपल और वटवृक्ष में नियमित जल अर्पित करें।

लाल तिकोना मूंगा तांबे में धारण करें। मंगल के जाप करवाएं या मंगलदोष निवारण पूजन करवाएं।

5=षड्यंत्र योग-यदि लग्नेश आठवें घर में बैठा हो और उसके साथ कोई शुभ ग्रह न हो तो षड्यंत्र योग का निर्माण होता है। यह योग अत्यंत खराब माना जाता है।

जिस स्त्री-पुरुष की कुंडली में यह योग हो वह अपने किसी करीबी के षड्यंत्र का शिकार होता है। धोखे से उसका धन-संपत्ति छीनी जा सकती है।

विपरीत लिंगी व्यक्ति इन्हें किसी मुसीबत में फंसा सकते हैं।इस दोष की निवृत्ति के लिए शिव परिवार का पूजन करें.सोमवार को शिवलिंग पर सफेद आंकड़े का पुष्प और सात बिल्व पत्र चढ़ाएं। शिवजी को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं।

6=भाव नाश योग-जन्मकुंडली जब किसी भाव का स्वामी त्रिक स्थान यानी छठे,आठवें और 12वें भाव में बैठा हो तो उस भाव के सारे प्रभाव नष्ट हो जाते हैं।

उदाहरण के लिए यदि धन स्थान की राशि मेष है और इसका स्वामी मंगल छठे,आठवें या 12वें भाव में हो तो धन स्थान के प्रभाव समाप्त हो जाते हैं।

जिस ग्रह को लेकर भावनाशक योग बन रहा है उससे संबंधित वार को हनुमानजी की पूजा करें। उस ग्रह से संबधित रत्न धारण करके भाव का प्रभाव बढ़ाया जा सकता है।

7=अल्पायु योग-कुंडली में चंद्र पाप ग्रहों से युक्त होकर त्रिक स्थानों में बैठा हो या लग्नेश पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो और वह शक्तिहीन हो तो अल्पायु योग का निर्माण होता है।

जिस कुंडली में यह योग होता है उस व्यक्ति के जीवन पर हमेशा संकट मंडराता रहता है। उसकी आयु कम होती है।

कुंडली में बने अल्पायु योग की निवृत्ति के लिए महामृत्युंजय मंत्र की एक माला रोज जपें। बुरे कार्यों से दूर रहें। दान-पुण्य करते रहें।
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20/09/2025

*आईएएस अधिकारी कौन बन सकता है*
🌹🌹🌹🌹🌹🌹 अच्छे पदों पर होते हुए भी आईएएस बनने का मौका कोई व्यक्ति नही गवाना चाहता आईएएस जैसी नौकरी के लिए वह लोग भी प्रयास करते रहते है जो अन्य सरकारी पदो पर होते है पर जिनका भाग्य और कैरियर क्षेत्र बुलंद होता है वही लोग आईएएस बन पाते है वरना आईएएस बनना एक सपना ही रह जाता है तो आज इसी बारे में बात करते है क्या आईएएस अधिकारी बन पाएंगे और बन पाएंगे तो कब तक आईएएस बन जाएंगे?? कुंडली का 10वा भाव उच्च पद, उच्च अधिकार, उच्च नौकरी का है तो बलवान सरकारी अधिकार, सरकारी पद देने वाले सूर्य गुरु और दसवें भाव स्वामी या दसवें भाव से बनने वाला कोई बड़ा राजयोग आईएएस बनाता है इसके जन्मकुंडली में जो ग्रह आईएएस बना रहे है वह ग्रह नवमांश कुंडली मे भी बलवान है तब सोने पर सुहागा वाली बात होगी बहुत जल्दी आईएएस बनने में सफलता मिल जाएगी।अब कुछ छोटे छोटे उदाहरणों से समझते है आईएएस कौन बन पाएंगे? उदाहरण_-मेष लग्न में दसवें भाव स्वामी शनि बलवान होकर गुरु मंगल या गुरु सूर्य से सम्बब्ध बना रहा है खासकर शनि बलवान होकर सरकारी पद, अधिकार ग्रहो सूर्य मंगल या सूर्य गुरु से सम्बंध में है तब आईएएस बन जाएंगे।। उदाहरण- कन्या लग्न में दसवें भाव स्वामी बुध बलवान होकर भाग्येश शुक्र राजयोग बनाकर साथ ही सूर्य गुरु से सम्बंध बुध या दसवाँ भाव किसी भी तरह सम्बन्ध बनाकर बैठा है तब आईएएस बन जाएंगे।। उदाहरण-धनु लग्न यहाँ दशमेश बुध बलवान होकर भाग्येश सूर्य सहित गुरु से सम्बद्ध में है या दशमेश बुध भाग्येश सूर्य राजयोग बनाकर साथ ही मंगल शुक्र के साथ सम्बंध मे है जिससे आईएएस बनने में सहयोग मिलेगा तब आईएएस बन जाएंगे।। दसवें भाव से बड़ा राजयोग और आईएएस ग्रहो सूर्य गुरु का शुभ स्थिति में खासकर सम्बब्ध आईएएस बना देगा जन्मकुंडली/दशमांश कुंडली किसी मे भी ऐसी स्थिति आईएएस बना देंगी।

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30/06/2025

हर शनिवार शनि मंदिर में दीपक जलाना शुभ माना जाता है। इससे शनि देव प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। विशेष रूप से, शनिवार की शाम को पीपल के पेड़ के नीचे दीपक जलाना भी बहुत फलदायी माना जाता है।
शनि देव को प्रसन्न करने के लिए, आप सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं, जिसमें थोड़े काले तिल और एक लोहे की कील या वस्तु डाल सकते हैं।

19/04/2025

गुरु-केतु युति वाले जातकों के विशेष गुण

जीवन की हर समस्या का समाधान निकालने में सक्षम होते हैं. यह युति बुद्धि और अंतर्ज्ञान को तीव्र बनाती है. अगर यह 12वें भाव में हो, तो व्यक्ति मोक्ष मार्ग की ओर अग्रसर होता है. यह व्यक्ति को दैवीय ज्ञान, अंतर्ज्ञान और रहस्यमयी शक्तियों से जोड़ता है.

नीचभंग राजयोगज्योतिष के अनुसार, कुंडली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्व राशि, मित्र राशि, सम राशि, शत्रु राशि औ...
02/09/2024

नीचभंग राजयोग

ज्योतिष के अनुसार, कुंडली में ग्रह उच्च राशि, मूल त्रिकोण राशि, स्व राशि, मित्र राशि, सम राशि, शत्रु राशि और नीच राशि में उपस्थित होता है। इस प्रकार उच्च राशि में ग्रह के होने पर शुभ प्रभाव पड़ता है और नीच राशि में होने पर बुरा प्रभाव पड़ता है। लेकिन कई बार कोई नीच ग्रह इस तरह बैठा होता है कि उसकी नीच अवस्था समाप्त हो जाए और वह प्रबल तौर पर राजयोग कारक ग्रह बन जाए तो उसे वैदिक ज्योतिष में नीचभंग राजयोग(Neech Bhang Raj yoga in Astrology) कहते हैं। इस योग में रंक को राजा बनाने की क्षमता है।

कुंडली में नीचभंग राजयोग का निर्माण

यदि किसी कुंडली में एक उच्च ग्रह के साथ एक नीच ग्रह रखा जाता है, तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए, यदि शुक्र और बुध को मीन राशि में रखा जाता है, जहां बुध दुर्बल है और शुक्र उच्च है तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में बैठा हो और उस राशि का स्वामी लग्न भाव या चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो कुंडली में नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के तौर पर बृहस्पति की नीच राशि मकर है और मकर का स्वामी शनि यदि चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में कोई ग्रह अपनी नीच राशि में हो और उस राशि में उच्च होने वाला ग्रह चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के लिए शनि की नीच राशि मेष है और सूर्य की उच्च राशि मेष है। सूर्य चंद्रमा से केंद्र स्थान में हो तो इस राजयोग का निर्माण होता है।

यदि किसी कुंडली में नीच ग्रह के स्वामी की दृष्टि भी किसी नीच ग्रह पर हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। जैसे- बुध की नीच राशि मीन है और मीन का स्वामी गुरु है और गुरु की दृष्टि बुध पर हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि किसी कुंडली में किसी ग्रह की नीच राशि का स्वामी और उसकी उच्च राशि का स्वामी परस्पर केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है। उदाहरण के तौर पर मंगल की नीच राशि का स्वामी चंद्रमा है और मंगल की उच्च राशि का स्वामी शनि है। दोनों परस्पर केंद्र स्थान में हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

इसके अलावा यदि किसी कुंडली में नीच का ग्रह वक्री हो तो नीचभंग राजयोग बनता है।

यदि नीच ग्रह कुंडली में नौवें घर में उच्च का है तो नीचभंग राजयोग बनता है।

26/07/2024

पंचम भाव का स्वामी नवम भाव में:
जातक राजकुमार होगा, या उसके समकक्ष होगा, ग्रंथों की रचना करेगा, प्रसिद्ध होगा और अपने वंश में चमकेगा।

26/07/2024

कुंडली के नवम भाव में केतु हो तो
केतु की इस स्थिति के कारण व्यक्ति योग्य और बहादुर होता है। केतु के कारण इन लोगों के पास पर्याप्त पैसा होता है। साथ ही, ये लोग धन संबंधी कार्यों में तेजी से सफलता प्राप्त करते हैं।

04/03/2024

मेष लग्न के जातक के लिए मूंगा, माणिक, और पुखराज रत्न धारण करना शुभ फल दयाक होता है ।

26/02/2024

वैदिक ज्योतिष अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध ग्रह नीच यानि अशुभ स्थित हो तो इस स्थिति में जातक अपने विचारों को सही रूप में बोलकर पेश नहीं कर पाता है। साथ ही ऐसा व्यक्ति गणित विषय में कमज़ोर होता है और उसे गणना करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। उककी तार्किक क्षमता भी कमजोर होती है।

25/02/2024

वैदिक ज्योतिष अनुसार अगर किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में बुध मजबूत होता है, वह व्यक्ति बहुत ही समझदार, तर्क करने में कुशल, अच्छा विश्लेषक होता है. सूर्य के सबसे नजदीक बुध ग्रह ही है. इस ग्रह का सीधा संबंध इंसान की तर्क शक्ति से होता है |

24/02/2024

बृहस्पति प्राकृतिक धन-कारक (धन का कारक) में से एक है, एक मजबूत बृहस्पति आजीवन समृद्धि और वित्तीय स्थिरता देता है।

राजयोग कब और कैसे बनते हैंआइये जानते हैं -धार्मिक जीवन- जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो ...
12/03/2023

राजयोग कब और कैसे बनते हैं
आइये जानते हैं -

धार्मिक जीवन-
जब लग्न या लग्नेश के साथ नवम भाव अथवा नवमेश का निकट संबंध हो तो मनुष्य के भाग्य और धर्म दोनों का उत्थान होता है। यदि चन्द्र तथा सूर्य से नवम भाव के स्वामी का संबंध चन्द्र व सूर्य अधिष्ठित राशियों के स्वामी से हो जाए तो मनुष्य का जीवन पूर्णतः धर्ममय हो जाता है।

राज्यकृपा-
नवम भाव को राज्यकृपा का भाव भी कहते हैं। यदि इस भाव का स्वामी राजकीय ग्रह सूर्य, चन्द्र अथवा गुरु हो और बलवान भी हो तो मनुष्य को राज्य(सरकार आदि) की ओर से विशेष कृपा प्राप्त होती है अर्थात वह व्यक्ति राज्य अधिकारी, उच्च पद पर आसीन सम्मानीय व्यक्ति होता है

प्रभुकृपा-
नवम भाव का स्वामी बलवान हो तथा शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट होकर जिस शुभ भाव में स्थित हो जाता है, मनुष्य को अचानक प्रभुकृपा व दैवयोग से उसी भाव द्वारा निर्दिष्ट वस्तु की प्राप्ति होती है। जैसे नवमेश बलवान होकर दशम भाव में हो तो राज्य प्राप्ति, चतुर्थ भाव में हो तो वाहन व घर की प्राप्ति, द्वितीय भाव में हो तो अचानक धन की प्राप्ति होती है।

राजयोग-
पराशर ऋषि के अनुसार नवम भाव को कुंडली के सबसे शुभ भावों में से एक माना गया है। इस भाव के स्वामी का संबंध यदि दशम भाव व दशमेश के साथ हो तो मनुष्य अतीव भाग्यशाली, धनी, मानी तथा राजयोग भोगने वाला होता है।

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