Gera Ayurvedic Centre

Gera Ayurvedic Centre Dr. M.K. Gera is a highly experienced and respected Ayurvedic practitioner with over 41 years of dedicated service in the field of Ayurveda.

He is a certified Nadi Parikshak, specializing in the ancient and revered technique of pulse diagnosis To spread awareness on "Ayurvedic Medicine" , an healing system that originated in ancient India.

30/09/2025

क्या आपने गौर किया है कि हर भारतीय रसोई की मसाला डिब्बी में अदरक (Ginger) ज़रूर मौजूद होती है? चाय का स्वाद बढ़ाने से लेकर हर मौसम में शरीर को रोगों से बचाने तक, अदरक का महत्व अपार है। आयुर्वेद में अदरक को ‘विश्वभेषज’ यानी संपूर्ण रोगों का औषधि कहा गया है। यह न केवल स्वाद और सुगंध का खजाना है, बल्कि औषधीय दृष्टि से भी बेहद खास है।

🌿 अदरक में पाए जाने वाले उपयोगी तत्व

अदरक का वैज्ञानिक नाम Zingiber officinale है। इसके कंद (Rhizome) में अनेक सक्रिय तत्व पाए जाते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

जिंजरॉल (Gingerol): सूजन कम करने और दर्द निवारण में सहायक।

शोगॉल (Shogaol): एंटीऑक्सीडेंट और पाचन में सहायक।

जिंजरोन (Zingerone): स्वाद, सुगंध और रोगाणुरोधी गुण।

एसेंशियल ऑयल्स: श्वसन और पाचन तंत्र को संतुलित करते हैं।

खनिज व विटामिन: मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, पोटेशियम, विटामिन C और B6।

👉 यही तत्व अदरक को इतना ताक़तवर और उपयोगी बनाते हैं।

🍵 घरेलू नुस्खों में अदरक के उपयोग

अदरक का इस्तेमाल प्राचीन काल से ही घरेलू चिकित्सा में होता आ रहा है। कुछ लोकप्रिय और प्रमाणित उपाय इस प्रकार हैं:

खांसी-जुकाम में राहत:

अदरक का रस + शहद = गले की खराश, खांसी और कफ को तुरंत शांत करता है।

अदरक की चाय ठंड और बुखार में असरदार है।

पाचन शक्ति बढ़ाने में:

खाने से पहले चुटकीभर सेंधा नमक के साथ अदरक का छोटा टुकड़ा चबाने से भूख खुलती है और पाचन सुधरता है।

मतली और उल्टी में लाभकारी:

गर्भावस्था के दौरान मॉर्निंग सिकनेस या यात्रा के समय उल्टी की समस्या में अदरक का सेवन कारगर है।

जोड़ों और मांसपेशियों के दर्द में:

अदरक का तेल या पेस्ट लगाने से सूजन और दर्द कम होता है।

ब्लड सर्कुलेशन और हृदय स्वास्थ्य में:

अदरक का नियमित सेवन रक्त को पतला कर थक्के बनने से रोकता है और हृदय को स्वस्थ रखता है।

🪔 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में अदरक को ‘अमृत तुल्य’ माना गया है। यह वात, कफ और पित्त – तीनों दोषों को संतुलित करने में मदद करता है।

सूंठ (सूखा अदरक): कफ और वात रोगों में श्रेष्ठ।

ताजा अदरक: पाचन शक्ति और अग्नि (जठराग्नि) बढ़ाता है।

आयुर्वेदिक ग्रंथों में कहा गया है:
👉 “अदरक भोजन का अमृत है, जो भूख और पाचन दोनों को संतुलित रखता है।”

🍲 अदरक सेवन करने के तरीके

अदरक की चाय:

सुबह अदरक वाली चाय शरीर को ऊर्जा देती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।

अदरक का पानी:

गुनगुने पानी में अदरक का रस डालकर पीना शरीर से विषैले तत्वों को बाहर करता है।

अदरक का अचार:

भोजन के साथ अदरक का अचार पाचन में सहायक है और स्वाद भी बढ़ाता है।

अदरक पाउडर (सूंठ):

दूध में मिलाकर पीने से सर्दी-जुकाम और जोड़ों का दर्द कम होता है।

अदरक-नींबू-शहद मिश्रण:

यह इम्यूनिटी बढ़ाने का प्राकृतिक टॉनिक है।
अदरक में gingerol और shogaol यौगिक पाए जाते हैं, जो सूजन और दर्द को कम करने में उतने ही असरदार पाए गए हैं जितने कुछ हल्के painkillers।

समुद्री बीमारी और उल्टी पर असरदार:
NASA ने अंतरिक्ष यात्रियों पर शोध किया और पाया कि अदरक motion sickness और उल्टी रोकने में दवाओं जितना असरदार है।

खून को पतला करने वाला असर:
अदरक प्राकृतिक रूप से खून को पतला करता है और ब्लड क्लॉट बनने से रोक सकता है – यही कारण है कि इसे natural aspirin भी कहा जाता है।

कैंसर रिसर्च में संभावनाएँ:
अदरक के सक्रिय तत्व gingerol पर अध्ययन बताते हैं कि यह colon, ovarian और pancreatic cancer cells की growth को धीमा कर सकता है।

थर्मोजेनिक फूड:
अदरक शरीर के मेटाबॉलिज़्म को बढ़ाता है और कैलोरी बर्न करने में मदद करता है। इसी वजह से इसे वज़न घटाने वाली डाइट्स में शामिल किया जाता है।

जोड़ों के लिए टॉनिक:
लगातार सेवन से osteoarthritis और rheumatoid arthritis में सूजन और stiffness कम होती है।

एंटीबैक्टीरियल और एंटीवायरल:
अदरक की चाय सिर्फ गले की खराश ही नहीं, बल्कि E. coli और RSV virus जैसे संक्रमणों पर भी असर दिखाती है।

दिल की धड़कन को स्थिर करने में मदद:
अदरक arrhythmia (अनियमित धड़कन) को सुधारने की क्षमता रखता है, हालांकि यह अभी शोध का विषय है।

फर्टिलिटी पर असर:
आयुर्वेद और कुछ आधुनिक अध्ययनों के अनुसार अदरक शुक्राणुओं की गतिशीलता (motility) बढ़ाने में सहायक हो सकता है।

पेट के एसिड को नियंत्रित करने वाला:
अदरक पाचन अग्नि को तेज़ करता है, लेकिन paradoxically यह acid reflux और gastritis को भी शांत करता है।

⚠️ ध्यान देने योग्य बातें

अदरक का सेवन संतुलित मात्रा में ही करें।

जिन लोगों को पित्त प्रकृति अधिक है या जिन्हें एसिडिटी की समस्या रहती है, उन्हें अदरक का सेवन सीमित मात्रा में करना चाहिए।

ब्लड थिनर दवा लेने वाले मरीज चिकित्सक की सलाह के बिना अदरक का अधिक सेवन न करें।

✨ निष्कर्ष

अदरक कोई साधारण मसाला नहीं, बल्कि हर घर का औषधीय खजाना है। यह पाचन से लेकर श्वसन, दर्द से लेकर रोग प्रतिरोधक क्षमता तक – शरीर के हर अंग के लिए लाभकारी है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ने इसके गुणों को स्वीकार किया है।

👉 अगर आप रोज़ थोड़ा सा अदरक अपने भोजन या पेय में शामिल करें, तो यह आपकी सेहत को लंबे समय तक सुरक्षित रखेगा।

📢 उपयोगी हैशटैग्स

#अदरककेफायदे #घरकेनुस्खे #स्वास्थ्यखजाना #सर्दीजुकामउपचार

30/09/2025

क्या आपने कभी अचानक सीने में धक-धक की आवाज़ तेज़ महसूस की है? यह स्थिति जिसे हम दिल की धड़कन तेज़ होना (Palpitation) कहते हैं, कई बार सामान्य कारणों से होती है लेकिन कभी-कभी यह गंभीर बीमारियों का संकेत भी हो सकती है।

🔎 दिल की धड़कन तेज़ क्यों होती है?

तनाव और चिंता – मानसिक तनाव और घबराहट सबसे आम कारण हैं।

कैफीन और चाय/कॉफी – अधिक मात्रा में चाय, कॉफी या एनर्जी ड्रिंक लेने से हृदय गति तेज़ हो सकती है।

शारीरिक मेहनत या व्यायाम – अचानक भारी काम करने से दिल की धड़कन बढ़ जाती है।

थायरॉइड असंतुलन – थायरॉइड हार्मोन बढ़ने से हृदय की धड़कन तेज़ होती है।

ब्लड प्रेशर और शुगर – हाई/लो बीपी और ब्लड शुगर असंतुलन भी कारण हो सकते हैं।

एनीमिया (खून की कमी) – खून की कमी से हृदय को ज्यादा काम करना पड़ता है।

दवाइयों का असर – कुछ दवाइयों के साइड इफेक्ट से भी धड़कन तेज़ हो सकती है।

⚠️ क्या जटिलताएँ हो सकती हैं?

बार-बार धड़कन तेज़ होना हृदय रोग का संकेत हो सकता है।

इससे ब्लड प्रेशर असंतुलन हो सकता है।

लंबे समय तक अनदेखा करने पर हार्ट अटैक या स्ट्रोक का खतरा बढ़ सकता है।

कभी-कभी यह एरिद्मिया (Arrhythmia) यानी हृदय की विद्युत प्रणाली की गड़बड़ी का लक्षण होता है।

🌿 दिल की धड़कन को सामान्य रखने के प्राकृतिक उपाय

गहरी साँसें लेना (Deep Breathing):
धीरे-धीरे गहरी साँस लेने से दिल की धड़कन सामान्य होती है।

तुलसी और शहद:
रोज़ सुबह 5 तुलसी की पत्तियाँ और 1 चम्मच शहद लेने से दिल शांत रहता है।

अर्जुन की छाल:
आयुर्वेद में अर्जुन की छाल को हृदय के लिए अमृत माना गया है। इसका काढ़ा धड़कन को नियंत्रित करता है।

ठंडा पानी पीना:
जब दिल बहुत तेज़ धड़कने लगे तो ठंडा पानी पीना आराम दे सकता है।

ध्यान और योग:
अनुलोम-विलोम, प्राणायाम और ध्यान से मानसिक शांति मिलती है और दिल संतुलित रहता है।

कैफीन और जंक फूड से परहेज़:
एनर्जी ड्रिंक, कोल्ड ड्रिंक और मसालेदार भोजन से दूर रहना चाहिए।

मेहंदी के पत्ते:
पुराने ग्रंथों में बताया गया है कि मेहंदी की पत्तियों का रस पीने से धड़कन की गति नियंत्रित होती है।

गिलोय और अश्वगंधा:
ये दोनों औषधियाँ तनाव को कम कर हृदय की धड़कन सामान्य रखती हैं।

🛡️ कैसे रखें दिल का ध्यान?

रोज़ाना हल्की एक्सरसाइज करें।

धूम्रपान और शराब से बचें।

पर्याप्त नींद लें।

हरी सब्जियाँ, सलाद, मौसमी फल आहार में शामिल करें।

नियमित स्वास्थ्य जांच कराते रहें।

❤️ Palpitation (दिल की धड़कन तेज़ होना) –Facts

दिल की नहीं, दिमाग़ की भी समस्या:
कई बार palpitation असल में दिल से नहीं, बल्कि brain और autonomic nervous system की गड़बड़ी से होता है।

छुपा हुआ हाइपरथायरॉयड:
बार-बार धड़कन तेज़ होना थायरॉयड हार्मोन के बढ़ जाने का शुरुआती लक्षण हो सकता है, जिसे लोग अक्सर anxiety समझ बैठते हैं।

कैफीन और एनर्जी ड्रिंक का असर:
ज्यादा कॉफी, चाय या एनर्जी ड्रिंक्स लेने से दिल असामान्य rhythm में जा सकता है (arrhythmia), खासकर जिन लोगों को पहले से हृदय रोग है।

रात को ज़्यादा महसूस होना:
लेटते समय palpitation ज़्यादा महसूस होता है क्योंकि उस समय दिमाग़ शांत होता है और chest wall पर धड़कन सीधी महसूस होती है।

Palpitation हमेशा बीमारी नहीं:
तेज़ धड़कन exercise, dehydration, stress, fear या pregnancy में भी सामान्य प्रतिक्रिया होती है।

कभी-कभी “Silent Arrhythmia”:
कुछ लोग palpitation महसूस नहीं करते, लेकिन EKG पर खतरनाक atrial fibrillation निकल आता है।

पेट और दिल का रिश्ता:
गैस या acid reflux diaphragm को दबाकर भी palpitation जैसा एहसास करा सकते हैं।

लंबी सांस रोकने से काबू:
कुछ अचानक हुए palpitation (जैसे supraventricular tachycardia) को Valsalva maneuver यानी गहरी सांस लेकर रोकना या ज़ोर से सांस रोकने से तुरंत धीमा किया जा सकता है।

महिलाओं में अलग लक्षण:
महिलाओं को palpitation के साथ घबराहट, कमजोरी और चक्कर ज़्यादा आते हैं, जबकि पुरुषों को सीधा chest discomfort अधिक होता है।

कम नींद और धड़कन:
लगातार नींद की कमी autonomic nervous system को disturb करती है, जिससे palpitation और heart rhythm disturbances का खतरा बढ़ता है।

📰 निष्कर्ष

दिल की धड़कन तेज़ होना हमेशा खतरनाक नहीं होता, लेकिन इसे अनदेखा करना गलत है। यदि बार-बार यह समस्या हो रही है तो चिकित्सक से परामर्श लेना ज़रूरी है। साथ ही, प्राकृतिक और आयुर्वेदिक उपाय अपनाकर दिल को स्वस्थ और मजबूत बनाया जा सकता है।

❤️ याद रखें – दिल खुश तो आप फिट!

🔖 हेल्थ ट्रेंडिंग हैशटैग्स

29/09/2025

क्या आपने कभी सोचा है कि खाने के बाद हमारे पेट में गुड़गुड़ाहट क्यों होती है या खट्टेपन का एहसास क्यों आता है? इसका कारण है – स्टमक एसिड (Gastric Acid)। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों मानते हैं कि यह अम्ल पाचन की सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। अगर इसका संतुलन बिगड़ जाए तो पेट की छोटी तकलीफ़ से लेकर बड़ी बीमारियाँ तक हो सकती हैं। आइए जानें कि आखिर यह पेट का अम्ल क्या है, कैसे काम करता है और इसका संतुलन कैसे बनाए रखा जा सकता है।

🔎 पेट का अम्ल क्या है?

पेट के अंदर मौजूद ग्रंथियाँ हाइड्रोक्लोरिक एसिड (HCl), पेप्सिन और अन्य पाचक रस बनाती हैं। इनमें सबसे अहम है HCl, जिसे आम बोलचाल में स्टमक एसिड कहते हैं।
आयुर्वेद में इसे “जठराग्नि” या पाचनाग्नि से जोड़ा गया है। यानी शरीर की संपूर्ण ऊर्जा और रोग प्रतिरोधक क्षमता का मूल आधार यही है।

⚙️ कैसे करता है काम?

भोजन का पाचन:
स्टमक एसिड भोजन को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर उसे शरीर द्वारा अवशोषित करने योग्य बनाता है।

प्रोटीन पाचन की शुरुआत:
पेप्सिन एंजाइम को सक्रिय करने में मदद करता है, जो प्रोटीन को एमिनो एसिड में तोड़ता है।

कीटाणुओं से रक्षा:
पेट का अम्ल एक तरह की प्राकृतिक सैनिटाइज़र की तरह है, जो भोजन के साथ आए बैक्टीरिया और वायरस को नष्ट करता है।

पोषक तत्वों का अवशोषण:
आयरन, कैल्शियम, विटामिन B12 जैसे ज़रूरी पोषक तत्वों के अवशोषण में मदद करता है।

🌟 क्यों है ये खास?

यह हमारे शरीर की पहली सुरक्षा रेखा है।

बिना पेट के अम्ल के, भोजन से मिलने वाली ऊर्जा अधूरी रह जाएगी।

आयुर्वेद मानता है कि “मंदाग्नि” (कमज़ोर पाचनाग्नि) ही अधिकांश रोगों की जड़ है।

⚠️ कब बिगड़ता है संतुलन?

अधिक अम्लता (Hyperacidity):
तीखा, मसालेदार भोजन, शराब, अधिक चाय-कॉफी, तनाव और अनियमित दिनचर्या इसका कारण है। परिणाम – जलन, खट्टी डकार, गैस, अल्सर।

कम अम्लता (Hypoacidity):
उम्र बढ़ने, ज़्यादा एंटासिड दवाइयों या पाचन शक्ति की कमजोरी से होता है। परिणाम – खाना ठीक से न पचना, कमजोरी, पोषण की कमी।

🌿 पेट के अम्ल का संतुलन बनाए रखने के आयुर्वेदिक और घरेलू उपाय
✅ अम्लता (Acidity) कम करने के उपाय

सौंफ और मिश्री:
खाना खाने के बाद 1 चम्मच सौंफ और मिश्री, पेट को ठंडक देती है।

धनिया पानी:
रातभर भीगे धनिये का पानी सुबह पीने से अम्लता कम होती है।

एलोवेरा जूस:
पेट की जलन और सूजन दोनों से राहत।

ठंडी छाछ + अजवाइन:
भोजन के बाद लेने से एसिडिटी और गैस से बचाव।

✅ अम्लता (Acid) बढ़ाने और पाचन सुधारने के उपाय

अदरक का रस:
भोजन से पहले अदरक का छोटा टुकड़ा नमक के साथ।

हींग और अजवाइन:
गैस और मंदाग्नि में बेहद उपयोगी।

त्रिकटु चूर्ण (सोंठ, काली मिर्च, पिपली):
यह पाचनाग्नि को प्रज्वलित करता है।

नींबू पानी:
सुबह गुनगुने पानी में नींबू, पाचन को प्राकृतिक रूप से सक्रिय करता है।

🧘 जीवनशैली सुझाव

समय पर भोजन करें, देर रात खाने से बचें।

ज़्यादा तला-भुना और जंक फूड कम करें।

योगासन जैसे – वज्रासन, पवनमुक्तासन और मकरासन पाचन शक्ति को मजबूत करते हैं।

तनाव कम करें, क्योंकि मानसिक अशांति सीधा पेट के अम्ल को प्रभावित करती है।

🔔 निष्कर्ष

पेट का अम्ल केवल पाचन का रस नहीं, बल्कि यह हमारे शरीर का जीवनरक्षक कवच है। इसे संतुलित रखने से ही स्वास्थ्य, ऊर्जा और रोगमुक्ति संभव है। आयुर्वेद सही ही कहता है –
"जठराग्नि ही आयु का आधार है।"

📢 हेल्थ हैशटैग्स:

29/09/2025

# क्या आपको जोड़ों में अकड़न, दर्द या अचानक सूजन की समस्या होती है? अक्सर डॉक्टर चेकअप में जब खून की रिपोर्ट आती है तो उसमें लिखा रहता है – Uric Acid बढ़ा हुआ है। पर असल में यह यूरिक एसिड क्या है, कितना सामान्य माना जाता है और इसे आयुर्वेदिक तरीके से कैसे नियंत्रित किया जा सकता है, यह जानना बेहद ज़रूरी है।

✅ सामान्य यूरिक एसिड का स्तर

पुरुषों में: 3.4 से 7.0 mg/dL

महिलाओं में: 2.4 से 6.0 mg/dL

बच्चों में: 2.0 से 5.5 mg/dL

👉 जब यूरिक एसिड इनसे ज़्यादा हो जाए तो इसे Hyperuricemia कहा जाता है।

🌿 यूरिक एसिड क्या है?

यूरिक एसिड शरीर में बनने वाला एक प्राकृतिक रसायन है, जो हमारे खाने में पाए जाने वाले प्यूरिन (Purine) नामक तत्व के टूटने से बनता है। प्यूरिन सबसे ज़्यादा दलहन, मटर, मशरूम, मांस, चाय-कॉफी, रेड मीट और शराब जैसी चीज़ों में पाया जाता है।

सामान्यतः किडनी इसे मूत्र के माध्यम से बाहर निकाल देती है, लेकिन जब इसका उत्सर्जन ठीक से नहीं हो पाता या शरीर में यूरिक एसिड का उत्पादन अधिक हो जाता है, तब यह खून में जमा होने लगता है। यही स्थिति आगे चलकर गठिया (Gout), किडनी स्टोन और जोड़ों में सूजन जैसी समस्याओं का कारण बनती है।

🌸 आयुर्वेद का दृष्टिकोण

आयुर्वेद में यूरिक एसिड बढ़ने की समस्या को “वातरक्त” कहा गया है।

जब रक्त में वात और रक्त का असंतुलन होता है तो जोड़ों में अकड़न और दर्द उत्पन्न हो जाता है।

आयुर्वेद में वमन, विरेचन और बस्ति जैसे पंचकर्म उपचार यूरिक एसिड को कम करने में बेहद मददगार हैं।

🌿 यूरिक एसिड नियंत्रण के उपाय
1. एप्पल साइडर विनेगर: एक गिलास पानी में दो चम्मच सिरका मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें। नियमित सेवन से लाभ मिलेगा।
2. अजवाइन का पानी: एक चम्मच अजवाइन रातभर पानी में भिगोकर रखें। सुबह खाली पेट पिएँ।
3. अलोवेरा: इसका रस एलोवेरा जूस में मिलाकर लिया जा सकता है, पर चिकित्सकीय सलाह लें।
4. कच्चा पपीता: 5 मिनट उबालकर छान लें और दिन में दो से तीन बार पिएँ। यूरिक एसिड रोगियों को आराम मिलेगा।
5. नारियल पानी: यह शरीर को ठंडा रखता है और यूरिक एसिड रोगियों के लिए लाभकारी है।
भरपूर पानी: दिन भर में खूब पानी पिएँ, ताकि यूरिक एसिड बाहर निकले।
6. भुजुका (चुकंदर) का जूस: खाली पेट 1 चम्मच जूस सेवन करने से यूरिक एसिड का स्तर घटता है।
7. बेकिंग सोडा: एक गिलास पानी में आधा चम्मच बेकिंग सोडा मिलाकर दिन में 2 बार पिएँ, इससे यूरिक एसिड का स्तर घटता है।

🍎 खानपान में सावधानियां

👉 न खाएं: रेड मीट, शराब, बीयर, फ्राई फूड, पालक, मशरूम, मटर, चना, राजमा।
👉 खाएं: खीरा, तोरी, लौकी, टमाटर, जौ, मूंग दाल, नींबू पानी।
👉 पिएं: पर्याप्त मात्रा में पानी (8–10 गिलास रोज़)।
👉 बचें: ज्यादा नमक और चीनी के सेवन से।

✨ निष्कर्ष

यूरिक एसिड का बढ़ना आधुनिक जीवनशैली की एक आम समस्या है। यदि समय रहते ध्यान न दिया जाए तो यह गठिया, किडनी स्टोन और हार्ट प्रॉब्लम्स तक का कारण बन सकता है।
👉 आयुर्वेद, संतुलित आहार-व्यवहार, योग और घरेलू उपायों से इसे आसानी से काबू में लाया जा सकता है।
👉 दवाइयों के साथ सही जीवनशैली अपनाकर लंबे समय तक जोड़ों को स्वस्थ रखा जा सकता है और शरीर को प्राकृतिक स्वास्थ्य प्रदान किया जा सकता है।

28/09/2025

हृदय (Heart) – यह सिर्फ़ शरीर का एक अंग नहीं बल्कि हमारी ज़िंदगी की सबसे अहम धड़कन है। जब तक दिल धड़कता है, तब तक जीवन चलता है। यह लगातार काम करने वाली एक ऐसी "पंप मशीन" है, जो दिन-रात बिना रुके रक्त को शरीर के हर हिस्से तक पहुँचाती है। आयुर्वेद और आधुनिक विज्ञान दोनों ही हृदय को जीवन का केंद्र मानते हैं। आइए जानते हैं, दिल क्यों है इतना ख़ास, यह कैसे काम करता है और किन घरेलू उपायों से हम इसे मज़बूत रख सकते हैं।

❤️ हृदय क्यों है ख़ास?

हृदय शरीर का जीवन केंद्र है, जो रक्त के साथ-साथ ऑक्सीजन और पोषक तत्व हर हिस्से तक पहुँचाता है।

यह भावनाओं से भी जुड़ा है। ग़ुस्सा, प्रेम, डर, खुशी – हर एहसास दिल की धड़कन को बदल देता है।

आयुर्वेद में हृदय को "मन, प्राण और आत्मा का निवास स्थान" कहा गया है।

🫀 हृदय कैसे काम करता है?

हृदय एक पंप की तरह कार्य करता है।

इसमें चार चैम्बर (दो ऑरिकल और दो वेंट्रिकल) होते हैं।

यह प्रति मिनट लगभग 72 बार धड़कता है और हर दिन लगभग 1 लाख बार।

हृदय हर मिनट लगभग 5 लीटर खून पूरे शरीर में भेजता है।

ऑक्सीजन युक्त रक्त फेफड़ों से लेकर शरीर तक और शरीर से वापस हृदय तक का यह चक्र बिना रुके चलता रहता है।

⚠️ हृदय रोग क्यों होते हैं?

असंतुलित खानपान (ज्यादा तेल, चीनी, जंक फूड)।

तनाव और नींद की कमी।

धूम्रपान और शराब।

मोटापा और व्यायाम की कमी।

हाई बीपी और डायबिटीज।

🌿 घरेलू और आयुर्वेदिक उपाय – दिल को रखें हेल्दी

लहसुन (Garlic) – ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल कम करने में मदद करता है।

आंवला (Amla) – हृदय को मज़बूत बनाता है और धमनियों की सफाई करता है।

हल्दी (Turmeric) – इसमें करक्यूमिन होता है जो ब्लड को साफ़ और दिल को स्वस्थ रखता है।

मेथी दाना (Fenugreek) – कोलेस्ट्रॉल लेवल संतुलित करता है।

दालचीनी (Cinnamon) – ब्लड शुगर कंट्रोल कर दिल की सेहत सुधारती है।

नियमित योग और प्राणायाम – अनुलोम विलोम, कपालभाति और भस्त्रिका हृदय के लिए बेहद फ़ायदेमंद।

गर्म पानी का सेवन – चर्बी और टॉक्सिन हटाने में मदद करता है।

ताज़े फल और सब्ज़ियाँ – एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर आहार दिल की धमनियों को साफ़ रखता है।

तनाव से दूरी – ध्यान, मेडिटेशन और सकारात्मक सोच दिल को स्वस्थ रखती है।

नियमित दिनचर्या – समय पर सोना, जागना और संतुलित भोजन करना सबसे बड़ा इलाज है।

🧘‍♂️ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में हृदय को ओज (जीवन ऊर्जा) का केंद्र माना गया है।

यदि आहार सात्विक हो, नींद पूरी हो और मन शांत रहे तो दिल लंबे समय तक स्वस्थ रहता है।

पंचकर्म और हर्बल दवाओं (जैसे अर्जुन की छाल, अश्वगंधा, गिलोय) का सेवन हृदय रोगों से बचाव करता है।

📌 निष्कर्ष

हृदय सिर्फ़ खून पंप करने वाला अंग नहीं, बल्कि हमारी जीवनशक्ति है। अगर हम संतुलित आहार, योग, प्राणायाम और प्राकृतिक नुस्खों को जीवन का हिस्सा बना लें, तो हृदय लंबी उम्र तक स्वस्थ रह सकता है। याद रखें – स्वस्थ हृदय ही सुखी जीवन की असली धड़कन है।

✍️ हैशटैग्स

#दिलकीधड़कन #स्वस्थदिल

28/09/2025

🔥 आज की भाग-दौड़ भरी ज़िंदगी, तनाव, गलत खानपान और अनियमित जीवनशैली ने पे बीमारियों को बेहद आम बना दिया है। उन्हीं में से एक है Heartburn (हार्टबर्न)। नाम भले ही “दिल की जलन” लगे, लेकिन असल में यह समस्या पेट और भोजन नली (Esophagus) से जुड़ी है। इसमें व्यक्ति को सीने के बीचों-बीच या गले तक जलन महसूस होती है।

आयुर्वेद इस रोग को “अम्लपित्त” की श्रेणी में रखता है। जब शरीर में पित्त दोष बढ़ता है और आहार का पाचन सही से नहीं हो पाता, तो खट्टे रस का उत्पादन ज्यादा हो जाता है। यही कारण हार्टबर्न बनकर सामने आता है।

❓ हार्टबर्न क्यों होता है? (Causes in Ayurvedic Perspective)

आयुर्वेद के अनुसार इसके मुख्य कारण हैं –

🍋 अत्यधिक खट्टे, मसालेदार और तैलीय भोजन

🥵 अधिक तनाव और मानसिक चिंता

🍵 ज्यादा चाय, कॉफी, अल्कोहल का सेवन

🍔 बार-बार खाना या देर रात भारी भोजन

🛌 खाने के तुरंत बाद लेट जाना

⚖️ मोटापा और अनियमित जीवनशैली

आयुर्वेद में कहा गया है –
“अतियोगात पित्तं दहति देहम्” अर्थात पित्त का अतिरेक शरीर में जलन और विकार पैदा करता है।

🌿 हार्टबर्न से बचाव के उपाय (How to Prevent Heartburn)

🍽️ समय पर भोजन करें – भूख लगने पर ही खाएँ और बहुत देर तक भूखे न रहें।

🥦 हल्का और सुपाच्य आहार लें – हरी सब्जियाँ, दलिया, मूंग की दाल सर्वोत्तम हैं।

❌ खट्टे और मसालेदार भोजन से परहेज़ करें – नींबू, अचार, फ्राई फूड कम करें।

🧘 योग और प्राणायाम करें – खासकर अनुलोम-विलोम, शीतली प्राणायाम।

🚶 खाने के बाद थोड़ी देर टहलें – तुरंत लेटने से पाचन कमजोर होता है।

😴 रात को हल्का भोजन करें और जल्दी सोएँ।

🌿 हार्टबर्न के आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे (Best Home Remedies)

ठंडा दूध 🥛
– 1 गिलास ठंडा दूध धीरे-धीरे पीने से पित्त शांत होता है और जलन तुरंत कम होती है।

सौंफ का पानी 🌱
– 1 चम्मच सौंफ रातभर पानी में भिगोकर सुबह उसका पानी पिएँ। इससे पेट ठंडा रहता है।

मुलेठी पाउडर 🌿
– आधा चम्मच मुलेठी पाउडर गुनगुने पानी या दूध के साथ लेने से एसिडिटी और हार्टबर्न कम होता है।

धनिया का अर्क 🌿
– धनिया भिगोकर सुबह उसका पानी पीने से पेट की जलन मिटती है।

एलोवेरा जूस 🍃
– 2-3 चम्मच एलोवेरा जूस खाली पेट लेने से अम्लपित्त व हार्टबर्न नियंत्रित होता है।

तुलसी के पत्ते 🌿
– 4-5 तुलसी के पत्ते धीरे-धीरे चबाने से एसिडिटी और गैस शांत होती है।

🧘 योग और जीवनशैली

🧎‍♂️ वज्रासन – भोजन के बाद 5-10 मिनट बैठना पाचन को दुरुस्त करता है।

🧘 शवासन – मानसिक तनाव कम कर हार्टबर्न घटाता है।

🚰 गुनगुना पानी पीते रहना और दिनभर हाइड्रेटेड रहना बहुत ज़रूरी है।

✨ निष्कर्ष

हार्टबर्न कोई साधारण समस्या नहीं है। बार-बार होने पर यह गैस्ट्रिक अल्सर और GERD जैसी गंभीर बीमारियों का कारण बन सकता है। आयुर्वेदिक दिनचर्या, सही आहार और घरेलू नुस्खों से इसे आसानी से नियंत्रित किया जा सकता है।

👉 इसलिए अगली बार सीने में जलन हो तो दवाइयों की जगह पहले आयुर्वेद अपनाएँ और प्राकृतिक तरीकों से पेट को स्वस्थ बनाएँ।

🌿✨ A Heartfelt Story of Healing at Gera Ayurvedic Center ✨🌿Recently, we received a beautiful message in our society grou...
27/09/2025

🌿✨ A Heartfelt Story of Healing at Gera Ayurvedic Center ✨🌿

Recently, we received a beautiful message in our society group that truly touched our hearts. One of our neighbors shared about their cook, who had been silently suffering from rheumatoid arthritis for years. The pain was so intense that she often couldn’t get through the day and had to take frequent leaves. Watching her struggle was heartbreaking. 💔

Then came a blessing — Dr. Mahendra Gera.
Within just 2–3 days of his consultation, her pain eased to a level she never thought possible. Today, she moves around with lightness, joy, and gratitude in her heart — every day she says, “God sent him for me.” 🌸✨

🙏 Dr. Gera is not just a doctor, but a healer in the truest sense — humble, compassionate, and deeply rooted in Ayurvedic wisdom. His extraordinary skill in Nadi Pariksha (pulse diagnosis) helps him understand the very nature of the body (Vata, Pitta, Kapha) and guide patients towards true healing.

This testimonial reminded us why Ayurveda is timeless and why healers like Dr. Gera are such a blessing to our society. 🌿💚

From the bottom of our hearts — Thank you, Dr. Gera. 🌟🌱

27/09/2025

#थायरॉयड – गले के ठीक सामने तितली के आकार की एक छोटी सी ग्रंथि, लेकिन इसकी भूमिका हमारे शरीर के लिए बेहद बड़ी है। यह शरीर की ऊर्जा, मेटाबॉलिज़्म, वृद्धि, त्वचा, बाल और मानसिक स्थिति तक को नियंत्रित करती है। जब थायरॉयड सही तरीके से काम करता है तो पूरा शरीर संतुलित रहता है, लेकिन इसकी गड़बड़ी कई तरह की बीमारियों का कारण बन सकती है। आइए जानते हैं थायरॉयड क्या है, क्यों महत्वपूर्ण है और कैसे रखें इसे स्वस्थ।

🦋 थायरॉयड क्या है?

थायरॉयड एक एंडोक्राइन ग्रंथि है जो गले के सामने स्थित होती है। इसका आकार तितली जैसा होता है। यह ग्रंथि मुख्य रूप से T3 (Triiodothyronine), T4 (Thyroxine) और कैल्सिटोनिन नामक हार्मोन बनाती है। ये हार्मोन शरीर की ऊर्जा खपत और सभी अंगों के कामकाज को नियंत्रित करते हैं।

🌟 थायरॉयड की महत्ता

मेटाबॉलिज़्म (Metabolism) – भोजन को ऊर्जा में बदलने का काम थायरॉयड करता है।

विकास और वृद्धि – बच्चों की शारीरिक और मानसिक वृद्धि में इसका सीधा योगदान है।

हार्मोन संतुलन – महिलाओं के मासिक धर्म और गर्भावस्था में थायरॉयड की भूमिका अहम है।

मूड और मानसिक स्वास्थ्य – हार्मोन असंतुलन से चिंता, तनाव और चिड़चिड़ापन बढ़ता है।

त्वचा और बाल – थायरॉयड हार्मोन की कमी से बाल झड़ने और त्वचा रूखी होने लगती है।

⚠️ थायरॉयड से जुड़ी समस्याएँ

हाइपोथायरॉयडिज़्म (Hypothyroidism) – जब थायरॉयड हार्मोन कम बनता है। लक्षण: थकान, वज़न बढ़ना, ठंड लगना, कब्ज़।

हाइपरथायरॉयडिज़्म (Hyperthyroidism) – जब हार्मोन ज़्यादा बनने लगे। लक्षण: वज़न कम होना, बेचैनी, तेज़ धड़कन, पसीना आना।

गलगंड (Goiter) – थायरॉयड ग्रंथि का आकार बढ़ जाना।

थायरॉयड नोड्यूल्स और कैंसर – कुछ मामलों में गांठें या गंभीर रोग हो सकते हैं।

🌿 थायरॉयड की देखभाल – घरेलू और आयुर्वेदिक उपाय

आयोडीन युक्त नमक का सेवन करें – आयोडीन की कमी थायरॉयड रोगों का मुख्य कारण है।

ताज़े फल और सब्ज़ियाँ खाएँ – खासकर गाजर, आंवला, पपीता, और हरी पत्तेदार सब्ज़ियाँ।

अर्जुन की छाल – आयुर्वेद में हृदय और थायरॉयड दोनों के लिए उपयोगी मानी गई है।

गिलोय और अश्वगंधा – प्रतिरक्षा शक्ति बढ़ाकर हार्मोन को संतुलित करते हैं।

योग और प्राणायाम – सर्वांगासन, हलासन, भुजंगासन और उज्जायी प्राणायाम थायरॉयड के लिए बेहद असरदार हैं।

तनाव से बचें – मानसिक तनाव सीधे हार्मोन असंतुलन का कारण बनता है।

नियमित व्यायाम – ब्लड सर्कुलेशन और मेटाबॉलिज़्म दुरुस्त रखता है।

अत्यधिक जंक फूड से दूरी – खासकर डीप फ्राइड और मैदा आधारित चीज़ें।

गर्म पानी और हर्बल चाय – थायरॉयड की सूजन और असंतुलन को कम करने में मददगार।

नियमित चेकअप – TSH, T3 और T4 टेस्ट कराना न भूलें।

🧘‍♀️ आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद के अनुसार, थायरॉयड की समस्या कफ और वात दोष से जुड़ी मानी जाती है।

पंचकर्म थैरेपी (विशेषकर विरेचन और अभ्यंग) लाभकारी मानी जाती है।

त्रिफला, आंवला और हरिद्रा (हल्दी) का सेवन रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर थायरॉयड संतुलन में मदद करता है।

नियमित दिनचर्या, सात्विक आहार और ध्यान थायरॉयड स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़ा उपाय है।

📌 निष्कर्ष

थायरॉयड भले ही छोटी सी ग्रंथि है, लेकिन इसका संतुलन ही शरीर की सेहत की कुंजी है। समय पर जाँच, संतुलित आहार, योग और घरेलू आयुर्वेदिक नुस्खों को अपनाकर आप थायरॉयड को स्वस्थ रख सकते हैं। याद रखें – थायरॉयड को संभालना ही जीवन को संतुलित और ऊर्जावान बनाना है।

✍️ हैशटैग्स

#थायरॉयड #स्वस्थजीवन

27/09/2025

दुनिया की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी में याददाश्त का कमजोर होना और दिमागी थकान आम समस्याएँ बन चुकी हैं। ऐसे में आयुर्वेद सदियों पुरानी उन औषधियों की ओर इशारा करता है, जो मस्तिष्क को पोषण देती हैं और मानसिक स्पष्टता प्रदान करती हैं। ब्राह्मी और शंखपुष्पी ऐसी ही दो प्रमुख जड़ी-बूटियाँ हैं, जिनका प्रयोग प्राचीन समय से स्मृति शक्ति, ध्यान और मानसिक शांति के लिए होता आया है। आइए जानते हैं इनके चमत्कारी लाभ, प्रयोग विधियाँ और रोचक तथ्य।
#ब्राह्मी – बुद्धि और स्मृति की देवी:
ब्राह्मी (Bacopa monnieri) का अर्थ ही होता है – "बुद्धि प्रदान करने वाली।" इसे आयुर्वेद में मेधावर्धिनी यानी स्मृति और बुद्धि बढ़ाने वाली जड़ी माना गया है।
लाभ:
स्मरण शक्ति में वृद्धि: ब्राह्मी नियमित सेवन से याददाश्त और कॉन्सेंट्रेशन बेहतर होता है।
तनाव और चिंता में राहत: यह मस्तिष्क की नसों को शांत करती है।
मस्तिष्क की कोशिकाओं की मरम्मत: इसमें मौजूद बैकोसाइड मस्तिष्क की कोशिकाओं को पुनर्जीवित करता है।
प्रयोग विधियाँ:
ब्राह्मी पाउडर को घी या दूध के साथ लेना सर्वोत्तम माना जाता है।
ब्राह्मी तेल से सिर की मालिश मानसिक शांति देता है।
#शंखपुष्पी– मेधावर्धक औषधि
शंखपुष्पी (Convolvulus pluricaulis) आयुर्वेद में प्रमुख मेधावर्धक औषधि है। यह मस्तिष्क को ऊर्जा देती है और भावनात्मक संतुलन बनाए रखने में सहायक होती है।
लाभ:
नींद की गुणवत्ता में सुधार: यह अनिद्रा से परेशान लोगों के लिए लाभकारी है।
चिंता, अवसाद से राहत: मानसिक स्थिरता में मदद करती है।
बच्चों में पढ़ाई की एकाग्रता बढ़ाती है: शंखपुष्पी सिरप बच्चों में लोकप्रिय है।
प्रयोग विधियाँ:
शंखपुष्पी सिरप बाजार में आसानी से उपलब्ध है।
आयुर्वेदिक डॉक्टर की सलाह से पाउडर या अर्क का प्रयोग किया जा सकता है।
ब्राह्मी और शंखपुष्पी का संयोजन:
जब ब्राह्मी और शंखपुष्पी को एक साथ लिया जाता है, तो यह एक शक्तिशाली मानसिक टॉनिक का कार्य करता है। यह संयोजन स्कूल जाने वाले बच्चों, प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं, और मानसिक श्रम करने वाले वयस्कों के लिए अत्यंत लाभकारी है।
रोज़ सुबह दूध या गुनगुने पानी के साथ इन दोनों का मिश्रण लेना उत्तम है।
यह संयोजन स्मृति, निर्णय क्षमता और चिंता को नियंत्रित करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
आधुनिक अनुसंधान भी ब्राह्मी और शंखपुष्पी की उपयोगिता को प्रमाणित करते हैं। कई अध्ययन यह दिखाते हैं कि इनमें न्यूरोट्रांसमीटर गतिविधि को बढ़ाने की क्षमता है, जिससे स्मृति और एकाग्रता में सुधार होता है।
सतर्कता:
ब्राह्मी और शंखपुष्पी का अधिक मात्रा में सेवन सिरदर्द या पाचन संबंधी परेशानी उत्पन्न कर सकता है।
गर्भवती महिलाएं या विशेष दवाएं ले रहे लोग इन्हें प्रयोग करने से पहले चिकित्सकीय सलाह अवश्य लें।
निष्कर्ष:
ब्राह्मी और शंखपुष्पी केवल जड़ी-बूटियाँ नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक ज्ञान की अमूल्य निधियाँ हैं। ये हमारे मस्तिष्क को उसी प्रकार पोषण देती हैं, जैसे पौधे को जल। आज जब मानसिक थकान और तनाव जीवन का हिस्सा बन चुका है, तब इन जड़ी-बूटियों का प्रयोग न केवल याददाश्त सुधारता है, बल्कि जीवन में स्थिरता और स्पष्टता भी लाता है।

26/09/2025
25/09/2025

आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में जहां बीमारियाँ रोज़ाना नए-नए रूप में सामने आती हैं, वहां हमारे शरीर को सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है एक मजबूत इम्यून सिस्टम की। और इस काम में सबसे अहम भूमिका निभाता है – विटामिन C (Vitamin C)। इसे न केवल “इम्यूनिटी बूस्टर” कहा जाता है बल्कि यह त्वचा, हड्डियों और पूरे शरीर के लिए वरदान है।

🌿 विटामिन C क्या है?

विटामिन C एक पानी में घुलनशील (Water Soluble) विटामिन है जिसे एस्कॉर्बिक एसिड (Ascorbic Acid) भी कहते हैं। हमारा शरीर इसे खुद नहीं बना पाता और न ही इसे लंबे समय तक स्टोर कर सकता है। इसलिए हमें इसे रोज़ाना भोजन से लेना पड़ता है।

✅ विटामिन C क्यों है ज़रूरी?

यह शरीर में कोलाजेन (Collagen) बनाने में मदद करता है, जो त्वचा और हड्डियों को मजबूत रखता है।

यह एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करता है और शरीर को फ्री-रेडिकल्स से बचाता है।

इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाकर सर्दी-जुकाम और संक्रमण से लड़ने में मदद करता है।

आयरन के अवशोषण (Iron Absorption) को बढ़ाता है, जिससे एनीमिया से बचाव होता है।

घाव जल्दी भरने में मदद करता है।

🍊 विटामिन C के प्रमुख स्रोत

प्राकृतिक रूप से यह विटामिन फलों और सब्जियों में पाया जाता है।

फल:

आंवला (सबसे अच्छा स्रोत)

संतरा

नींबू

अमरूद

कीवी

स्ट्रॉबेरी

अनानास

सब्जियां:

शिमला मिर्च

टमाटर

ब्रोकोली

हरी मिर्च

पत्तेदार हरी सब्जियां

👉 ध्यान रखें कि विटामिन C गर्मी में जल्दी नष्ट हो जाता है। इसलिए इन्हें कच्चा या हल्का पकाकर ही खाएं।

🌟 विटामिन C के फायदे
1. इम्यूनिटी बूस्टर

सर्दी-जुकाम से बचने और शरीर को संक्रमण से सुरक्षित रखने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण है।

2. त्वचा को ग्लोइंग बनाए

कोलाजेन उत्पादन बढ़ाकर यह झुर्रियों और उम्र के असर को कम करता है।

3. दिल को रखे स्वस्थ

ब्लड प्रेशर को संतुलित करता है और दिल की बीमारियों से बचाता है।

4. आंखों की सुरक्षा

यह मोतियाबिंद और आंखों की कमजोरी से बचाता है।

5. हड्डियों और दांतों के लिए फायदेमंद

कैल्शियम और आयरन के साथ मिलकर यह हड्डियों और दांतों को मजबूत करता है।

⚠️ विटामिन C की कमी के लक्षण

बार-बार सर्दी-जुकाम होना

त्वचा पर रूखापन और झुर्रियां

घाव का देर से भरना

मसूड़ों से खून आना

थकान और कमजोरी

गंभीर कमी होने पर स्कर्वी (Scurvy) नामक रोग हो सकता है।

🧘 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण

आयुर्वेद में विटामिन C से भरपूर आंवला को अमृत समान माना गया है। यह त्रिदोष नाशक है और शरीर के ओज को बढ़ाता है। च्यवनप्राश, त्रिफला और आंवला रस इसके बेहतरीन आयुर्वेदिक स्रोत हैं।

📌 निष्कर्ष

विटामिन C सिर्फ एक विटामिन नहीं बल्कि सेहत की ढाल है। अगर आप रोज़ाना इसके प्राकृतिक स्रोत जैसे आंवला, संतरा, नींबू, टमाटर आदि का सेवन करें, तो न केवल इम्यूनिटी मजबूत होगी बल्कि त्वचा जवां, दिल स्वस्थ और जीवन ऊर्जा से भरपूर रहेगा।

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#स्वास्थ्य #इम्यूनिटीबूस्टर #आंवला #संतरा #प्राकृतिकउपचार #आयुर्वेद #स्वस्थभारत

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