Divya Ayurved

Divya Ayurved Handmade Soap

17/01/2021
27/06/2020

अनिद्रा(INSOMNIA)
अर्थात नींद न आने का रोग आज के समय का एक बहुत ही आम रोग है तथा यह रोग नाड़ी तंत्र से सम्बन्धित रोग है। इस रोग से पीड़ित रोगी को बहुत कम नींद आती है। वैसे देखा जाए तो सभी व्यक्तियों को रोजाना 6 से 8 घण्टे की नींद लेना जरूरी होता है क्योंकि नींद के समय ही तनावयुक्त पेशियों व स्नायुओं को आराम मिलता है। लेकिन अधिक सोना (नींद लेना) भी हानिकारक होता है क्योंकि इससे रोगी के शरीर में कई प्रकार की बीमारियां हो जाती हैं
जैसे-आलस्य रोग, सुस्तीपन।
नींद जितनी तेज तथा गहरी होती है, उतनी ही इसकी आवश्यकता भी कम पड़ती है तथा लाभ भी अधिक होता है। जब किसी व्यक्ति को आवश्यकता के अनुसार नींद नहीं आती है तो उसे अनिद्रा का रोगी कहते हैं। इस रोग का इलाज प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है। यह बहुत ही कष्टदायक रोग है। इस रोग के कारण कभी-कभी तो रोगी व्यक्ति पागल तक हो जाता है। अनिद्रा रोग होने का लक्षण: इस रोग से पीड़ित रोगी को नींद बहुत ही कम आती है। कभी-कभी तो व्यक्ति को नींद भी नहीं आती है और वह पूरी रात सोते समय इधर-उधर करवट लेता रहता है। कभी-कभी जब व्यक्ति को नींद आ भी जाती है तो उसकी आंख जल्दी ही खुल जाती है तथा दुबारा नींद नहीं आती है। रोगी का शरीर थका-थका सा लगने लगता है। उसका किसी काम को करने में मन नहीं लगता है। इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति की स्मरण शक्ति भी कमजोर पड़ जाती है तथा उसका रक्तचाप सामान्य से अधिक हो जाता है। अनिद्रा रोग के रोगी के चेहरे की स्वाभाविक चमक खो जाती है। अनिद्रा रोग के कारण रोगी व्यक्ति को अपनी आंखें भारी-भारी सी लगने लगती है तथा वह चिड़चिड़े स्वभाव का हो जाता है। रोगी व्यक्ति में मानसिक, शारीरिक तथा भावनात्मक तनाव की स्थिति हो जाती है। इस रोग से पीड़ित रोगी को और भी कई प्रकार के रोग हो जाते हैं।
अनिद्रा रोग होने का कारण:-
1. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अनिद्रा रोग होने का सबसे प्रमुख कारण मानसिक तनाव है।
2. अधिक चिंता करना, जरूरत से अधिक मानसिक या शारीरिक श्रम का अभाव तथा अधिक क्रोध करने के कारण अनिद्रारोग हो जाता है।
3. पेट में कब्ज बनने के कारण भी अनिद्रा रोग हो सकता है।
4. रात के समय में अधिक भोजन का सेवन करने, भूखे पेट सो जाने, चाय-कॉफी का सेवन अधिक करने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
5. शरीर में खून की कमी होने तथा अधिक कमजोरी आ जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो जाता है।
6. धूम्रपान करना, वायुविकार, शरीर में किसी अन्य प्रकार का रोग हो जाने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।
7. ज्यादा औषधियों का सेवन करने के कारण भी अनिद्रा रोग हो सकता है।
8. शरीर के रक्त में किसी प्रकार से दूषित द्रव्य के मिल जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
9. मस्तिष्क के स्नायु (नाड़ियों) में किसी प्रकार से सूजन तथा दर्द होने के कारण अनिद्रा रोग हो सकता है।
10. अधिक दिमागी कार्य करने तथा शारीरिक परिश्रम कम करने या बिल्कुल न करने से, कमरे में अधिक प्रकाश होने के कारण भी यह रोग व्यक्ति हो सकता है।
11. एक ही कमरे में बहुत से व्यक्तियों के साथ सोने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।
12. सोने का स्थान अधिक गंदा होना, चारपाई तथा बिछौने आदि का गंदा होने और सोने के स्थान पर खटमल आदि होने के कारण भी यह रोग व्यक्ति को हो सकता है।
13. मानसिक, स्नायुविक उत्तेजना, शोरयुक्त वातावरण के कारण, उत्तेजना युक्त दवाइयों का सेवन करने से भी अनिद्रा रोग को हो सकता है।
अनिद्रा रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:-
1. इस रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को कुछ दिन तक रसाहार जैसे मौसमी, खीरे, संतरे आदि का रस पीना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को फलों का सेवन करना चाहिए। रोगी को बिना पका हुआ और संतुलित भोजन करना चाहिए।
2. अनिद्रा रोग से ग्रस्त व्यक्ति को प्रतिदिन कुछ दिनों तक लौकी का रायता खाना चाहिए तथा दूध, दही, मट्ठे आदि का सेवन भी करना चाहिए। इन चीजों के सेवन के फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
3. दही में शहद, सौंफ, कालीमिर्च मिलाकर प्रतिदिन खाने से रोगी को बहुत अधिक लाभ मिलता है और उसका अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
4. अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को पानी में एक चम्मच शहद मिलाकर प्रतिदिन सुबह तथा शाम को पिलाना चाहिए। इसके फलस्वरूप यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
5. यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सुबह तथा शाम के समय में छोटी हरड़ को चूसे अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
6. अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी मसालेदार या ज्यादा तले-भुने भोजन का सेवन नहीं करना चाहिए क्योंकि इन चीजों के सेवन से रोगी का अनिद्रा रोग और भी बढ़ जाता है।
7. इस रोग से पीड़ित रोगी को सुबह के समय में नंगे पैर घास पर चलना चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
8. सुबह के समय प्रतिदिन व्यायाम करने से अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी को रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
9 . अनिद्रा रोग से पीड़ित रोगी का प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार इलाज करने के लिए रोगी से प्रतिदिन एनिमा क्रिया करानी चाहिए तथा इसके बाद मिट्टी की पट्टी का लेप उसके शरीर पर करना चाहिए। फिर इसके बाद रोगी को कटिस्नान, मेहनस्नान, रीढ़स्नान कराना चाहिए और सप्ताह में एक बार रोगी व्यक्ति को अपने शरीर पर गीली चादर लपेटनी चाहिए।
10. सोने से पहले रोगी व्यक्ति को गर्मपाद स्नान (गर्म पानी से पैरों को धोना) करना चाहिए और पैरों के तलवों पर सरसों के तेल से मालिश करनी चाहिए। इससे अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
11. रात को सोते समय रोगी व्यक्ति को अपने सिर में सूर्यतप्त नीला तेल लगाना चाहिए जिसके फलस्वरूप नींद अच्छी आती है तथा अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
12. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार यदि रोगी व्यक्ति प्रतिदिन सूर्य नमस्कार, वज्रासन, मकरासन, उत्तानपादासन, पश्चिमात्तानासन, हलासन, भुजंगासन, सर्वांगासन तथा पवनमुक्तासन करें तो रोगी व्यक्ति का अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
13. रोगी व्यक्ति को शीतली, शीतकारी नाड़ीशोधन प्राणायाम तथा ध्यान का अभ्यास प्रतिदिन करने से अनिद्रा रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।
14. रात को सोने से पहले रोगी व्यक्ति को शवासन क्रिया करनी चाहिए या फिर उल्टी गिनती तथा योगनिद्रा की क्रिया करनी चाहिए इससे अनिद्रा रोग में बहुत लाभ मिलता है।
15. रोगी व्यक्ति को उत्तर की ओर सिर करके नहीं सोना चाहिए तथा बाईं करवट लेकर ही सोना चाहिए। इसके फलस्वरूप अनिद्रा रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है तथा रोगी व्यक्ति को अच्छी नींद भी आने लगती है।
16. प्राकृतिक चिकित्सा के अनुसार अनिद्रा रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति के दोनों पैरों के बीच की उंगली के पिछले भाग को हाथ के अंगूठे से दबाना चाहिए। इसके बाद लगभग 14 से 15 मिनट के बाद फिर इसे छोड़ देना चाहिए तथा फिर से इस क्रम को दोहराना चाहिए। यह क्रिया कम से कम 10 बार करनी चाहिए। ऐसा प्रतिदिन करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है तथा रोगी व्यक्ति को नींद भी अच्छी आने लगती है।
17. रोगी व्यक्ति को गहरी नींद लेनी चाहिए और यह नींद ऐसी होनी चाहिए जैसे जीवित प्राणी शव की भांति निश्चेष्ट होकर सम्पूर्ण रूप से विश्राम (आराम) कर रहा हो।
तीन घण्टे की गहरी नींद आठ घंटे की उथली व स्वप्नों से भरी नींद से कहीं अधिक अच्छी होती है। इसलिए गहरी नींद में सोना चाहिए और चिंता फिक्र नहीं करनी चाहिए।
अच्छी नींद लेने के लिए कुछ उपाय:-
1. सोते समय सिर के नीचे तकिया लगाना चाहिए क्योंकि इससे रक्त संचारण का प्रवाह सिर से शरीर की नीचे की ओर होता है और नींद अच्छी आती है। सोते समय सिर हमेशा ऊंचा और बाकी धड़ थोड़ा नीचे रहना चाहिए।
2. सोते समय बाईं करवट लेकर सोना चाहिए क्योंकि इससे श्वास नली सीधी रहती है तथा शरीर में प्राणवायु का संचारण ठीक प्रकार से होता है।
3. नींद लेने के लिए कभी भी दवा का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि दवा से मस्तिष्क के स्नायुतंत्र पर बुरा प्रभाव पड़ता है और इससे कई प्रकार के रोग हो सकते हैं।
4. इस प्रकार कहा जा सकता है कि गहरी नींद में सोकर हम अनिद्रा रोग को दूर कर सकते हैं तथा स्वस्थ व निरोगी रहकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर सकते हैं। इसलिए जब कभी भी सोना चाहिए तो गहरी नींद में सोना चाहिए।

27/06/2020

श्वेत मोतियाबिंद (CATARACT)

जब आंखों में श्वेत मोतियाबिंद का रोग हो जाता है तो रोगी व्यक्ति को आंखों से धुंधलापन नज़र आने लगता है। यह रोग किसी भी आयु में होने वाला रोग है। जब यह रोग हो जाता है तो धीरे-धीरे व्यक्ति की नज़र कमजोर होने लगती है तथा रोगी व्यक्ति अंधा भी हो सकता है।
श्वेत मोतियाबिंद का लक्षण:- इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को अपनी आंखों के सामने धुंधला-धुधला सा नज़र आने लगता है तथा व्यक्ति को कोई भी वस्तु को देखने में परेशानी होने लगती है। रोगी व्यक्ति को अधिक रोशनी में देखने में परेशानी होने लगती है। चश्मे के नम्बर में जल्दी से बदलाव होने लगता है तथा उसे बार-बार चश्मा बदलने की जरूरत होती है। रोगी व्यक्ति को 2 या 2 से अधिक वस्तु दिखाई नहीं देती हैं।
श्वेत मोतियाबिंद रोग होने का कारण:- इस रोग के होने का सबसे प्रमुख कारण शरीर में दूषित द्रव का जमा होना है। दूषित द्रव के कारण आंखों पर प्रभाव पड़ता है और श्वेत मोतियाबिंद का रोग हो जाता है। शरीर में विटामिन `ए´, `बी´ और `सी´ की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है। नमक, चीनी, शराब, धूम्रपान का सेवन अधिक करने के कारण भी यह रोग हो सकता है। शरीर में खून की कमी हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है। पड़ते समय प्रकाश कम होना तथा बहुत छोटे अक्षरों को पड़ने के कारण भी यह रोग हो सकता है। मधुमेह रोग हो जाने के कारण भी यह रोग हो सकता है। अधिक प्रकाश में रहने के कारण भी यह रोग हो सकता है।
श्वेत मोतियाबिंद रोग होने पर प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार:- यदि मोतियाबिंद पक जाए तो प्राकृतिक चिकित्सा से इसका कोई भी उपचार नहीं है। लेकिन यदि रोग की शुरूआती अवस्था है तो इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से किया जा सकता है। इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को इस रोग के होने के कारणों को दूर करना चाहिए इसके बाद इसका उपचार प्राकृतिक चिकित्सा से करना चाहिए। इस रोग का उपचार करने के लिए सबसे पहले दो से तीन दिनों तक रोगी व्यक्ति को फलों का रस (आंवले का रस, गाजर का रस, संतरे का रस, अनन्नास का रस, सफेद पेठे का रस, नींबू पानी, नारियल पानी आदि) का सेवन करना चाहिए। फिर तीन सप्ताह तक बिना पके भोजन (फल, सब्जियां, अंकुरित दाल) का सेवन करना चाहिए। इसके बाद तीन सप्ताह तक संतुलित भोजन करना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार उपवास रखना चाहिए। इस प्रकार से उपचार करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।
गेहूं के ज्वारे का रस पीने से बहुत अधिक लाभ मिलता है। इस रोग से पीड़ित रोगी को विटामिन `ए´, `बी´, `सी´ वाले खाद्य पदार्थों का और हरे साग-सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए। प्रतिदिन 7-8 बादामों को पानी में पीसकर इसमें कालीमिर्च के चूर्ण को मिलाकर शहद के साथ चाटने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग से पीड़ित रोगी को चीनी, मैदा, रिफाईंड चावल, चाय, कॉफी, एल्कोहालिक खाद्य पदार्थ, मिर्च-मसालेदार तथा मांस का सेवन नहीं करना चाहिए।
शाम के समय में आंवले का रस शहद के साथ चाटने तथा तुलसी का रस या इसके पत्ते का सेवन करने से यह रोग ठीक हो जाता है। इस रोग को ठीक करने के लिए रोगी व्यक्ति को जलनेति क्रिया करनी चाहिए तथा इसके बाद गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए और दिन में कई बार मुंह में पानी भरकर आंखों में पानी के छीटे मारने चाहिए और साप्ताहिक धूपस्नान करना चाहिए। फिर इसके बाद आंखों पर 2 बार गर्म ठंडा सेंक करना चाहिए तथा इसके बाद पेट पर मिट्टी की पट्टी करने से तथा एनिमा क्रिया करके अपने पेट को साफ करना चाहिए, फिर कटिस्नान करना चाहिए और फिर रीढ़ पर गीले कपड़े की पट्टी करनी चाहिए। इस प्रकार से प्रतिदिन उपचार करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
लगभग 10 ग्राम शहद, 1 मिलीलीटर नींबू का रस, 1 मिलीलीटर अदरक का रस तथा एक मिलीलीटर प्याज का रस मिलाकर एक शीशी में भरकर इसे अच्छी तरह से मिला लें। इस मिश्रण को नेत्रज्योति कहते हैं। इस नेत्र ज्योति का सुबह तथा शाम आंखों में लगाने से यह रोग कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। सुबह के समय में इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को नंगे पैर हरी घास पर चलना चाहिए तथा बहुत ज्यादा रोशनी से बचना चाहिए।
प्रतिदिन आंखों का व्यायाम (पामिंग, त्राटक, पुतली का दांया तथा बांया करने तथा ऊपर नीचे करने) करने तथा गर्दन और कंधे का व्यायाम करने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
इस रोग से बचने के लिए मानसिक तनाव को दूर करना चाहिए तथा प्रतिदिन शवासन और योगनिद्रा करनी चाहिए।
प्रतिदिन सूर्यतप्त हरा पानी पीने तथा आंखों को इस पानी से धोने से यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।

27/06/2020

काला मोतियाबिंद (GLAUCOMA)
बुढ़ापे के समय में मोतियाबिन्द रोग होना एक आम बात है। यह एक प्रकार का आंख का रोग है जिसके कारण जब कोई व्यक्ति प्रकाश की ओर देखता है तो उसे एक प्रकार का रंगीन घेरा दिखाई देता है। जब किसी व्यक्ति को यह रोग हो जाता है तो उसी समय इस रोग का इलाज न किया जाए तो यह रोग आगे चल कर अन्धेपन का रूप ले लेता है और रोगी व्यक्ति को कुछ भी दिखाई नहीं देता है। इस रोग के होने के कारण आंखों के नेत्रगोलकों में तनाव होकर आंखें सख्त हो जाती हैं।
मोतियाबिन्द रोग होने का कारण- वैसे यह रोग आंख की आयु बढ़ने से होता है। मनुष्य जैसे-जैसे बूढ़ा होता जाता है वैसे-वैसे उसकी आंखों के लेंस की आयु भी बढ़ती है जिसके कारण उसकी आंख का लेंस पारदर्शी होता चला जाता है। लेकिन इस लेंस का पारदर्शी होना अलग-अलग व्यक्तियों में अलग-अलग समय में होता है।
आंखों में दूषित द्रव्यों की रुकावट हो जाने के कारण आंखों में दूषित द्रव्य बढ़ जाते हैं जिसके कारण आंखों के नेत्रगोलक में तनाव बढ़ जाता है और आंखों में मोतियाबिन्द का रोग हो जाता है। मोतियाबिन्द रोग होने के और भी कई कारण होते हैं
जैसे- आंखों में किसी प्रकार का संक्रमण होना, आंखों में किसी तरह से चोट लगना, मधुमेह रोग होना, औषधियों का अधिक इस्तेमाल करना, त्वचा पर किसी प्रकार की बीमारियां होना, आंखों में तेज खुजली होना तथा बिजली के तेज झटके लगना आदि। यह रोग जन्मजात भी हो सकता है जो मां-बाप से उसके बच्चों को हो सकता है। कुछ विशेष प्रकार की दवाइयों के प्रयोग से भी मोतियाबिन्द हो सकता है। यह रोग दूसरी चीजों से एलर्जी होने के कारण भी हो सकता है।
मोतियाबिन्द का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार- प्राकृतिक चिकित्सा के द्वारा मोतियाबिन्द रोग को ठीक करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को आंखों से पानी आने का उपचार कराना चाहिए। इसके बाद रोगी को विटामिन `ए` `बी` `सी` वाले पदार्थों का कुछ दिनों तक भोजन में लगातार सेवन करना चाहिए। ये पदार्थ कुछ इस प्रकार हैं- आंवला, सन्तरा, नींबू, अनन्नास, गाजर तथा पालक आदि।
मोतियाबिन्द के रोगी को इलाज के दौरान सबसे पहले अपने पेट को साफ करने के लिए एनिमा लेना चाहिए तथा इसके बाद अपने पेट पर मिट्टी का लेप करना चाहिए। रोगी को कुछ देर के बाद कटिस्नान करना चाहिए और फिर कुछ समय के लिए अपनी आंखों पर गीली पट्टी लपेटनी चाहिए।
मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को अपनी आंखों पर गर्म तथा ठंडी सिंकाई करनी चाहिए।
मोतियाबिन्द से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन नीम की 5-6 पत्तियां खानी चाहिए। इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है। जब मोतियाबिन्द रोग का प्रभाव कुछ कम हो जाए तो रोगी व्यक्ति को 1 सप्ताह तक फल तथा सामान्य भोजन खाना चाहिए।
इस रोग से पीड़ित रोगी को कभी भी भारी भोजन नहीं करना चाहिए और न ही मिर्च-मसाला, नमक, चाय तथा कॉफी का सेवन करना चाहिए।

27/06/2020

साइनस नाक का एक रोग है।
आयुर्वेद में इसे प्रतिश्याय नाम से जाना जाता है। सर्दी के मौसम में नाक बंद होना, सिर में दर्द होना, आधे सिर में बहुत तेज दर्द होना, नाक से पानी गिरना इस रोग के लक्षण हैं। इसमें रोगी को हल्का बुखार, आंखों में पलकों के ऊपर या दोनों किनारों पर दर्द रहता है। तनाव, निराशा के साथ ही चेहरे पर सूजन आ जाती है। इसके मरीज की नाक और गले में कफ जमता रहता है। इस रोग से ग्रसित व्यक्ति धूल और धुवां बर्दाश्त नहीं कर सकता। साइनस ही आगे चलकर अस्थमा, दमा जैसी गंभीर बीमारियों में भी बदल सकता है। इससे गंभीर संक्रमण हो सकता है। क्या होता है
साइनस रोग : साइनस में नाक तो अवरूद्ध होती ही है, साथ ही नाक में कफ आदि का बहाव अधिक मात्रा में होता है।
भारतीय वैज्ञानिक सुश्रुत एवं चरक के अनुसार चिकित्सा न करने से सभी तरह के साइनस रोग आगे जाकर दुष्ट प्रतिश्याय में बदल जाते हैं और इससे अन्य रोग भी जन्म ले लेते हैं।
जिस तरह मॉर्डन मेडिकल साइंस ने साइनुसाइटिस को क्रोनिक और एक्यूट दो तरह का माना है। आयुर्वेद में भी प्रतिश्याय को नव प्रतिश्याय एक्यूट साइनुसाइटिस और पक्व प्रतिश्याय क्रोनिक साइनुसाइटिस के नाम से जाना जाता है।
आम धारणा यह है कि इस रोग में नाक के अंदर की हड्डी का बढ़ जाती है या तिरछा हो जाती है जिसके कारण श्वास लेने में रुकावट आती है।
ऐसे मरीज को जब भी ठंडी हवा या धूल, धुवां उस हड्डी पर टकराता है तो व्यक्ति परेशान हो जाता है।
चिकित्सकों अनुसार साइनस मानव शरीर की खोपड़ी में हवा भरी हुई कैविटी होती हैं जो हमारे सिर को हल्कापन व श्वास वाली हवा लाने में मदद करती है। श्वास लेने में अंदर आने वाली हवा इस थैली से होकर फेफड़ों तक जाती है। इस थैली में हवा के साथ आई गंदगी यानी धूल और दूसरे तरह की गंदगियों को रोकती है और बाहर फेंक दी जाती है। साइनस का मार्ग जब रुक जाता है अर्थात बलगम निकलने का मार्ग रुकता है तो साइनोसाइटिस नामक बीमारी हो सकती है। वास्तव में साइनस के संक्रमण होने पर साइनस की झिल्ली में सूजन आ जाती है। सूजन के कारण हवा की जगह साइनस में मवाद या बलगम आदि भर जाता है, जिससे साइनस बंद हो जाते हैं। इस वजह से माथे पर, गालों व ऊपर के जबाड़े में दर्द होने लगता है।
साइनस का उपाय : इस रोग में सर्दी बनी रहती है और कुछ लोग इसे सामान्य सर्दी समझ कर इसका इलाज नहीं करवाते हैं। सर्दी तो सामान्यतः तीन-चार दिनों में ठीक हो जाती है, लेकिन इसके बाद भी इसका संक्रमण जारी रहता है। अगर वक्त रहते इसका इलाज न कराया जाए तो ऑपरेशन कराना जरूरी हो जाता है। लेकिन इसकी रोकथाम के लिए योग में क्रिया और प्राणायाम को सबसे कारगर माना गया है। नियमित क्रिया और प्राणायाम से बहुत से रोगियों को 99 प्रतिशत लाभ मिला है। इस रोग में बहुत से लोग स्टीम या सिकाई का प्रयोग करते हैं और कुछ लोग प्रतिदिन विशेष प्राकृतिक चिकित्सा अनुसरा नाक की सफाई करते हैं। योग से यह दोनों की कार्य संपन्न होते हैं। प्राणायाम जहां स्टीम का कार्य करता है वही जलनेती और सूत्रनेती से नाक की सफाई हो जाती है।
प्रतिदिन अनुलोम विलोम के बाद पांच मिनट का ध्यान करें। जब तक यह करते रहेंगे साइनस से आप कभी भी परेशान नहीं होंगे। शुद्ध भोजन से ज्यादा जरूरी है शुद्ध जल और सबसे ज्यादा जरूरी है शुद्ध वायु।
साइनस एक गंभीर रोग है। यह नाक का इंफेक्शन है। इससे जहां नाक प्रभावित होती है वहीं, फेंफड़े, आंख, कान और मस्तिष्क भी प्रभावित होता है इस इंफेक्शन के फैलने से उक्त सभी अंग कमजोर होते जाते हैं।

योग पैकेज : अत: शुद्ध वायु के लिए सभी तरह के उपाय जरूर करें और फिर क्रियाओं में सूत्रनेती और जल नेती, प्राणायाम में अनुलोम-विलोम और भ्रामरी, आसनों में सिंहासन और ब्रह्ममुद्रा करें। असके अलावा मुंह और नाक के लिए बनाए गए अंगसंचालन जरूर करें। कुछ योग हस्त मुद्राएं भी इस रोग में लाभदायक सिद्ध हो सकती है। मूलत: क्रिया, प्राणायाम और ब्रह्ममुद्रा नियमित करें।

26/06/2020

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28/05/2020

*खाना चबा कर खाएंगे तो मिलेंगे सेहत के 5 फायदे*

1:- खाना खाना जितना जरूरी है, उतना ही जरूरी है उसे ठीक तरीके से चबाना। अच्छी तरह चबा-चबाकर खाने से आप कम खाते हैं और आपका पेट भी जल्दी भर जाता है।
2:- जब आप चबा-चबाकर खाते हैं तो आपका पाचन तंत्र, पाचन के लिए खुद को तैयार करता है। इस तरह से आप जितना चबा-चबाकर खाते हैं, उतना ही बेहतर आपका पाचनतंत्र काम करता है।
3:- ठीक तरीके से चबाते हुए भोजन करने से, भोजन कई टुकड़ों में बंटकर सलाईवा के साथ मिलकर, बेहतर पाचन के लिए तैयार हो जाता है। वहीं अच्छी तरह से न चबाने पर ठीक से पाचन नहीं होता।
4:- अच्छी तरह चबाकर खाने का एक फायदा यह भी है, कि आप भोजन का ठीक तरह से स्वाद ले पाते हैं और देर तक उसका आनंद भी उठा सकते हैं।
5 धीरे-धीरे चबाकर खाने पर आपके शरीर को जरूरी हार्मोन स्त्रवण के लिए काफी समय मिल जाता है, जैसे लेप्टिन, ग्रेलिन आदि। इनका पाचन क्रिया में अहम योगदान है।
😊😊

28/05/2020

*मूली के साथ इन 2 चीजों का सेवन, हो सकता है खतरनाक*

1:- करेला - अगर आप किसी भी तरह से मूली और करेले का सेवन साथ में कर रहे हैं, तो सावधान हो जाएं। यह आपकी सेहत के लिए खतरनाक हो सकता है। दरअसल इन दोनों में पाए जाने वाले प्राकृतिक तत्व आपस में क्रिया करके आपकी सेहत को बिगाड़ सकता है। इससे न केवल आपको सांस संबंधी समस्याएं हो सकती हैं, बल्कि हृदय के लिए भी यह घातक है।
सावधानी - कोशिश करें कि इन दोनों का साथ में सेवन न करें। अगर कर भी रहे हैं तो इसमें 1 दिन का अंतराल अवश्य होना चाहिए।
2:- संतरा - मूली के साथ संतरे का सेवन भी सेहत को बुरी तरह खराब कर सकता है। यह भी कहा जा सकता है कि इन दोनों का मेल आपके लिए जहर के समान काम करता है। यह न केवल आपको पेट संबंधी समस्याओं का मरीज बनाएगा, बल्कि सेहत की और भी बीमारियां दे सकता है।
सावधानी - इनमें से किसी एक चीज का सेवन आप सुबह करते हैं, तो दूसरी चीज शाम को ही खाएं। दोनों को साथ में न लें और लंबा अंतराल रखें"।।
😊💐

28/05/2020

*पेट के लिए वरदान है पपीता*

1) कोलेस्ट्रोल कम करता है :-पपीते में फाइबर, विटामिन सी और एंटी-ऑक्सीडेंट प्रचुर मात्रा में होता है जो आपकी रक्त-शिराओं में कोलेस्ट्रोल के थक्के नहीं बनने देता। कोलेस्ट्रोल के थक्के दिल का दौरा पड़ने और उच्च रक्तचाप समेत कई अन्य ह्रदय रोगों का कारण बन सकते हैं।
कोलेस्ट्रोल पर कसें लगाम– रहें ह्रदय रोगों से दूर।
2) वज़न घटाने में मदद करता है :- जिन लोगों का लक्ष्य अपना वज़न कम करना है उन्हें अपने आहार में पपीते को ज़रूर शामिल करना चाहिए क्योंकि इसमें कैलोरी बहुत कम होती है। पपीते में मौजूद फायबर एक और जहां आपको तारो-ताज़ा महसूस करवाता है वहीं आपकी आँत की मूवमेंट को ठीक रखता है जिसके फलस्वरूप वज़न घटाना आसान हो जाता है।
3) आपकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है :- आपका प्रतिरोधक तंत्र आपको बीमार कर देने वाले कई संक्रमणों के विरुद्ध ढाल का काम करता है। केवल एक पपीते में इतना विटामिन सी होता है जो आपके प्रतिदिन की विटामिन सी की आवश्यकता का 200 प्रतिशत होता है। ज़ाहिर तौर पर ये आपके प्रतिरोधक तंत्र को मज़बूत करता है।
4) मधुमेह रोगियों के लिए अच्छा है :- पपीता मधुमेह रोगियों के लिए आहार के रूप में एक बेहतरीन विकल्प है क्योंकि स्वाद में मीठा होने के बावजूद इसमें शुगर नाम मात्र का होता है। साथ ही, वे लोग जो मधुमेह के मरीज़ नहीं हैं, इसे खाकर मधुमेह होने के खतरों को दूर कर सकते हैं।
5) आपकी नज़रों के लिए फायदेमंद है :- पपीते में विटामिन ए भी प्रचुर मात्रा में होता है जो आपके आँखों की रोशनी को कम होने से बचाता है। कोई भी व्यक्ति उम्र बढ़ने की वजह से आँखों की रोशनी से मरहूम नहीं होना चाहता, और पपीते को अपने आहार में शामिल करके आप ऐसी मुसीबत से बच सकते हैं।
स्वस्थ रहें मस्त रहें😊💐
आपका दिन शुभ हो💐💐

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