Hardoi Vikas Manch

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19/01/2019

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19/01/2019

#मेरी_कहानी
हम सब का सपना होता है की हम सफल व्यवसायी बनें लेकिन क्या जब कोई अवसर आपके दरवाजे पर दस्तक दे रहा हो तो आप उसे भुनाने के लिए तैयार हैं.

निनाद वेंगुर्लेकर ने रामभाऊ नामक एक मज़दूर की प्रेरणादायक कहानी साझा की है, जिन्होंने एक साधारण माली से सफल व्यवसायी बनने का सफर बहुत ही कम समय में तय किया है.

निनाद वेंगुर्लेकर (जो पेशे के एक इंजीनियर हैं) लिखते हैं की “चार साल पहले मैंने रामभाऊ को अपनी बिल्डिंग के सामने वाली सड़क के किनारे से मिट्टी हटाने का काम करते हुए देखा. उसी समय मैंने रामभाऊ से पुछा कि क्या आप मेरे घर में हाउस गार्डन बनाने का काम करेंगे. रामभाऊ ने बिना कुछ सोचे समझे मेरे प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. मैं तो आश्चर्यचकित तब हो गया जब उन्होंने यह तक जानने की कोशिश नहीं की कि मैं उनसे क्या काम करवाना चाहता हूँ और उनसे उस काम के बदले में पारिश्रमिक कितना मिलेगा? उसके बाद रामभाऊ जी जान से मेरे लिए हाउस गार्डन बनाने के काम में जुट गए और एक तरह से उन्होंने मेरे लिए मुफ्त में हाउस गार्डन बना दिया.

मेरे हाउस गार्डन का काम पूरा करने के बाद रामभाऊ आस पास के लोगों को मेरे हाउस गार्डन को सैंपल कि तरह दिखाने लगे. लोगों को उनके द्वारा डिज़ाइन किया गया गार्डन पसंद आने लगा और लोग उन्हें काम देने लगे. दो सालों में उन्होंने लगभग 20 घरों में हाउस गार्डन बना दिया.

काम का बोझ ज्यादा होने के कारण उन्होंने 3-4 लोगों के साथ -साथ अपनी पत्नी को भी अपने काम में हाथ बटाने के लिए रख लिया. लगभग एक साल बाद रामभाऊ ने मुझे बताया कि उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर टेम्पो डिलीवरी सर्विस शुरू कर दी है और उसे एक बड़े बंगले के गार्डन को डिज़ाइन करने का काम भी मिला है.

रामभाऊ अक्सर मेरे घर अपने सहयोगियों के साथ हाउस गार्डन को री-मॉडलिंग करने आते थे . एक दिन मैंने उन्हें अपने सहयोगियों के साथ एक बड़ी कार से उतरकर मेरे घर के गार्डन को ठीक करने आते हुए देखा. मुझे बाद में पता चला कि उन्होनें नयी गाड़ी खरीदी है. धीरे-धीरे रामभाऊ का कारोबार बढ़ने लगा और आज वो एक माली नहीं बल्कि एक सफल व्यवसायी हैं.

नोबेल प्राइज से सम्मानित एवं बांग्लादेश के ग्रामीण बैंक के संस्थापक मोहम्मद युनुस कहते हैं “आप सबने बोन्साई का पेड़ देखा होगा , जो जमीन पर उगने वाले की किसी बड़े पेड़ का छोटा रूप प्रतीत होता है . जब आप एक छोटे फूल के बर्तन में एक बड़े पेड़ के अच्छे बीज को बोते हैं, तो आप उस बड़े पेड़ की एक प्रतिकृति छोटे रूप में प्राप्त करते हैं क्योंकि आपने बीज बोने में कुछ गलत नहीं किया, बल्कि आपके द्वारा प्रदान की गयी मिट्टी उस बीज के संपूर्ण विकास के लिए अपर्याप्त था. गरीब भी एक बोन्साई की तरह होते हैं उनके बीज में कोई मौलिक विकृति नहीं होती है. केवल हमारा समाज ही उन्हें आगे बढ़ने का अवसर नहीं देता है.”

– निनाद वेंगुर्लेकर

31/03/2017
22/03/2017

Pan Masala Gutkha banned in State Govt Offices.

What is next on CM Yogi's cards???

20/03/2017
 Private Hospitals and Big Giants of Pharmaceutical Companies, you guys have ruled for a long time now.It's the time for...
17/03/2017



Private Hospitals and Big Giants of Pharmaceutical Companies, you guys have ruled for a long time now.

It's the time for the poor to avail the best Medical Facilities.

This policy will change the face of the Nation.

15/03/2017

वीरता और साहस की मिसाल, शहीद मेजर संदीप उन्नीकृष्णन को उनके जन्मदिवस पर प्रणाम। मेरा सौभाग्य, कि मैं उनके माता-पिता के चरणों के माध्यम से दिवंगत मेजर को अपना प्रणाम भेज पाया! मैंने 2008 के ताज हमले के बाद प्रायः अपने हर कवि-सम्मलेन में कहा है कि "बहादुरी किसी निरीह की पीठ पर लाठियाँ बरसाने से नहीं होती, बहादुरी मेजर संदीप उन्नीकृष्णन के उस नाम में है, जो केरल में पैदा हुआ, बंगलौर में पढ़ा, बिहार रेजिमेंट में नौकरी की और मुम्बई बचाने में शहीद हो गया।" हज़ारों बार दुहराने के बाद भी हर बार इस पंक्ति को श्रोताओं से वही उत्साह मिलता है जो पहली बार टिप्पणी पर मिला था।
जय हिन्द! जय हिन्द की सेना!

जो शहीद हुए हैं उनकी.....ज़रा याद करो क़ुर्बानी।।।Sandeep Unnikrishnan was an officer in the Indian Army serving in the el...
15/03/2017

जो शहीद हुए हैं उनकी.....

ज़रा याद करो क़ुर्बानी।।।

Sandeep Unnikrishnan was an officer in the Indian Army serving in the elite Special Action Group of the National Security Guards. He was killed in action during the November 2008 Mumbai attacks.

Tributes to Major Sandeep Unnikrishnan on his birth anniversary. His bravery and dedication live in our hearts and will inspire generations.

 #मेरी_कहानी IAS Kinjal Singh
11/10/2016

#मेरी_कहानी IAS Kinjal Singh

#मेरी_कहानी

फ़ैज़ाबाद की डीएम किंजल सिंह और उनके परिवार की कहानी बहुत ही दर्दनाक है और प्रेरणादायक भी, यह कहानी सुनकर आपकी आँखों में आंसू ज़रूर आएंगे और आप एक पत्नी और एक बेटी के संघर्ष की सीमाओं से दो चार हो जाएंगे। किंजल सिंह 2008 में आई.ए.एस में चयनित हुई थीं, आज उनकी पहचान एक ईमानदार और कर्मठ अफ़सर के रूप में होती है। उनके काम करने के तरीके से जिले में अपराध करने वालों के पसीने छूटते हैं पर किंजल के लिए इस मुकाम को हासिल करना आसान नहीं था, उन्होंने कई बाधाओं को पार करके यह मुकाम हासिल किया है।

किंजल सिंह मात्र 6 महीने की थीं जब उनके पिता, जो एक पुलिस अफसर थे, उनकी हत्या पुलिस वालों ने ही कर दी थी। बचपन जहाँ बच्चों के लिए खेलने-कूदने के दिन होते हैं, वहीं इतनी छोटी उम्र में ही किंजल अपनी माँ के साथ पिता के क़ातिलों को सज़ा दिलाने के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाने लगीं। हालाँकि उस नन्हीं बच्ची को अंदाज़ा नही था कि आख़िर वो वहाँ क्यों आती है, लेकिन वक़्त ने धीरे-धीरे उन्हें यह एहसास करा दिया कि उनके सिर से पिता का साया उठ चुका है।

"मुझे मत मारो, मेरी दो बेटियां हैं!'' किंजल के पिता के आखरी शब्द थे।

मौत को सामने देखकर भी जिस पिता को उसकी बेटियों की याद थी, उसकी बेटियों ने भी पिता के सर को झुकने नहीं दिया। उस समय किंजल छोटी थीं और उनकी छोटी बहन प्रांजल गर्भ में थी। अगर आज उनके पिता ज़िंदा होते तो उन्हे ज़रूर गर्व होता कि उनके घर बेटियों ने नहीं वीरांगनाओं ने जन्म लिया है, जो आज बाकी महिलाओं के लिए एक मिसाल हैं।

किंजल ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बनारस से पूरी की और माँ के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने दिल्ली का रुख किया और दिल्ली विश्वविद्यालय में दाखिला लिया। वो पढ़ने में बहुत तेज़ और साहसी भी थीं, तभी तो एक छोटे से जनपद से दिल्ली जैसे बड़े शहर में आकर भी उन्होंने पूरी दिल्ली यूनिवर्सिटी में टॉप किया और वो भी एक बार नहीं बल्कि दो बार।

किंजल की पढाई के बीच में ही उनकी माँ को कैंसर हो गया था, इस बीमारी की वजह से परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पिता को खोने के बाद, माँ को खोने के डर ने किंजल का जीवन अस्त व्यस्त कर दिया। एक तरफ सुबह माँ की देख-रेख उधर दूसरी तरफ कॉलेज का भार, लेकिन किंजल कभी टूटी नहीं, ऊपर वाला भी किंजल का इम्तिहान लेने में पीछे नहीं रहा, परीक्षा से कुछ दिन पहले ही उनकी माँ का देहांत हो गया।

सर से माँ और बाप दोनों का साया उठ जाने के बाद भी उनकी हिम्मत तो देखिये। दिन में माँ का अंतिम संस्कार करके, रात में पढाई की और सुबह परीक्षा देने कॉलेज पहुँच गईं, ऐसा करना आम इंसानों के लिए नामुमकिन सी बात है। परिणाम आए पर उसकी ख़ुशी बांटने के लिए किंजल के पास माँ-बाप नहीं थे, उन्होंने यूनिवर्सिटी टॉप किया था और स्वर्ण पदक भी जीता था।

किंजल बताती हैं कि कॉलेज में जब त्योहारों के समय सारा हॉस्टल खाली हो जाता था तो वो और उनकी बहन एक दूसरे की शक्ति बनकर एक साथ पढाई करती थीं। जब घर पर माँ-बाप ही नहीं तो छुट्टियां मनाने इंसान किसके लिए जाएगा। आईएस के लिए वो निरन्तर प्रयत्नशील रहीं और वर्ष 2008 में जब परिणाम घोषित हुआ तो संघर्ष की जीत हुई और दो सगी बहनों ने आइएएस की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण कर अपनी माँ का सपना साकार किया।

किंजल जहाँ आईएएस की मेरिट सूची में 25 वें स्थान पर रही तो प्रांजल ने 252वें रैंक लाकर यह उपलब्धि हासिल की पर अफ़सोस उस वक़्त उनके पास खुशियाँ बांटने के लिए कोई नही था। किंजल कहती हैं, “बहुत से ऐसे लम्हे आए जिन्हें हम अपने पिता के साथ बांटना चाहते थे। जब हम दोनों बहनों का एक साथ आईएएस में चयन हुआ तो उस खुशी को बांटने के लिए ना तो हमारे पिता थे और न ही हमारी माँ।”

किंजल अपने माता-पिता को अपनी प्रेरणा बताती हैं, आज देश में बहुत सी महिला आई.ए.एस हैं, लेकिन सबकी कहानी किंजल सिंह जैसी नहीं है। उनमें बचपन से ही हर परिस्थितियों से लड़ने की ताक़त थी। किंजल ना सिर्फ आईएएस बनीं बल्कि 31 साल बाद आख़िर किंजल अपने पिता को इंसाफ़ दिलाने में भी सफल हुईं, उनके पिता के हत्यारे आज सलाखों के पीछे हैं।

08/10/2016

07/10/2016

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18/09/2016


Yet again, the poisonous enemy has crept up and carried out a cowardly attack in Uri. News is coming in that 17 soldiers have been martyred.
For far too long, the coward enemy has been tolerated in the hope that our efforts to bring peace in the valley would be reciprocated.
I say Indians have had enough.
Our brave soldiers have had enough.
Its time the heavy hand of justice falls on the perpetrators.

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