04/10/2025
करवा चौथ के बाद क्यों करते हैं अहोई अष्टमी व्रत ? तारीख, मुहूर्त और महत्व भी जानें
कार्तिक माह में जिस तरह पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ व्रत किया जाता है उसी तरह संतान की दीर्धायु के लिए स्त्रियां अहोई व्रत करती है. इस साल अहोई अष्टमी व्रत 13 अक्टूबर 2025 को है. ये व्रत भी बेहद कठिन होता है, बस फर्क इतना है कि करवा चौथ में जहां चांद देखने के बाद व्रत पारण करते हैं तो वहीं इसमें तारों की पूजा की जाती है.
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि प्रारम्भ - 13 अक्टूबर 13 2025 को दोपहर 12:24
कार्तिक कृष्ण अष्टमी तिथि समाप्त - 14 अक्टूबर 2025 को सुबह 11:09 तक
अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त - शाम 05:53 - रात 07:08
तारों को देखने के लिये साँझ का समय - शाम 06:17
अहोई अष्टमी के दिन चन्द्रोदय समय - रात 11:20
अहोई अष्टमी के दिन मातायें अपने पुत्रों की कुशलता के लिये उषाकाल, अर्थात भोर से लेकर गोधूलि बेला, अर्थात सायाह्नकाल तक बिना अन्न-जल ग्रहण उपवास करती हैं. सायाह्नकाल के समय आकाश में तारों का दर्शन करने के पश्चात व्रत सम्पूर्ण किया जाता है. कुछ महिलायें चन्द्रमा के दर्शन करने के पश्चात व्रत पूर्ण करती हैं. इस व्रत को अहोई आठें के नाम से भी जाना जाता है.
अहोई अष्टमी व्रत पूजा सामग्री
अहोई अष्टमी में पूजा के लिए अहोई माता की तस्वीर और व्रत कथा की किताब होनी चाहिए. जल से भरा लोटा या कलश, गंगाजल, फूल, धूपबत्ती, गाय का घी, रोली, कलावा, अक्षत, सूखा आटा, गाय का दूध और करवा की जरूरत होती है. श्रृंगार सामग्री में लाल चुनरी, बिंदी, सिंदूर, काजल, लाली, चूड़ी, रोली और आलता शामिल करना चाहिए.
अहोई व्रत में स्याहु माला का महत्व
स्याहु लॉकेट चांदी का बना होता है और इसे अहोई अष्टमी के दिन रोली का टीका लगाकर पूजन करने के बाद ही पहना जाता है. अहोई अष्टमी पर पूजा करने के बाद महिलाएं अपने गले में स्याहु को कलावा में पिरोकर माला पहनती हैं और इसे पांच दिनों तक यानी दिवाली तक पहनी रखती हैं. मान्यता है कि इस माला को पहनने से संतान को दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है.
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