21/08/2023
#दिनविशेष: #चरकजयंती
श्रावण शुक्ल नाग पंचमी 2080 संवत इस बार 21 अगस्त सोमवार।
लगभग 2300 वर्ष पूर्व देश में बौद्ध मत का प्रभा था।भगवान बुद्ध के आविर्भाव के बाद लगभग आज से ढाई हजार साल पहले मौर्य साम्राज्य ने बौद्ध धर्म को अपनाया था और अशोक के बाद बौद्ध धर्म ही इस पूरे देश का धर्म हुआ था ।बौद्ध धर्म अथवा पंथ वेदों का विरोध करता था और इसी क्रम में #आयुर्वेद की चिकित्सा का भी विरोध बौद्ध के द्वारा किया गया और यह विरोध इस हद तक बढ़ता चला गया की आयुर्वेद की चिकित्सा लगभग नष्ट हो गई ।वह दौर था जब कोई चिकित्सा करने का प्रयास भी करता था तो उसको प्रशासन के द्वारा राज्य शासन के द्वारा प्रताड़ित भी किया जाता था। ऐसे हालात में आयुर्वेद के गुरुकुल आयुर्वेद के शिक्षक आयुर्वेद के चिकित्सक धीरे-धीरे मृत प्राय होने लगे।अशोक के बाद से लेकर डेढ़ सौ ईसा पूर्व तक का यह जो 50 वर्षों का समय रहा लगभग यह पूरे देश के अंदर चिकित्सा के अवनति होने का समय माना जाता है। हम और आप विचार
करें यदि आज भारत में 1 दिन के लिए भी चिकित्सा व्यवस्थाएं शून्य होती हैं अथवा ठप होती हैं तो क्या रौद्र रूप धारण होगा। क्या विकराल रूप धारण हो जाएगा? पूरे देश के सामने हजारों लोग अकाल मृत्यु का सामना करेंगे, हजारों लोग एक्सीडेंट्स के कारण से मारे जाएंगे, हजारों माताएं अपने को सुरक्षित प्रसव ना करा पाने के कारण से मृत प्राय हो जाएंगई। कितने ही बच्चे हजारों अकाल मृत्यु को प्राप्त होंगे। ऐसे वातावरण में हम विचार कर सकते हैं यह 100 से डेढ़ सौ वर्षो का समय था यह पूरे भारतीय जनमानस और विश्व के लोगों के लिए अत्यंत ही संकट का दौर था जब सारी मानवता त्राहि-त्राहि करने लगी जब सारी धरती के लोग कष्ट से मरने लगे जब समाज अकाल मृत्यु को प्राप्त होने लगे। जैसा कि भगवान ने श्रीमद्भगवद्गीता में प्रतिज्ञा की, जब-जब धर्म की हानि होगी तब तब मैं आऊंगा।जब जब अधर्म रूपी रोगों का साम्राज्य होगया। पाप का साम्राज्य होगा तब तब में प्रकट होउंगा। तब भगवान शेषनाग स्वयं इस धरती पर विचरण करते हुए आये और उन्होंने देखा कि जनता कितने कष्ट में है इतनी दुखी है।उनका हृदय द्रवित हो गया, करुणा से भर उठे और उन्होंने #कपिष्ठल नामक गाँव जो #कश्मीर में #पुंछ के पास स्थित गांव है, वहां पर वेद वेदांग नामक एक वैदिक ब्राह्मण के घर में श्रावण शुक्ल #नागपंचमी के दिन जन्म लिया। शेषनाग का पूज्य दिवस अवतरण दिवस श्वेत वाराह पुराण में स्वयं ब्रह्मदेव ने नाग पंचमी का दिन बताया है। इस कारण से महर्षि चरक के जन्मदिन को हम श्रावण शुक्ल पंचमी नाग पंचमी बनाते हैं। महर्षि #चरक ने वेद उपनिषदों का अध्ययन करने के उपरांत आयुर्वेद का अध्ययन प्रारंभ किया। उन्होंने महर्षि पुनर्वसु आत्रेय के द्वारा उपदिष्ट और आचार्य अग्निवेश के द्वारा प्रणीत लिखित ग्रंथ अग्निवेश तंत्र को खोजा। उसके छिन्न-भिन्न अंशों को सहेजा सम्हाल। जो बड़ी मुश्किल से उनको प्राप्त हुए और उस ग्रंथ को अग्निवेश तंत्र को जो कि पूर्ण नहीं था उस समय उसको धीरे-धीरे करके लेखन कार्य प्रारंभ किया। औषधियों का चयन करना, औषधियों के बारे में खोजना,उनका प्रयोग किया। इस प्रकार से चरक संहिता का वर्णन लिखना प्रारंभ किया।अग्निवेश तन्त्र का प्रतिसंस्करण किया। उन्होंने बताया इस प्रकार से रसायनों के माध्यम से मानव जीवन रोग रहित हो सकता है। च्यवनप्राश के निर्माण की विधि जो लगभग भूली जा चुकी थी उन्होंने पुनः स्थापित की।यह विश्व का सबसे ज्यादा उपयोग किया जाने वाला एक रसायन और टॉनिक है। इसी प्रकार से ज्वरों का निदान,भेद,सम्प्राप्ति और चिकित्सा का वर्णन है। आज वर्तमान में जितने भी वायरल,फ्लू,मलेरिया, फीवर टाइफाइड आदि फीवर हैं उनकी,चिकित्सा का वर्णन किया। रक्तपित्त, प्रमेह, कुष्ठ, मानस रोग, पीलिया, जलोदर, अर्श, अनीमिया, अस्थमा आदि रोगों की चिकित्सा बतायी। सबसे महत्व की बात चिकित्सा स्थान में उन्होंने चिकित्सा सिद्धांत दिए। वह अपने आप में अप्रतिम कार्य था । पूरी मानव सभ्यता मानव समाज पृथ्वी उनके उपकार कभी नहीं भूल सकती। ऐसे मनीषी का जन्म भगवान के तुल्य ऐसे सर्वश्रेष्ठ चिकित्सक का जन्मदिन मनाना हम चिकित्सकों का ही नहीं इस मानव जाति का परम कर्तव्य है।आभार प्रदर्शन है। यह धन्यवाद है ऐसे व्यक्ति के लिए जिन्होंने मानव समाज को इस पूरी धरती को रोगों के भय से दूर किया। चिकित्सा सिद्धांतों की स्थापना की। चरक सूत्र स्थान के प्रारंभ में छः पदार्थों के महत्व को प्रतिपादित किया। सामान्य विशेष समवाय द्रव्य गुण कर्म इनके महत्व को प्रतिपादित किया। दिनचर्या के महत्व को दिनचर्या का व्याख्यान विस्तार से किया। ऋतु अनुसार हमें क्या भोजन करना चाहिए, कैसे भोजन करना चाहिए, किन दोषों का प्रकोप है कैसे समान है कौन सी व्याधि किस ऋतू में हो सकती हैं इन सब बातों को उन्होंने बताया। वेगों के धारण करने से क्या नुकसान होता है, क्या व्याधियों होती है, सिद्धांत प्रतिपादित महर्षि चरक ने किया। ऐसे विषय जो वैद्य के लिए अनिवार्य हैं ऐसे गुण ऐसे कर्म जो वैद्य को करनी चाहिए, गुण जो धारण करने चाहिए, उन सभी गुणों को आचार्य चरक ने बताया। पंचकर्म चिकित्सा पद्धति जो रोगों को मूल से समाप्त करने वाली है, उस का सिद्धांत प्रतिपादन स्थापित किया जो लुप्त हो चुका था। सर्वश्रेष्ठ औषधियों की गणना, स्रोतसो के बारे में विस्तार से वर्णन शरीर रचना के सिद्धांतों का प्रतिपादन करके मानव जाति केलिए, चिकित्सा शास्त्र के लिए बड़ा अवदान है। निदान स्थान के अंतर्गत ज्वर का निदान रक्तपित्त का निदान का उन्माद अपस्मार और इत्यादि के बारे में विस्तार से वर्णन किया है। बहुत सारे ऐसे गंभीर व्याधियों थी जिनमें उन्होंने रोगों को दूर करने के लिए व्याधियों को दूर करने के लिए औषधियों का वर्णन किया। प्रणाम करते हैं,वंदन करते हैं, अभिनंदन करते हैं ऐसे महर्षि चरक का, आइए सभी मिलकर उनका जन्मदिन मनाएं। धूमधाम से महर्षि चरक का जन्मदिन मनायें और इस समाज को पूर्ण स्वस्थ और रोग मुक्त करने का संकल्प लें।
जय आयुर्वेद। चरकाचार्यो विजयते।।
चरक जयंती की शुभकामनाएं।
साभार: वैद्य रामतीर्थ शर्मा