Astro Rameshwaram

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Satyendra Kumar Dadhich
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14/10/2025

नकारात्मकता से सुरक्षा, सकारात्मकता की प्राप्ति — यही है करुंगली माला का रहस्य।

हर मणि में छुपा है आशीर्वाद, करुंगली माला है विश्वास का प्रतीक।

जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभू
15/05/2023

जय जय करुणाब्धे श्री महादेव शंभू

23/12/2017

*दरिया बनकर किसीको डुबाने से बेहतर है,*
*की जरिया बनकर किसीको बचाया जाये।*

23/12/2017

कुंडली के लिये आवश्यक कारक

कुंडली को बनाने के लिये जो मुख्य कारक सामने लाये जाते है उनके अनुसार पहला जन्म का समय,दूसरा जन्म की तारीख,तीसरा जन्म का महिना चौथा जन्म की साल और पांचवा जन्म का स्थान,इन पांच कारकों को शुद्ध देखना जरूरी होता है,इन पांच कारकों में एक के भी अशुद्ध होने से या आगे पीछे होने से जीवन के प्रति किये जाने वाले फ़लादेश आगे पीछे और असत्य हो जाते है।
अगर आप अपनी हस्त निर्मित जन्म कुण्डली बनवाना चाहते है तो अपना विवरण हमे भेजे
तथा अपना पुरा पता मय पिन भी भेजे
ASTRO RRAMESHWARAM
8696665310

23/12/2017

शुक्रनीति: ये 6 चीजें नहीं देती हमेशा साथ

कई चीजें ऐसी होती हैं, जो मनुष्य को बहुत प्रिय होती है। उन्हें पाने या उस पर हमेशा अधिकार बनाए रखने के लिए वह बहुत कोशिश करता है, लेकिन एक समय आने पर वह वस्तु उससे दूर हो ही जाती है। शुक्रनीति में ऐसी ही 6 वस्तुओं के बारे में बताया गया हैं, जिन्हें हमेशा अपने पास बनाए रखना किसी के लिए भी संभव नहीं है। शुक्रनीति एक प्रसिद्ध नीतिग्रंथ है। इसकी रचना दानवों के गुरु शुक्राचार्य ने की थी।

श्लोक
यौवनं जीवितं चित्तं छाया लक्ष्मीश्र्च स्वामिता।
चंचलानि षडेतानि ज्ञात्वा धर्मरतो भवेत्।।

यौवन और रूप
हर कोई चाहता हैं कि उसका रूप-रंग हमेशा ऐसे ही बना रहे, वो कभी बूढ़ा न हों, लेकिन ऐसा होना किसी के भी संभव नहीं होता है। यह प्रकृति का नियम है कि एक समय के बाद हर किसी का युवा अवस्था उसका साथ छोड़ती ही है। अब हमेशा युवा बने रहने के लिए मनुष्य चाहे कितनी ही कोशिशें कर ले, लेकिन ऐसा नहीं कर पाता।

जीवन
जन्म और मृत्यु मनुष्य जीवन के अभिन्न अंग है। जिसका जन्म हुआ है, उसकी मृत्यु निश्चित ही है। कोई भी मनुष्य चाहे कितने ही पूजा-पाठ कर ले या दवाइयों का सहारा ले, लेकिन एक समय के बाद उसकी मृत्यु होगी ही। इसलिए, अपने या अपने किसी भी प्रियजन के जीवन से मोह बांधना अच्छी बात नहीं है।

मन
हर किसी का मन बहुत ही चंचल होता हैं, यह मनुष्य की प्रवृत्ति होती है। कई लोग कोशिश करते हैं कि उनका मन उनके वश में रहे, लेकिन कभी न कभी उनका मन उनके वश से बाहर हो ही जाता है और वे ऐसे काम कर जाते हैं, जो उन्हें नहीं करना चाहिए। कुछ लोगों का मन धन-दौलत में होता है तो कुछ लोगों का अपने परिवार में। मन को पूरी तरह से वश में करना तो बहुत ही मुश्किल है, लेकिन योग और ध्यान की मदद से काफी हद तक मन पर काबू पाया जा सकता है।

परछाई
मनुष्य की परछाई उसका साथ सिर्फ तब तक देती है, जब तक वह धूप में चलता है। अंधकार आते ही मनुष्य की छाया भी उसका साथ छोड़ देती है। जब मनुष्य की अपनी छाया हर समय उसका साथ नहीं देती ऐसे में किसी भी अन्य व्यक्ति से इस बात की उम्मीद नहीं रखनी चाहिए कि वे हर समय हर परिस्थिति में आपका साथ देंगे।

लक्ष्मी( धन)
धन-संपत्ति हर किसी की चाह होती है। हर मनुष्य चाहता है कि उसके पास धन-दौलत हो, जीवन की साभी सुख-सुविधाएं हों। ऐसे में कई लोग धन से अपना मोह बाध लेते हैं। वे चाहते हैं कि उनका धन हमेशा उन्हीं के पास रहें, लेकिन ऐसा हो पाना संभव नहीं होता। मन की तरह ही धन का भी स्वभाव बड़ा ही चंचल होता है। वह हर समय किसी एक जगह पर या किसी एक के पास नहीं टिकता। इसलिए धन से मोह बांधना ठीक नहीं होता।

सत्ता या अधिकार
कई लोगों को पॉवर यानि अधिकार पाने का शौंक होता है। वे लोग चाहते हैं कि उन्हें मिला पद या अधिकार पूरे जीवन उन्हीं के साथ रहें, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं है। जिस तरह परिवर्तन प्रकृति का नियम है, उसी तरह पद और अधिकारों का परिवर्तन भी समय-समय पर जरूरी होता है। ऐसे में अपने वर्तमान पद या अधिकार को हमेशा अपने ही पास रखने की इच्छा मन में नहीं आने देनी चाहिए।

ASTRO RAMESHWARAM

26/10/2017

हिंदू धर्म का सबसे महत्वपूर्ण संस्कार है विवाह, इसके उपरांत महिला-पुरूष का गृहस्थ जीवन आरंभ होता है। कुछ लोगों की शादी में किसी न किसी कारण से विलंब होता जाता है।

कई बार तो अविवाहित लड़के या लड़की की सभी परिस्थितियां बहुत अच्छी होती हैं, फिर भी विवाह नहीं हो पाता तो ऐसे में काफी हद तक वास्तु संबंधित बाधाएं भी हो सकती हैं। जिसकी वजह से विवाह में अड़चने आने लगती हैं। कुंवारे यदि कुछ टिप्स को फोलो करें तो होगी चट मंगनी पट ब्याह

काला रंग कुंवारों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। अत: इस रंग के वस्त्र जहां तक हो सके कम ही पहनें। ज्योतिष विद्वान मानते हैं की काला रंग शनि, राहू और केतु का प्रतिनिधित्व करता है, यह विवाह के बाधक माने जाते हैं।

विवाह योग्य लड़के-लड़कियों को गहरे रंग वाले कमरों में नहीं सोना चाहिए। दीवारों का रंग चमकीला गुलाबी, पीला होना शुभ माना जाता है और ऐसी जगह पर नहीं सोएं जहां बीम लटका हुआ द‌िखाई दे।

कुंवारों को अपना ब‌िस्तर इस तरह रखना चाह‌िए ताक‌ि सोते समय पैर उत्तर और स‌िर दक्ष‌िण द‌िशा में हो।

यदि विवाह प्रस्ताव में व्यवधान आ रहे हैं तो विवाह वार्ता के लिए घर आए अतिथियों को इस प्रकार बैठाएं कि उनका मुख घर के अंदर की ओर हो और उन्हें घर का दरवाजा दिखाई न दे। ऐसा करने से बात पक्की होने की संभावना बढ़ जाती है।

किसी भी घर के मध्य में सीढ़ियां होना भी विवाह में देरी का एक कारण है इसलिए वास्तु के मुताबिक घर का मध्य हमेशा खाली रखना चाहिए।

तांबे का एक चौकोर टुकड़ा जमीन में दबा देने से सूर्य बाधाएं समाप्त हो जाएंगी और विवाह के योग बनने लगेंगे।

प्रत्येक सोमवार कुंवारियों को सुबह नहा-धोकर शिवलिंग पर “ऊं सोमेश्वराय नमः” का जाप करते हुए दूध मिले जल को चढ़ाना चाहिए।

श्रीगणेश को मालपुए का भोग लगाने से मनचाहा जीवनसाथी पाने की मंशा पूर्ण होती है।

पूर्णिमा के दिन वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करने से विवाह बाधा दूर होती है।

लड़के विवाह की बाधा को दूर करने के लिए श्रीकृष्ण के नाम की माला का 108 बार जाप करें

25/10/2017

दिक परंपरा में मंत्रोच्चारण का विशेष महत्व माना गया है। अगर सही तरीके से मंत्रों का उच्चारण किया जाए तो यह जीवन की दिशा ही बदल सकते हैं। बहुत से लोग मंत्रों को सही तरीके से उच्चारित नहीं कर पाते और जब मनचाहा फल प्राप्त नहीं होता तो उनका विश्वास डगमगाने लगता है।

इसलिए आपको एक ऐसा मंत्र बता रहा हूं जिसे सुनने या पढ़ने मात्र से आपकी समस्याओं का समाधान निकलने लगता है।

शास्त्रों में ब्रह्मा जी को सृष्ष्टि का सृजनकार, महादेव को संहारक अौर भगवान विष्णु को विश्व का पालनहार कहा गया है। हिंदू धर्म में विष्णु सहस्रनाम सबसे पवित्र स्त्रोतों में से एक माना गया है।

इसमेें भगवान विष्णु के एक हजार नामों का वर्णन किया गया है। मान्यता है कि इसके पढ़ने-सुनने से इच्छाएं पूर्ण होती हैं.ये स्त्रोत संस्कृत में होने से आम लोगों को पढ़ने में कठिनाई आती है इसलिए इस सरल से मंत्र का उच्चारण करके वैसा ही फल प्राप्त कर सकते हैं जो विष्णु सहस्रनाम के जाप से मिलता है।

यह है अत्यन्त शक्तिशाली मन्त्र

” नमो स्तवन अनंताय सहस्त्र मूर्तये, सहस्त्रपादाक्षि शिरोरु बाहवे.

सहस्त्र नाम्ने पुरुषाय शाश्वते, सहस्त्रकोटि युग धारिणे नम:.. “

जीवन में आने वाली किसी भी तरह कि बाधाओं से छुटकारा पाने के लिए प्रतिदिन सुबह इस मंत्र का जाप करें।

महाभारत के ‘अनुशासन पर्व’ में भगवान विष्णु के एक हजार नामों का वर्णन मिलता है। जब भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर थे उस समय युधिष्ठिर ने उनसे पूछा कि, “कौन ऐसा है, जो सर्व व्याप्त है और सर्व शक्तिमान है?” तब उन्होंने भगवान विष्णु के एक हजार नाम बताए थे।

भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि हर युग में इन नामों को पढ़ने या सुनने से लाभ प्राप्त किया जा सकता है। यदि प्रतिदिन इन एक हजार नामों का जाप किया जाए तो सभी मुश्किलें हल हो सकती हैं।

विष्णु सहस्रनाम को अौर भी बहुत सारे नामों से जाना जाता है जैसे- शम्भु, शिव, ईशान और रुद्र. इससे ज्ञात होता है कि शिव अौर विष्णु में कोई अंतर नहीं है ये एक समान हैं।

विष्णु सहस्रनाम के जाप में बहुत सारे चमत्कार समाएं हैं। इस मंत्र को सुनने मात्र से संवर जाएंगे सात जन्म, सभी कामनाएं हो जाएंगी पूर्ण और हर दुख का हो जाएगा अंत

25/10/2017

वैदिक काल से ही मनुष्य उन सभी चीजों को पूजता आया है जिन्होंने उसके जीवन में अनुकूल प्रभाव डाला है तथा जिनसे दैनिक जीवन में उसे लाभ मिलता रहा हो, फिर चाहे वह नदी हो, वृक्ष, पर्वत, पहाड़, चंद्रमा या सूरज ही क्यों न हो।

ये सभी सदैव मनुष्य की श्रद्धा के प्रतीक रहे हैं तथा पूजनीय भी रहे हैं। वैदिक काल से ही आर्य सूर्य को जगत आत्मा मानते रहे हैं। इसमें आज भी कोई संदेह नहीं कि सूर्य के बिना हम पृथ्वी पर जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अत: कहने में अतिशयोक्ति नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्य उपासना का प्रचलन रहा है।

सूर्य की उपासना की चर्चा भागवत पुराण, विष्णु पुराण तथा ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी मिलती है। छठ पूजा की शुरूआत तकरीबन मध्यकाल से मानी जाती है लेकिन विगत दो दशक से इसका प्रचलन बहुत तीव्र गति से बढ़ा है।

यूं तो हिन्दुओं के अनेकानेक पर्व में से छठ भी एक आस्था से जुड़ा पर्व है किंतु भले ही प्रतिशत काफी कम हो लेकिन कुछ मुस्लिम वर्ग के लोग भी छठ पर्व बहुत आस्था से मना रहे हैं जिसने इस पर्व की गरिमा को बहुत बढ़ाया है।

छठ पर्व के मनाने के पीछे अनेक लोक कथाएं प्रचलित हैं उनमें से सबसे प्रचलित कथा का संबंध महाभारत की कथा से है। कहते हैं कि जब पांडव जुए में सारा राजपाट हार गए, तब द्रौपदी ने यह व्रत रखा था। तब उनकी मनोकामना पूर्ण हुई और पांडवों को अंततोगत्वा सारा राजपाट वापस प्राप्त हो गया।

दूसरी कथा रामायण से जुड़ी है। कहते हैं कि रावण विजय के बाद अयोध्या वापसी के पश्चात रामराज स्थापना वाले दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष षष्ठी को भगवान राम तथा सीता जी ने सूर्य देवता की पूजा-अर्चना की तथा उपवास रखा था। तब से ही छठ व्रत मनाने की प्रथा है।

सिध्द काले घोड़े की नाल
12/08/2017

सिध्द काले घोड़े की नाल

12/08/2017
02/04/2017

दान में मोह और अहम का त्यागः

दान करने के लिये मोह का त्याग जरूरी है,मोह के करने से भोजन का दान नही किया जा सकता है,भोजन है खूब सारा रखा है लेकिन दान करने का जी तभी नही करेगा जब यह मोह पैदा हो जायेगा कि कल भी इस भोजन का इस्तेमाल करना है,

लेकिन जब वह रखा हुआ भोजन किसी जीव जन्तु या मौसम की खराबी से बेकार हो गया तो मन में उस खराब भोजन को फ़ेंकते समय संताप हुआ,यह संताप तो नही होता जब उस भोजन को किसी मांगने वाले व्यक्ति को आराम से खिला दिया होता और वह भोजन से तृप्त हुआ व्यक्ति कुछ और भी देकर जाता जो संताप से कई गुना बढ कर होता और आगे के अच्छे बुरे समय में काम भी आता। दान का रूप अलग अलग समय में अलग अलग रूप धारण कर लेता है।

दान के लिये मांगने वाले को छोटा और देने वाले को कभी बडा नही समझना चाहिये। यह कथा वामन अवतार से शिक्षा देती है। पति को पत्नी के लिये दिया जाने वाला वचन जो दान का ही रूप ले लेता है,कभी भूलना नही चाहिये,समय के बदलने पर दिया हुआ वचन कितना बडा रूप ले सकता है इसका उदाहरण रामचरित मानस में दसरथ और कैकेई की कथा से समझी जा सकती है। वामन अवतार में भगवान ने वावन अंगुल के रूप में पूरी पृथ्वी आकाश पाताल सभी तीन पग में नाप लिये थे और राजा बलि के ऊपर आधे पग का कर्जा ही छोड दिया था उसी प्रकार से राजा दसरथ के द्वारा कैकेई को दिये गये दो वचन श्रीरामचन्द्र जी के लिये चौदह वर्ष का वनवास का कारण बने थे,और पुत्र वियोग में राजा दसरथ की मृत्यु का कारण बने थे।

इनके अन्दर भी मोह का रूप केवल अहम के रूप में था,अगर राजा बलि को यह अहम नही होता कि यह वावन अंगुल का पंडित क्या बडा मांग लेगा,तो कर्जाई नही बनते,और राजा दसरथ का वह अहम कि जब चाहेंगे तभी दो वचनों की पूर्ति कर देंगे,इसमे क्या बडा है तो इतनी बडी हानि नही भुगतनी पडती।

01/04/2017

दान का महत्व

अक्सर जीवन मे दान का महत्व है,माता अपने ममत्व को बच्चे के लिये दान करती है पिता अपने पुरुषार्थ के लिये अपने जीवन के की जाने वाली मेहनत का दान अपने बच्चे के लिये करता है,भाई अपने बाहुबल को दान करता है,बहिन अपने तरीके से सम्बन्ध बनाकर और समाज बनाकर अपने भाई के क्षेत्र का दान करती है,भाई अपनी बहिन के लिये आजीवन अपनी सहायता और शक्ति का दान करता है,बडा होकर बच्चा अपने माता पिता के वृद्ध होने पर उनकी देख रेख और भोजन का दान करता है,पत्नी पति को रति सुख प्रदान करती है,अपने द्वारा पति के लिये निस्वार्थ भाव से भोजन और पति सुख और आयु वृद्धि के प्रति पूजा पाठ करती है आगे के लिये वंश चलाने के प्रति अपनी कामना को समर्पित करती है।

बहू अपने स्वार्थ को त्याग कर पति के कुल मे शांति और सम्पन्नता बनाने के प्रति अपने ज्ञान का दान करती है,दामाद अपने बाहुबल और सम्मान के द्वारा अपने ससुराली जनो का मान बढाने में अपनी शक्ति का दान करता है। कुछ लोग अपने व्यवसाय स्थान पर बैठ कर रास्ता बताकर अपने ज्ञान का दान करते है,कुछ लोग प्यासों के लिये प्याऊ खुलवाकर धर्मशाला बनवा कर लोगों के जीवन को सर्दी गर्मी से बचाने के लिये अपने बाहुबल का दान करते है। हकीकत मे देखा जाये तो यह शरीर ही दान से और दान के लिये बना है। एक व्यक्ति एक लाख रोजाना कमा रहा है लेकिन वह अपने लिये मात्र कुछ सौ रुपया में अपना पेट भर लेता है,और बाकी का धन वह अपने परिवार के लिये जमा करता है कि वह अपनी संतान के लिये इतना इकट्ठा कर दे कि उसके बाद उसकी संतान किसी की मोहताज नही रहे और वह सुखी रहे। लेकिन इस सुखी रखने के कारणों में मोह पैदा हो जाता है,यह मोह करना ही उसकी भूल है और इसी मोह के चक्कर में शरीर से की जाने वाली मेहनत दान स्वरूप न होकर मोह के जंजाल में चली जाती है।

माता ने अगर पुत्र को जन्म देने के बाद यह सोच लिया कि उसका पुत्र बडा होकर उसकी पालना करेगा,उसकी सेवा करेगा,उसके लिये बहू लाकर उसकी आज्ञा का पालन करवायेगा तो माता का यह मोह उस समय बेकार हो जाता है जब लडका बडा होता है और अपनी मर्जी से शादी विवाह करने के बाद अपना घर अलग बसा लेता है माता अपने पुत्र के सहारे रहने के कारण और अपने लिये कुछ न बचाकर केवल पुत्र के लिये ही सब कुछ करने के बाद जब पुत्र पास से निकल जाता है और पत्नी के लिये सोचने लगता है तो माता का वह पालन पोषण से लेकर पढाने लिखाने और सभी साधन पुत्र के लिये जुटाने के प्रति बेकार हो जाता है। उस समय माता और पुत्र के बीच तनातनी चलती है और बहू जो दूसरे घर से आयी है उसके अन्दर यह भावना घर कर जाती है कि माँ केवल बेटे से धन का मोह करती है और बेटा माँ के कहे पर चलता है उसकी बात को नही सुनता है,इस प्रकार से तकरार बढ कर बडी तकरार बन जाती है,बेटा न तो माँ को छोड सकता है और न ही पत्नी को छोड सकता है,पत्नी के पास दो रास्ते होते है एक अपने माता पिता का और दूसरा कानून का,लेकिन माता के पास एक ही रास्ता होता है वह होता है

अपने पुत्र का,बहू या तो अपने माता पिता से प्रताणना दिलवाती है अथवा कानून का सहारा लेकर माता पिता को बजाय भोजन और सहायता देने के जेल की हवा दिलवाने का काम करती है,बेटे के सामने दो ही रास्ते होते है या तो वह बहू को लेकर अलग रहना शुरु कर दे या बहू को तलाक देकर फ़िर से माता पिता के कहने में चलने लगे,उसे दूसरा साधन ही सही लगता है,लेकिन इन सब के पीछे जो था वह माता का लोभ ही था,अगर माता ने पिता के साथ मिलकर पहले से ही पुत्र की शिक्षा के बाद उसे जीविका के साधन देकर अलग कर दिया होता,और बहू को पहले से ही अलग करने का मानस बना लिया होता तो जेल जाने की या प्रताणित होने की समस्या ही नही आती,यह सब मोह के कारण ही माना जा सकता है,जब पालने पोषणे मे कोई मोह नही था,अगर उस समय मोह होता तो डाक्टर के पास बच्चे के बीमार होने के बाद नही ले जाया गया होता,शिक्षा के स्थानों में एडमिसन नही करवाया गया होता,सर्दी गर्मी के समय में उसे कपडे और रहने के स्थान का बंदोबस्त भी नही करवाया गया होता,लेकिन जैसे ही वह कमाने लायक हुआ और माता के अन्दर मोह ने जन्म ले लिया।

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