18/09/2021
॥ कया है पितृ पक्ष और श्राद्ध???
और कया है इस का महत्व हमारे जीवन मे॥
20 सितंबर से 6 अक्टूबर तक
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से 16 दिवसीय श्राद्ध प्रारंभ होते हैं , लिहाजा 20 सितंबर से श्राद्ध की शुरुआत हो जाएगी और अश्विनी महीने की अमावस्या को यानी 6 अक्टूबर दिन बुधवार को समाप्त होंगे!
श्रद्धा से श्राद्ध बना है! श्रद्धापूर्वक किए कार्य को श्राद्ध कहते हैं ! श्राद्ध से श्रद्धा जीवित रहती है! श्रद्धा को प्रकट करने का जो प्रदर्शन होता है, वह श्राद्ध कहलाता है! जीवित पितरों और गुरुजनों के लिए श्रद्धा प्रकट करने- श्राद्ध करने के लिए , उनकी अनेक प्रकार से सेवा -पूजा तथा संतुष्टि की जा सकती है! परंतु स्वर्गीय पितरों के लिए श्रद्धा प्रकट करने का अपनी कृतज्ञता को प्रकट करने का कोई निमित्त बनाना पड़ता है! यह निमित्त है- श्रद्धा मृत पितरों के लिए कृतज्ञता के इन भावों का स्थिर रहना हमारी संस्कृति की महानता को ही प्रकट करता है! जिनके सेवा सत्कार के लिए हिंदुओं ने वर्ष में 15 दिन का समय पृथक निकाल लिया है, पित्र भक्ति का इससे उज्जवल आदेश और कहीं मिलना कठिन है! मरे हुए व्यक्तियों को श्राद्ध कर्म से कुछ लाभ है कि नहीं? इसके उत्तर में यही कहा जा सकता है कि होता है, अवश्य होता है! संसार एक समुद्र के समान है जिसमें जल कणों की भांति हर एक जीवन है! विश्व एक शिला है तो व्यक्ति एक परमाणु! जीवित या मृत आत्मा इस विश्व में मौजूद है और अन्य समस्त आत्माओं से संबंध है! संसार में कहीं भी अनीति, युद्ध, कष्ट, अनाचार, अत्याचार हो रहे हो तो सुदूर देशों के निवासियों के मन में भी उद्वेग उत्पन्न होता है! जाड़े और गर्मी के मौसम में हर एक वस्तु ठंडी और गर्म हो जाती है! छोटा सा यज्ञ करने पर भी उसके दिव्य गंध व भावना समस्त संसार के प्राणियों को लाभ पहुंचाती है! इसी प्रकार कृतज्ञता की भावना प्रकट करने के लिए किया हुआ श्राद्ध समस्त प्राणियों में शान्तिमयी सद्भावना की लहरें पहुंचाता है! यह सूक्ष्म भाव तरंगे तृप्तिकारक और आनंन्ददायक होती है! सद्भावना की तरंगे जीवित मृत सभी को तृप्त करती हैं परंतु अधिकांश भाग उन्हीं को पहुंचता है जिनके लिए वह श्राद्ध विशेष प्रकार से किया गया है! श्राद्ध को केवल रूढिमात्र को पूरा न कर लेना चाहिए वरन् पितरों के द्वारा जो हमारे ऊपर उपकार हुए हैं! उनका स्मरण करके उनके प्रति अपनी श्रद्धा और भावना की वृद्धि करनी चाहिए! साथ-साथ अपने जीवित पितरों को भी न भूलना चाहिए उनके प्रति भी आदर सत्कार और सम्मान के पवित्र भाव रखने चाहिए!