Dr Jaggi Ayurveda

Dr Jaggi Ayurveda Contact information, map and directions, contact form, opening hours, services, ratings, photos, videos and announcements from Dr Jaggi Ayurveda, Family medicine practice, 38-A Shivaji Park Central town next SBI ATM, Jalandhar.

12/04/2023

*MANAGEMENT OF ENLARGED TONSILS*
*बढ़े हुए टॉन्सिल्स का ईलाज*

टॉन्सिल्स का बढ़ना एक आम समस्या है, खासकर बच्चों और किशोरों में, जिससे निगलने में कठिनाई और बुखार होता है। लेकिन जब बैक्टीरियल इन्फैक्शन (Bacterial infection) के कारण टॉन्सिल्स लम्बे समय तक बढ़े रहते हैं, तो इससे बच्चे का विकास भी प्रभावित होता है। ऐसी स्थिति में, अधिकांश ऍलोपैथिक ई.ऍन.टी. सर्जन्स, टॉन्सिल्स को शल्य चिकित्सा से छेदन करने (Tonsillectomy) की सलाह देते हैं।

वहीं दूसरी ओर, आयुर्वेद के डॉक्टर निम्न 4 औषध-वर्गों का उपयोग करके टॉन्सिल्स को ठीक करके, बचाने का प्रयास करते हैं –

I. जीवाणुओं को मारने/वृद्धि को रोकने वाली जीवाणुहर औषधियाँ (Anti-bacterial Drugs);
II. सूजन को कम करने वाली शोथहर औषधियाँ (Anti-inflammatory Drugs);
III. प्रतिरक्षा बढ़ाने वाली ओजःवर्धक औषधियाँ (Immune-boosting Drugs); और
IV. दर्द और सूजन को दूर करने के वाली स्थानीय औषधियाँ (Locally acting Drugs)।

आईये, विस्तार से देखते हैं -

*I. जीवाणुओं को मारने/वृद्धि को रोकने वाली जीवाणुहर औषधियाँ (Drugs to stop growth / kill bacteria):*
आयुर्वेद में अनेकों औषधियाँ हैं जो जीवाणुओं की वृद्धि को रोक सकती हैं/ मार सकती (Anti-bacterial Drugs)हैं। इनमें मुख्य हैं -

_(A) प्रारम्भिक उपचार में प्रयुक्त औषधियाँ (Drugs used in initial treatment):_
शुरु के कुछ हफ्तों या महीनों में, संक्रमण को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करने के लिए निम्नलिखित दवाओं का उपयोग किया जा सकता है -
• *चिरायता (Chirayata)*, सुदर्शन चूर्ण, सुदर्शन घन वटी।
• *अतिविषा (Ativisha)*, जिसका उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है - अतिविषा घन टैब्लॅट बालचातुर्भद्र चूर्ण।

_(B) दीर्घकालीन उपचारः_
प्रारम्भिक सुधार के बाद, पूर्ण/अधिकतम सुधार के लिए, निम्न औषधियों का प्रयोग किया जा सकता है -
• *मञ्जिष्ठा (Manjishtha)*, जिसका उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है - मञ्जिष्ठा घन टैब्लॅॅट (Manjishtha Ghan Tab) व महा-मञ्जिष्ठादि क्वाथ।
• *सारिवा (Sariva)*, जिसका उपयोग निम्न प्रकार से किया जा सकता है - सारिवा घन टैब्लॅट (Sariva Ghan Tab), सारिवादि वटी।
• *निम्ब (Nimba)*,
• *चोपचीनी (Chopchini)*,
• *काञ्चनार (Kanchnar)*,

*II. सूजन कम करने के लिए इनमें मुख्य हैं:
• *शल्‍लकी (Shallaki)
• *एरण्डमूल
• *गुग्गुलु (Guggulu)*,

*III. प्रतिरक्षा बढ़ाने (Drugs to boost immunity):*

• *शिलाजीत शुद्ध
• *गुडुची
• *तुलसी (Tulasi)*,

*IV. स्थानीय औषधियाँ (Drugs that act locallyसूजन से राहत के लिए कुछ स्थानीय उपचारों का उपयोग करना अच्छा होता है।इनमें शामिल हैं:
• *कर्पूर
• *मैन्थॉल (Menthol)*,
• *थाइमोल (Thymol)*,
• *लोहबान (Loban)*,

25/01/2023

*TULASI
*तुलसी - अत्युत्तम अनुपान*
______________________

DrDinesh Jaggi
Dr. Namita Jaggi

चिकित्सा को सफल बनाने के लिए आयुर्वेद के आचार्यों ने अनेकानेक उपायों की खोज की। उनकी इन्हीं खोजों में से एक खोज है - अनुपान!

प्रश्न उठता है कि अनुपान क्या है? इसका उत्तर है - मुख्य औषधी (Primary Drug) के साथ-साथ, कुछ सहायक औषधियाँ भी दी जाती हैं, ताकि रोग जल्दी से जल्दी (Fast improvement) तथा अधिक से अधिक नष्ट (Maximum improvement) हो जाये। इन सहायक औषधियों को अनुपान कहते हैं।

*सबसे अधिक प्रयोग किए जाने वाला अनुपान (Commonly used supportive drug):*
हालाँकि, आयुर्वेद में अनेकों औषधियों को अनुपान के रूप में उपयोग किया जाता है, किन्तु एक औषध का उपयोग का बहुत अधिक होता है। वह औषध है - तुलसी (Tulasi)।

*तुलसी अनेक विकृतियों की नाशक है (Tulsi corrects many abnormalities):*
इसका कारण है कि तुलसी विभिन्न प्रकार की विकृतियों को नष्ट करने की क्षमता रखती है, जैसे -
• विभिन्न प्रकार के संक्रमण (Infection - Bacterial, Viral, Fungal, & Malaria);
• शोथ (Inflammation);
• वेदना (Pain);
• ज्वर-संताप (Fever);
• अर्बुद (Tumors);
• संकोच (Spasm);
• क्षीण रोग-प्रतिरोधक-क्षमता (Immune deficiency);
• आमविष (Auto-immunity);
• असात्म्यता (Allergy);
• धात्वग्निमांद्य (Low metabolic activities);
• रक्त-ग्रन्थि (Thrombosis);
• धातुक्षय (Tissue degeneration / premature death);
• स्थौल्य / शरीर में अत्यधिक वसा व मेदो-संचय (Obesity & Dyslipidemia);
• विभिन्न अंगावयवों की क्रियाहीनता (Hypo-activity of various organs and systems); इत्यादि।

*तुलसी असहायरोगों में उपयोगी है (Tulsi is useful in many diseases):*
उपरोक्त विभिन्न प्रकार की विकृतियों को नष्ट करने के कारण, अपनी चिकित्सा को सफल व प्रभावशाली बनाने के लिए, आप तुलसी का उपयोग अनेकानेक रोगों के उपचार में सहायक औषध (अनुपान) के रूप में कर सकते हैं। जैसे -
• शरीर के किसी भी अंगावयव में होने वाला जीवाणुज (Bacterial), विषाणुज (Viral), मधुरिका-जन्य (Fungal) संक्रमण (Infection);
• मलेेरिया-ज्वर (Malaria);
• शरीर के किसी भी अंगावयव में होने वाला शोथ (Inflammation), वेदना (Pain);
• ज्वर-संताप (Fever);
• अनूर्जता-जन्य रोग (Allergic disorders);
• आमविषज रोग (Auto-immune disorders);
• उच्च-रक्तचाप (High BP);
• हृदय-रोग (Heart diseases);
• स्मृतिह्रास (Weak memory);
• मेदो-रोग (High cholesterol / High Triglycerides);
• धमनी-प्रतिचय (Atherosclerosis);
• यकृत्-रोग (Liver disorders);
• मधुमेह (Diabetes);
• श्वास-रोग (Asthma);
• कास-रोग (Cough);
• हाइपो-थायराॅयडिज्म (Hypo-thyroidism);
• ओजःक्षय (Immune deficiency);
• कैंसर (Cancer);
• कीमोथैरॅपी-जन्य कुप्रभाव (Adverse effects of Chemo-protective);
• विकिरण से सुरक्षा (Radio-protection);
• आमविषज रोग (Auto-immune disorders);
• व्रण (Ulcers / Wounds);
• वातव्याधि (Neuro-endocrine disorders);
• मोतियाबिंद (Cataract);
• श्वित्र (Leucoderma); तथा
• रक्त-ग्रन्थि (Thrombosis)

*उपयोग कैसे करें (How to use)?*
उपरोक्त रोगों के उपचार के लिए तुलसी को निम्न रूप में उपयोग में ला सकते हैं -
1. तुलसी पत्र स्वरस: 5-10 ml;
2. तुलसी चाय: 3-6 ग्राम;
3. तुलसी घन (Extract): 600 - 1200 mg को जल में घोलकर पीयें;
4. *तुलसी घन टैब्लॅट (Tulasi Ghan Tablet)*: 1-2 टैब्लॅट्स, जल के साथ निगल जायें;
5. तुलसी अर्क (Distillate): 5-10 ml in water.

_सारांश:_
1. प्रत्येक रोगी को कोई न कोई औषध सहायक औषध (अनुपान) के रूप में प्रयोग अवश्य करायें;
2. तुलसी एक अत्यन्त लाभदायक सहायक औषध (अनुपान) है; आवश्यक होने पर इसका युक्तिपूर्वक उपयोग अवश्य करें।
________________________

098148 32828

19/01/2023

हैप्पी बर्थडे की जगह अब संस्कृत में बहुत ही अच्छा वाक्य / संगीत बनाया है सिर्फ दो ही लाईन है सभी लोग याद करें ..औरों को भी याद कराएं और इसका प्रयोग करें।👍
कृपया करके आप इसे आगे-आगे बढ़ाये

13/01/2023

*👌👍 सर गर्व से ऊंचा हो गया कम से कम भारत के एक महत्वपूर्ण स्तम्भ के एक आर्मी अफसर ने इस तथ्य पर गौर किया और एक्शन लिया इसके विरोध में। नमन है।
अभी तक कोई इस बात पर बोला नहीं था। मुझे एहसास हो रहा है अब जरूर कुछ अच्छा निर्णय होगा। आप सभी से निवेदन है इस वीडियो को वायरल करने में सहयोग करें। एक जवान की आवाज़ को दबने न दिया जाए। जय हिंद 🚩जय भारत 🙏🙏*

29/07/2021

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*चमत्कारी त्रिफला*

*त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड, बहेडा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है।जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार हैत्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एन्टिबायोटिक व ऐन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेन्सिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ़ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोज़मर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्त दोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक,जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्‍बे,गुरू नानक देव विश्‍वविद्यालय, अमृतसर और जवाहर लाल नेहरू विश्‍वविद्यालय में रिसर्च करनें के पश्‍चात यह निष्‍कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेलों को बढ़नें से रोकता है।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*हरड*

*हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली,पीलिया ,शोध ,मूत्राघात,दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्णरोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा ।*

*बहेडा *

*बहेडा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है,लगाने में ठण्डा व रूखा है, सर्दी,प्यास,वात , खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेडा मन्दाग्नि ,प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेडा न मिले तो छोटी हरड का प्रयोग करते है*

*आंवला *

*आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती।आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है,इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्तरोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आँवला और अनार पित्तनाशक है। आँवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढाने वाला होता है।*

*त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग ओषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गयी है *

*कुछ विशेषज्ञों कि राय है की ———*

*तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) सामान अनुपात में होने चाहिए*
*कुछ विशेषज्ञों कि राय है की यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए*
*कुछ विशेषज्ञों कि राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है*
*और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड, बहेडा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

* ऋतू के अनुसार सेवन विधि 😗
*1.शिशिर ऋतू में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला को आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।*
*2.बसंत ऋतू में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।*
*3.ग्रीष्म ऋतू में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।*
*4.वर्षा ऋतू में (14 जुलाई से 13 सितम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सैंधा नमक मिलाकर सेवन करें।*
*5.शरद ऋतू में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।*
*6.हेमंत ऋतू में (14 नवम्बर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सौंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।*

*ओषधि के रूप में त्रिफला*

*रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चुर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।*

*अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।*

*इसके सेवन से नेत्रज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।*

*सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुँह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।*

*शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढती है।*

*एक चम्मच बारीख त्रिफला चूर्ण, गाय का घी10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आँखों का मोतियाबिंद, काँचबिंदु, द्रष्टि दोष आदि नेत्ररोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।*

*त्रिफला के चूर्ण को गौमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।*

*त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ीबूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देती हैं।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*चर्मरोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।*

*एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाये और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुँह आने की बीमारी, मुहं के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी ।*

*त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिला कर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएँ कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द कि समस्या दूर हो जाती है।*

*त्रिफला एंटिसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इस का काढा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।*

*त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।*

*मोटापा कम करने के लिए त्रिफला के गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चरबी कम होती है।*

*त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।*

*त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गरमी से हुए त्वचा के चकतों पर लगाने से राहत मिलती है।*

*5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।*

*5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।*

*टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*त्रिफला दुर्बलता का नास करता है और स्मृति को बढाता है। दुर्बलता का नास करने के लिए हरड़, बहेडा, आँवला, घी और शक्कर मिला कर खाना चाहिए।*

*त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफे दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का सुद्धिकरन हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांती आ जाती है।*

*त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिला कर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधाशक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, काँचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।*

*डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।*

*दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।*

*विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरदपूर्णिमा की रात को चाँदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढँक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को काँच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*सेवन-विधिः बड़े व्यक्ति10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्त्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करे। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है.*

*मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ़ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।*

*सावधानीः दूध व त्रिफलारसायन कल्प के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए।*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

*घी और शहद कभी भी सामान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक जहर होता है ।*

*त्रिफला चूर्णके सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कोफ़ी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये।*

*त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखे और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।*

*त्रिफला से कायाकल्प*

*कायाकल्प हेतु निम्बू लहसुन ,भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है।आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828
कहते हैं कि

*एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।*

*दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता हैं।*

*तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ जाती है।*

*चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।*

*पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।*

*छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।*

*सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफ़ेद से काले हो जाते हैं।*

*आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धाव्स्था से पुन: योवन लोट आता है।*

*नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।*

*दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।*

*ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।*

*मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें।*

*आप अपने सगे संबंधियों व जाने अनजाने दोस्तों अर्थात हर इंसान तक इस संदेश को पहुँचाये।*

*अगर आप मेरी बातों से सहमत हो तो इसे अपने जानकारों तक ज्यादा से ज्यादा शेयर करें*

*डॉ दिनेश जग्गी +919814832828

वन्देमातरम*

03/09/2018

*📸 रात्रि 11 से 3 के दौरान आपके रक्त संचरण का अधिक भाग लीवर की ओर केन्द्रित होता है | जब लीवर अधिक खून प्राप्त करता है तब उसका आकार बढ़ जाता है | यह महत्त्वपूर्ण समय होता है जब आपका शरीर विषहरण की प्रक्रिया से गुजरता है | आपका लीवर, शरीर द्वारा दिन भर में एकत्रित विषाक्त पदार्थों को निष्क्रिय करता है और खत्म भी करता है |*
*यदि आप 11बजे सो जाते हैं तो आपके पास अपने शरीर को विषमुक्त करने के लिए पूरे चार घण्टे होते हैं |*
*यदि 12 बजे सोते हैं तो 3 घण्टे |*
*यदि 1बजे सोते हैं तो 2 घण्टे |*
*यदि 2 बजे सोते हैं तो केवल एक ही घण्टा विषाक्त पदार्थों की सफाई के लिए मिलता है |*
*अगर आप 3 बजे के बाद सोते हैं ? दुर्भाग्य से आपके पास शरीर को विषमुक्त करने के लिए कोई समय नहीं बचा | यदि आप इसी तरह से सोना जारी रखते हैं, समय के साथ ये विषाक्त पदार्थ आपके शरीर में जमा होने लगते हैं |*
*क्या आप कभी देर तक जागे हैं? क्या आपने महसूस किया है कि अगले दिन आपको बहुत थकान होती है, चाहे आप कितने भी घण्टे सो लें ?*
*शरीर को विषमुक्त करने का पूरा समय न देकर आप शरीर की कई महत्त्वपूर्ण क्रियाओं से भी चूक जाते हैं |*

*📸 प्रात: 3 से 5 के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपके लंग्स होते हैं |*
*इस समय आपको ताज़ी हवा में साँस लेना चाहिए और व्यायाम करना चाहिए | अपने शरीर में अच्छी ऊर्जा भर लेनी चाहिए, किसी उद्यान में बेहतर होगा | इस समय हवा एकदम ताज़ी और लाभप्रद अयनों से भरपूर होती है |*

*📸 प्रात: 5 से 7 के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपकी बड़ी आँत की ओर होता है | आपको इस समय शौच करना चाहिए | अपनी बड़ी आँत से सारा अनचाहा मल बाहर कर देना चाहिए | अपने शरीर को दिन भर ग्रहण किए जाने वाले पोषक तत्वों के लिए तैयार करें |*

*📸 सुबह 7 से 9 के बीच रक्त संचरण का केन्द्र आपका पेट या अमाशय होता है | इस समय आपको नाश्ता करना चाहिए | यह दिन का सबसे जरूरी आहार है | ध्यान रखें कि इसमें सारे आवश्यक पोषक तत्त्व हों | सुबह नाश्ता न करना भविष्य में कई स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का कारण बनता है |*

*📸 तो आपके पास अपने दिन की शुरुआत करने का आदर्श तरीका आ गया है l अपने शरीर की प्राकृतिक जैविक घड़ी का अनुसरण करते ~ अपनी प्राकृतिक दिनचर्या का पालन करें |*

*📸 क्या करें यदि कोई प्रायोजना कार्य देर रात तक करना पड़े ? क्यों न जल्दी सोकर और फिर जल्दी उठकर उसे पूरा करें | बस अपने देर रात के कामों को सुबह जल्दी करने की आदत डाल लें | आपको समान समय मिलेगा पर आपका तन उसे सराहेगा*।

आपका दिन शुभ हो

21/02/2018

🌹 *निरोगी रहने के नौ उपाय।* 🌹
*NINE WAYS TO BE HEALTHY*

*1) ताली बजाओ - रोग भगाओ !*
*CLAP FOR 2 MINS - REJUVINATE !*

*2) तलवा घिसिये - चेहरा चमकाइये !*
*RUB THE SOLES - SHINE THE FACE !*

*3) हथेली मलिए - ऊर्जा जगाइए !*
*RUB THE PALMS - AWAKEN ENERGY !*

*4) नाख़ून रगड़िये - बुढ़ापा झड़किये !*
*RUB THE NAILS - POSTPONE AGEING !*

*5) खुलकर हंसिए - सुस्ती भगाइए!*
*LAUGH OPENLY - FINISH LAZYNESS !*

*6) रोज सुबह टहलिए - दिन भर चार्ज रहिए !*
*WALK DAILY - WHOLE DAY BE CHARGED !*

*7) दस मिनिट दौड़िये - बीमारी का मुँह मोड़िये !*
*RUN FOR 10 MINS - AVOID SICKNESS !*

*8) कीजिये रोज डांस - रोगों को नही मिलेंगा चांस!*
*DAILY DANCE - ILLNESS NO CHANCE !*

*9) सुनिए संगीत - मन होगा पुलकित !*
*LISTEN MUSIC - REFRESH THE MIND !*

🌹 *स्वस्थ रहें - सदा खुश रहें* 🌹

09/02/2018

🌹अत्यधिक उभरी शिराएं (Varicose Veins)🌹

✡इस रोग में मनुष्य के शरीर में हृदय की तरफ रक्त ले जाने वाली शिरायें कुछ मोटी होकर शरीर के किसी भाग में दिखाई देती है लेकिन अधिकतर ये टांगों में दिखाई देती हैं। इस रोग में रोगी की टांगों में दर्द तथा सूजन हो जाती है और रोगी व्यक्ति को थकान महसूस होने लगती है।

🍁अत्यधिक उभरी शिराएं होने का कारण:-

✅💯 प्राचीन चिकित्सा के अनुसार हृदय की तरफ रक्त ले जाने वाली शिराओं में वाल्व लगे होते हैं जिसके कारण ही रक्त का प्रवाह एक दिशा की ओर होता है। कई प्रकार की बीमरियों (कब्ज, खानपान सम्बन्धी विकृतियां, गर्भावस्था से सम्बन्धित रोग) के कारण शिराओं के रक्त संचार में बाधा उत्पन्न हो जाती है जिसकी वजह से ये शिरायें फैल जाती हैं और रक्त शिराओं में रुककर जमा होने लगता है और सूजन हो जाती हैं और अन्य प्रकार की परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं। व्यायाम की कमी, बहुत समय तक खड़ा रहना, अधिक तंग वस्त्र, अधिक मोटापा के कारण भी यह रोग हो जाता है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा महिलाओं को अधिक होता है क्योंकि आजकल रसोईघर में खड़े होकर ही भोजन बनाया जाता है।

♦अत्यधिक उभरी शिराएं होने का लक्षण♦

पौराणिक चिकित्सा के अनुसार इस रोग के कारण रोगी व्यक्ति के टांगों में दर्द होता है तथा रोगी व्यक्ति को थकान और भारीपन महसूस होता है। रोगी के टखने सूज जाते हैं। रात के समय टांगों में ऐंठन होने लगती है तथा त्वचा का रंग बदल जाता है और उसके निचले अंगों में त्वचा के रोग भी हो जाते हैं।

👌💯अत्यधिक उभरी शिराएं से पीड़ित व्यक्ति का आयुर्वेदिक चिकित्सा से उपचार :-

1. इस रोग का उपचार करने के लिए रोगी व्यक्ति को नारियल का पानी, जौ का पानी, हरे धनिये का पानी, खीरे का पानी, गाजर का रस, पत्तागोभी, पालक का रस आदि के रस को पी कर उपवास रखना चाहिए तथा हरी सब्जियों का सूप भी पीना चाहिए। इसके बाद कुछ दिनों तक रोगी व्यक्ति को फल, सलाद तथा अंकुरित दालों को भोजन के रूप में सेवन करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को वे चीजें अधिक खानी चाहिए जिनमें विटामिन सी तथा ई की मात्रा अधिक हो। उसे नमक, मिर्च मसाला, तली-भुनी मिठाइयां तथा मैदा नहीं खाना चाहिए।

2. इस रोग से पीड़ित रोगी को गरम पानी का एनिमा भी लेना चाहिए तथा इसके बाद रोगी व्यक्ति को कटिस्नान करना चाहिए और फिर पैरों पर मिट्टी का लेप करना चाहिए। यदि रोगी व्यक्ति का वजन कम हो जाता है तो मिट्टी का लेप कम ही करें। जब रोगी व्यक्ति को ऐंठन तथा दर्द अधिक तेज हो रहो हो तो गर्म तथा इसके बाद ठण्डे पानी से स्नान करना चाहिए। रोगी व्यक्ति को गहरे पानी में खड़ा करने से उसे बहुत लाभ मिलता है।

3. इस रोग से पीड़ित रोगी को सोते समय पैरों को ऊपर उठाकर सोना चाहिए, इससे रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है।
4. गरम पानी में एप्सम साल्ट डालकर गरम - ठंडा पॉव स्नान 2-3 महीने तक नियमित करने से रोग बिल्कुल ठीक हो जाता है |
✅💯 इस रोग को ठीक करने के लिए कई प्रकार के आसन भी हैं जिसे प्रतिदिन सुबह के समय में करने से यह रोग जल्दी ही ठीक हो जाता है।

🍇ये आसन निम्नलिखित हैं-

1. विपरीतकरणी

2. सूर्य नमस्कार

3. सर्वागासन

4. शीर्षासन

5. पवनमुक्तासन

6. उत्तानपादासन

7. योगमुद्रासन

🔆 इस प्रकार की यौगिक क्रिया तथा आसन करने से रोगी व्यक्ति को बहुत अधिक लाभ मिलता है तथा रोगी का स्वास्थ्य भी बना रहता है और कु छ ही दिनों में रोग ठीक हो जाता है।
🌹🌹 For more consultaion or medicine
Plz contact
www.drjaggiayurveda.com
Or
Dr Dinesh Jaggi
08556092309🌹🌹

03/02/2018

Dr Jaggi Ayurveda

देसी गाय का घी

“देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग”

"देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग" गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
“देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग” गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
शरीर को सेहतमंद रखने के लिए घी का काफी प्रयोग किया जाता है। अगर कोई बूढ़ा व्यक्ति भी गाय के घी का रोज़ सेवन करेगा तो वह भी जवान और हष्टपुष्ट हो जाएगा।
तो आइए देखते हैं गाय के घी के क्या-क्या लाभ हो सकते हैं;
१ गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर हो जाता है और नित्य अगर आप गाय के घी को अपनी नाक में डालेंगे तो आपके शरीर की सारी एलर्जी दूर हो जाएगी।
२ गाय के घी को नाक में डालने से नजला जुकाम माइग्रेन जैसे रोग में भी आप का उपचार होता है
३ ;20 या 25 ग्राम गाय के घी के अंदर अगर कुछ मिश्री मिलाकर खाएंगे तो इससे आपका शराब गांजा और भांग का नशा जल्दी उतर जाता है
४ कान दर्द का इलाज करेगा कि अगर आप भी गाय के घी को अपनी नाक में डालेंगे तो आपके कान दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है और यदि आपको कान के दर्द का ऑपरेशन कराना है तो उसके लिए भी काफी अच्छा उपचार है
५ अगर आप डेल्ही गाय का घी डालेंगे तो आपके शरीर की खुश्की दूर हो जाती है और आपका दिमाग भी तेज़ होता रहता है और आप देखेंगे कि आपको मानसिक तनाव और डिप्रेशन जैसी बीमारी नहीं लगेगी।
6 गाय के घी को नाक में डालने से बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है और आपके बाल घने और मजबूत बनते हैं हाथ पैरों पर जलन होने पर हाथ पैरों के तलवों की मालिश पैरों में दर्द रहता है तो वह समस्या दूर हो जाएगी।
7 गाय के घी की पीठ और छाती पर मालिश करेंगे और कोई शिकायत नहीं होगी क्योंकि छोटे बच्चों को सर्दी और जुकाम की शिकायत रहती है
८ गाय का घी कैंसर वाले सेल्स को भी खत्म करता है तो अगर आप दिल्ली एक चम्मच गाय के घी का सेवन करेंगे तो आपके शरीर में ब्रेस्ट कैंसर कोलोन कैंसर योर माउथ कैंसर कभी भी नहीं होगा
९ जिन लोगों को हाथ में तेरा हाथ रिलेटेड प्रॉब्लम होती है उन लोगों को अक्सर डॉक्टर चिकनाई आने के लिए मना करते हैं तो ऐसे नहीं उनको गाय का घी का इस्तेमाल करना चाहिए गाय की कीमत से पोषक तत्व होते हैं जो उनके हाथ रिलेटेड प्रॉब्लम को दूर करता है
१० दिल के पेशेंट को अपनी लाइफ में गाय के घी का इस्तेमाल जरुर करना चाहिए यह कोलेस्ट्रॉल को कम करें
११ अगर आप भी अपने बढ़ते मोटापे से परेशान हो गए हैं तो आपको डालडा और रिफाइंड तेल छोड़कर गाय के घी का इस्तेमाल करना चाहिए शरीर के मोटापे को कम करता है और आपकी बॉडी के कोलेस्ट्रॉल को भी काम करेगा
यह गाय के घी के ज़बरदस्त फायदे आप भी अपनी हेल्थ को और सुधारना चाहते हैं तो गाय के घी का इस्तेमाल शुरू कर दीजिए
पर्यावरण शुद्धि में लाभ
पुराना घृत : गाय का घी जितना पुराना होता जाता है, उतना ही गुणवर्ध्दक होता जाता है। पुराना घी तीक्ष्ण, खट्टा, तीखा, उष्ण, श्रवण शक्ति को बढ़ाने वाला घाव को मिटाने वाला, योनि रोग, मस्तक रोग, नेत्र रोग, कर्ण रोग, मूच्छा, ज्वर, श्वांस, खांसी, संग्रहणी, उन्माद, कृमि, विष आदि दोषों को नष्ट करता है। दर वर्ष पुराने घी को कोंच, ग्यारह वर्ष पुराने घी को महाघृत कहते हैं।
गो घृत के प्रयोग : यज्ञ में देशी गाय के घी की आहुतियां देने से पर्यावरण शुध्द होता है। गाय के घी में चावल मिलाकर यज्ञ में आहुतियां देने से इथिलीन आक्साइड और फाममोल्डिहाइड नामक यौगिक गैस के रूप में उत्पन्न होते हैं। इससे प्राण वायु शुध्द होती है। ये दोनों यौगिक जीवाणरोधक होते हैं। इनका प्रयोग आपरेशन थियेटर को कीटाणु रहित बनाने में आज भी किया जाता है।

Disclaimer – results varies from person to person

03/02/2018

Dr Jaggi Ayurveda

देसी गाय का घी

Home / Health / देसी गाय का घी

“देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग”

"देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग" गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
“देसी गाय के घृत का चिकित्सा में उपयोग” गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
गाय के घी के लाभ, गाय के घी के प्रयोग
शरीर को सेहतमंद रखने के लिए घी का काफी प्रयोग किया जाता है। अगर कोई बूढ़ा व्यक्ति भी गाय के घी का रोज़ सेवन करेगा तो वह भी जवान और हष्टपुष्ट हो जाएगा।
तो आइए देखते हैं गाय के घी के क्या-क्या लाभ हो सकते हैं;
१ गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर हो जाता है और नित्य अगर आप गाय के घी को अपनी नाक में डालेंगे तो आपके शरीर की सारी एलर्जी दूर हो जाएगी।
२ गाय के घी को नाक में डालने से नजला जुकाम माइग्रेन जैसे रोग में भी आप का उपचार होता है
३ ;20 या 25 ग्राम गाय के घी के अंदर अगर कुछ मिश्री मिलाकर खाएंगे तो इससे आपका शराब गांजा और भांग का नशा जल्दी उतर जाता है
४ कान दर्द का इलाज करेगा कि अगर आप भी गाय के घी को अपनी नाक में डालेंगे तो आपके कान दर्द जल्दी ही ठीक हो जाता है और यदि आपको कान के दर्द का ऑपरेशन कराना है तो उसके लिए भी काफी अच्छा उपचार है
५ अगर आप डेल्ही गाय का घी डालेंगे तो आपके शरीर की खुश्की दूर हो जाती है और आपका दिमाग भी तेज़ होता रहता है और आप देखेंगे कि आपको मानसिक तनाव और डिप्रेशन जैसी बीमारी नहीं लगेगी।
6 गाय के घी को नाक में डालने से बाल झड़ने की समस्या दूर हो जाती है और आपके बाल घने और मजबूत बनते हैं हाथ पैरों पर जलन होने पर हाथ पैरों के तलवों की मालिश पैरों में दर्द रहता है तो वह समस्या दूर हो जाएगी।
7 गाय के घी की पीठ और छाती पर मालिश करेंगे और कोई शिकायत नहीं होगी क्योंकि छोटे बच्चों को सर्दी और जुकाम की शिकायत रहती है
८ गाय का घी कैंसर वाले सेल्स को भी खत्म करता है तो अगर आप दिल्ली एक चम्मच गाय के घी का सेवन करेंगे तो आपके शरीर में ब्रेस्ट कैंसर कोलोन कैंसर योर माउथ कैंसर कभी भी नहीं होगा
९ जिन लोगों को हाथ में तेरा हाथ रिलेटेड प्रॉब्लम होती है उन लोगों को अक्सर डॉक्टर चिकनाई आने के लिए मना करते हैं तो ऐसे नहीं उनको गाय का घी का इस्तेमाल करना चाहिए गाय की कीमत से पोषक तत्व होते हैं जो उनके हाथ रिलेटेड प्रॉब्लम को दूर करता है
१० दिल के पेशेंट को अपनी लाइफ में गाय के घी का इस्तेमाल जरुर करना चाहिए यह कोलेस्ट्रॉल को कम करें
११ अगर आप भी अपने बढ़ते मोटापे से परेशान हो गए हैं तो आपको डालडा और रिफाइंड तेल छोड़कर गाय के घी का इस्तेमाल करना चाहिए शरीर के मोटापे को कम करता है और आपकी बॉडी के कोलेस्ट्रॉल को भी काम करेगा
यह गाय के घी के ज़बरदस्त फायदे आप भी अपनी हेल्थ को और सुधारना चाहते हैं तो गाय के घी का इस्तेमाल शुरू कर दीजिए
पर्यावरण शुद्धि में लाभ
पुराना घृत : गाय का घी जितना पुराना होता जाता है, उतना ही गुणवर्ध्दक होता जाता है। पुराना घी तीक्ष्ण, खट्टा, तीखा, उष्ण, श्रवण शक्ति को बढ़ाने वाला घाव को मिटाने वाला, योनि रोग, मस्तक रोग, नेत्र रोग, कर्ण रोग, मूच्छा, ज्वर, श्वांस, खांसी, संग्रहणी, उन्माद, कृमि, विष आदि दोषों को नष्ट करता है। दर वर्ष पुराने घी को कोंच, ग्यारह वर्ष पुराने घी को महाघृत कहते हैं।
गो घृत के प्रयोग : यज्ञ में देशी गाय के घी की आहुतियां देने से पर्यावरण शुध्द होता है। गाय के घी में चावल मिलाकर यज्ञ में आहुतियां देने से इथिलीन आक्साइड और फाममोल्डिहाइड नामक यौगिक गैस के रूप में उत्पन्न होते हैं। इससे प्राण वायु शुध्द होती है। ये दोनों यौगिक जीवाणरोधक होते हैं। इनका प्रयोग आपरेशन थियेटर को कीटाणु रहित बनाने में आज भी किया जाता है।

Disclaimer – results varies from person to person

26/01/2018

*बाँझपन*

*Female Infertility
➖➖➖➖➖➖➖➖
*बाँझपन क्या होता हैं?*
➖➖➖➖➖➖➖➖
किसीभी महिला के लिए बांझपन दुनिया का सबसे बड़ा गम होता हैं| इसमें महिला को माँ बनने के सुख से वंचित रहना पड़ता हैं| और आप ये भी कह सकते हैं बांझपन एक ऐसी बीमारी होती हैं जिसमे महिला गर्भधारण नहीं कर सकती हैं| इस स्थिति का होना किसी भी महिला के लिए बहुत ही बुरा होता हैं| क्योंकि माँ बनना हर महिला का सपना होता हैं| परंतु किसी महिला के साथ ऐसी समस्या होने पर उसे बहुत बड़ा झटका लग सकता हैं|

बांझपन के बहुत से कारण हो सकते हैं|

कई बार महिलाएं गर्भधारण तो करती हैं, परंतु बार-बार गर्भपात के कारण बाद में उनका गर्भधारण नहीं हो पाता हैं!

*महिला में बाँझपन के कौन-कौन से कारण होते हैं:-*

1⃣ *मासिक धर्म की समस्या होने पर:

जिन महिलाओ को मासिक धर्म से जुडी समस्या होती है या जिन महिलाओ को मासिक धर्म नहीं आता हैं| उन महिलाओ को बाँझपन की शिकायत होती हैं| क्योंकि इसके कारण ओवरीज़ में अंडे नहीं बन पाते हैं| और यदि महिला की ओवरीज़ में अंडे ही नहीं होंगे| तो पुरुष के शुक्राणु की निषेचन की क्रिया ही नहीं होगी|

2⃣ *महिलाओ की ट्यूब्स खराब होने पर:-*

महिलाओ के गर्भाशय में ट्यूब्स होती हैं जो गर्भधारण के लिए बहुत जरुरी होती हैं| कई बार वो ट्यूब्स खराब हो जाती हैं!

3⃣ *ज्यादा उम्र होने के कारण

कई बार जो महिलाये ३५ के बाद माँ बनने के बारे में सोचती हैं उन महिलाओ में कई बार अंडे से पुरुष के शुक्राणु से मिलने वाली निषेचन प्रक्रिया नहीं हो पाती हैं| जिसके कारण महिला माँ बनने के सुख से वंचित रह जाती हैं| इससे भी बाँझपन जैसी समस्या कड़ी हो जाती हैं|

4⃣ *गर्भाशय से सम्बंधित परेशानी

कई बार महिलाओ के गर्भाशय में ही कोई परेशानी हो जाती हैं| जिसके कारण उसमे बच्चा नहीं ठहर पाता हैं!

5⃣ *यौंन रोग होने के कारण:-*

जो महिलाये योंन रोग यानि संक्रमण के रोग से ग्रसित होती हैं उन महिलाओ को भी इस समस्या का सामना करना पड़ सकता हैं| क्योंकि योंन रोग होने के कारण उनका शरीर कई बार इस प्रक्रिया के लिए सक्षम नहीं होता हैं, जिसके कारण बाँझपन जैसी परेशानी हो जाती हैं|
6⃣ *अंडाणुओं का निर्माण न होना;-*
महिला को गर्भवती होने के लिए सबसे जरुरी होता हैं की उनके गर्भाशय में अंडे जरूर बनने चाहिए|

*अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करे:-*

☎ 09814832828

Address

38-A Shivaji Park Central Town Next SBI ATM
Jalandhar
144001

Telephone

9814832828

Website

Alerts

Be the first to know and let us send you an email when Dr Jaggi Ayurveda posts news and promotions. Your email address will not be used for any other purpose, and you can unsubscribe at any time.

Contact The Practice

Send a message to Dr Jaggi Ayurveda:

Share

Share on Facebook Share on Twitter Share on LinkedIn
Share on Pinterest Share on Reddit Share via Email
Share on WhatsApp Share on Instagram Share on Telegram