01/02/2024
कैंसर से बचने के लिए अनियमित आचरण छोड़ें और आंतरिक शक्ति को जगाएं
विश्वभर में कैंसर एक ऐसी बीमारी है, जिसमें सबसे ज्यादा लोगों की मौत होती है। आज विश्वभर में सबसे ज्यादा मरीज इसकी चपेट में हैं। इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने हर साल 4 फरवरी कोविश्व कैंसर दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया, ताकि इस भयावह बीमारी के प्रति लोगों में जागरूकता आए।
कैंसर एक ऐसी भयावह बीमारी, जिसकी चपेट में हर साल हजारों लोग मौत की दहलीज पर खड़े रहते हैं। हमारा मकसद कैंसर की बीमारी का नफा-नुकसान बताना नहीं बल्कि लोगों को इसके प्रति जागरूक करना है ताकि कोई दूसरा व्यक्ति इस बीमारी से प्रभावित न हो। हम सभी के दिल और दिमाग में यह बीमारी मृत्यु के पर्यायवाची के रूप में अंकित हो गई है। अज्ञानता के कारण हम इस बीमारी को सही स्टेज पर नहीं पहचान पाते, जिस कारण मरीज को बचाना मुश्किल हो जाता है। यह इतनी भयावह नहीं, जितना हम मानते हैं।
कैंसर होने के मुख्य कारण : -
● उम्र का बढ़ना
● किसी भी प्रकार का इरिटेशन
● तम्बाकू का सेवन
● विकिरणों का प्रभाव
● आनुवंशिकता
● शराब का सेवन
● इन्फेक्शन
● मोटापा
डब्ल्यूएचओ द्वारा तय किए लक्षण :-
विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी डब्ल्यूएचओ ने इस बीमारी को भयावह माना है और बताया है कि इन लक्षणों से इसे पहचाना जा सकता है।
● लंबे समय तक गले में खराश होना।
● लगातार खांसी आना।
● आहार निगलने में दिक्कत होना।
● शरीर में गांठ पड़ना और बाद में उसमें दर्द होना
● कहीं से भी पानी या रक्त बहाव होना।
● त्वचा में मस्सा या तिल में तात्कालिक परिवर्तन।
● आवाज बदल जाना।
● वजन में गिरावट होना।
● बुखार आना।
● रक्त में शर्करा संतुलन मे न रहना
● मधुमेह का घाव व सड़न
● मानसिक रोगों से ग्रस्त रहना, चिन्ता करना, गुस्सा करना, दुःखी रहना
कोशिकाओं का अनियंत्रित विभाजन ही कैंसर : कैंसर को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि इसके होने का कारण क्या है...? हमारा शरीर असंख्य कोशिकाओं से बना है। यह कोशिकाएं आवश्यकता अनुरूप अत्यंत ही नियंत्रित प्रणाली के द्वारा विभाजित होती हैं और जब आवश्यकता नहीं होती है, तब यह विभाजित नहीं होतीं।
इन्हीं कोशिकाओं में कभी आनुवंशिक बदलाव आने से इनकी नियंत्रित विभाजन प्रणाली पूर्णरूप से खत्म हो जाती है और फिर हमारी कोशिकाएं असामान्य रूप से विभाजित होने लगती हैं। कोशिकाओं के इस अनियंत्रित विभाजन को हम कैंसर कहते हैं।
रक्त की धमनियों से पहुंचता है अंगों में : कैंसर शुरुआती अवस्था में अपने प्राथमिक अंग में रहता है, धीरे-धीरे यह रक्त की धमनियों के द्वारा बहकर दूसरे अंगों में फैल जाता है। इस प्रक्रिया को मटास्टेसिस कहते हैं। यह बीमारी इसी कारण होती है। दरअसल, कैंसर का फैलाव चार चरणों में होता है। पहली स्टेज में कैंसर शुरुआती अवस्था में अपने प्राथमिक अंग में सीमित रहता है और अंतिम चरण में यह बीमारी शरीर के दूसरे अंगों में फैल जाती है।
ऐसे समझें : कैंसर के आमलोगों की भाषा में समझाना चाहता हूँ कि किसी कारण वश चिन्ता, गुस्सा, डिप्रेशन, घुट घुट कर जीने की वजह से मस्तिष्क की ओर होने वाले रक्त प्रवाह में अवरोध आ जाता है और रक्त प्रवाह (ऑक्सीजन) न हो पाने से वहाँ पर सफाई नहीं हो पाती और वहाँ कूड़ा (कार्बन डाई ऑक्साइड) जमा होने लगता है और वह सड़ने लगता है, उसी का नाम कैंसर है। भगवान ने मुँह दिया है सिर्फ खाना खाने के लिये, जीवन निर्वाह करने के लिये; पर लोग उसे पान, गुटका, गुड़ाकू, भांग, खैनी, खाकर गाल जैसे सूक्ष्म माँसपेशी को बार-बार संचालित करवा कर फाइब्रोसिस में परिणित कर देते हैं जिसकी वजह से वहाँ रक्त प्रवाह होने में असमर्थ हो जाता है और वह धीरे-धीरे कैंसर का रूप धारण कर लेता है। ऐसे ही प्रोस्टेट कैंसर, पेट के कैंसर, हड्डियों में रक्त कैंसर जैसे मामले देखे जाते हैं। कुछ ऐसे भी कैंसर हैं जो मुख्यतया स्ट्रेस और मानसिक तनाव के कारण होते हैं। मानसिक तनाव रहने के कारण जगह –जगह रक्त का संचालन बंद कर देता है और वहाँ पर जीवकोषों में ऑक्सीजन और कार्बनडाइआक्साइड का आदान-प्रदान बंद हो जाता है और जीवकोष सड़ने लगता है और कैंसर का फैलाव होने लगता है। कैंसर का बैक्टीरिया/वायरस कोई बाहर से उड़कर या किसी के द्वारा नहीं आता है अपितु जीव कोष खुद उसे बनाता है।
कैंसर की रोकथाम
● तंबाकू उत्पादों का प्रयोग न करें।
● कम वसा वाला भोजन करें तथा सब्जी, फलों और समूचे अनाजों का उपयोग अधिक करें।
●पशु प्रोटीन छोड़कर पौध प्रोटीन का व्यवहार करें।
● नियमित व्यायाम करें।
विशेषज्ञों ने यह कहा है : मनुष्य यदि प्रकृति के नियमों का उल्लंघन नहीं करे तो वह सरलता से अद्भुत रोग प्रतिरोधक शक्ति उत्पन्न कर सकता है। अतः मनुष्य का पहला प्रयास यह होना चाहिए कि वह प्रकृति-पुत्र के रूप में इतना शक्तिमान बन जाए जिससे वह किसी भी रोग काे आसानी से पराजित कर सके। प्रत्येक मनुष्य में ईश्वर के एक अन्यान्य उपहार के रूप में पाई जाने वाली प्रतिरोधात्मक शक्ति को प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं मॉण्डियल यूनिवर्सिटी के एक्सपेरिमेंटल मेडिसिन एंड सर्जरी के डायरेक्टर डॉ. हान्स सिल्व ने 'एडॅप्टेशन एनर्जी' नाम से संबोधित किया है। यह सिद्ध हो चुका है कि यह शक्ति भौतिक, रासायनिक और मानसिक तनाव का सामना करती है और मनुष्य स्वस्थ व निरोगी रहता है। ' कैंसर' नामक बीमारी का नामकरण करने वाले सुप्रसिद्ध चिकित्सक एवं दार्शनिक हिपोक्रेटस ने कहा था कि 'आप अपने आहार को ही औषधि बनाइए।'
क्लोरोफिल : कैंसर पर विजय पाने में भी प्रकृति सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाती है, बशर्ते पूर्ण इच्छाशक्ति और निष्ठा सहित इसके कतिपय नियमों का अनुसरण किया जाए। 'क्लोरोफिल' नामक अत्यंत उपयोगी तत्व सभी हरे पदार्थों जैसे पत्तियों, गेहूँ के ज्वारों एवं सब्जियों आदि में प्रचुरता से पाया जाता है। क्लोरोफिल को हरे रक्त के नाम से भी पहचाना जाता है, क्योंकि क्लोरोफिल एवं रुधिर की रासायनिक संरचना लगभग समान ही है।
गेहूं का ज्वारा : अमेरिका के आहार एवं घास विशेषज्ञों का एक समूह है जो निरंतर विभिन्न किस्म की घास एवं पादपों के अध्ययन में प्रयासरत है। इन्हीं में से एक डॉक्टर्स अर्प थॉमस ने अपने जीवन की आधी शताब्दी अर्थात 50 वर्ष मात्र विविध किस्म की घासों के अध्ययन में लगा दिए और अपने शोधपत्रों में उन्होंने उल्लेख किया कि गेहूँ की घास अर्थात ज्वारे अन्य सभी प्रकार की घास से श्रेष्ठ हैं। गेहूँ के ज्वारे का सेवन करने से मनुष्य को प्रत्येक प्रकार का पोषण प्राप्त हो जाता है। एक किलो गेहूँ में ज्वारे से ही जो पोषण ऊर्जा प्राप्त हो जाती है वह लगभग तेईस किलो साग-सब्जियों से प्राप्त होती है।
आंतरिक अनियमितताएं : कैंसर मनुष्य पर किसी बाहरी विषाणु, जीवाणु या कीट का आक्रमण नहीं होकर यह स्वयं मनुष्य के शरीर में कोशिकाओं का असामान्य प्रसार है। इसका अर्थ एक मायने में यह हुआ कि कैंसर मनुष्य शरीर की आंतरिक अनियमितताओं के परिणामस्वरूप ही उत्पन्न होता है। अतः मनुष्य यदि इन अनियमितताओं को प्रयास करके नियमित और स्थिर कर ले तो कैंसर नष्ट भी हो सकता है। सभी रोग बाहरी रोगाणुओं के आक्रमण से होते हैं, फिर कैंसर के साथ किसी रोगाणु का नाम ही नहीं जुड़ा है, तो कैंसर भी रोग नहीं होकर सही अर्थ में एक अनियमितता है।
रोगाणुओं से नहीं होता कैंसर : कैंसर होने के पश्चात सर्वप्रथम इसी तथ्य को स्मरण रखना आवश्यक है कि कैंसर वास्तव में कोई रोग हो ही नहीं सकता। 'रोग' यह नाम उन्हीं बीमारियों को कहा जाता है जिन्हें रोगाणुओं द्वारा फैलाया जाता है। जब कैंसर रोगाणुओं द्वारा फैलाया ही नहीं जाता था तब वह रोग किस प्रकार हुआ। इसी कारण चरक-संहिता या सुश्रुत संहिता में इसका उल्लेख नहीं होना ही सिद्ध करता है कि 'कैंसर' यह रोग की श्रेणी में ही रखा नहीं जा सकता।
आंतरिक शक्ति को जागृत करें : यह संभव हो सकता है। कैंसर को मात्र एक ही व्यक्ति पूर्ण नष्ट कर सकता है और वह व्यक्ति वही है जिसे कैंसर हुआ है। अपनी आंतरिक शक्ति को जागृत कर लें तो नि:संदेह कैंसर नष्ट हो सकता है। आजकल बाजार में गेहूँ से भी कारगर हाई प्रोटीन युक्त अल्फाअल्फा पौधे से बना क्लोरोफिल उपलब्ध है।
कैंसर रोग के आचरण के अनुसार होम्योपैथी ही एकमात्र चिकित्सा पद्धति है जो इसके लिए उपयुक्त बैठती है। होम्योपैथी में काफी औषधियाँ उप्लब्ध हैं जो कैंसर में किसी न किसी रूप से आपको मदद पहुंचाने में सहायता करती हैं। अधिक जानकारी एवं चिकित्सा के लिये होम्योपैथी के किसी योग्य चिकित्सक से मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।