09/04/2025
थाईलैंड के एक अस्पताल में वो दृश्य किसी फ़िल्मी कल्पना से कम नहीं था—धरती बुरी तरह काँप रही थी, जैसे कोई अदृश्य शक्ति उसे झकझोर रही हो। चारों ओर अफरा-तफरी, चीख-पुकार और डर का माहौल। उस समय अस्पताल के ऑपरेशन थिएटर में एक मरीज़ का ऑपरेशन चल रहा था, और ठीक उसी समय आया एक भयंकर भूकंप… इतना तीव्र, कि खड़े रहना भी मुश्किल।
ऐसी स्थिति में एक सामान्य इंसान की पहली प्रतिक्रिया यही होती—जान बचाकर किसी सुरक्षित जगह की ओर भाग जाना। जान है तो जहान है। फिर परिजनों को ढूंढना, उन्हें सुरक्षित देखने की कोशिश करना। यह स्वाभाविक है।
लेकिन उस दिन हमने सिर्फ़ मानवीय नहीं, बल्कि *दैवीय* प्रतिक्रिया देखी।
ऑपरेशन थिएटर में मौजूद डॉक्टर्स और नर्सेस ने अपने पैरों के नीचे डोलती ज़मीन को नज़रअंदाज़ कर दिया। उन्होंने न खुद को बचाने की कोशिश की, न दरवाज़े की ओर दौड़े—बल्कि अपने दोनों हाथों से मरीज़ को कसकर थामे रखा… एक ऐसा मरीज़ जो न हिल सकता था, न भाग सकता था।
उनकी आँखों में डर नहीं था, बल्कि *कर्तव्य का संकल्प* था। उनकी सोच में अपनी नहीं, *किसी और की ज़िंदगी* थी। ये सिर्फ़ प्रोफेशन नहीं था—ये समर्पण, सेवा और इंसानियत का सबसे सुंदर रूप था।
इस धरती पर अगर भगवान होते हैं, तो शायद ऐसे ही रूप में होते होंगे—सफेद कोट में, कांपती ज़मीन पर अडिग खड़े, किसी अजनबी की ज़िंदगी बचाने में जुटे।
इन डॉक्टर्स और नर्सेस को कोटि-कोटि नमन। *आप वास्तव में धरती के देवता हैं।*
**Hats off to your courage, compassion, and commitment.**